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सामुदायिक साधनों का उपयोग (UTILIZATION OF COMMUNITY RESOURCES)
प्रत्येक विद्यालय को अपने आस-पास के समुदाय के सभी साधनों के उपयोग के लिए कार्य करना चाहिए। समुदाय के शैक्षिक महत्त्व को स्पष्ट करते हुए जॉन यू. माइकेलिस ने लिखा है-“समुदाय जीवन यापन के विभिन्न ढंगों के विषय में प्रत्यक्ष ज्ञान प्रदान करने के लिए बालक की प्रयोगशाला है। समुदाय में बालक भूगोल, इतिहास, यातायात, सन्देशवाहन, शासन तथा जीवन के अन्य पक्षों के सम्बन्ध में धारणाएँ विकसित कर सकता है।” विद्यालय को छात्रों में उक्त से सम्बन्धित धारणाओं के विकास के लिए समुदाय के निम्नलिखित प्रमुख साधनों का उपयोग करना चाहिए-
(1) प्रशासकीय संस्थाएँ- इसके अन्तर्गत वे संस्थाएँ एवं विभाग आते हैं जिनके द्वारा स्थानीय प्रशासन सम्बन्धी कार्य किए जाते हैं, उदाहरणार्थ- ग्राम पंचायत, नगरपालिका, जिला पंचायत, आदि। छात्रों को इन संस्थाओं की कार्य प्रणाली का वास्तविक ज्ञान देने के लिए वहाँ ले जाया जाय। बालक निरीक्षण एवं अवलोकन द्वारा इनके विषय में प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करेंगे। इस प्रकार प्राप्त किया हुआ ज्ञान अधिक स्थायी एवं उपयोगी होगा।
(2) सार्वजनिक सेवा संस्थाएँ– समाज सेवा में सतत् क्रियाशील पोस्ट ऑफिस, अस्पताल, टेलीग्राफ ऑफिस, बैंक, जल एवं विद्युत विभाग, आदि संस्थाओं के कार्य संचालन का प्रत्यक्ष ज्ञान कराकर छात्रों के ज्ञान को व्यावहारिक बनाया जा सकता है।
(3) विभिन्न प्रकार के उद्योग केन्द्र- प्रत्येक समुदाय का अपना स्थानीय उद्योग एवं कला-कौशल केन्द्र होता है। जब तक छात्रों को उनका निरीक्षण करने का अवसर नहीं दिया जायेगा तब तक उनका ज्ञान अपूर्ण बना रहेगा। अतः बालकों को स्थानीय समाज के कुटीर उद्योगों तथा अन्य बड़े-बड़े औद्योगिक केन्द्रों को दिखाना चाहिए। इन स्थानों को दिखाने के लिए विभिन्न यात्राओं का आयोजन किया जा सकता है।
(4) स्थानीय भौगोलिक वातावरण एवं प्राकृतिक साधन- प्रत्येक समाज अपने भौगोलिक एवं प्राकृतिक वातावरण से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। स्थानीय नदियों, झीलों, पर्वतों एवं धरातल के विषय में जानकारी करने के लिए शैक्षिक यात्राएँ आयोजित करना आवश्यक है जिससे विद्यार्थी यह जान सकें कि किस प्रकार प्राकृतिक साधनों का अधिकाधिक उपयोग किया जाय, जिससे समाज लाभान्वित हो।
(5) ऐतिहासिक स्थान- जहाँ विद्यालय स्थित है, यदि उस क्षेत्र में कोई ऐतिहासिक इमारत, आदि हो तो बालकों को उसे अवश्य दिखाया जाय। इस प्रकार दिया हुआ ज्ञान बालकों के मस्तिष्क में स्थायी रहेगा और बालक सीखने में रुचि लेंगे तथा सूक्ष्म बातों को समझने में भी समर्थ होंगे। इसके अतिरिक्त बालकों को इस बात का ज्ञान भी हो जायेगा कि उनके स्थानीय क्षेत्र ने राष्ट्रीय इतिहास के लिए क्या देन प्रदान की है। स्थानीय ऐतिहासिक स्थानों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों के ऐतिहासिक स्थानों को भी यथासम्भव दिखाने के लिए शैक्षिक यात्राओं को आयोजित करना चाहिए।
(6) संग्रहालय- संग्रहालय में समाज के अतीत एवं वर्तमान का प्रत्यक्ष दिग्दर्शन होता है। छात्रों को समाज के परिवर्तित होते हुए स्वरूप से परिचित कराने के लिए संग्रहालय का निरीक्षण करना अति आवश्यक है। वहाँ ले जाकर बालकों को विभिन्न प्राकर की कलाओं में भिन्न-भिन्न नमूनों एवं उनकी विशेषताओं का ज्ञान कराया जा सकता है तथा उनका तुलनात्मक अध्ययन करके उनके विषय में विस्तृत ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। इनके निरीक्षण से बालकों में अपने राष्ट्र की श्रेष्ठतम कलाकृतियों एवं अन्य महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के लिए गौरव की भावना उत्पन्न की जा सकती है।
(7) विशिष्ट व्यक्तियों एवं विशेषज्ञों के व्याख्यान एवं प्रयोगात्मक प्रदर्शन- समाज के आदशों, सिद्धान्तों एवं विचारधाराओं को अवगत कराने के लिए विशिष्ट व्यक्तियों एवं जन नायकों के व्याख्यान सुनने के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं। विशिष्ट वैज्ञानिकों एवं कलाकारों के प्रयोगात्मक प्रदर्शन द्वारा विद्यार्थियों के ज्ञान को सारगर्भित बनाया जा सकता है।
(8) सामाजिक संस्थाएँ– इसके अन्तर्गत वे संस्थाएँ आती हैं जो समाज के ढाँचे के निर्माण में सहायक होती हैं; उदाहरणार्थ – परिवार, विवाह, सम्पत्ति, सामाजिक रीति-रिवाज एवं परम्पराएँ। छात्रों को इन संस्थाओं को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करने के लिए उन्हें समुदाय में ले जाना चाहिए। वहाँ वे यह जानने में समर्थ होंगे कि हमारे समुदाय में पितृ-प्रधान या मातृ-प्रधान के परिवारों का प्रचलन है या संयुक्त परिवार प्रथा या व्यक्तिगत परिवार प्रथा को ग्रहण किया जा रहा है। साथ ही वे यह जान जायेंगे कि समुदाय में विवाह की कौन-कौन सी पद्धतियाँ प्रचलित हैं।
उपर्युक्त साधनों का उपयोग करके विद्यालय कक्षा शिक्षण को सजीव बना सकता है। अतः प्रत्येक विद्यालय को इन साधनों का अधिकतम उपयोग करना चाहिए।
अभिभावक-शिक्षक संघ (PARENT-TEACHER ASSOCIATION – P.T.A.)
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार ने शिक्षा के प्रसार के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये। इसके फलस्वरूप विद्यालयों की संख्या में आशातीत वृद्धि हुई है। किन्तु साथ ही शिक्षा के स्तर का पतन भी होता गया। शिक्षा के क्षेत्र में अनेक कमियाँ हैं जिन्हें अनेक समितियाँ और आयोगों के प्रतिवेदन के बाद भी हम दूर नहीं कर पा रहे हैं। अभिभावक, शिक्षक, शिक्षाशास्त्री तथा शिक्षा विभाग के लोग सभी अन्धकार में टटोल रहे हैं। लक्ष्य प्राप्त होना तो दूर रहा, उसकी आहट भी नहीं मिल पा रही है। उचित कारणों का ज्ञान न होने के कारण सब एक-दूसरे पर दोष मढ़कर अलग हो जाना चाहते हैं।
अब प्रश्न यह है कि इस प्रकार का दोषारोपण करने मात्र से व्यवस्था में कोई सुधार आ जाएगा अथवा अन्य कोई मार्ग है ? हमारी समझ से इसका एक ही मार्ग है कि शिक्षक अभिभावकों से सम्पर्क स्थापित करें और अभिभावक शिक्षकों से मिलकर शिक्षा में होने वाले परिवर्तनों तथा शिक्षा की समस्याओं से परिचित हों और विद्यालय के कार्यों में सक्रिय योगदान दें। इस व्यवस्था को लाने के लिए शिक्षक अभिभावक संघ की स्थापना अत्यन्त आवश्यक हो गयी है।
विद्यालय और समुदाय के मध्य सहयोग बढ़ाने के लिए प्रत्येक विद्यालयों में अभिभावक शिक्षक संघ स्थापित होने से बड़ी सहायता मिलती है। संघ बनाने के पीछे यह भी तर्क दिया जाता है कि विद्यालय की कुछ क्रियाओं के संचालन में अभिभावकों का सहयोग प्राप्त करना चाहिए तथा साथ ही वे विद्यालय की व्यवस्था के सम्बन्ध में सुझाव प्रस्तुत कर विद्यालय तथा छात्रों के हितों का अधिक ध्यान रख सकें।
अभिभावक-शिक्षक संघ के उद्देश्य (AIMS OF PARENT-TEACHER ASSOCIATION)
इस संघ के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं-
(क) घर तथा विद्यालय को निकट लाना- इस प्रकार के संघ के अस्तित्व में आने से घर तथा विद्यालय में परस्पर निकटता आती है। शिक्षक छात्रों के अभिभावकों के जीवन स्तर को समझते हैं और अभिभावक विद्यालय के वातावरण को समझते हैं। इस निकटता के कारण अभिभावकों की रुचि विद्यालय के क्रिया-कलापों में बढ़ती है।
(ख) विद्यालय के शैक्षिक स्तर को उन्नत बनाना- अध्यापक-अभिभावक संघ विद्यालय के शैक्षणिक कार्यक्रम पर विचार-विमर्श करके इसको और भी अधिक उन्नतशील बनाने के उपायों पर विचार कर सकते हैं; उदाहरण के लिए, गृहकार्य को कैसे पूरा किया जाए तथा अध्यापक कैसे मूल्यांकन करें ?, आदि ज्वलन्त समस्याएँ हैं जिनके समाधान में ये संघ सहायता कर सकते हैं।
(ग) शिक्षकों की समस्याओं का ज्ञान- सभी प्रकार के विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों की अपनी अपनी समस्याएँ होती हैं। कहीं अध्यापकों को पूरा वेतन नहीं मिलता, तो कहीं अध्यापकों पर कार्यभार अधिक है, कहीं अध्यापकों को अपनी योग्यता बढ़ाने के अवसर नहीं हैं, तो कहीं प्रबन्ध समिति के निरंकुश शासन से पीड़ित हैं आदि अनेक समस्याएँ हैं जिनका ज्ञान अभिभावकों को होता है।
(घ) विद्यालय की क्रियाओं में सहयोग प्रदान करना- विद्यालयों में समय-समय पर अनेक क्रियाओं का आयोजन होता है जिनके सफल आयोजन के लिए समुदाय का सहयोग अति आवश्यक है। यह संघ क्रियाओं को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में आर्थिक तथा भौतिक सहायता प्रदान कर सकता है। क्रियाओं का स्तर सुधारने के बारे में अभिभावक उचित सलाह दे सकते हैं।
(ङ) पारिवारिक जीवन को स्वस्थ बनाना- इस संघ के सदस्य होने के नाते अध्यापक भी परिवारों के सम्पर्क में आते हैं। परिवार की समस्याओं तथा वातावरण से परिचित होते हैं। आवश्यकता पड़ने पर परिवार के वातावरण को सुधारने के लिए प्रयास करते हैं।
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