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विद्यालय-पुस्तकालय [SCHOOL LIBRARY]
विद्यालय पुस्तकालय की अवधारणा (CONCEPT OF SCHOOL LIBRARY)
पुस्तकालय विद्यालय का हृदय है। छात्र यहाँ विभिन्न अनुभव, समस्याएँ तथा प्रश्न लेकर आते हैं और तब उन पर विचार-विमर्श करते हैं और दूसरों के अनुभवों तथा संग्रहीत विद्वता, जो कि पुस्तकालय में सुसज्जित, सुव्यवस्थित तथा प्रदर्शित रहती है, के माध्यम से नवीन ज्ञान की खोज करते हैं।
पुस्तकालय सेवा शैक्षिक कार्यक्रम से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। इसको शैक्षिक कार्यक्रम का एक अंग मानना उपयुक्त होगा। पुस्तकालय को विद्यालय के एक सहायक अंग के रूप में ग्रहण नहीं किया जाना चाहिए, वरन् इसको एक अनिवार्य सेवा के रूप में स्वीकार किया जाये। यह अपने उच्चतम महत्त्व को तभी प्राप्त कर सकता है। इसीलिए पुस्तकालय को ‘विद्यालय का हृदय’ कहा गया है। इस कथन का अर्थ यह नहीं है कि जब पुस्तकालय विद्यालय के प्रत्येक अंग के लिए पुस्तकों तथा अन्य सामग्री को प्रदान करे तभी पुस्तकालय वास्तविक सेवा को पूर्ण कर सकता है। पुस्तकालय वह स्थान है जिसका बालकों को शिक्षित करने के लिए अनिवार्य रूप से सहारा लेना चाहिए। पुस्तकों का पढ़ लेना ही शिक्षा का मर्म नहीं है, वरन् यह एक क्रिया है जो उत्तम रूप से शिक्षित होने के लिए एक महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध होती है। इसलिए पुस्तकालय को शिक्षा की एक अनिवार्य सेवा के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए।
अतः पुस्तकालय को विद्यालय का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है। शिक्षक इस बात को स्वीकार करने लगे हैं कि पाठ्य पुस्तकों द्वारा सम्पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती, वरन् उसकी पूर्ति अन्य उपयोगी पुस्तकों से की जानी चाहिए। पुस्तकालय के विषय में नये विचारों को आजकल मान्यता प्रदान की जा रही है। अब पुस्तकालय को विद्यालय की बौद्धिक प्रयोगशाला के रूप में देखा जाता है, जिसके द्वारा छात्रों में पठन-पाठन की रुचि ही उत्पन्न नहीं होती वरन् व्यक्तिगत एवं सामूहिक योजनाओं, बहुत-सी क्रियाओं, साहित्यिक, प्रिय-क्रियाओं (Hobbies) तथा पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं को पूर्ण करने के लिए सहायता प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त इसके द्वारा प्रगतिशील शिक्षण पद्धतियों को व्यावहारिक रूप भी प्रदान किया जाता है।
भारत में पुस्तकालयों की स्थिति (CONDITION OF LIBRARIES IN INDIA)
हमारे देश में अधिकांश विद्यालयों में इनकी स्थिति बड़ी शोचनीय है। अब भी ऐसे बहुत से विद्यालय हैं, जिनके पास नाममात्र के पुस्तकालय हैं। इस सम्बन्ध में माध्यमिक शिक्षा आयोग के शब्द उल्लेखनीय है-
“अधिकांश माध्यमिक विद्यालयों के पुस्तकालयों में सामान्यतः प्राचीन, पिछड़ी हुई, अनुपयुक्त तथा छात्रों की अभिरुचियों एवं रुचियों को ध्यान में न रखकर चयन की हुई पुस्तकें हैं। उनको कुछ अल्मारियों में रखकर बन्द कर दिया गया है। अल्मारियाँ अनुपयुक्त एवं अनाकर्षक कक्ष में रख दो गयी हैं। पुस्तकालय जिन व्यक्तियों के अधीन हैं, वे या तो क्लर्क हैं या शिक्षक, जो अंशकालिक आधार पर इस कार्य को करते हैं और • जिनकी इस कार्य में रुचि नहीं है और न ही उनको पुस्तकों से प्रेम है और न पुस्तकालय रीतियों का ज्ञान | इसलिए स्वभावतः वहाँ सुव्यवस्थित पुस्तकालय सेवा नाम की कोई वस्तु नहीं है जो कि बालकों को अध्ययन करने तथा उनमें पुस्तकों के प्रति प्रेम जाग्रत कर सकें।”
विद्यालय पुस्तकालयों का उद्देश्य (AIMS OF SCHOOL LIBRARIES)
विद्यालय पुस्तकालय के निम्नलिखित उद्देश्य माने जाते हैं-
(1) बालकों में पढ़ने एवं स्वाध्ययन की आदतों का निर्माण करना।
(2) बालकों को अपने विद्यालय अध्ययन की पूर्ति के हेतु पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकों, -पत्रिकाओं, आदि का उपयोग करने के लिए तैयार करना।
(3) बालकों में विभिन्न रुचियों का विकास करना तथा उनमें बौद्धिक कार्य करने का साहस उत्पन्न करना।
(4) बालकों में साधन-सम्पन्नता, जिज्ञासा- प्रवृत्ति को प्रोत्साहित एवं वैयक्तिक खोज करने के गुणों का विकास करना।
(5) बालकों में शब्दकोश, सन्दर्भ पुस्तकों, आदि का उचित प्रयोग करने की कुशलता का विकास करना तथा सबके सामान्य ज्ञान में वृद्धि करना।
(6) बालकों में सहयोगी दृष्टिकोण विकसित करना तथा उनको अपने नागरिक दायित्वों को समझने के योग्य बनाना।
(7) अध्यापकों के विषय ज्ञान व सामान्य ज्ञान की पूर्ति व वृद्धि करना तथा उनको नवीनतम शिक्षण विधियों की सूचना प्राप्ति का साधन प्रदान करना।
कुछ पुस्तकों के संग्रह मात्र को ही पुस्तकालय का नाम नहीं दिया जा सकता है। बालकों को लाभ पहुँचाने तथा शैक्षिक कार्यक्रम को रोचक एवं बोधगम्य बनाने के लिए हमें पुस्तकालय की उचित व्यवस्था करना आवश्यक है। प्रधानाध्यापक का इस सम्बन्ध में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण दायित्व है। उसे इसकी समुचित व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त स्थान एवं साज-सज्जा, उचित वातावरण, योग्य एवं प्रशिक्षित पुस्तकालयाध्यक्ष की नियुक्ति, उपयोगी पुस्तकों एवं अन्य अध्ययन सामग्री का संकलन तथा उसका अधिकाधिक प्रयोग करने के लिए बालकों को प्रोत्साहन देने के लिए कार्य करना होगा। इन सब बातों का विस्तृत विवेचन नीचे दिया जा रहा है-
पुस्तकालय के प्रकार (TYPES OF LIBRARY)
पुस्तकालय तीन प्रकार के होते हैं-
1. केन्द्रीय पुस्तकालय ( Central Library ) ।
2. कक्षा पुस्तकालय (Class Library) ।
3. विषय पुस्तकालय (Subject Library) |
1. केन्द्रीय पुस्तकालय (Central Library) सम्पूर्ण विद्यालय व्यवस्था में जहाँ एक हो पुस्तकालय हो, जहाँ सभी विषयों की पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ आती हों वह केन्द्रीय पुस्तकालय कहलाता है। प्रशिक्षित पुस्तकालयाध्यक्ष को उपयोगी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए केन्द्रीय पुस्तकालय व्यवस्था सदैव अच्छी रहती है। यहाँ सभी पुस्तकें एक साथ एक वैज्ञानिक व्यवस्था के अन्तर्गत रखी जाती हैं इसलिए छात्र एवं शिक्षक सभी पुस्तकों का लाभ उठा सकते हैं। प्रत्येक कक्षा तथा विषय के लिए अधिक मात्रा में क्रय करने की आवश्यकता नहीं होती है। यहाँ पुस्तकों को एक क्रम में रखने के कारण उन्हें तलाश करने में अधिक समय नहीं लगता है। यहाँ एक ही पुस्तक का एक दिन में कई छात्र उपयोग कर सकते हैं। इस सबके अलावा केन्द्रीय पुस्तकालय की अपनी एक भव्यता होती है जो बाह्य आगन्तुकों पर अच्छा प्रभाव डालती है।
2. कक्षा-पुस्तकालय (Class Library)– कक्षाध्यापकों की देखरेख में प्रत्येक कक्षा में पुस्तकालयों की व्यवस्था कक्षा पुस्तकालय कहलाती है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत जितनी कक्षाएँ विद्यालय में होती हैं, उतने ही पुस्तकालय होते हैं। इस व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभ यह है कि छात्रों को उनके बौद्धिक व शैक्षिक स्तर के अनुकूल पुस्तकों की उपलब्धि सुगम तथा सरल हो जाती है। प्रत्येक कक्षा में उस कक्षा के स्तरानुकूल साहित्य रखा जाता है। इसका संचालन कक्षाध्यापक या मॉनीटर कर सकता है। संचालन सरल होता है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत छात्र-स्वशासन को प्रोत्साहन मिलता है। छात्र को पुस्तकें छाँटने तथा लेने में सरलता रहती है।
कक्षा पुस्तकालय व्यवस्था में कुछ दोष भी हैं। इस व्यवस्था में पाठ्य पुस्तकों की अधिक संख्या क्रय करनी पड़ती है। यदि एक ही कक्षा में कई विभाग हों तो पुस्तकों की संख्या और भी अधिक क्रय करनी पड़ती है। इसमें प्रशिक्षित पुस्तकालय अध्यक्ष की सेवाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। सन्दर्भ तथा सामान्य पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं के विषय में झगड़ा रहता है।
3. विषय पुस्तकालय (Subject Library) प्रत्येक विषय की पुस्तकें पृथक्-पृथक् रखने की व्यवस्था विषय-पुस्तकालय व्यवस्था कहलाती है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत अनुभवी अध्यापक अपने विषय को प्रिय बनाने, अपने शिक्षण को सफल बनाने तथा अपने विषय के छात्रों की सम्प्राप्तियाँ ऊँची करने हेतु विषय-पुस्तकालय बनाते हैं। इस व्यवस्था के अन्तर्गत सभी विषयों की पुस्तकें अलग-अलग रहती हैं।
इन तीनों ही व्यवस्थाओं के अपने-अपने गुण एवं दोष हैं। किसी भी एक व्यवस्था को सर्वोत्तम नहीं कहा जा सकता है। सर्वोत्तम व्यवस्था केन्द्रीय व्यवस्था तथा विषय पुस्तकालयों का मिला-जुला रूप है। इसके लिए सुझाव यह है कि एक केन्द्रीय पुस्तकालय हो तथा प्रत्येक विषय के लिए विषयाध्यापकों की देखरेख में विषय पुस्तकालय हों। इस व्यवस्था के अन्तर्गत सभी पत्र-पत्रिकाएँ, सामान्य पुस्तकें केन्द्रीय पुस्तकालय में रखी जाएँ तथा प्रत्येक पाठ्य पुस्तक की दो-दो प्रति क्रय की जाएँ। एक प्रति केन्द्रीय पुस्तकालय में रखी जाय और दूसरी प्रति विषय पुस्तकालय को दे दी जाय।
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