शिक्षाशास्त्र / Education

शिक्षा मनोविज्ञान की आत्मनिरीक्षण विधि | अन्तर्निरीक्षण विधि के गुण या विशेषताएं | अन्तर्निरीक्षण विधि के दोष या सीमायें

शिक्षा मनोविज्ञान की आत्मनिरीक्षण विधि का वर्णन कीजिए।

शिक्षा मनोविज्ञान की प्रमुख विधियाँ:

शिक्षा मनोविज्ञान की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-

(1) आत्मनिष्ठ पद्धतियाँ: इसके अन्तर्गत दो पद्धतियाँ आती है–

  1. आत्म निरीक्षण पद्धति (अन्तर्दर्शन विधि)
  2.  गाथा वर्णन पद्धति

(2 ) वस्तुनिष्ठ पद्धतियाँ: इसके अन्तर्गत निम्न विधियाँ आती है –

  1. साक्षात्कार विधि
  2. प्रश्नावली विधि
  3. प्रयोगात्मक विधि
  4. जीवन इतिहास विधि
  5. उपचारात्मक विधि
  6. निरीक्षण विधि
  7. विकासात्मक विधि
  8. परीक्षण विधि
  9. मनोविश्लेषण विधि
  10. सांख्यिकी विधि
  11. तुलनात्मक विधि
  12. गाथा वर्णन पद्धति

आत्म निरीक्षण पद्धति ( Introspective method)- आत्म निरीक्षण या अन्तदर्शन का शाब्दिक अर्थ है अपने में देखना अथवा आत्म-निरीक्षण, इस प्रकार अन्तर्निरीक्षण में व्यक्ति स्वयं अपने व्यवहार का निरीक्षण करता हैं इसीलिए इसे अन्तर्निरीक्षण विधि अथवा आत्म-निरीक्षण विधि कहा जाता है। जैसा कि शिक्षा-शब्दकोश में अन्तर्निरीक्षण के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है, अन्तर्निरीक्षण व्यक्ति के अपने स्वयं के विचारों, प्रेरकों, मनोभावों, स्व-विश्लेषणों के अध्ययन का कार्य है।”

अन्तर्निरीक्षण विधि मनोविज्ञान सम्भवतः सर्वाधिक प्राचीन विधि है। इस विधि का प्रतिपादन संरचनावाद नामक मनोवैज्ञानिक सम्प्रदाय के जनक विल्हेल्म वुण्ट तथा उनके शिष्य टिचनेर ने किया था। इन्होने मनोविज्ञान को चेतना अनुभूतियों के रूप में परिभाषित करते हुए कहा है कि चेतना अनुभूतियों का अध्ययन अन्तर्दर्शन के द्वारा ही किया जा सकता हैं इनके अनुसार चेतन अनुभूति के अर्न्तदर्शन में तीन तत्त्व-संवेदना भाव तथा प्रतिमा सम्मिलित रहते हैं। जैसे किसी मृतक को देखकर होने वाली चेतन अनुभति के अन्तर्दर्शन में मृत शरीर को देखना दृष्टि संवेदना है, दुख होना भाव की अभिव्यक्ति है तथा मृत शरीर को देखकर मन में किसी खास मानसिक चित्र का बनना प्रतिमा है। अन्तर्निरीक्षण को आत्म निरीक्षण अथवा स्वनिरीक्षण से अधिक व्यापक समझना चाहिए। आत्म-निरीक्षण में भाव व प्रतिमा निर्माण का प्रायः अभाव रहता है। अवैज्ञानिक विधि होने के कारण वर्तमान समय में इसका प्रयोग बहुत सीमित हो गया है। अन्तर्दर्शन से तात्पर्य अपने अन्दर देखना अथवा अन्तर्निरीक्षण से है। प्रारम्भ में मनोवैज्ञानिक मानसिक क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इस विधि का प्रयोग करते थे। वे अपने अनुभवों के समय अर्थात् सुख दुःख, क्रोध-शान्ति, घृणा-प्रेम आदि स्थितियों में अपनी मानसिक दशाओं तथा भावनाओं का अन्तर्निरीक्षण करके उसका वर्णन करते थे तथा जिसके विश्लेषण के द्वारा वे मनोवैज्ञानिक नियमों तथा सिद्धान्तों को प्रतिपादित करते थे। उदाहरणार्थ, यदि कोई व्यक्ति क्रोध में हैं तथा वह अपने क्रोध की अनुभूति के कारणों को स्वयं ज्ञात करे तथा इसके आधार पर क्रोध से सम्बन्धित मानसिक प्रक्रिया के नियम, सिद्धान्त अथवा दशाओं का निरीक्षण करे तो इसे अन्तर्दर्शन कहा जायेगा। अतः इस विधि को अन्तर्वलोकन अथवा आत्मगत निरीक्षण भी कहा जाता है।

अन्तर्दर्शन की सफलता के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि अन्तर्दशन करने वाला व्यक्ति किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह तथा पक्षपात की भावना से ग्रसित न हो, उसका अपनी अवधान प्रक्रिया पर पूर्ण नियन्त्रण हो, वह शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ हो, उसमें थकान अथवा उलझन जैसी अवरोधनात्मक भावनाएं न हो एवं उसमें अन्तर्दर्शन के प्रति रूचि तथा विश्वास हो ।

अन्तर्निरीक्षण विधि के गुण या विशेषताएं-

1. इस विधि के उपयोग से व्यक्ति को अपने व्यवहार के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष तात्कालिक एवं वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है।

2. इस विधि में व्यक्ति अपने व्यवहार का यथार्थ अवलोकन करता है, जिसके अवलोकन में अन्य व्यक्ति सफल नहीं हो सकते हैं।

3. यह विधि अन्य विधियों के उपयोग में सहायक हैं जैसा कि डगलस एवं हॉलैण्ड ने लिखा है “यह विधि अन्य विधियों द्वारा प्राप्त किये गये तथ्यों, नियमों और सिद्धान्तों की व्याख्या करने में सहायता देती है। “

4. यह विधि अत्यन्त मितव्ययी है क्योंकि इसके प्रयोग में किसी सामग्री अथवा यन्त्र की आवश्यकता नहीं होती है। इस सन्दर्भ में रॉस ने लिखा है, “यह विधि खर्चीली नहीं है। क्योंकि इसमें किसी विशेष यन्त्र अथवा सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती है।”

अन्तर्निरीक्षण विधि के दोष या सीमायें

1. वैज्ञानिकता के अभाव में यह विधि मान्य नहीं है क्योंकि इस विधि द्वारा प्राप्त परिणामों का किसी अन्य व्यक्ति द्वारा परीक्षण किया जाना सम्भव नहीं है।

2. अन्तर्निरीक्षण विधि में व्यक्ति अपने स्वयं के व्यवहार का अवलोकन करता है। किसी मानसिक प्रक्रिया के अन्तर्गत व्यक्ति के द्वारा अपने व्यवहार का अवलोकन करना यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है।

3. अन्तर्निरीक्षण विधि से प्राप्त होने वाली सूचनाएं अत्यधिक आत्मनिष्ट होती है।

4. शिशुओं, बालकों तथा असामान्य व्यक्तियों के द्वारा अन्तर्निरीक्षण विधि का प्रयोग सम्भव नहीं है।

5. अचेतनावस्था में किये जाने वाले व्यवहार का अध्ययन भी इस विधि के द्वारा नहीं किया जा सकता है।

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Anjali Yadav

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