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संगठन की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
प्रबन्ध का द्वितीय महत्वपूर्ण कार्य संगठन का निर्माण है। निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कुछ आवश्यक साधनों की आवश्यकता होती है। इन्हीं साधनों की व्यवस्था संगठन कहलाती है। नियोजन के माध्यम से प्रबन्धक निर्दिष्ट स्थान और उस तक पहुंचने का सुनिश्चित मार्ग निर्धारित करता है, किन्तु निर्दिष्ट स्थान और सुनिश्चित मार्ग की रूपरेखा का कोई अर्थ तब तक नहीं है जब तक कि उनके लिए किसी उपर्युक्त वाहन की व्यवस्था न हो। संगठन इसी वाहन या साधन की व्यवस्था करता है, जिसके द्वारा निर्धारित मार्ग पर चलकर गन्तव्य स्थान तक पहुँचा जा सके। इस प्रकार संगठन एक प्रतिष्ठान में वे साधन प्रदान करता है जो उद्देश्यपूर्ण संघटित और सहयोगपूर्ण कार्य निष्पादन के लिए आवश्यक होते हैं।
अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘Organising’ की व्युत्पत्ति ‘Organism’ शब्द से हुई है और जिसका अर्थ है किसी ऐसे ढाँचे का निर्माण जिसके समस्त भाग ऐसे संघटित हों कि हर भाग का सम्बन्ध, ढांचे के सम्पूर्ण सम्बन्ध से नियन्त्रित हों। संगठन के दो महत्वपूर्ण अंग होते हैं- (1) संघटक (Parts) और (2) उनके परस्पर सम्बन्ध। संगठन के व्यक्ति और भौतिक साधन दो संघटक होते हैं। और संगठन में इनके सम्बन्धो से आशय संलग्न व्यक्तियों कार्य स्थितियों और भौतिक साधनों के परस्पर सम्बन्धों से है। व्यक्ति और भौतिक साधन, दोनों ही स्वतंत्र भाग या संघटक हैं जब तक कि व्यक्तियों का भौतिक साधनों से और एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से परस्पर सम्बन्ध स्थापित न किया जाए। संगठन की प्रक्रिया में इन्हीं व्यक्तियों और भौतिक साधनों के परस्पर सम्बन्ध इस ढंग से स्थापित किए जाते हैं जिससे कि सम्पूर्ण क्रियाएं संयोजित और एकीकृत ढंग से सम्पन्न हो सकें और प्रतिष्ठान के सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।
संगठन को एक प्रक्रिया से रूप में विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया गया है। टेरी के अनुसार, ‘संगठन प्रभावी अधिकार सम्बन्धों की कुछ कार्यों, व्यक्तियों और कार्यस्थलों के मध्य इस ढंग से स्थापना है कि जिससे एक व्यक्ति समूह एक साथ कुशलतापूर्वक कार्य का निष्पादन कर सके।’ कूटज और ओडोनेल के शब्दों में, ‘संगठन, सीधे और पड़े दोनों प्रकार के संरचनात्मक समन्वय को प्रदान करते हुए, अधिकार सम्बन्धों की ऐसे दो पदों (Positions) के बीच स्थापना है, जिन्हें प्रतिष्ठान के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कुछ विशेष कार्य निर्धारित किए गए हैं। इस प्रकार संगठन एक संरचनात्मक सम्बन्ध हैं, जिसके द्वारा प्रतिष्ठान एक सूत्र में बंधता है, और वह संरचना है जिसमें व्यक्तिगत प्रयासों का समन्वय होता है।’ इसी अधिकार सम्बन्ध पर आधारित संगठन की परिभाषा देते हुए थियो हैमन लिखते हैं, ‘संगठन संस्था की क्रियाओं के परिभाषित एवं वर्गीकृत करने एवं उसके परस्पर अधिकार सम्बन्धों के स्थापना की प्रक्रिया है। संगठन का सम्बन्ध संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कर्मचारी सम्बन्धों के ढांचे के निर्माण विकास एवं अनुरक्षण से है।’ ओलीवर शेल्डन के शब्दों में, ‘संगठन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा आवश्यक विभागों में व्यक्तियों तथा वर्गों द्वारा सम्पन्न किए जाने वाले कार्यों को क्रमबद्ध करके इस प्रकार संयोजित किया जाता है कि उन्हें कुशल, व्यवस्थित और संघटित बनाया जा सके संगठन वह साधन है जो प्रश्न द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति में सहायक होता है। और अन्त में जॉन एम० पिफनर (John M. Pfiffner) की दृष्टि में, ‘संगठन व्यक्ति का व्यक्ति से, कार्य का कार्य से तथा विभाग का विभाग से सम्बन्ध है।’
इस प्रकार संगठन प्रबन्ध की वह प्रक्रिया है जो किसी संस्था के साधनों एवं संघटकों का निर्धारण करती है और उनमें परस्पर सम्बन्ध जोड़ती है। संगठन प्रक्रिया के फलस्वरूप एक संगठन ढाँचा बनता है जिसके बारे में अगले अध्याय में अध्ययन किया गया है।
संगठन क्रियाओं का क्षेत्र
संगठन क्रियाओं को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
- मानवीय संगठन, एवं
- भौतिक साधनों का संगठन।
1. मानवीय संगठन- मानवीय क्रियाएँ कुशलतापूर्वक निष्पादित हो सकें, और सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके, इसके लिए यह आवश्यक है कि कार्यरत सभी व्यक्तियों की क्रियाओं को ढंग से संगठित किया जाय। इस सम्बन्ध में अग्रलिखिथ क्रियाओं का संगठन करना आवश्यक होता है-
- कुल आवश्यक क्रियाओं का निर्धारण और उनका उचित वर्गीकरण
- उनका क्रियात्मक विभागों एवं विभिन्न व्यक्तियों में विभाजन,
- कर्मचारी आवश्यकताओं का संख्यात्मक एवं गुणात्मक अनुमान,
- कर्मचारियों की खोज चयन प्रशिक्षण पदोन्नति और भुगतान,
- उनके अनुशासन परिवेदना निवारण मनोबल, कल्याण और सुरक्षा से सम्बन्धित क्रियाएं
- संगठन में विभिन्न पदों का निर्माण तथा उनके अधिकारों, कार्यों एवं दायित्वों का निर्धारण एवं प्रतिनिधायन,
- अधिकारी एवं अधीनस्थ कर्मचारी के परस्पर सम्बन्धी का निर्धारण
- अधिकारों का विकेन्द्रीकरण,
- क्रियाओं का अभिप्रेरण एवं समन्वय, तथा
- मानव-समूह एवं उनके परस्पर सम्बन्धों से सम्बद्ध अन्य क्रियाएँ।
2. भौतिक साधनों का संगठन- संगठन क्रियाओं में भौतिक साधनों की व्यवस्था भी सम्मिलित की जाती है। इसके लिए अग्रलिखित साधनों की समुचित व्यवस्था आवश्यक होती है-
- स्थान का चुनाव,
- भावनों का निर्माण
- भौतिक साधनों एवं मशीनों का अभिन्यास,
- यंत्रों औजारों फर्नीचर एवं कच्चे माल की व्यवस्था
- वित्त लेखा एवं अंकेक्षण की व्यवस्था
- पत्राचार एवं फाइलिंग की व्यवस्था आदि। इन भौतिक साधनों की समुचित व्यवस्था कार्य निष्पादन एवं लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक होती है। अतः संगठन का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है।
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