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शिक्षा प्रबन्ध के आयाम (APPROACHES OF EDUCATIONAL MANAGEMENT)

शिक्षा प्रबन्ध के आयाम (APPROACHES OF EDUCATIONAL MANAGEMENT)
शिक्षा प्रबन्ध के आयाम (APPROACHES OF EDUCATIONAL MANAGEMENT)

शिक्षा प्रबन्ध के आयाम (APPROACHES OF EDUCATIONAL MANAGEMENT)

शैक्षिक प्रबन्ध को बेहतर बनाने हेतु कई रास्ते अपनाने होते हैं और उनके उचित उपयोग से ही शैक्षिक प्रबन्ध को उपयुक्त मार्गदर्शन मिल सकता है। इन सब आयामों या रास्तों में कुछ आयाम प्रमुख समझे जाते हैं जिनका उल्लेख निम्नलिखित है-

(1) मानव शक्ति आयाम (Man-power approach)

(2) सामाजिक माँग आयाम (Social demand approach)

(3) विनियोग आयाम (The cost benefit approach)

(4) सामाजिक न्याय आयाम (Social justice approach)

(5) समन्वित आयाम (Co-ordinative approach) |

(1) मानव शक्ति आयाम (Man-power approach)—मानव स्त्रोतों का विकास करने के लिए और राष्ट्र के आधुनिकीकरण में सहायता पाने के लिए शिक्षा का होना आवश्यक है। उसको प्रबन्ध को भी उन्नति के रास्ते पर लाना होता है जिसके लिए प्रत्येक समाज तन्त्र को शिक्षित तथा प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। मानव शक्ति के स्रोतों का अधिकतम विकास करने हेतु शैक्षिक नियोजन की आवश्यकता होती है जिसके द्वारा शिक्षा तन्त्र में विकास के साथ-साथ परिवर्तन किया जाता है।

शिक्षा तथा प्रशिक्षण से विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षित व्यक्ति; जैसे-डॉक्टर, शिक्षक, इंजीनियर्स, आदि तैयार किए जाते हैं। कुछ देशों में शैक्षिक नियोजन इस आधार पर किया जाता है कि उस देश की आवश्यकता क्या है ? भारत में शैक्षिक नियोजन राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुसार नहीं है। भारत में शिक्षित तथा प्रशिक्षित व्यक्तियों की बेरोजगारी अधिक है। मानव शक्ति आयाम का लक्ष्य रोजगार की समस्याओं को हल करना है परन्तु भारत इस मैदान में पिछड़ा हुआ है। यही कारण है कि शिक्षित तथा प्रशिक्षित व्यक्ति दूसरे विकसित देशों में चले जाते हैं और इस बात का विपरीत प्रभाव यह होता है कि भारत उन काबिल व्यक्तियों को खो देता है जो कि भारत के विकास में सहयोग दे सकते थे।

यही वह आयाम है जो शिक्षा को व्यवसाय से जोड़ता है। उच्च शिक्षा तेज पढ़ने वाले छात्रों को दी जाती है। अन्य को व्यावसायिक शिक्षा का प्रबन्ध करना चाहिए। भारत में आज तकनीकी प्रशिक्षित छात्र भी बेरोजगार हैं। यह सभी शिक्षा नियोजन सही न होने के कारण है। शिक्षा नियोजन का यह उद्देश्य होना चाहिए कि शिक्षा द्वारा ही राष्ट्र के आर्थिक पक्ष में सही योगदान प्राप्त कर सकें।

(2) सामाजिक माँग आयाम (Social demand approach)- शिक्षा की अहमियत को समझने के पश्चात् लोगों में शिक्षा प्राप्त करने की चाहत बढ़ी है और यही कारण है कि हर व्यक्ति अपने को और अपनी आने वाली नस्लों को शिक्षित बनाना चाहता है। इस कारण आज स्कूलों, महाविद्यालयों में छात्रों के प्रवेश के लिए भीड़ लगी रहती है। इससे यह सिद्ध होता है कि शिक्षा की माँग बढ़ी । सामाजिक माँग के दो पक्ष है-

प्रथम पक्ष- समाज की माँग है कि सभी को शिक्षा ग्रहण करने के अवसर प्राप्त हों। प्रत्येक संरक्षक यह प्रयास करते हैं कि उनके बच्चे को उत्तम शिक्षा प्राप्त हो चाहे वह सामान्य शिक्षा हो या व्यावसायिक शिक्षा। उनका मानना है कि शिक्षा से ही उनका बच्चा समाज में अपना कोई मुकाम बना सकता है अन्यथा नहीं। उनकी यह सोच सौ प्रतिशत सही भी है।

द्वितीय पक्ष- समाज की दूसरी माँग यह होती है कि शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् उनको अच्छा व्यवसाय भी मिल जाए। भारत में व्यवसाय जुटाने के लिए प्रभावशाली शिक्षा नियोजना नहीं है जिसके कारण व्यवसाय नहीं प्राप्त कर पाते हैं और राष्ट्र की माँग से अधिक प्रशिक्षित व्यक्ति उपलब्ध हैं। भारत में बेरोजगारी की समस्या विकट है और यही कारण है कि आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक मैदान में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। हमारी शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे योग्य लोगों को प्रोत्साहन मिले अथवा व्यवसाय मिले। इसके लिए शिक्षा नियोजन में सुधार की आवश्यकता ताकि शैक्षिक व्यक्तियों का चयन उनकी उपलब्धियों के आधार पर हो सके। शिक्षा नियोजन सही ढंग से किया जाएगा तभी सन्तुलन बन पाएगा। भारत में शिक्षा की सामाजिक माँग पर शिक्षा नियोजन तथा नीतियों में सुधार लाने की आवश्यकता है क्योंकि इसका प्रभाव देश की अच्छी हालत पर पड़ता है। भारत की शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आयी है। सामाजिक माँग बढ़ने के बावजूद शिक्षा के स्तर को ठीक करने या उसमें बदलाव लाने में भारत असमर्थ है। यह सब केवल शैक्षिक नियोजन की असफलता के कारण है।

व्यक्तियों की माँग के अनुसार शिक्षा साधनों का विस्तार होना चाहिए। इससे शिक्षा नियोजन में सहायता मिलती है। उदाहरण के तौर पर सरकार डॉक्टरों की कमी का ब्यौरा या उल्लेख तो करती है परन्तु इस समस्या को खत्म करने के लिए कोई कदम नहीं उठाती। इसके लिए अन्य मैडिकल कॉलेज खोल दिये जाएँ तो ज्यादा व्यक्ति डॉक्टर बनने के योग्य शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे।

(3) विनियोग आयाम (Cost benefit approach)– शिक्षा नियोजन में विनियोग आयाम का अर्थ है कि शिक्षा प्राप्त करने में जितना व्यय किया गया है उससे अधिक आय ग्रहण के बाद होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो शिक्षा विनियोग का नियोजन अर्थहीन नजर आता है।

इस आयाम का मत है कि शिक्षा पर जो खर्च किया जाता है वह राष्ट्रीय विनियोग माना जाता है। शैक्षिक आयोजन में आर्थिक पक्ष प्रतिफल दर के अनुसार ध्यान में रखा जाता है। विभिन्न स्तरों पर तथा विभिन्न प्रकार की शिक्षा देने में प्रत्येक छात्र पर कितना व्यय किया जाता है यह प्रति व्यक्ति दर बताता है। इसी प्रकार प्रति विद्यालय पर व्यय, प्रति स्तर पर व्यय, इत्यादि भी निकाले जाते हैं। जब हम शैक्षिक आयोजन में इस ओर अपना मुख्य लक्ष्य केन्द्रित करते हैं तो प्रति छात्र पर कितना व्यय किया जाता है तो हम प्रतिफल दर उपागम को अपना रहे होते हैं।

आज हमारी सरकार पहले की तुलना में कहीं अधिक व्यय कर रही है परन्तु इसका लाभ छात्र को कितना पहुँचता है यह पता तब ही लग सकता है जब प्रति छात्र व्यय निकाला जाए।

आर्थिक दृष्टि से शिक्षा पर कितना व्यय होता है और इसका लाभ समाज, राष्ट्र व व्यक्ति को कितना होता है इसी तथ्य पर इस उपागम में विशेष ध्यान दिया जाता है। इस आयाम में देखना होता है कि शिक्षा के लिए कितना धन उपलब्ध है, किन क्षेत्रों में धन लगाने से समाज को अधिक लाभ मिलेगा। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि कितना व्यय लगाने से कितना शैक्षिक गुणवत्ता का विकास होगा। मुद्रा का इस समय वास्तविक मूल्य क्या है तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र कुल जनसंख्या के किस अनुपात में हैं इसको भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता है।

(4) सामाजिक न्याय आयाम (Social justice approach)- भारतीय संविधान में समानता तथा सामाजिक न्याय का मूल अधिकार नागरिकों को दिया गया है। इन मूल अधिकारों को ध्यान में रखकर ही भारत में राष्ट्रीय विकास के लिए आयोजना बनाई जाती है। संविधान के अनुरूप समाज के पिछड़े, शोषित व पीड़ित व्यक्तियों के लिए अन्य वर्ग के समान शैक्षिक स्तर पर लाने के लिए इस आयाम में अत्यन्त महत्त्व दिया जाता है। महिलाओं, जनजाति, अनुसूचित जाति के छात्रों को शिक्षा में आरक्षण तथा क्षेत्रीय असमानता दूर करने के लिए अलग से प्रयास जैसे उदाहरण इस आयाम में आते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रों के विकास के लिए नवोदय विद्यालय भी इसी आयाम में आते हैं। प्रत्येक नागरिक को अच्छी शिक्षा उसकी बौद्धिक क्षमता के अनुसार मिले। हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि जिसके पास अधिक धन है वह अच्छे विद्यालयों में अच्छी शिक्षा प्राप्त कर लेता है और निर्धन इस अवसर को प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं या कभी-कभी निरक्षर ही रह जाते हैं। 1986 की नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत इस दोष को दूर करने के लिए नवोदय विद्यालयों की स्थापना की गई थी और फैसला हुआ कि राष्ट्र के प्रत्येक जिले में एक ऐसा स्कूल खोला जाएगा।

(5) समन्वित आयाम (Co-ordinative approach)– किसी भी एक आयाम से शैक्षिक विकास की समस्याएँ हल नहीं होतीं। उसके लिए विभिन्न आयामों का राष्ट्र की आवश्यकता के अनुरूप प्रयोग किया जाना चाहिए। इस आयाम में निम्न बातों पर ध्यान दिया जाता है-

1. भविष्य में जनसंख्या का क्या अनुमान होगा तथा विभिन्न आयु वर्ग के छात्रों की अनुमानित संख्या क्या होगी।

2. वर्तमान के आधार पर भविष्य में किस प्रकार के कितने कर्मचारियों की आवश्यकता होगी।

3. एक निश्चित अवधि के लिए लक्ष्यों का निर्धारण तद्नुसार वित्तीय व्यवस्था एवं आर्थिक सफलता के आधार पर समीक्षा करना।

4. देश की माँग अपेक्षित परिवर्तन, भावी उपलब्धता और प्रभावी नियोजन का आकलन, आदि को महत्त्व देना होता है।

उच्च राष्ट्रीय योजनाओं के लिए आवश्यकताओं का अनुमान नीचे से आना चाहिए। भारतीय योजनाओं के देशी अनुभवों का लाभ लिखा जाना चाहिए। आधार वित्तीय न होकर व्यापक सहयोग और समर्पण का होना चाहिए।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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