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संक्रामक रोग के स्तर | STAGES OF INFECTIOUS DISEASE
सभी संक्रामक रोग पाँच अवस्थाओं या स्तरों में होकर गुजरते हैं। इन अवस्थाओं की अवधि विभिन्न रोगों में विभिन्न है। संक्रामक रोग की ये अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) उद्भवन काल (Incubation Period)-शरीर के अन्दर रोगजनक जीवाणु (Pathogenic organisms) प्रवेश करने के तुरन्त बाद ही रोग के लक्षण उत्पन्न नहीं करते हैं, वरन् शरीर में अपनी वृद्धि करते हैं। साथ ही रक्त-कणों के साथ संघर्ष करते हैं अतः जीवाणु के शरीर में प्रवेश करने के बाद लक्षण उत्पन्न करने की अवधि, जो कुछ घण्टों से लेकर सप्ताहों तक की हो सकती है; उद्भवन काल या अन्तविकास काल कहलाती हैं। इस अवधि में आक्रान्त व्यक्ति या तो पूर्ण स्वस्थ या किंचित अस्वस्थ दिखाई पड़ेगा।
(2) प्रारम्भिक लक्षण-स्तर (The Prodormal Stage)—यह वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति रोग के प्रथम लक्षण की अनुभूति करे या उसके शरीर पर प्राथमिक लक्षण दिखाई पड़े। यह अवस्था उस समय तक रहती है जब तक व्यक्ति के शरीर पर रोग के लक्षण पूर्णतः स्पष्ट न हो जायें। इस अवस्था को कभी-कभी आक्रमण काल (Invasion Period) भी कहा जाता है।
(3) तीव्रता काल (Fastigium)- इस स्तर में संक्रामक रोग के लक्षणों में तीव्रता आ जाती है। इस काल को रोग का शिखर-काल भी कह सकते हैं। इसमें रोग अपनी चरम सीमा पर होता है।
(4) शान्ति-काल- इस अवस्था में रोग की तीव्रता में कमी आने लगती है और रोगी आराम की अनुभूति करने लगता है।
(5) रोगनिवृत्ति काल (Period of Convalescence)– इस काल या अवस्था में रोगी आक्रामकों तथा उनके जीव-विष पर पूर्णतः विजय प्राप्त कर लेता है, परन्तु उसमें थकावट तथा तन्तुओं के नष्ट हो जाने से कमजोरी बनी रहती है। इसलिए उसे ताजी हवा, पोषक भोजन, टॉनिक तथा व्यायाम की उस समय तक आवश्यकता रहती है जब तक वह पूर्णतः स्वस्थ नहीं हो जाता है।
छूत के नियन्त्रण के उपाय (REMEDY OF CONTROL OF INFECTION)
ये निम्न प्रकार हैं-
(अ) अधिसूचना (Notification)-छूत के नियन्त्रण के लिए सबसे पहला उपाय यह है कि उसकी सूचना उच्चाधिकारियों या सम्बन्धित अधिकारियों को प्रदान की जाए जिससे वे उसके निरोधन के लिए कदम उठा सकें। अधिसूचना (Notification) का अभिप्राय है – स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों को संक्रामक रोग की प्रत्येक घटना के विषय में सूचित करना चाहे यह स्थानीय अधिकारी नगरपालिका का स्वास्थ्य अधिकारी हो या जिले का स्वास्थ्य अधिकारी (District Medical Officer)। इस प्रकार की सूचना के निम्नलिखित लाभ हैं..
1. इससे अधिकारियों को रोगी को अलग करने तथा आवश्यक निसंक्रमण (Disinfection) करने का अवसर मिल जाता है।
2. इससे छूत के प्रसार को रोकने में सहायता मिलती है। वे रोग के प्रसार को रोकने के लिए टीके लगवाने की व्यवस्था कर सकते हैं। ये चेचक, हैजा, एण्टेरिक ज्वर जैसे संक्रामक रोगों से अन्य लोगों को बचाने के लिए वैक्सीन का टीका T.A.B. तथा एण्टीकॉलेरा के टीके लगवाने का प्रबन्ध कर सकते हैं।
3. छूत के संक्रमण के वास्तविक एवं मूल स्रोत का पता लगाया जा सकता है। नगर या कस्बे या जिले के रोगियों का भी पता लगाया जा सकता है।
4. विद्यालयों या अन्य केन्द्रों में छूत को संक्रमित घरों के सदस्यों का पृथक्करण करके नियन्त्रित किया जा सकता है।
5. मिल्क डिपो तथा जल पूर्ति के साधनों का परीक्षण करके एपेडेमिक रोग के स्रोतों की खोज की जा सकती है।
6. यह घरों की स्वास्थ्यकर दशाओं की खोज करने का अवसर प्रदान करती है।
7. इससे सन्देही तथा सम्भावी रोगियों की देखभाल का अवसर मिलता है।
अधिसूच्य मूल्य (Notifiable Diseases) हैजा, चेचक, प्लेग, एण्टैरिक ज्वर, पेचिश, डिप्थीरिया, कर्णफेर, क्षयरोग, सर्दी ज्वर, कुकर खाँसी, खसरा, पीत ज्वर, टाइफाइड, टाइफस, आदि रोगों की सूचना स्वास्थ्य अधिकारियों को प्रदान करनी चाहिए।
कौन सूचित करे ? (Who should Notify ?)– जब कोई डॉक्टर किसी का परीक्षण करके उसे संक्रामक रोग से ग्रसित समझे तो उसका परम कर्तव्य है कि उस रोग की सूचना स्वास्थ्य अधिकारी को भेजे। यदि वह ऐसा न करे तो म्यूनिसिपल एक्ट के अधीन उसके खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए। रोगी के संरक्षक या उसके तीमारदार को संक्रामक रोग के बारे में सूचित करना चाहिए। रोगी के घर में रहने वाला कोई भी सदस्य इसकी सूचना दे सकता है। होटल या अन्य संस्था का व्यवस्थापक इसकी सूचना दे सकता है।
(ब) पृथक्करण (Isolation)—संक्रामक रोगों के प्रसार के नियन्त्रण के लिए पृथक्करण सर्वोत्तम एकाकी विधि है। पृथक्करण-काल सामान्यतः वह अवधि है जब रोगी दूसरों के लिए संक्रामी (Infective) नहीं रहता है। पृथक्करण द्वारा रोगी को दूसरे व्यक्तियों से इसलिए अलग कर दिया जाता है जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष साधनों द्वारा दूसरे व्यक्तियों को उसकी छूत न लग सके। इससे दूसरे व्यक्ति रोगवाहक नहीं बन पाते हैं। संक्रामक रोगी को पृथक् अस्पताल द्वारा तथा घर में पृथक् स्थान प्रदान करके अलग किया जा सकता है। बड़े नगरों में संक्रामक रोग के रोगियों के लिए अस्पताल में पृथक् व्यवस्था होनी चाहिए। अस्पताल में विभिन्न संक्रामक रोगों के लिए पृथक्-पृथक् वार्ड होने चाहिए। इनमें प्रत्येक रोगी के लिए 144 वर्ग फीट तथा 6 हजार घनफुट प्रति घण्टा शुद्ध वायु के लिए व्यवस्था होना आवश्यक है। रोगी के घर में उनके लिए अलग व्यवस्था करके उसको अन्य सदस्यों से पृथक् किया जा सकता है। घर में ही पृथक्करण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए-
1. रोगी का कक्ष ऊपर की मंजिल में हो तो बहुत अच्छा है।
2. कक्ष से समस्त अनावश्यक फर्नीचर बाहर कर देना चाहिए।
3. कार्बोलिक एसिड के घोल (1 : 20) में भीगा हुआ कपड़ा दरवाजे पर पर्दे के रूप में प्रयुक्त करना चाहिए।
4. संवातन के लिए खिड़कियों को, जहाँ तक सम्भव हो सके, खुला रखना चाहिए।
5. रोगी के कक्ष में केवल तीमारदार या नर्स को ही जाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
6. रोगी के कपड़ों को नि:संक्रामक घोल में डुबो देना चाहिए। बाद में उनको निसंक्रमित करने के लिए उबालना चाहिए।
7. रोगी के मल-मूत्र को बर्तन में एकत्रित करना चाहिए, परन्तु उस बर्तन में शक्तिशाली निसंक्रामक घोल रखना आवश्यक है। उसके मल-मूत्र को जला देना या भूमि में गाढ़ देना चाहिए।
8. रोगी के कक्ष से मक्खियों और मच्छरों को दूर करने के लिए उपयुक्त कदम उठाये जाने चाहिए।
9. रोगी के कक्ष से बर्तनों को बाहर ले जाने के बाद उन्हें पूर्णत: निसंक्रमित लेना चाहिए।
10. रोगी को देखने आने वाले व्यक्तियों को उसके कमरे में आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
11. रोगग्रस्त घर के बच्चों, कार्यकर्ताओं, आदि को अपनी-अपनी संस्थाओं में काम करने के लिए नहीं भेजना चाहिए।
12. जब छूत या भय समाप्त हो जाए तब रोगी को अच्छी तरह नहलाना चाहिए। फिर उसके कपड़े बदल देने चाहिए। इसके बाद ही उसे अन्य लोगों से मिलने की अनुमति दी जानी चाहिए।
13. यदि किसी कारणवश रोगी की मृत्यु हो जाए तो उसके पार्थिव शरीर को कार्बोलिक लोशन में भीगे हुए कपड़े से ढककर जला देना चाहिए।
14. रोगी के कक्ष को उसके खाली करने के बाद पूर्णत: निसंक्रमित कर देना चाहिए।
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