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अधिगम अन्तरण क्या है?
प्रायः देखा जाता है कि प्राणी द्वारा किसी कार्य को सीख लेने के उपरान्त उसके लिए उसी प्रकार के अन्य कार्यों को सीख लेना अथवा करना अत्यन्त सरल व सुविधाजनक हो जाता है। वास्तव में व्यक्ति जब किसी नवीन कार्य को करने अथवा सीखने का प्रयास करता है तो उसके द्वारा उस कार्य को करने अथवा सीखने में उसके द्वारा पूर्व अर्जित ज्ञान तथा अनुभवों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। वस्तुतः दूसरी परिस्थिति में कार्य को करने अथवा सीखते समय पूर्व अनुभवों अथवा ज्ञान का कुछ न कुछ अन्तरण अवश्य होता है। विद्यालय में बालकों को जो कुछ भी सिखाया जाता है उसका तभी कोई महत्व अथवा उपयोगिता होती है जब बालकों के द्वारा सीखा गया ज्ञान, बोध, कौशल तथा अनुप्रयोग उनके भावी जीवन के विभिन्न कार्यों में अन्तरित हो जाता है। विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विभिन्न विषयों जैसे भाषा, गणित, विज्ञान, सामाजिक विषय आदि के ज्ञान का उपयोग बालक अपने भावी वास्तविक जीवन की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में प्रयुक्त करते हैं। गणित के ज्ञान का उपयोग बालक अपने दैनिक जीवन तथा व्यावसायिक जीवन में आने वाली विभिन्न प्रकार की गणितीय समस्याओं को समझने तथा उनका समाधान करने में करते हैं। भाषा सम्बन्धी ज्ञान का प्रयोग अपनी बात को प्रभावी ढंग से सम्प्रेषित करने तथा अन्य की बातों को ठीक ढंग से समझने के लिए किया जाता है। विज्ञान के ज्ञान का उपयोग दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों का समुचित ढंग से उपयोग करने के लिए किया जाता है। सामाजिक विषयों के ज्ञान का उपयोग विभिन्न पारिवारिक तथा सामाजिक समस्याओं को समझने तथा उनका शीघ्रता, सहजता व तार्किक ढंग से समाधान करने में किया जाता है। सीखे गए ज्ञान का अन्य परिस्थितियों में प्रयोग करना सीखने का अन्तरण है। शिक्षा प्रक्रिया में सीखने के अन्तरण अथवा अधिगम अन्तरण (Transfer of Learning) को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। शिक्षा प्रक्रिया को सरल, प्रभावशाली तथा शीघ्रगामी बनाने के लिए शैक्षिक परिस्थितियों में सीखने के अन्तरण का उपयोग करना वांछनीय होता है। प्रस्तुत खण्ड में अधिगम अन्तरण की चर्चा की गई है।
अधिगम अन्तरण का अर्थ (Meaning of Transfer of Learning)
प्रायः अधिगम अन्तरण या सीखने के अन्तरण को प्रशिक्षण तथा प्रशिक्षण स्थानान्तरण (Transfer of Training) भी कहा जाता है। प्रस्तुत अध्याय में अधिगम अन्तरण तथा प्रशिक्षण अन्तरण को समनार्थक शब्दों (Synonims) के रूप में प्रयुक्त किया गया है। अधिगम अन्तरण का अर्थ है-किसी विषय, कार्य अथवा परिस्थिति में अर्जित ज्ञान का उपयोग किसी अन्य विषय, कार्य अथवा परिस्थिति में करना। अतः जब एक विषय का ज्ञान अथवा एक परिस्थिति में सीखी बातें दूसरे विषय अथवा अन्य परिस्थिति में सीखी जा रही बातों के अध्ययन में सहायक अथवा घातक होती हैं तो उसे सीखने का अन्तरण कहा जाता है। सीखने के अन्तरण को विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न ढंग से परिभाषित किया है। कुछ मनोवैज्ञानिकों के द्वारा सीखने के अन्तरण को निम्न ढंग से परिभाषित किया गया है-
अंडरवुड के अनुसार – “वर्तमान क्रियाओं पर पूर्व अनुभवों के प्रभाव को प्रशिक्षण अन्तरण कहते हैं।”
“The influence of previous experience on current performance defines transfer of training.” B.J. Underwood
हिलगार्ड एवं एटकिन्सन के शब्दों में- “एक कार्य को सीखने का आगामी कार्यों को सीखने अथवा करने पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रशिक्षण अन्तरण कहते हैं।”
“The influence that learning one task may have on the subsequent learning or performance of another task is called transfer of training.” -E.R. Hilgard and R.G Atkinson
सोरेन्सन के अनुसार – “स्थानान्तरण एक परिस्थिति में अर्जित, ज्ञान तथा आदतों का दूसरी परिस्थिति में अन्तरण होना है।”
कैन्डलैंड के अनुसार – “अन्तरण पूर्व सीखे गये व्यवहार का वर्तमान में सीखे गए व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित होता है।”
“Transfer is concerned with the effect of previously learned behaviour on more recently acquired behaviour.” -Candland
उपरोक्त परिभाषाओं के अवलोकन से स्पष्ट है कि सीखने के अन्तरण से तात्पर्य किसी सीखे गए व्यवहार का किसी नवीन व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव से है। दूसरे शब्दों में हम -कह सकते हैं कि सीखने का अन्तरण वस्तुतः किसी एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, कौशल, आदतों, विचारों आदि का किसी अन्य परिस्थिति में उपयोग करना है। अतः जब किसी कार्य को करने की योग्यता, ज्ञान अथवा अनुभव किसी दूसरे कार्य को करने के ज्ञान, अनुभव तथा योग्यता को प्रभावित करते हैं तब हम इसे सीखने का अन्तरण कहते हैं।
अन्तरण के प्रकार (Types of Transfer)
सीखने का अन्तरण मुख्यतः दो प्रकार-धनात्मक अन्तरण (Positive Transfer) तथा ऋणात्मक अन्तरण (Negative Transfer) का हो सकता है। कुछ विद्वान अन्तरण के एक तीसरे प्रकार शून्य अन्तरण (Zero Transfer) की भी चर्चा करते हैं। शून्य अन्तरण वास्तव में अन्तरण न होकर अन्तरण की अनुपस्थिति को इंगित करता है। अर्थात् जब किसी कार्य को करने की योग्यता अथवा ज्ञान का अन्य कार्यों को करने की योग्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तब उसे शून्य अन्तरण कहेंगे। स्पष्ट है कि शून्य अन्तरण में पूर्ववर्ती ज्ञान का कोई अन्तरण नहीं होता है। अतः इसे अन्तरण का तीसरा प्रकार मानना किसी भी दृष्टि से उचित प्रतीत नहीं होता है। आगे सीखने के धनात्मक अन्तरण तथा ऋणात्मक अन्तरण की संक्षिप्त चर्चा की जा रही है।
1. धनात्मक अन्तरण (Positive Transfer) – धनात्मक अन्तरण को सकारात्मक अन्तरण भी कहते हैं। जब पूर्व अर्जित ज्ञान नवीन ज्ञान को अर्जित करने में सहायक होता है तो उसे धनात्मक अन्तरण कहते हैं। धनात्मक अन्तरण में पूर्व ज्ञान, पूर्व अनुभव अथवा पूर्व प्रशिक्षण नई बातों को सीखने में सहायता प्रदान करता है। स्पष्ट है कि किसी कार्य को करने का ज्ञान, योग्यता तथा अनुभव जब किसी अन्य कार्यों को करने में सहायक होता है, तब इसे सीखने का धनात्मक अन्तरण माना जाता है। जैसे हिन्दी भाषा का ज्ञान संस्कृत भाषा के सीखने में सहायता प्रदान करने के कारण धनात्मक अन्तरण कहलायेगा।
2. ऋणात्मक अन्तरण (Negative Transfer) – ऋणात्मक अन्तरण को निषेधात्मक अन्तरण भी कहते हैं। जब पूर्व अर्जित ज्ञान अथवा कौशल नवीन ज्ञान को अर्जित करने में बाधक होता है तो उसे ऋणात्मक अन्तरण कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ऋणात्मक अन्तरण में पूर्व ज्ञान अथवा प्रशिक्षण नई बातों को सीखने में व्यवधान उत्पन्न करता है। स्पष्ट है कि किसी कार्य को करने का ज्ञान योग्यता अथवा अनुभव जब दूसरे कार्यों को करने में घातक होता है तब इसे सीखने का ऋणात्मक अन्तरण कहा जाता है। जैसे तेज चलने का अभ्यास दिल की बीमारी की स्थिति में चिकित्सक की सलाह के बावजूद धीमे चलने में बाधक होता है, अतः इसे ऋणात्मक अन्तरण कहा जायेगा।
सीखने के अन्तरण को क्षैतिज अन्तरण (Horizontal Transfer), उर्ध्व अन्तरण (Vertical Transfer) तथा द्विपाश्विक अन्तरण (Bilateral transfer) के रूप में भी बांटा जा सकता है। इन तीनों प्रकारों की संक्षिप्त चर्चा आगे की गई है।
1. क्षैतिज अन्तरण (Horizontal Transfer) – जब किसी परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, अनुभव अथवा प्रशिक्षण का उपयोग व्यक्ति के द्वारा उसी प्रकार की लगभग समान परिस्थिति में किया जाता है तो इसे सीखने का क्षैतिज अन्तरण कहते हैं। उदाहरणार्थ गणित के जोड़ व घटाने के प्रश्नों को हल करने का अभ्यास उसी तरह के अन्य प्रश्नों को हल करने में काम आता है।
2. उर्ध्व अन्तरण (Vertical Transfer) – जब किसी परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, अनुभव अथवा प्रशिक्षण का उपयोग प्राणी के द्वारा किसी अन्य भिन्न प्रकार की अथवा उच्चस्तरीय परिस्थितियों में किया जाता है तब इसे सीखने का उर्ध्व अन्तरण कहते हैं। जैसे स्कूटर चलाने वाले व्यक्ति द्वारा कार चलाना सीखते समय उसके पूर्ण अनुभव का उर्ध्व अन्तरण होता है।
3. द्विपाश्विक अन्तरण (Bilateral Transfer) – मानव शरीर को दो भागों दायां भाग (Right Portion) तथा बायाँ भाग (Left Portion) में बाँटा जा सकता है। जब मानव शरीर के एक भाग को दिए गए प्रशिक्षण का अन्तरंण दूसरे भाग में होता है तो इसे द्विपाश्विक अन्तरण कहते हैं। जैसे दायें हाथ से लिखने की योग्यता का लाभ जब व्यक्ति बायें हाथ से लिखना सीखने में करता है तो इसे सीखने का द्विपार्श्विक अन्तरण कहेंगे।
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