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वातावरण सम्बन्धी कारक (Environmental Factor)
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित दो कारको को सम्मिलित किया गया है-
1) सामाजिक कारक (Social Factor) – प्रत्येक व्यक्ति एक समाज में रहता है तथा समाज मे रहकर ही सामाजिक सम्बन्धों का विकास करता है। उसके व्यक्तित्व के विकास पर समाजिक परिस्थितियों, सामाजिक समूहों, सामाजिक संस्थानों, परिवार, पास-पड़ोस आदि का अधिक प्रभाव पड़ता है। समाज में ही रहकर वह वातावरण के विभिन्न उद्दीपकों के सापेक्ष अनुक्रिया करता है। सामाजिक नियमों व प्रतिबंधों को स्वीकार करते हुए ही समाज में अपना स्थान बनाने का प्रयास करता है। सामाजिक वातावरण में अनेक ऐसी संरचनाएँ हैं जो व्यक्तित्व के विकास को किसी न किसी रूप मे उल्लेखनीय रूप से प्रभावित करती हैं। मनोवैज्ञानिकों ने इन कारकों से सम्बंधित बहुत से प्रयोगों का भी वर्णन किया है।
इन सभी कारकों की व्याख्या यहाँ संभव नही है परन्तु उनमें से कुछ कारकों की व्याख्या निम्नलिखित है-
i) पास-पड़ोस (Neighbourhood)- पास-पड़ोस के वातावरण का बालक के व्यक्तित्व पर अधिक प्रभाव पड़ता है। “जैसा पड़ोस वैसा बालक” यह उक्ति अक्षरशः सत्य है। हारलॉक के अनुसार, बच्चों में अनुशासन की भावना, समझदारी, उत्तरदायित्व, आत्मसम्मान आदि शीलगुणों का विकास होता है। दूसरी तरफ, यदि पास-पड़ोस में चोर-डकैत, अपराधी व्यक्ति अधिक होते हैं तो बच्चे भी उनके व्यवहारों का अनुकरण करने लगते हैं व धीरे-धीरे उनमें असामाजिक शीलगुण विकसित होने लगते हैं।
ii) विद्यालयी प्रभाव (School Environment)- विद्यालयी प्रभाव के अन्तर्गत बालक के व्यक्तित्व पर शिक्षक व साथियों का प्रभाव पड़ता है। शिक्षक का व्यक्तित्व व बालक के प्रति उसका व्यवहार इन दोनों बातों का बालक के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। शिक्षक के विचारों तथा नैतिक आचरण से बालक के विचारों व नैतिक आचरणों पर प्रभाव पड़ता है व शिक्षक का व्यक्तित्व प्रभावशाली न होने पर बालक के व्यक्तित्व पर प्रभाव नही पड़ता है।
सामान्यतः विद्यालय में, बालक के सहपाठी ही उसके साथी होते हैं। बड़ी आयु या ऊँची कक्षा का विद्यार्थी छोटी आयु या छोटी कक्षा के विद्यार्थियों के साथ अधिकारपूर्वक व्यवहार करता है। यह व्यवहार स्नेहपूर्ण भी हो सकता है व निर्दयी भी, परन्तु बालक के व्यक्तित्व पर सहपाठियों का अथवा विद्यालय के साथियों का सबसे अधिक प्रभाव खेल या क्रीड़ासमूह के प्रभाव के रूप में पड़ता है।
वास्तव में घर से निकलकर विद्यालय जाने के बाद विद्यालय के शिक्षक तथा साथी बालक के सामाजिक दायरे के महत्वपूर्ण अंग बन जाते हैं। बालक के समाज में घर के अतिरिक्त विद्यालय भी शामिल हो जाता है। अतः विद्यालय का उसके व्यक्तित्व पर वह प्रभाव पड़ता है जो कि बाद में समाज का विद्यालय से निकलकर समाज में पहुँचने पर विद्यालय के समान परिस्थिति आने पर उस व्यक्ति का आचरण व व्यवहार वही रहता है जो विद्यालयी जीवन में रहता है। सख्ती से पेश आने वाले माता-पिता के बच्चों में अधीनस्थता का गुण अधिक विकसित हो जाता है। माता-पिता से अधिक दुलार-प्यार मिलने पर बच्चे लज्जालु व सांवेगिक रूप से अस्थिर हो जाते हैं।
2) सांस्कृतिक कारक (Cultural Factor) – मैकाइवर और पेज के अनुसार, ‘संस्कृति रहने और सोचने के ढंगो में, दैनिक क्रियाओं में, कक्षा में, साहित्य में, धर्म, मनोरंजन व सुखोपयोग में हमारी प्रकृति की अभिव्यक्ति है।” दूसरे शब्दों में, संस्कृति एक व्यापक शब्द है जिसका अर्थ समाज के रीति-रिवाजों, परंपराओं, रहन-सहन, आदतों व तौर-तरीकों से होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि परिवार, विवाह, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज, परम्परा, धर्म आदि में एक देश का दूसरे देश के व्यक्तियों में भिन्न स्वरूप, संस्कृति के प्रभाव के कारण होता है। भारत जैसे विशाल देश में एक कोने से दूसरे कोने में परस्पर आचार-विचार आदि में संस्कृति के कारण भिन्नता पाई जाती है।
व्यक्तित्व के विकास तथा शीलगुणों के निर्माण में संस्कृति के प्रभाव को दिखाने के लिए जितने साक्ष्य हैं, उन्हें मनोवैज्ञानिकों ने दो भागों में बाँटा है-
संस्कृति के प्रभाव (Effects of Culture)
- मानवशास्त्रीय साक्ष्य (Psychological Facts)
- प्रयोगात्मक साक्ष्य (Experimental Facts)
भारतीयों के लिए आज भी धार्मिक मूल्य सर्वोच्च हैं जबकि पाश्चात्य लोगों के लिए साधारणतया भौतिक या मानसिक मूल्य सर्वोच्च है। भारतीय समाज में भी हिन्दुओं और जनजातीय समाजों के रहन-सहन, रीति-रिवाज, परम्पराओं, धर्म, कला तथा मूल्यों आदि में भारी अन्तर देखा जा सकता है। हिन्दू हत्या को महापाप समझते हैं। नागा लोगों में जो व्यक्ति जितने अधिक नर-मुण्ड काट कर लाता है उसका उतना ही अधिक सम्मान होता है। हिन्दुओं में हत्या करने वाले व्यक्ति से कोई भी लड़की जान-बूझकर विवाह करना पसन्द नहीं करेगी। आदिम नागा लोगों में जिस व्यक्ति ने कभी कोई सिर न काटा हो उससे कोई स्त्री विवाह करना पसन्द नहीं करती। हिन्दू समाज में हर जगह यौन-आचरण पर भारी प्रतिबन्ध है।
परन्तु जोनसार बावर के आदिवासियों में अतिथि के सत्कार के लिए लोग अपनी कुँवारी कन्याओं को उनके पास सम्भोग के लिए भेजते हैं। हिन्दू समाज में तलाक बुरा समझा जाता है परन्तु कुछ जनजातियों में जो स्त्री जितने अधिक तलाक पाए होती है, उसकी प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ जाती है। हिन्दु समाज में कुँवारी कन्या के गर्भवती हो जाने पर कोई उससे विवाह नहीं करता। कुछ जन-जातियों में विवाह के पहले गर्भवती होना और सन्तानोत्पत्ति करना लड़की के विवाह में सहायक कारण होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मानवशास्त्रियों के अनुसंधान से व्यक्तित्व पर संस्कृति के प्रभाव के विषय में महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हुई है। इस प्रकार सामाजिक संहिताएं, सामाजिक कार्यभार, सामाजिक स्थितियाँ तथा संस्कृति के विभिन्न कारक व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।
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