स्थानान्तरण में शिक्षकों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
स्थानान्तरण तथा शिक्षकों की भूमिका – शिक्षण और सीखना एक ही क्रिया के दो पक्ष हैं। शिक्षण शिक्षक की क्रिया है और सीखना विद्यार्थी की। अतएवं दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। सभी शिक्षक चाहते हैं कि उनके विद्यार्थियों ने जो कुछ कक्षा में सीखा है उन अनुभवों को प्रतिदिन के जीवन की परिस्थितियों में सामना करने में प्रयोग करने के योग्य बने। ऐसा विचार एल.एन.डब्लू. वेब महोदय के हैं। अर्थात स्पष्ट है कि शिक्षक विभिन्न विषयों के ज्ञान का जीवन की स्थितियों में स्थानान्तरण के सम्बन्ध में बालकों की सहायता में बहुत कुछ कर सकता है। इसके लिए वह निम्नलिखित विधियों का सहारा ले सकता है।
(1) परीक्षण तथा कक्षा की स्थितियों के बीच समानताओं को अधिकतम बनाना – शिक्षकों को कक्षा में ऐसी स्थिति में शिक्षण करना चाहिए जिनसे सूचनाओं का स्थानान्तरण जीवन की स्थितियों से किया जा सके। समानताओं को अधिकतम बनाने के लिए शिक्षक कई प्रकार की विधियों को अपना सकता है-
(i) शिक्षक विधि तथा विषय की समानता को प्रदान कर सकता है।
(ii) उसे इस विषय में बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि किन-किन अधिगम सूचनाओं को जीवन की स्थितियों में स्थानान्तरित किया जाए। उसे उन विचारों तथा स्थितियों को पहचानना चाहिए जिनको जीवन की नई स्थितियों में स्थानान्तरित किया जा सकता है।
( 2 ) मौलिक कार्य के साथ समुचित अनुभवों को प्रदान करना – यह प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि मौलिक कार्यों पर व्यापक अभ्यास विधायक स्थानान्तरण की वृद्धि करता है और सीमित अभ्यास स्थानान्तरण के लिए उपयोगी नहीं है। शिक्षक को बालक के प्रारम्भिक विकास की अवस्थाओं में अभ्यास के द्वारा नवीन कौशलों तथा संप्रत्ययों को प्रदान करना चाहिए।
( 3 ) उदाहरणों तथा उपमाओं का बाहुल्य- शिक्षक को शिक्षण करते समय अनेक उदाहरण तथा उपमाएं देनी चाहिए। उदाहरणों के द्वारा संप्रत्ययों का स्पष्ट ज्ञान होता है और जीवन में उनकी उपयोगिता प्रतीत होती है।
(4) कार्य के महत्वपूर्ण लक्षणों की प्रतिभिज्ञा शिक्षक को कार्य के लक्षणों – तथा विशेषताओं को पहचानने में छात्रों की सहायता करनी चाहिए। शब्दों तथा अक्षरों के बीच पाये जाने वाली विभिन्नताओं की ओर भी बालकों का ध्यान आकर्षित करना चाहिए।
( 5 ) सामान्यीकरण- शिक्षक को इस विषय में पूर्ण सन्तुष्ट होना चाहिए कि बालकों ने सामान्य सिद्धांतों को भलीभांति समझ लिया है। इससे भी कक्षा की सूचनाओं के जीवन स्थितियों में स्थानान्तरण में सहायता मिलती है।
(6) पूर्व-ज्ञान की व्यवस्था – यदि सीखने का अर्थ विभिन्न कठिनाईयों के कौशल तथा ज्ञान का स्तरीकरण से लगाया जाए तो शिक्षक को उच्च तथा कठित स्तर का कार्य देने से पूर्व यह देख लेना चाहिए कि क्या छात्रों ने पूर्व आवश्यक ज्ञान तथा कौशल को प्राप्त कर लिया है। यदि बालकों का पूर्व ज्ञान व्यवस्थित तथा ठोस होता है तो स्थानान्तरण करने में सुविधा होती है।
(7) अधिगम के परवर्ती प्रभावों को समझना – शिक्षकों को बालकों के विविध प्रकार के अधिगम अनुभवों तथा परवर्ती क्रियाओं पर उनके प्रभावों को भली-भांति समझना चाहिए। उसे यह भी देखना चाहिए कि अधिगम अनुभव किस प्रकार से बालकों के अभिप्रेरणात्मक व्यवस्था, मूल्यों; अभिवृत्तियों तथा उनके आत्म-सम्मान को प्रभावित करते हैं। शिक्षकों को ज्ञान होना चाहिए कि अधिगम अनुभवों का प्रभाव उनकी क्रियाओं पर कैसे पड़ता है। सीखने के बाद वे कैसा व्यवहार तथा क्रिया करेंगे, उसे इसका भी ज्ञान होना चाहिए तभी स्थानान्तरण प्रभावी हो सकता है।
(8) बुद्धि शिक्षक को चाहिए कि वह कक्षा के कुशाग्र बुद्धि के बालकों पर स्थानान्तरण की पुष्टि से अधिक ध्यान दे।
(9) शिक्षण में साहचर्य के नियमों तथा संवेगात्मक विकास का अध्ययन स्थानान्तरण के लिए आवश्यक है।
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