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अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Influencing Learning in Hindi

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Influencing Learning in Hindi
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Influencing Learning in Hindi

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Learning)

संवेगात्मक संतुलन, उत्तम सामाजिक अनुकूलन, मानसिक योग्यता, अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य, अध्ययन की अच्छी आदतें आदि कुछ दशाएँ अधिगम को प्रभावी बनाती हैं। इसके अलावा बहुत सारी दशाएँ अधिगम प्रक्रिया में बाधक भी होती है। अधिगम को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्न हैं-

1) वातावरण (Learning Environment) – अधिगम के लिए परिवार, समाज और पाठशाला का उचित वातावरण होना अत्यन्त आवश्यक है। परिवार और स्कूल में बालक के साथ स्नेहपूर्ण और पक्षपातरहित व्यवहार करना चाहिए ताकि उसमें अधिगम के प्रति उत्साह बना रहे। कक्षा में प्रकाश व वायु का अभाव, अत्यधिक शोर तथा अमनोवैज्ञानिक वातावरण से बालक थकान का अनुभव करता है। फलस्वरूप उसके अधिगम में अवधान पैदा हो जाता है। बालकों के प्रति सहयोगात्मक रवैया और उन्हें रुचि प्रदर्शन के उचित अवसर देने चाहिए जिससे कि अधिगम की प्रक्रिया को बल मिल सके।

2) शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health) – शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बालक अध्ययन में अधिक रुचि लेता है। इसके विपरीत जिस बालक में शारीरिक व मानसिक दोष पाए जाते हैं वे असमर्थता के कारण अधिगम प्रक्रिया में जल्दी थकान का अनुभव करने लग जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रभावी एवं शीघ्र अधिगम के लिए स्वास्थ्य का अच्छा होना अति आवश्यक है।

3) विषय – सामग्री और उसका स्वरूप (Nature of Subject Matter) – यदि किसी विषय की अध्ययन सामग्री सरल और रुचिकर होगी तो बालक उसे सुगमता से ग्रहण करेंगे। कठिन एवं अर्थहीन विषय-सामग्री का अधिगम पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः आसानी से सीखने के लिए पाठ्यक्रम के निर्माण में सरल से कठिन की ओर सिद्धान्त का पालन करना चाहिए।

4) परिपक्वता (Maturation) – स्लैक्वेडर के अनुसार, परिपक्वता मूलतः आंतरिक संशोधन की प्रक्रिया है। अधिगम शारीरिक और मानसिक परिपक्वता पर भी निर्भर रहता है। शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व बालक सीखने के लिए सदैव उत्सुक एवं तत्पर रहते हैं। ऐसे बालकों का अधिगम तीव्र होता है। इसके विपरीत शारीरिक और मानसिक रूप से अपरिपक्व बालक में सीखने की क्षमता धीमी होती है। इस प्रकार के बालकों को सीखने के लिए अत्यधिक समय और शक्ति का इस्तेमाल करना पड़ता है फिर भी उपयुक्त परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं। कॉलसेनिक ने बताया कि “परिपक्वता एवं अधिगम एक दूसरे पर निर्भर है। अतः इनको अलग करना बहुत ही कठिन है।”

5) अभिप्रेरणा (Motivation) – अधिगम में प्रेरकों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। अभिप्रेरणा वह शक्ति है जो व्यक्ति को अपने उद्देश्य तक ले जाती है। अभिप्रेरणा सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाती है। प्रेरणा शक्तिशाली हो तो बालक अध्ययन में रुचि अवश्य लेते हैं। नवीन जानकारी को स्थायी तौर पर ग्रहण करने के लिए अध्यापक को शिक्षण प्रक्रिया में बालकों की प्रशंसा करके उन्हें अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

6) सीखने की विधि (Method of Learning) – शैक्षिक प्रक्रिया में प्रयुक्त अध्ययन विधि और अधिगम में भी सीधा सम्बन्ध पाया जाता है। सीखने की विधि अनुकूल और रुचिकर होगी तो सीखना अधिक सरल होगा। अध्यापक को प्रभावी अधिगम के लिए परम्परागत विधियों की अपेक्षा मनोवैज्ञानिक विधियों का सहारा लेना चाहिए। प्रारम्भिक कक्षाओं के लिए खेल विधि और उच्चतर कक्षाओं के लिए योजना व सामूहिक विधि अधिक उपयोगी साबित हो सकती है।

7) अधिगम का समय एवं थकान (Time of Learning and Fatigue) – सीखने के समय पर भी अधिगम ग्रहणता निर्भर करती है। प्रातःकाल के समय बालक में स्फूर्ति रहती है। अतः अधिगम सरल व शीघ्र होता है। जैसे-जैसे दिन बढ़ता है वह थकान का अनुभव करने लगता है। फलस्वरूप सीखने की क्रिया मंद होने लगती है।

8) अध्यापक की भूमिका (Role of Teacher) – अधिगम प्रक्रिया में अध्यापक का स्थान सर्वोपरि होता है। वह अपने अर्जित ज्ञान एवं अनुभवों से बालक को अध्ययन के लिए निरन्तर क्रियाशील रख सकता है। अध्यापक की योग्यता, व्यक्तित्व व आचरण आदि अधिगम को प्रभावित करते हैं। योग्य, गुणवान और प्रभावशाली अध्यापक की कक्षा में छात्र रुचि दिखाते है । इस प्रकार अध्यापक का शैक्षणिक स्तर जितना अच्छा होगा अधिगम उतना ही सरल होगा ।

9) सीखने की इच्छा (Willingness to Learn) – सीखने की इच्छा रखना अधिगम का एक अनिवार्य घटक है। यदि बालक सीखने की प्रक्रिया में क्रियाशील रहता है तो अधिगम प्रभावी होता है। अध्यापक को शिक्षण प्रक्रिया के दौरान बालक की इच्छा शक्ति को बढ़ाते हुए पाठ के विकास में छात्र का सहयोग लेना चाहिए ताकि वह क्रियाशील बना रहे। अपने शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अध्यापक को छात्र में रुचि एवं जिज्ञासा को जाग्रत करते रहना चाहिए।

अधिगम की प्रकृति एवं मुख्य विशेषताएँ (Nature and Main Characteristics of Learning)

अधिगम के द्वारा हमारे व्यवहार में जो परिवर्तन होता है वह पूर्णतया अर्जित ही होता है. या यूँ कहें कि यह व्यवहार जन्मजात नहीं होता। अधिगम हमें विरासत में प्राप्त नहीं होता बल्कि वातावरण में निहित कारकों के प्रभाव से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष अनुभव के माध्यम से हमारे द्वारा स्वयं ही अर्जित की जाती है। भाषा जो हम बोलते हैं, कौशल जिनका हम प्रयोग करते हैं एवं रुचियाँ, आदतें और अभिवृत्तियाँ आदि जो हमारे व्यक्तित्व के अंग बरो हुए हैं ये सब अर्जित व्यवहारगत विशेषताएं हैं। अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि किस प्रकार के अर्जित अधिगम व्यवहार की विशेष प्रकृति क्या होती है? तथा उसमें किस प्रकार की विशेषताएँ देखने को मिलती है? इस प्रश्न का बहुत कुछ उत्तर सीखने सम्बन्धी परिभाषाओं एवं उससे सम्बन्धित सामग्री के आधार पर भली-भाँति प्राप्त किया जा सकता है।

योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson) के अनुसार, सीखने की सामान्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1) सीखना सम्पूर्ण जीवन चलता है (Learning is a Life-long Process) सीखने की प्रक्रिया जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त चलती है।

2) सीखना परिवर्तन है (Learning is Change) – व्यक्ति स्वयं दूसरों के अनुभवों से सीखकर अपने व्यवहार विचारों, इच्छाओं, एवं भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है। गिलफोर्ड के अनुसार, “सीखना, व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन हैं।”

3) सीखना सार्वभौमिक है (Learning is Universal) – सीखने का गुण केवल मनुष्य में ही नहीं पाया जाता है। वस्तुतः संसार के सभी जीवधारी जीव-जन्तु, पशु-पक्षी में भी पाया जाता है।

4) सीखना समायोजन है (Learning is Adjustment) – सीखना, वातावरण से अनुकूलन करने के लिए आवश्यक है। सीखकर ही व्यक्ति, नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है। जब वह अपने व्यवहार को नई परिस्थिति एवं वातावरण के अनुकूल बना लेता है, तभी वह कुछ सीख पाता है। गेट्स एवं अन्य के अनुसार, सीखने का सम्बन्ध स्थिति के क्रमिक परिचय से है।

5) सीखना विकास है (Learning is Growth) – व्यक्ति अपनी दैनिक क्रियाओं और अनुभवों के द्वारा कुछ न कुछ सीखता है। फलस्वरूप, उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता है।

6) सीखना नया कार्य करना है (Learning is doing Something New)– वुडवर्थ के अनुसार, सीखना कोई नया कार्य करना है। परन्तु उसमें उसने एक शर्त लगा दी, उसने कहा है कि सीखना, नया कार्य करना तभी है, जब यह कार्य जाएँ और अन्य कार्यों में प्रकट हो। पुनः किया

7) सीखना अनुभवों का संगठन है (Learning is Organisation of Experiences) – सीखना न तो नए अनुभवों की प्राप्ति है और न ही पुराने अनुभवों का योग वरन नये और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे-जैसे व्यक्ति नए अनुभवों द्वारा नई बात सीखता जाता है, वैसे-वैसे वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने अनुभवों को संगठित करता जाता है।

8) सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है (Learning is Purposive)- सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रबल होता है, सीखने की क्रिया उतनी ही तीव्र होती है। उद्देश्य के अभाव में सीखना असफल होता है।

9) सीखना विवेकपूर्ण होता है (Learning is Rational) – मर्सेल (Mursell) का कथन है कि सीखना, यांत्रिक कार्य नहीं बल्कि विवेकपूर्ण कार्य है। उसी बात को शीघ्रता और सरलता से सीखा जा सकता है, जिसमें बुद्धि या विवेक का प्रयोग किया जाता है। बिना सोचे-समझे किसी बात को सीखने में सफलता नहीं मिलती है।

10) सीखना सक्रिय है (Learning is Active) सक्रिय सीखना ही वास्तविक सीखना है। बालक तभी कुछ सीख सकता है, जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। यही कारण है कि डॉल्टन विधि, प्रोजेक्ट विधि आदि शिक्षण की प्रगतिशील विधियाँ हैं जो बालक की क्रियाशीलता पर बल देती है।

11) सीखना खोज है (Learning is Discovery) – वास्तविक सीखना किसी बात की खोज करना है। इस प्रकार के सीखने में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के प्रयास करके स्वयं एक परिणाम पर पहुँचता है। मर्सेल ने कहा है, सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है, जिसे एक व्यक्ति खोजना और जानना चाहता है।

12) सीखना वातावरण की उपज है (Learning is a Product of Environment)- सीखना रिक्तता में न होकर, सदैव उस वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में होता है, जिसमें व्यक्ति रहता है। बालक का सम्बन्ध जिस प्रकार के वातावरण से होता है, वह वैसी ही बातें सीखता है। यही कारण है कि आजकल इस बात पर बल दिया जाता है कि विद्यालय इतना उपयुक्त और प्रभावशाली वातावरण उपस्थित करें कि बालक अधिक से अधिक अच्छी बातों को सीख सकें।

13) सीखना व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों है (Learning is both Individual and Social)— सीखना व्यक्तिगत कार्य तो है ही, परन्तु इससे भी अधिक सामाजिक कार्य है । योकम एवं सिम्प्सन के अनुसार, सीखना सामाजिक है, क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।

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Anjali Yadav

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