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अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार (Kinds of Transfer of Learning)
एक परिस्थिति में प्राप्त किया हुआ ज्ञान तथा कौशल दूसरी परिस्थितियों में ज्ञान अथवा कौशल के अर्जन में सदैव सहायक ही होता है अथवा नहीं। इस विषय में स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह सोचना कि पूर्व अर्जित ज्ञान अथवा कौशल के अर्जन में सदैव सहायक सिद्ध होगा, ठीक नहीं है। आंग्ल भाषा के शब्द But का सही उच्चारण सीखने के पश्चात् उसी भाषा के Put शब्द का सही उच्चारण सीखने में कठिनाई आती है। उसी तरह हिन्दी की टाइप सीखने के पश्चात् अंग्रेजी की टाइप सीखने में असुविधा होती है। इस प्रकार स्थानान्तरण के फलस्वरूव नवीन ज्ञान तथा कौशल के उपार्जन में सहायता मिलने के स्थान पर बाधाएँ भी खड़ी हो सकती है।
सीखने अथवा प्रशिक्षण स्थानान्तरण के प्रायः तीन रूप देखने को मिलते हैं।
- सकारात्मक स्थानान्तरण (Positive Transfer)
- नकारात्मक स्थानान्तरण (Negative Transfer)
- शून्य स्थानान्तरण (Zero Transfer)
1) सकारात्मक स्थानान्तरण (Positive Transfer) – इसे धनात्मक स्थानान्तरण भी कहते हैं। जब एक परिस्थिति में प्राप्त किया हुआ ज्ञान अथवा कौशल दूसरी परिस्थिति में ज्ञान अथवा कौशन अर्जित करने के कार्य में सहायक सिद्ध होता है तब उस स्थानान्तरण को सकारात्मक कहा जाता है। संस्कृत भाषा पर अधिकार करने के पश्चात् हिन्दी भाषा सीखने में आसानी होती है। साईकल चलाना सीखने से स्कूटर या मोटर साईकल चलाना सीखने में सहायता मिलती है। सितार सीखने के पश्चात् वायलिन तथा सरोद सीखना सुविधाजनक हो जाता है। यह सब सकारात्मक स्थानान्तरण के उदाहरण हैं।
2) नकारात्मक स्थानान्तरण (Negative Transfer)- इसे ऋणात्मक अथवा निषेधात्मक स्थानान्तरण भी कहते हैं। जब एक परिस्थिति में प्राप्त किया हुआ ज्ञान अथवा कौशल दूसरी परिस्थिति में ज्ञान अथवा कौशल अर्जित करने के कार्य में सहायक न होकर बाधक सिद्ध होता है तब उस स्थानान्तरण को नकारात्मक स्थानान्तरण कहा जाता है। दूसरी ओर संस्कृत भाषा सीखने पर उर्दू या फारसी सीखने में कठिनाई होती है। एक विशेष प्रकार के की-बोर्ड (Key-board) पर टाइप सीखने के पश्चात् किसी दूसरे प्रकार के की-बोर्ड पर टाइप करना बहुत असुविधाजनक होता है। इन उदाहरणों में नकारात्मक स्थानान्तरण देखने को मिलता है।
4) शून्य स्थानान्तरण (Zero Transfer) – एक तीसरी परिस्थिति भी हो सकती है। जिसमें पहले सीखा हुआ कार्य नये कार्य को करने या सीखने में न तो सहायता पहुँचाता है और न बाधक ही होता है। दूसरे शब्दों में उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ऐसी परिस्थिति में कोई स्थानान्तरण नहीं होता और हम इसे शून्य स्थानान्तरण की संज्ञा देते हैं।
सीखने के स्थानान्तरण को अन्य रूपों में भी बाँटा जा सकता है-
1) क्षैतिज स्थानान्तरण (Horizontal Transfer) – जब किसी परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, अनुभव या प्रशिक्षण का उपयोग व्यक्ति के द्वारा उसी प्रकार की लगभग समान परिस्थिति में किया जाता है तो इसे सीखने का क्षैतिज स्थानान्तरण कहते हैं। उदाहरण के लिए गणित के जोड़-घटाने के प्रश्नों को हल करने का अभ्यास उसी तरह के अन्य प्रश्नों को हल करने में काम आता है।
2) उर्ध्व स्थानान्तरण (Vertical Transfer)- जब किसी परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, अनुभव या प्रशिक्षण का उपयोग प्राणी के द्वारा किसी अन्य विभिन्न प्रकार की या उच्चस्तरीय परिस्थितियों में किया जाता है तब इसे सीखने का उर्ध्व स्थानान्तरण कहते हैं। जैसे- स्कूटर चलाने वाले व्यक्ति द्वारा कार चलाना सीखते समय उसके पूर्व के अनुभव का उर्ध्व स्थानान्तरण होता है।
3) द्विपार्श्विक स्थानान्तरण (Two-sided Transfer) – मानव शरीर को दो भागों दाएँ भाग एवं बाएँ भाग में बाँटा जा सकता है। जब मानव शरीर के एक भाग को दिए गए प्रशिक्षण का अन्तरण दूसरे भाग में होता है तो इसे द्विपाश्विक स्थानान्तरण कहते है। जैसे- बाएँ हाथ से लिखने की योग्यता का लाभ जब व्यक्ति बाएँ हाथ से लिखना सीखने में करता है तो इसे द्विपार्श्विक स्थानान्तरण कहते हैं।
इस प्रकार उपरोक्त विवेचना के द्वारा यह अच्छी तरह समझा जा सकता है कि किसी एक परिस्थिति में जो कुछ भी सीखा जाता है वह किसी नवीन ज्ञान अथवा कौशल का अर्जन करने या कार्य में परिस्थिति और अपनी प्रकृति के साथ सहायक और बाधक दोनों ही सिद्ध हो सकता है। अतः यह जानना कि वह कब सहायक सिद्ध हो सकता है और कब बाधक हम सभी के लिए बहुत ही महत्व की वस्तु है।
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