School Management & Hygiene

विद्यालय भवन की स्थिति (SITE OF SCHOOL BUILDING)

विद्यालय भवन की स्थिति (SITE OF SCHOOL BUILDING)
विद्यालय भवन की स्थिति (SITE OF SCHOOL BUILDING)

विद्यालय भवन की स्थिति (SITE OF SCHOOL BUILDING)

हम भवन निर्माण के लिए भूमि क्रय करके भी प्राप्त कर सकते हैं और उसको दानस्वरूप भी प्राप्त कर सकते हैं। हम भू-स्वामी से सीधे बातचीत करके भी भूमि खरीद सकते हैं और किसी व्यक्ति को मध्यस्थ बनाकर भी भूमि प्राप्त कर सकते हैं। भूमि को किसी भी ढंग से क्यों न प्राप्त करें, परन्तु चयन में हमें कुछ सामान्य बातों का ध्यान रखना पड़ता है, जिनका विवेचन नीचे किया जा रहा है-

स्थिति के चयन में विद्यालय का प्रकार प्राथमिक या माध्यमिक, शहरी या ग्रामीण बहुत महत्त्वपूर्ण भाग लेता है। यदि हम प्राथमिक विद्यालय स्थापित करना चाहते हैं तो हमें उसके लिए माध्यमिक विद्यालयः की अपेक्षा कम भूमि चाहिए। कक्षा-कक्ष भी संख्या में थोड़े व छोटे होंगे। खेल का मैदान, आदि भी उतने बड़े न हों तो काम चल जाता है। उसकी साज-सज्जा भी माध्यमिक विद्यालय की साज-सज्जा से भिन्न होगी। यदि हम ग्रामीण क्षेत्रों में कोई विद्यालय स्थापित करना चाहते हैं तो हमें स्थिति के चयन में उतनी कठिनाई की आवश्यकता नहीं होती जितनी शहरी क्षेत्र में, क्योंकि शहर में हमें वातावरण, शोरगुल, सड़कों की निकटता, आदि की ओर अधिक ध्यान देना पड़ेगा। स्थिति के चयन के साथ स्कूल मैपिंग (School Maping) तथा माइक्रो प्लानिंग (Micro Planning) के माध्यम से स्थान/क्षेत्र विशेष की शैक्षिक आवश्यकताओं का ज्ञान प्राप्त किया जाय।

विद्यालय चाहे ग्रामीण क्षेत्र में हो या शहरी परन्तु उसकी स्थिति के चयन में जलवायु का ध्यान रखना आवश्यक है। विद्यालय की स्थापना ऐसे स्थान पर की जाय जहाँ की जलवायु व भूमि न तो अधिक शुष्क हो, न अधिक नम। वहाँ का वातावरण न केवल सौन्दर्यपूर्ण हो, अपितु अस्वास्थ्यप्रद एवं अस्वच्छ दशाओं से भी मुक्त हो। इसके अतिरिक्त वह कोलाहल एवं अन्य प्रदूषित प्रभावों से भी दूर होना चाहिए। अतः विद्यालय ऐसे स्थानों पर स्थापित किया जाना चाहिए जहाँ सिनेमाघर, कारखाने या फैक्टरियाँ, रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड, झील, नदी, पोखर, आदि न हों।

विद्यालय ऐसे स्थान पर स्थित हो जहाँ बालक सरलता से पहुँच सके। यदि विद्यालय ग्रामीण क्षेत्र में स्थापित करना है तो उसके लिए भूमि का चयन ऐसे स्थान पर किया जाय जिससे आस-पास के बालकों को विद्यालय पहुँचने के लिए अधिक दूर न चलना पड़े। यद्यपि सरकार प्रत्येक ग्राम में प्राथमिक विद्यालय खोलने का प्रयास कर रही है, परन्तु बहुत-से ग्राम इतने पास-पास हैं जिनमें पृथक्-पृथक् रूप से विद्यालयों की स्थापना नहीं की जा सकती है। अतः इन सभी ग्रामों के बालकों को शिक्षित करने के लिए उचित व्यवस्था • होनी चाहिए। अतः विद्यालय ऐसे स्थान पर स्थापित किये जायें जहाँ छोटे-छोटे बालकों को पहुँचने के लिए अधिक दूर न चलना पड़े। शहरी क्षेत्रों में दूसरे प्रकार की समस्या उत्पन्न होती है। शहर के मध्यस्थ भागों में न तो विद्यालय के लिए पर्याप्त भूमि प्राप्त होती है और न ही वह स्थान विद्यालय के लिए उपयुक्त व सुरक्षित है। अतः हमें शहर के बाहरी भागों में ही भूमि का चयन करना पड़ता है। इसका चयन करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वहाँ पहुँचने के लिए आवागमन के साधन उपयुक्त एवं सुलभ हैं या नहीं।

विद्यालय के लिए ऐसे स्थान पर भूमि का चयन किया जाय जहाँ की जमीन पानी को शीघ्रता से सोखने वाली हो। जहाँ पानी रुकता हो और भूमि पानी को न सोखती हो वहाँ पर विद्यालय का निर्माण न किया जाय, क्योंकि पानी की रुकावट एवं सीलन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हानिकारक है।

भूमि का चयन करते समय मूल्य को ध्यान में रखते हुए भूमि की किस्म एवं उनकी बनावट पर भी ध्यान देना अनिवार्य है। यह बात स्मरण रहे कि सस्ती स्थिति कभी-कभी अधिक व्ययी सिद्ध हो जाती है। उदाहरणार्थ- यदि आप कम मूल्य में ऊँची-नीची भूमि खरीद लेते हैं तो उसको एक-सा एवं प्रयोग करने के योग्य बनाने के लिए बहुत अधिक धनराशि व्यय करनी पड़ेगी।

विद्यालय के निर्माण के समय ध्यान रहे कि उसमें भविष्य में आवश्यकतानुसार विस्तार हो सके। आवश्यकता पड़ने पर नये कक्षा-कक्ष, खेल-कूद के मैदान, छात्रों व शिक्षकों के आवास, आदि के लिए उपयुक्त एवं पर्याप्त स्थान प्राप्त हो सके, इसकी व्यवस्था पहले से ही रखनी चाहिए।

विद्यालय ऐसे स्थान पर स्थापित किया जाय जहाँ पर्याप्त मात्रा में पीने का शुद्ध जल सरलतापूर्वक प्राप्त हो सके। इनके अतिरिक्त विद्यालय की स्थिति के चयन में इस बात का ध्यान रखा जाय कि उस स्थान पर शुद्ध वायु व सूर्य का प्रकाश आता है या नहीं।

व्यावहारिक रूप से पूर्णत: या अंशत: विद्यालय-भूमि को प्रयोग करने के योग्य बनाना ही पड़ता है। इसको एक-सा एवं उपयुक्त बनाने के लिए श्रमिकों की सहायता के अतिरिक्त समुदाय की भी सहायता ली जा सकती है, जिससे उस क्षेत्र के लोगों का सहयोग प्राप्त हो तथा विद्यालय के लिए उनकी रुचि बनी रहे।

भवन सम्बन्धी आवश्यकताओं का निर्धारण (DETERMINATION OF EDUCATIONAL NEEDS OF SCHOOL BUILDING)

विद्यालय भवन को निर्मित करने के विषय में अन्तिम निर्णय लेने से पूर्व उस क्षेत्र की सम्पूर्ण विद्यालय शिक्षा की भवन सम्बन्धी आवश्यकताओं का सर्वेक्षण द्वारा अनुमान लगाना आवश्यक है। सर्वेक्षण करते समय स्थानीय क्षेत्र की वर्तमान की ही नहीं बल्कि भावो शैक्षिक आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाय। यह निर्णय किया जाय कि विद्यालय भवन में विभिन्न प्रकार के छात्रों एवं उनकी कुल कितनी संख्या को तत्काल ही व्यवस्थित किया जाना है और अगले कुछ वर्षों में और कितने छात्रों को व्यवस्थित करना पड़ेगा तथा किन अन्य विषयों व क्रियाओं के लिए विद्यालय में व्यवस्था करनी होगी।

विद्यालय में आने वाले छात्रों के आवास के सम्बन्ध में भी निर्णय किया जाय अर्थात् कितने छात्र ऐसे हैं जो प्रतिदिन अपने घरों से विद्यालय जायेंगे और कितने ऐसे हैं जिनके लिए आवास की व्यवस्था करनी पड़ेगी। कदाचित् ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित किये जाने वाले के लिए आवा की व्यवस्था की आवश्यकता न हो। परन्तु शहरी क्षेत्रों में स्थापित किये जाने वाले विद्यालय में बहुधा आवास की व्यवस्था करनी पड़ती है, क्योंकि बहुत से माता-पिता कई कारणोंवश अपने बालकों के लिए विद्यालय आवास की माँग करते हैं।

कमरे एवं उनकी साज-सज्जा व रखरखाव (ROOMS AND THEIR EQUIPMENT AND MAINTENANCE)

स्थापत्य कलाकार (Architect) के पथ-प्रदर्शन के लिए विद्यालय प्रबन्धकों को प्रस्तावित भवन के कमरों तथा साज-सज्जा की पूर्ण सूची तैयार करनी चाहिए। इस सूची का निर्धारण वर्तमान एवं भावी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर करना होगा। विद्यालय प्रबन्धक इस सूची के तैयार करने में विशेषज्ञों की सलाह लें तो अच्छा होगा। जब विशेषज्ञों द्वारा इस सूची को अनुमोदित कर दिया जाय, तभी स्थापत्य कलाकार को निर्माण कार्य के लिए भवन का डिजाइन व प्लान बनाने को कहा जाय।

इस सूची में प्रत्येक आवश्यक कमरे का आकार व माप दिया जाय और इसके प्रयोग का संक्षिप्त विवरण तथा उस भवन में उस कक्षा की स्थिति का उल्लेख किया जाना चाहिए। उस आवश्यक साज-सज्जा का भी उल्लेख किया जाय जिसे उस कमरे में व्यवस्थित करना होगा, जिससे कलाकार आवश्यक प्लान बना सके। इन सुझावों एवं निर्देशनों में आगे चलकर कम-से-कम परिवर्तन किया जा सके, इसलिए भवन सम्बन्धी निर्णय पूर्ण विचार-विमर्श के पश्चात् ही लेना चाहिए।

यहाँ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के कक्षा-कक्षों, विशेष कक्षों, हॉल, आदि के आकार, स्थिति एवं साज-सज्जा के विषय में विचार करना अनुचित न होगा।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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