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अभिप्रेरण के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त | अभिप्रेरण के मूलभूत सिद्धान्त | अभिप्रेरण के परम्परागत सिद्धान्त

अभिप्रेरण के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त | अभिप्रेरण के मूलभूत सिद्धान्त | अभिप्रेरण के परम्परागत सिद्धान्त
अभिप्रेरण के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त | अभिप्रेरण के मूलभूत सिद्धान्त | अभिप्रेरण के परम्परागत सिद्धान्त

अभिप्रेरण के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त (Important Theories of Motivation)

विभिन्न प्रबन्ध विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों ने अपने-अपने ढंग से अभिप्रेरण के सिद्धान्तों एवं विचारधाराओं का प्रतिपादन किया है। इन सिद्धान्तों में अभिप्रेरण के विभिन्न पहलू उद्घाटित हुए हैं। संख्या में ये सिद्धान्त बहुत से हैं। अतः केवल सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का ही संक्षेप में निम्नानुसार अध्ययन किया जा सकता है-

अभिप्रेरण के मूलभूत सिद्धान्त

इस श्रेणी के प्रमुख सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं-

(1) अभिप्रेरण का एकात्मक सिद्धान्त – यह सिद्धान्त ‘आर्थिक मनुष्य’ की अवधारणा पर आधारित है। इसके अनुसार व्यक्ति अधिकाधिक धन कमाना चाहता है। अतः वह केवल मौद्रिक प्रेरणाओं से ही प्रभावित होता है। इस सिद्धान्त में गैर मौद्रिक प्रेरणाओं को कोई स्थान नहीं दिया गया है। यही कारण है कि इस सिद्धान्त को एकात्मक सिद्धान्त का नाम दिया गया है। इस सिद्धान्त में धन प्राप्ति की लालसा को ही मानवीय क्रिया-कलापों का एक मात्र प्रयोजन बताया गया है और उसे ही स्थान दिया गया है।

अभिप्रेरण के इस सिद्धान्त के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं-

(i) समूह की तुलना में व्यक्ति को अभिप्रेरित करना अधिक आसान है— क्योंकि व्यक्ति अपने कार्य और उससे प्राप्त होने वाले पारिश्रमिक को सरलतापूर्वक माप सकता है। समूह में सभी प्रकार के व्यक्ति होते हैं, जिनकी कुशलता असमान होती है। उन सभी को समान पारिश्रमिक मिलने से विवाद ही उत्पन्न होंगे।

(ii) शीघ्र भुगतान से अभिप्रेरण की प्रभावपूर्णता बढ़ती है— क्योंकि कर्मचारियों में अधिक कार्य करने का उत्साह बढ़ता है।

(iii) जितना अधिक परिणाम चाहिए उतना ही ऊँचा पुरस्कार दिया जाना चाहिए क्योंकि पुरस्कार दर जितनी ऊँची होगी, कर्मचारी का उत्साह उतना ही अधिक बढ़ता जाएगा।

(iv) कुशलता के अन्तर के आधार पर पारिश्रमिक में भी अन्तर किया जाना चाहिए— क्योंकि ऐसा करने से अकुशल श्रमिकों को अपनी कुशलता बढ़ाने की प्रेरणा प्राप्त होगी।

मनुष्य केवल मौद्रिक पुरस्कारों से ही प्रेरित होता है। यह एकांगी और दोषपूर्ण विचारधारा है। मार्शल के अनुसार लोक हितैषी तथा परोपकारी उत्तेजकों का भी अपना विशिष्ट महत्व है। यह सिद्धान्त गैर मौद्रिक प्रेरणाओं की पूर्ण उपेक्षा करता है। अतः वर्तमान युग में इसकी तीव्र आलोचना की जाती है। हाँ, इस सिद्धान्त में सत्य का यह मर्म भाग तो है कि मनुष्य धन के लिए कार्य करता है और मौद्रिक पुरस्कारों के माप-तौल त्रुटिविहीन होते हैं।

एकात्मक सिद्धान्त सिक्के के केवल एक ही पहलू को देखता है। ‘आर्थिक मनुष्य’ की विचारधारा को आजकल दफना दिया जाता है। अतः इस सिद्धान्त का केवल सीमित महत्व है।

(2) अभिप्रेरणा का बहुलवादी (Pluralistic) सिद्धान्त— यह एकात्मक सिद्धान्त की कमी को दूर करता है तथा मौद्रिक और गैर मौद्रिक दोनों ही प्रकार के पुरस्कारों पर बल देता है।

इस सिद्धान्त की आधारभूत धारणा यह है कि मनुष्य धन की कामना से कार्य नहीं करता, बल्कि उसकी अनेक प्रकार की बुनियादी, भौतिक और गैर भौतिक जरूरतों से उत्तेजित होकर कार्य करता है।

मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों ने मनुष्य के मूल प्रयोजनों को अनेक भागों में वर्गीकृत किया है। जैसे-

  1. जीवन रक्षा सम्बन्धी जरूरतें,
  2. सुरक्षा एवं स्थायित्व सम्बन्धी जरूरतें,
  3. सम्मान और आत्मगौरव सम्बन्धी जरूरतें,
  4. विविध सामाजिक जरूरतें,
  5. आत्मपूर्णता की जरूरतें आदि ।

यह सिद्धान्त मानवीय प्रतिष्ठा, सुरक्षा, श्रेष्ठ कार्य वातावरण, विश्राम, उचित कार्यभार, रुचि, मान्यता, सम्मान, कुशल नेतृत्व आदि विविध बातों पर बल प्रदान करता है।

यह सिद्धान्त एकात्मक सिद्धान्त की तुलना में अधिक व्यापक तथा विवेकपूर्ण है। वर्तमान युग में इसे ज्यादा मान्यता प्राप्त है। यह स्मरण रखा जाना चाहिए कि इस सिद्धान्त में धन की उपेक्षा नहीं की गई है, परन्तु उसके अतिरिक्त मनुष्य के अन्य बुनियादी उद्देश्यों को भी स्वीकार किया गया है।

अभिप्रेरण की बहुलवादी विचारधारा एकात्मक विचारधारा की पूर्ण विरोधी न होकर उस पर एक महत्वपूर्ण सुधार है।

उक्त दो सिद्धान्त वास्तव में अभिप्रेरण की दो प्रमुख विचारधाराएं हैं। वे अभिप्रेरणा के सुनिश्चित सिद्धान्त न होकर सिद्धान्तों की श्रेणियाँ हैं।

वस्तुतः एकात्मक और बहुलवादी विचारधाराएँ अभिप्रेरणा की मूलभूत विचारधाराएं हैं। जिनके अन्तर्गत अनेक सिद्धान्तों का समावेश हो सकता है।

अभिप्रेरण के परम्परागत सिद्धान्त

अभिप्रेरण के प्रमुख परम्परागत सिद्धान्त निम्नानुसार हैं-

(1) पुरस्कार एवं दण्ड सिद्धान्त (Carrot and Stick Theory) — इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति जब भी अच्छा कार्य करे, उसे पुरस्कृत किया जाए और जब भी वह कोई कमी करे, उसे दण्डित किया जाए। यह प्रथम सिद्धान्त से बेहतर है और ‘दण्ड को भी प्रेरणाओं में शामिल कर एक सत्यांश पर जोर देता है।

यह सिद्धान्त मनुष्य के गहन मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित न होकर सतही है। जब तक जीवनरक्षक जरूरतें सन्तुष्ट न हों, तब तक इस सिद्धान्त की सीमित सा किता बनी रहती है। कर्मचारियों के एक निश्चित जीवन स्तर प्राप्त कर लेने के बाद यह सिद्धान्त अकार्यशील सिद्ध हो जाता है।

(2) भय एवं दण्ड का सिद्धान्त (Fear and Punishment Theory) – यह काफी पुराना सिद्धान्त है, जिसको आजकल मान्यता प्राप्त नहीं है। इसके अनुसार अधिक कार्य तभी सम्भव है, जब कर्मचारी को सदैव भयभीत रखा जाए और गलत तथा कम कार्य करने पर उसे दण्डित किया जाए। ‘भय और दण्ड’ के विचार से व्यक्ति आलस्य नहीं करेगा और वह ज्यादा काम करने के लिए विवश होगा। यह सिद्धान्त दकियानूसी, दोषपूर्ण तथा अमानवीय है और मानवाधिकारों के आधुनिक युग में असमर्थ है।

(3) विभेदात्मक पुरस्कार सिद्धान्त (Discriminating Reward Theory ) – एफ० डब्ल्यू० टेलर ने अपनी कृति भुगतान पद्धति इसी सिद्धान्त पर आधारित की थी। उनके अनुसार काम का सम्बन्ध मजदूरी से जोड़ देने पर निश्चित ही कर्मचारी अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित होगा।

टेलर ने भिन्नात्मक मजदूरी दरें तय की। कुशल कर्मचारियों के लिए ऊँची और अकुशल कर्मचारियों के लिए नीची। टेलर ने मौद्रिक पुरस्कारों को ही विशेष अभिप्रेरक माना है, अतः केवल मजदूरी की ज्यादा चर्चा की और गैर मौद्रिक प्रेरणाओं की उपेक्षा की है।

इस प्रकार अभिप्रेरणा के मूलभूत तथा परम्परागत सिद्धान्तों पर आज भी अभिप्रेरण के लगभग सभी नियम अवलम्बित हैं एवं इन सिद्धान्तों के पालन पर ही अभिप्रेरण सार्थक हो पाता है।

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Anjali Yadav

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