समुद्री यात्रा खाते में डेबिट एवं क्रेडिट पक्ष में साधारणतया किन मदों का लेखा किया जाता है। समझाइये। What items are usually recorded in the debit and credit side of voyage accounts. Discuss.
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समुद्री खातें के डेबिट पक्ष में सम्मिलित की जाने वाली मदें (Items to be included in the Debit Side of Voyage Account)
समुद्री खाते के डेबिट पक्ष में सम्मिलित की जाने वाली मदें निम्न प्रकार हैं-
(1) बन्कर लागतें (Bunker Costs ) — बन्कर का आशय जहाज में कोयले के रखने के स्थान (Coal Bin) से है। पहले समुद्री जहाज कोयले की स्टीम से चलते थे, परन्तु अब अधिकांश समुद्री जहाज पेट्रोल (Petrol), डीजल (Diesel), स्टोर्स (Stores), शुद्ध पानी (Fresh Water) आदि से चलते हैं अतः जहाज में पहले जहाँ कोयला रखा जाता था वहाँ अब पेट्रोल, डीजल, शुद्धपानी, स्टोर्स एवं अन्य वे सब वस्तुएँ रखी जाती हैं जिनसे जहाज को चलाने के लिए शक्ति अर्जित की जाती है । बन्कर लागतों के अन्तर्गत जहाज की यात्रा से सम्बन्धित कोयला, पेट्रोल, डीजल, शुद्ध पानी आदि की लागतों को सम्मिलित किया जाता है।
(2) अधिकारियों एवं कर्मचारियों का वेतन (Salaries to Officers and Crew ) — इस मद में जहाज में कार्यरत सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सम्बन्धित जहाज यात्रा के सम्बन्ध में दिए जाने वाले वेतन को सम्मिलित किया जाता है।
(3) बन्दरगाह के व्यय (Port Charges ) – जहाजी कम्पनी द्वारा बन्दरमाह के स्थान का प्रयोग जहाज को खड़ा करने, जहाज पर माल लादने और उस पर से माल उतारने के लिए किया जाता है। इस कार्य के लिए जहाजी कम्पनी को सम्बन्धित जहाज यात्रा के सम्बन्ध में जो धनराशि बन्दरगाह के अधिकारियों को देनी पड़ती है। उसे ‘बन्दरगाह के व्यय’ कहते हैं।
(4) जहाज पर माल चढ़ाने एवं उतारने के व्यय (Stevedoring Charges ) — जहाजी कम्पनी सम्बन्धित जहाज यात्रा के सम्बन्ध में जो व्यय माल को जहाज में लोदने एवं उतारने के सम्बन्ध में (Loading and Un-loading Charges) करती है उन्हें इस खाते के डेबिट पक्ष में लिखते हैं। इन व्ययों को बन्दरगाह मजदूरी (Harbour Wages) भी कहते हैं।
(5) दलाली या कमीशन (Brokerage or Commission)— जहाजी कम्पनी के लिए जो व्यक्ति व्यवसाय करते हैं अर्थात ऐसे व्यक्तियों का सम्पर्क जहाजी कम्पनी से कराते हैं जिनका माल जहाजी कम्पनी एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाएगी, उनको इस कार्य के लिए दलाली या कमीशन दिया जाता है। दलाली या कमीशन की गणना कुल भाई की राशि ‘अर्थात भाड़ा और सरचार्ज या प्राइमेज की राशि जोड़कर जो राशि आती है) पर की जाती है। इसे इस खाते को डेबिट पक्ष में लिखते हैं या इस खाते के क्रेडिट पक्ष में कुल भाड़े की राशि में से घटाकर दर्शाया जाता है।
(6) एड्रेस कमीशन (Address Commission)— जहाजी कम्पनी को जो कुछ भाड़ा (भाड़ा + सरचार्ज या प्राइमेज) मिलता है उस पर एक निश्चित प्रतिशत से एड्रेस कमशीन ज्ञात किया जाता है। यह कमीशन उन व्यक्तियों को दिया जाता है। जिनकी सहायता से भाड़ा प्राप्त किया जाता है। एड्रेस कमीशन को इस खाते को डेबिट पक्ष में लिखते हैं। अपूर्ण यात्रा की दशा में समुद्री यात्रा खाता तैयार करने की दिशा में अपूर्ण यात्रा से सम्बन्धित एड्रेस कमीशन की राशि को इस खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।
(7) हास (Depreciation) – हास का लेखा करते समय जहाज यात्रा में लगने वाली अवधि को ध्यान में रखा जाता है। प्रायः जहाज की मूल लागत पर स्थायी किश्त पद्धति के अनुसार हास की गणना की जाती है।
(8) बीमा (Insurance) – जहाजी कम्पनी का और भाई का बीमा ( Insurance of Ship and Freight) समयावधि (प्रायः एक वर्ष) के अनुसार करती है। ऐसी स्थिति में बीमें की प्रीमियम की राशि को उस अनुपात में जहाजी यात्रा खाते के डेबिट पक्ष में लिखते हैं जो जहाज यात्रा की अवधि एंव पूरे वर्ष में होता है। यदि बीमा किसी विशिष्ट जहाज यात्रा के लिए ही कराया गया है तो ऐसी स्थिति में बीमे की प्रीमियम की सम्पूर्ण राशि इस खाते के डेबिट पक्ष में लिखते हैं।
(9) वार्षिक स्थायी लागत (Annual Standing Charges ) — वार्षिक स्थायी व्ययों को उस अनुपात में इस खाते के डेबिट पक्ष में लिखते हैं जो जहाज यात्रा की अवधि एवं पूरे वर्ष में होता है। स्थायी व्ययों में जहाजी कम्पनी के स्थापन व्ययों (Establishment) को सम्मिलित किया जाता है; जैसे वेतन, मरम्मत, ब्याज, बीमा एवं हास आदि।
(10) विविध व्यय (Sundry Expenses) — ऐसे अन्य सभी व्यय इस खाते के डेबिट पक्ष में लिखते हैं जिनका सम्बन्ध जहाजी यात्रा से होता है; जैसे-डाक व्यय, मैनेजर कमीशन आदि ।
समुद्री यात्रा के क्रेडिट पक्ष में सम्मिलित की जाने वाली मदें (Items to be included in the Credit Side to Voyage Account)
समुद्री यात्रा के क्रेडिट पक्ष में सम्मिलित की जाने वाली मदें निम्न प्रकार हैं-
(1) भाड़ा (Freight) – जहाजी कम्पनी माल को एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाने के लिए जो राशि माल के स्वामियों से लेती है उसे भाड़ा कहा जाता है। कुछ जहाजी कम्पनियाँ माल के स्वामियों से भाई की राशि का एक निश्चित प्रतिशत की दर से सरचार्ज (Surcharge) की राशि भी वसूल करती है जिसे भाड़े की राशि में जोड़ लिया जाता है। समुद्री यात्रा भाड़े की राशि को इस खाते में क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।
(2) प्राइमेज (Primage)— कुछ जहाजी कम्पनियाँ माल के स्वामियों से भाई की राशि पर एक निश्चित दर से अतिरिक्त राशि लेती हैं ताकि उनका माल सुरक्षित पहुँचाया जा सके। इस अतिरिक्त राशि को ही प्राइमेज कहते हैं। पहले यह राशि जहाजी कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों में बाँट दिया करती थीं लेकिन आजकल जहाजी कम्पनियाँ इस राशि को स्वयं ही रख लेती हैं। अतः प्राइमेज की राशि को जहाजी-यात्रा खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।
(3) यात्रा राशि (Passage Money) — जब जहाजी कम्पनियाँ माल के साथ-साथ यात्रियों को भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती हैं तो इन यात्रियों से जो किराया वसूल किया जाता है उसे ‘यात्रा राशि कहते हैं। समुद्री यात्रा खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखते हैं। किया जाता है?
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