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विद्यालय छात्रावास [SCHOOL-HOSTEL]
भारत में निःशुल्क, सार्वभौमिक तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के प्रस्तावन के पश्चात् यह पूर्णतया स्वाभाविक है कि माध्यमिक शिक्षा का भी बड़ी तीव्र गति से प्रसार हो परन्तु प्राथमिक विद्यालयों की भाँति माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों को प्रत्येक स्थान पर या समस्त ग्रामों तथा कस्बों में नहीं खोला जा सकता है। अतः आवश्यक है कि एक हाई स्कूल या उच्चतर माध्यमिक स्कूल जहाँ कहीं भी स्थित हो, वह अपने पास-पड़ोस के रहने वाले छात्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति करे। यदि माध्यमिक विद्यालय किसी ग्राम या कस्बे से पर्याप्त दूरी पर है तो वहाँ के बालकों को घर से विद्यालय में प्रतिदिन आना-जाना कठिन होगा। इसलिए विद्यालय प्रबन्धकों को उनके रहने तथा खाने की उपयुक्त व्यवस्था करनी चाहिए। इस प्रकार की व्यवस्था विद्यालय छात्रावास में ही हो सकती है। इसके अतिरिक्त जिन बालकों को घर पर स्वच्छ एवं उपयुक्त वातावरण प्राप्त नहीं हो पाता है, उनको छात्रावास में सुखद, स्वस्थ एवं उपयुक्त वातावरण प्राप्त हो सकता है। विद्यालय छात्रावास उन छात्रों के लिए भी आवश्यक है जिनके अभिभावकों का प्राय: स्थानान्तरण होता रहता है। बार-बार स्थानान्तरण से उनके अध्ययन कार्य में बड़ी बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। छात्रावास की व्यवस्था में इन कठिनाइयों को भी दूर किया जा सकता है। अतः छात्रावास एक महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक संस्था है।
यह कहना अनुपयुक्त नहीं होगा कि एक उत्तम छात्रावास शिक्षा में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण भाग लेता है। छात्रावास में बालकों के शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आदि सभी पक्षों के विकास के लिए वे सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, जो सामान्यतः घरों में नहीं पाई जाती हैं। छात्रों के शारीरिक पक्ष के विकास के लिए पौष्टिक भोजन, स्वच्छ जल, शारीरिक व्यायाम, खेल-कूद की उपयुक्त व्यवस्था रहती है। मानसिक विकास के लिए पुस्तकालय, वाचनालय तथा अध्ययन करने के लिए उचित प्रकार की व्यवस्था की जाती है। बालकों के नैतिक विकास के लिए उन्हें नियमित जीवन व्यतीत करने तथा उपयुक्त आदतों के विकास के लिए अवसर प्राप्त होते हैं। छात्रावास में आत्मनिर्भरता एवं आत्म-विश्वास जैसे गुणों का भी विकास होता है तथा बालक अनुशासनयुक्त एवं संयमित जीवन व्यतीत करना सरलता से सीख जाते हैं।
रूसो ने छात्रावास के जीवन की उपयोगिता के सम्बन्ध में लिखा है, “खेल के मैदान में तथा छात्रावास में बालक एक-दूसरे से जो पाठ सीखते हैं, वे विद्यालय में सीखे हुए पाठों से सौ गुना अधिक उपयोगी होते हैं।”
छात्रावास की स्थिति, भवन एवं साज-सज्जा (POSITION, BUILDING AND EQUIPMENT OF HOSTEL OR BOARDING HOUSE)
छात्रावास वास्तविक अर्थ में एक उत्तम घर का स्थान ग्रहण करता है। यह सामान्य घरों से उत्तम स्थितियाँ एवं सुविधाएँ प्रदान करके बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकता है। अतः छात्रावास की स्थापना, शुद्ध, शान्त तथा शिक्षोपयोगी वातावरण में तथा विद्यालय के समीप की जानी चाहिए। छात्रावास मुख्य सड़क तथा कोलाहल से दूर, स्वच्छ, स्वास्थ्यप्रद एवं खुले स्थान पर स्थापित होना चाहिए। बालकों के खेलने-कूदने के मैदान इसके पास हों तो बहुत सुविधा रहती है।
छात्रावास भवन का आकार, आवश्यकता एवं प्राप्त भूमि के अनुसार ही रहेगा सबसे उत्तम प्रकार का भवन एक मंजिल का होता है जो चारों ओर बना हो और जिसके मध्य में एक आँगन हो। इस प्रकार की इमारत सुरक्षा की दृष्टि से बहुत उपयुक्त है। इसका नियन्त्रण एवं निरीक्षण अधिक प्रभावशाली ढंग से हो सकता है। यदि छात्रावास में रहने वाले बालकों की संख्या थोड़ी हो तो उनके लिए छात्रावास ‘आई’ या ‘एल’ के आकार का भी बनाया जा सकता है।
आधुनिक दृष्टिकोण इस बात पर भी बल देता है कि छात्रावास परिवार का स्थान ग्रहण करे। इस दृष्टिकोण से कुटीर प्रणाली बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसके अनुसार छात्रावास में छोटे-छोटे कई कुटीर एक दूसरे के समीप होते हैं। ये समस्त कुटीर मिलकर एक छोटे ग्राम का रूप धारण कर लेते हैं। प्रत्येक कुटीर में आठ से बारह छात्र तक रहते हैं, परन्तु इनकी संख्या आवश्यकतानुसार घट-बढ़ सकती है। प्रत्येक कुटीर में शयनागार, खाने का कमरा, रसोईघर, आदि होता है। कम-से-कम एक अध्यापक के लिए भी पास ही एक कुटीर हो तो कुटीर में रहने वाले बालकों का पथ-प्रदर्शन एवं संरक्षण भली प्रकार हो सकता है। इस प्रकार छात्र तथा अध्यापक एक साथ एक बड़े कुटुम्ब की भाँति जीवन व्यतीत करेंगे। जिस प्रकार परिवार के समस्त सदस्य मिलकर अपने घर की व्यवस्था करते हैं, उसी भाँति छात्र अध्यापक के पथ-प्रदर्शन में अपने कुटीर की सफाई, सजावट, भोजन एवं जल की व्यवस्था, आदि सभी कार्यों में भाग लेते हैं। यदि कुटीर प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक कुटीर के छात्रों का पथ-प्रदर्शन पृथक्-पृथक् शिक्षकों द्वारा सम्भव हो सके तो जिस ट्यूटोरियल पद्धति पर आजकल इतना बल दिया जा रहा है, वह कुटीर पद्धति द्वारा पर्याप्त रूप से लागू की जा सकती है।
छात्रावास का भवन किसी भी आकार का हो परन्तु उसमें आवश्यकतानुसार पर्याप्त शयनागार या दो सीट या तीन सीट वाले कमरों के अतिरिक्त रसोईघर, खाने का कमरा, स्नानगृहों तथा शौचालयों की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। इनके अतिरिक्त निम्नलिखित कक्षों की भी व्यवस्था करना आवश्यक है-
1. सामान्य कक्ष— इसमें छात्र अवकाश के समय का सदुपयोग करने, थकावट दूर करने के लिए अथवा बातचीत करने के लिए बैठते हैं। इसमें मनोरंजन हेतु आन्तरिक खेलों— शतरंज, कैरम, टेबिल टेनिस, आदि का प्रबन्ध होना चाहिए। आधुनिक युग की माँग के अनुसार इसमें टी.वी. की व्यवस्था का होना आवश्यक है। यदि यह कक्ष बड़ा है तो उसका उपयोग गोष्ठी, कवि-सम्मेलन, वाद-विवाद प्रतियोगिता एवं संगीत सम्मेलन के लिए भी किया जा सकता है।
2. वाचनालय- इसमें समाचार पत्रों, पत्रिकाओं तथा अन्य प्रकार की अध्ययन सामग्री की व्यवस्था हो तो छात्र अपने सामान्य ज्ञान की वृद्धि तथा अवकाश के समय का सदुपयोग कर सकते हैं।
3. अतिथि-कक्ष- छात्रों के अभिभावकों या अन्य अतिथियों के ठहरने के लिए भी छात्रावास में एक कक्ष रहे तो विशेष सुविधा रहती है। इससे अभिभावकों एवं विद्यालय में परस्पर सम्पर्क और सद्भावना विकसित होने की अधिक सम्भावना है।
4. डिस्पेन्सरी- छात्रावास में रहने वाले बालकों को प्राथमिक सहायता एवं छोटे पैमाने पर डॉक्टरी सहायता प्रदान करने के लिए एक डिस्पेन्सरी होनी चाहिए। इसके साथ ही एक ऐसा कक्ष हो जिसमें बीमार बालकों को रखा जा सके। यह कक्ष इसलिए भी आवश्यक है कि इसमें उनकी देखभाल उपयुक्त ढंग से हो सकती है और अन्य बालकों के कार्यक्रम में विघ्न नहीं पड़ेगा।
5. छात्रालयाध्यक्ष का कमरा- विद्यालय छात्रावास में छात्रालयाध्यक्ष के लिए भी एक पृथक् कार्यालय कक्ष की व्यवस्था होनी चाहिए, जिसमें बैठकर वह छात्रावास सम्बन्धी मामलों का नियन्त्रण कर सके। छात्रावास के पास ही उसके निवास के लिए गृह होने से वह छात्रावास का निरीक्षण सरलता से तथा आवश्यकता पड़ने पर छात्रों की समस्याओं एवं कठिनाइयों का निवारण शीघ्र ही कर सकता है।
6. अन्य कक्ष– उपर्युक्त कक्षों के अतिरिक्त विद्यालय छात्रावास में सामान रखने तथा नौकरों के निवास के लिए भी कक्षों की व्यवस्था होनी चाहिए।
इन समस्त कक्षों में प्रकाश एवं शुद्ध वायु की उपयुक्त व्यवस्था के अतिरिक्त उपयुक्त सामग्री का होना आवश्यक है। उदाहरणार्थ- प्रत्येक छात्र के लिए उसके शयनागार कक्ष में खाट, मेज, कुर्सी, रैंक तथा आल्मारी का प्रबन्ध उनकी आयु व आवश्यकताओं के अनुसार होना चाहिए। खाने के कमरे में उपयुक्त सामग्री-आसन तथा चौकी या कुर्सियाँ तथा मेजें होनी चाहिए। स्नानगृहों में साबुन रखने, कपड़े टाँगने, आदि सभी बातों के लिए उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। शौचालयों में यदि सम्भव हो तो फ्लश का प्रबन्ध किया जाये। इस सुविधा के प्राप्त होने से स्वच्छता की समस्या बहुत सरल हो जाती है।
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