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शान्ति निकेतन (Shanti Niketan)
टैगोर एक महाकवि के साथ-साथ एक दार्शनिक, एक शिक्षक तथा एक गुरू भी थे। ‘गुरूदेव’ के रूप में उनका महान योगदान शान्ति निकेतन के रूप में परिणित हुआ।
शान्ति निकेतन का दूसरा नाम ‘विश्वभारती’ है जो कलकत्ता से सौ मील दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। शान्ति निकेतन की स्थापना रवीन्द्र नाथ टैगोर के पिता श्री देवेन्द्र नाथ ने की थी। देवेन्द्र नाथ अपनी साधना के लिए एक शान्त स्थान की खोज में थे जो शहर के कोलाहल से दूर हो। इन्होंने शान्त स्थान पर वृक्ष रोपड़ करके उसका नाम निकेतन रखा। सन् 1901 में विश्व भारती की नींव रखी गई। उस समय इसमें मात्र छः छात्र ही थे। टैगोर प्राचीन गुरुकुल प्रणाली की विशेषताओं की ओर आकृष्ट थे तथा वैज्ञानिक प्रगति हेतु ये अपने विद्यालय में विद्यार्थी को पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करते थे। उनका मानना था कि छात्र जब तक स्वयं अपनी इच्छा से कार्य नहीं करता उसे आनन्दानुभूति नही होती । अध्यापक एक प्रेरणादायक के रूप में होता है। टैगार प्रकृतिवादी होने के कारण छात्रों को प्रकृति के मध्य शिक्षा प्रदान करने के अनुयायी थे।
इनके विद्यालय में गुरु का निर्देश पाते ही छात्र वृक्ष के नीचे, वृक्ष की शाखा पर इच्छानुसार पढ़ाई करते थे। शिक्षक एवं छात्र परस्पर एक परिवार की तरह रहते थे। धीरे-धीरे छात्रों की संख्या में वृद्धि होने लगी। अधिक संख्या में छात्रों के आगमन से आर्थिक संकट भी आया जिसके लिए गुरूदेव ने अपनी नोबेल पुरस्कार की समस्त धनराशि शान्ति निकेतन पर लगा दी।
टैगोर शान्ति निकेतन विद्यालय की स्थापना से सन्तुष्ट नहीं थे उनका विचार था कि एक ऐसे शिक्षा केन्द्र की स्थापना की जाए जिससे पूर्व एवं पश्चिम को मिलाया जा सके। सन् 1916 में इन्होंने एक पत्र में लिखा था कि शान्ति निकेतन को समस्त जातिगत तथा भौगोलिक बन्धनों से अलग हटाना होगा, यही मेरे मन में है। समस्त मानव जाति की विजय ध्वज यहीं गड़ेगी। पृथ्वी के स्वादेशिक अभियान के बन्धन को छिन्न-भिन्न करना ही मेरे जीवन का शेष कार्य रहेगा।”
अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए टैगोर ने सन् 1921 में शान्ति निकेतन में ‘यत्र विश्वम् भवत्येक नीऽम्’ अर्थात् सारा विश्व एक घर है। इस नए आदर्श वाक्य के साथ विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। तभी से शान्ति निकेतन संस्था अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में ख्याति प्राप्त कर रही है।
उच्च शिक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने 6 मई सन् 1922 ई. को शान्ति निकेतन में ही ‘विश्व भारती’ की स्थापना की। विश्व भारती की स्थापना द्वारा टैगोर ज्ञान की ज्योति को प्रकाशित करना चाहते थे। विश्व भारती में सहशिक्षा है, साथ ही छात्र एवं छात्राओं के रहने की भी व्यवस्था है। भारतीय संविधान ने सन् 1951 में 29वें संविधान में विश्व भारती को एक केन्द्रीय विद्यालय के रूप में मान्यता प्रदान की। विश्व भारती में देश विदेश से अनेक छात्र आकर उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं। इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रधानमंत्री होता है।
विश्व भारती के पुस्तकालय में विभिन्न भाषाओं की लगभग दो लाख पुस्तकें हैं। ‘रवीन्द्र सदन रवीन्द्र स्मारक संग्रहालय के रूप में टैगोर की सभी रचनाएँ एवं पत्र-पत्रिकाएँ हैं। उनके द्वारा गाए गए गीतो की ध्वनि रिकॉर्डिंग, चित्र, पत्र एवं पाण्डुलिपियाँ इत्यादि रवीन्द्र सदन में सुरक्षित है।
गाँधी जी के अनुसार, ‘टैगोर राजकोट से शान्ति निकेतन गए। वहाँ शान्ति निकेतन के अध्यापकों और विद्यार्थियों ने मुझे अपने प्रेम से सराबोर कर दिया। स्वागत में सादगी, प्रेम और कला का सुन्दर मिश्रण था।”
शान्ति निकेतन (विश्वभारती) की विशेषताएँ (Characteristics of Shanti Niketan)
विश्व भारती विश्वविद्यालय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की एक ख्याति प्राप्त संस्था हैं। यहाँ विभिन्न देशों के छात्र-छात्राएँ आकर शिक्षा ग्रहण करने में अपना गौरव समझते हैं। इस संस्था की प्रमुख विशेषताओं को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-
1) स्वयं गुरुदेव रवीद्रनाथ टैगोर ने विश्वभारती की विशेषता का उल्लेख करते हुए कहा है कि- “विश्वभारती भारत का प्रतिनिधित्व करती है। यहाँ भारत की बौद्धिक सम्पदा सभी के लिए उपलब्ध है। अपनी संस्कृति के श्रेष्ठ तत्त्व दूसरे को देने में तथा दूसरों की संस्कृति का श्रेष्ठ तत्त्व अपनाने में भारत सदा से उदार रहा है। विश्व भारती भारत की इस महत्त्वपूर्ण परम्परा को स्वीकार करती है।
2) इस संस्था में प्राकृतिक वातावरण में प्राचीन आश्रम पद्धति के आधार पर शिक्षण प्रदान किया जाता है। इस प्रकार गुरु-शिष्य सम्बन्ध घनिष्ठ होता है।
3) कोई भी छात्र किसी एक विभाग में प्रवेश पाने के पश्चात् किसी दूसरे विभाग में भी बिना अतिरिक्त शुल्क दिए शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
4) यहाँ पर छात्र छात्राओं के लिए छात्रावास तथा दैनिक जीवन की अन्य सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
5) विदेशी छात्रों के नियमित छात्र के रूप में या विदेशी छात्र के रूप में प्रवेश दिया जा सकता है।
6) यह संस्था व्यक्तित्त्व के सर्वांगीण विकास पर बल देती है। यहाँ पर प्राच्य एवं पाश्चात्य सांस्कृतियों में समुचित समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाता है तथा विश्व-बन्धुत्व एवं भाईचारे की भावना का विकास किया जाता है।
7) ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला, चर्मकार्य, कढ़ाई, नृत्य, संगीत आदि ललित कलाओं में तथा चीनी एवं जापानी भाषाओं में शान्ति निकेतन ने विशेष ख्याति प्राप्त की है। इन क्षेत्रों में शान्ति निकेतन का योगदान विशिष्ट है।
8) इसमें ग्रामीण विकास, समाज सेवा, उत्तम नागरिकता, सामाजिक सौहार्द्र तथा अन्य मानवीय गुणों की शिक्षा प्रदान की जाती है।
9) विश्वभारती विश्वविद्यालय पुस्तकालय में लगभग दो लाख पुस्तकों का संग्रह है जो अपनी विशिष्टता के लिए बहुत प्रसिद्ध है।
10) पाठ्यक्रम में कला, साहित्य, विज्ञान, शिल्प, नृत्य, संगीत आदि का आनन्ददायक सम्मिश्रण है तथा शिक्षा के सभी क्षेत्रों एवं अंगों में अनुसन्धान की सुविधा उपलब्ध है।
शान्ति निकेतन (विश्वभारती) के उद्देश्य (Objectives of Shanti Niketan)
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विश्वभारती विद्यापीठ की स्थापना एवं संचालन निम्नलिखित उद्देश्यों से की थी-
1) विभिन्न दृष्टिकोणों से सत्य के विभिन्न रूपों की प्राप्ति के लिए मानव मस्तिष्क का अध्ययन करना।
2) पाश्चात्य संस्कृति के खोखले प्रभाव को दूर करके, भारतीय संस्कृति का बोध कराकर प्राचीन संस्कृति में निहित आधारभूत एकता के अध्ययन एवं शोध द्वारा वर्तमान संस्कृति से परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करना।
3) एशिया में व्याप्त जीवन के प्रति दृष्टिकोण एवं विचारों के आधार पर पश्चिमी देशों से सम्पर्क बढ़ाना।
4) पूर्व की विभिन्न संस्कृतियों को एक सूत्र में पिरोकर बाँधना तथा अध्ययनकर्ता के समक्ष उसे प्रस्तुत करना। विविध संस्कृतियों में निकट सम्पर्क का बोध कराना।
5) शिक्षार्थी आत्मबोध, सौन्दर्यबोध एवं प्रकृति बोध प्राप्त करके अपना सर्वांगीण विकास कर सके, आत्मानुशासन पा सके, स्वावलम्बी बन सके तथा अपनी संस्कृति के प्रति आस्थावान बन सकें।
6) विभिन्न आदर्शों को ध्यान में रखते हुए शान्ति निकेतन में एक ऐसे सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना करना जहाँ धर्म, साहित्य इतिहास, विज्ञान एवं हिन्दू, बौद्ध, जैन मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई तथा अन्य सभ्यताओं का अध्ययन करना तथा उनमें शोधकार्य पश्चिमी संस्कृति के साथ आध्यात्मिक विकास के अनुकूल सादगी के वातावरण में किया जाए।
शान्ति निकेतन (विश्वभारती) के शिक्षण विभाग (Teaching Department of Shanti Niketan)
विश्वभारती संस्था के अन्तर्गत निम्नलिखित विद्यालय एवं विभाग आते हैं-
1) पाठ भवन- इसमें स्कूल सर्टीफिकेट (मैट्रिक परीक्षा) उत्तीर्ण करने के लिए शिक्षा दी जाती है। इस विभाग में 6 से 12 वर्ष की आयु के बालकों को प्रवेश दिया जाता है। शिक्षा का माध्यम बंगाली भाषा है।
2) शिक्षा भवन- इसमें सीनियर स्कूल सर्टिफिकेट (इण्टर परीक्षा) उत्तीर्ण करने के लिए शिक्षा दी जाती है। छात्रों की आवश्यकताओं पर व्यक्तिगत ध्यान तथा सामाजिक, सांस्कृतिक एवं अन्य सहभागी क्रियाओं की प्रचुर मात्रा में व्यवस्था शिक्षा भवन की प्रमुख विशेषता है।
3) विद्या भवन- इसमें 3 वर्ष की बी.ए. (आनर्स) पाठ्यक्रम की तैयारी कराई जाती है। परीक्षा के विषय संस्कृत, बंगाली हिन्दी, उड़िया, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र एवं दर्शन है। भवन में दो वर्ष के एम.ए. पाठ्यक्रम की व्यवस्था संस्कृत, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति, बंगाली हिन्दी, उड़िया, चीनी, जापानी, तिब्बती, फ्रेंच, जर्मन, अरबी एवं अंग्रेजी भाषाओं में किया गया है।
4) कला भवन- इसमें गृह-शिल्प, चर्म-शिल्प, कटाई-बुनाई, संगीत, नृत्य चित्रकारी, काव्य-रचना आदि कलात्मक कार्य कराए जाते हैं। कला भवन में कलात्मक शिल्पों में दो वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स तथा मैट्रिक परीक्षा के पश्चात् 4 वर्षीय डिप्लोमा कोर्स की व्यवस्था है।
5) विनय भवन- यह एक अध्यापक प्रशिक्षण विभाग है जिसमें एक वर्षीय बी.एड. पाठ्यक्रम की व्यवस्था है। प्रशिक्षण काल में शिल्प तथा अन्य व्यावहारिक एवं रचनात्मक कार्यों की शिक्षा का भी प्रबन्ध किया जाता है।
6) संगीत भवन- इसमें संगीत में (क) 3 वर्षीय इण्टरमीडिएट परीक्षा का पाठ्यक्रम (ख) रवीन्द्र संगीत, हिन्दुस्तानी संगीत, सितार, मणिपुरी नृत्य, कत्थक, कथकली एवं भरतनाट्यम में 2 वर्षीय डिग्री पाठ्यक्रम की व्यवस्था है।
7) चीन भवन- इसकी स्थापना भारतीय एवं चीनी संस्कृति के अध्ययन के उद्देश्य से की गई है। इसके पुस्तकालय में चीनी भाषा के लगभग एक लाख प्राचीन ग्रन्थ संग्रहित है। इसका उद्देश्य भारतीय एवं चीनी छात्रों को एक दूसरे का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
8) श्री निकेतन- इसमें ग्राम पुनर्व्यवस्था एवं ग्राम नवनिर्माण की शिक्षा प्रदान की जाती है।
9) शिल्प भवन- इसमें विभिन्न उद्योगों एवं शिल्पों की व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है।
ग्रामीण पुनर्रचना संस्थान (Institutes of Rural Reconstruction)
इस संस्था के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1) ग्रामीण समस्याओं का अध्ययन, उनका अनुसंधान एवं हल खोजना तथा उन समस्याओं से देश को परिचित कराना।
2) ग्रामीण कृषकों की जीवन सम्बन्धी समस्याओं में रुचि लेकर उनकी सहायता करना, उनका प्रेम एवं सहानुभूति प्राप्त करना।
3) ग्रामीण निरक्षरों को साक्षर करके उत्तम नागरिकता के भाव जाग्रत करना तथा उनकी सामाजिक सेवा करना।
4) ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सफाई, कृषि के अच्छे ढंग, कुटीर उद्योगों का शिक्षण, सहकारिता, श्रम का आदर आदि का भाव उत्पन्न करके सुखी जीवन का संचार करना।
5) छात्र-छात्राओं में ग्रामीणों के प्रति सहानुभूति एवं सेवा के भाव उत्पन्न करना तथा ग्रामीण व्यवसायों का परिचय देना।
शान्ति निकेतन के कार्यक्रम (Activities of Shanti Niketan)
शान्तिनिकेतन आत्मानुशासित एवं स्वशासी संस्था है। इसमें गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने प्राचीन आश्रम प्रणाली को गुरू-गृह आश्रम के रूप में प्रारम्भ किया था। वह अपने सम्पूर्ण जीवन काल में आश्रम प्रणाली को निभाते रहे। वृक्षों की छाया में, शीतल हवा एवं सुरक्षित वातावरण में शिक्षण कार्य तथा अन्य कार्यक्रम चलते थे। वर्तमान समय में यहाँ पर डेयरी फार्म, पोस्ट ऑफिस, चिकित्सालय, उद्योगशालाएँ आदि सभी व्यवस्थाएँ एवं सुविधाएँ उपलब्ध हैं। शान्तिनिकेतन का कार्यक्रम निम्नलिखित प्रकार से हैं-
1 ) सम्पूर्ण दैनिक कार्यकाल – प्रातः 4:30 बजे से रात 9 बजे तक।
2) दैनिक कार्यों एवं कक्षा सफाई से निवृत्ति – प्रातः 4:30 बजे से 6 बजे तक।
3) प्रातः काल का जलपान – प्रातः 6 बजे सामूहिक रूप से इसमें दूध अथवा कोको ताजा मक्खन लगी शक्करयुक्त रोटियाँ अथवा हरे साग के साथ पूड़ियाँ दी जाती हैं।
4) सामूहिक प्रार्थना- प्रातः 6:30 से 7 बजे तक मूक ईश वन्दना। बाद में गुरुदेव के लिखित भजन एवं गीत का सामूहिक गायन ।
5) शिक्षण- प्रातः 7 बजे से 10:30 बजे तक शिक्षा तथा अन्य शैक्षिक कार्य, कक्षाएँ एवं स्वाध्याय।
6) भोजन- दोपहर का भोजन 11 बजे से 11:30 बजे तक।
7) विश्राम एवं पढ़ाई – 11:30 बजे से 2 बजे अपरान्ह तक आराम, इसके बाद 2 बजे से 5 बजे तक कक्षाएँ एवं शिक्षण।
8) खेलकूद- सायं 5 बजे से 7 बजे तक।
9) छात्रावास उपस्थिति- सायं 7 बजे ।
10) मनोरंजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम- सायं 7 बजे से 8:30 बजे तक। इस समय व्याख्यान, वाद-विवाद, संगीत, नृत्य, सभा, नाटक एवं कवि सम्मेलन आदि कार्यक्रमों का आयोजन ।
11) शाम का भोजन- सायं 8:30 बजे ।
12) शयन – रात्रि 9 बजे
13) साप्ताहिक अवकाश – प्रत्येक बुधवार को।
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