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अभिभावक-शिक्षक संघ की आवश्यकता तथा महत्त्व
बालक का पालन-पोषण परिवार में होता है, उसके विकास में परिवार का भारी हाथ रहता है। यदि विद्यालय के कार्य में कुटुम्ब सहयोग न दे, तो उसका विकास ठीक प्रकार से न हो सकेगा। बालक के शारीरिक, मानसिक विकास में परिवार का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। बालक की शिक्षा का उत्तरदायित्व जितना अध्यापक पर है उससे अधिक उसके अभिभावकों पर है। छात्र का अधिकांश समय घर पर बीतता है, जब कि वह कठिनता से चार-पाँच घण्टे विद्यालय में व्यतीत करता है। यदि हम छात्रों का सर्वांगीण विकास चाहते हैं, तो हमें उनके अभिभावकों से सहयोग प्राप्त करना होगा। बालक के व्यक्तित्व का निर्माण ‘घर’ तथा “विद्यालय’ दोनों जगह होता है तथा दोनों का एक ही उद्देश्य है—’बालक का सर्वांगीण विकास’। इसी उद्देश्य के आधार पर शिक्षक अभिभावक संघ की आवश्यकता तथा महत्त्व को निम्नानुसार स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) छात्रों को समझने में सहायता- शिक्षक अभिभावक संघ का सबसे बड़ा लाभ यह है कि अध्यापक अभिभावकों की सहायता से बालकों को भली प्रकार समझ सकता है तथा उनके घर के वातावरण को समझकर उनके व्यक्तित्व के विकास में अपना योगदान प्रदान कर सकता है। छात्रों के ऊपर घर के वातावरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। वे जिस वातावरण में पले हैं, वैसे ही भाव उनके मस्तिष्क में दृढ़ हो जाते हैं। अत: अध्यापकों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे छात्रों के घर के वातावरण को समझें तथा स्कूल और घर के वातावरण में समन्वय स्थापित करें। इसी प्रकार अभिभावकों का भी कर्तव्य है कि विद्यालय तथा शिक्षकों से सम्पर्क बनाये रखें।
(2) विद्यालय के कार्यों को सफल बनाने में सफलता— छात्र के सर्वांगीण विकास के लिए तथा विद्यालय के कार्य को सफल बनाने के लिए शिक्षक अभिभावक सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। गृहकार्य, स्वास्थ्य रक्षा, अनुशासन की समस्या तथा अन्य क्रियाओं को सफल बनाने के लिए अभिभावक का सहयोग लेना अनिवार्य हो जाता है।
(3) परस्पर विश्वास की भावना- शिक्षक अभिभावक सम्पर्क में मधुरता आ जाने से एक-दूसरे के प्रति विश्वास हो जाता है। बालकों के माँ-बाप विद्यालय के प्रत्येक कार्य में उत्साह दिखाते हैं. ये अध्यापक के सम्पर्क द्वारा अपने बच्चों की कमजोरियाँ ज्ञात करके उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं।
(4) अनुशासन स्थापना में सहायक- शिक्षक अभिभावक सहयोग विद्यालय में अनुशासन स्थापित करने में भी सहायक होता है। जब बालकों के माँ-बाप अध्यापकों के साथ सद्व्यवहार करेंगे तथा उनसे समय-समय पर मिलते रहेंगे तो उसका प्रभाव बालकों पर भी पड़ता है। वे अपने अध्यापकों को आदर की दृष्टि से देखने लगते हैं तथा उनकी आज्ञा मानने के लिए वे सदा तत्पर रहते हैं। उन्हें भय रहता है कि कहीं अध्यापक उनके माँ-बाप से शिकायत न कर दें।
(5) विद्यालय-समुदाय में निकटता- शिक्षक अभिभावक सहयोग जितना मधुर होता जाएगा उतना ही विद्यालय समुदाय के निकट आता जाएगा। दोनों मिलकर बालक को समाज का सच्चा तथा जागरूक नागरिक बना सकते हैं।
शिक्षक-अभिभावक संघ के कार्य- शिक्षक अभिभावक संघ के कार्य विद्यालय के शैक्षणिक एवं पाठ्य सहगामी क्रियाओं को सम्पन्न कराने तथा विद्यालय एवं समुदाय में निकटता लाने में सहायक होने चाहिए। उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इस संघ के निम्नलिखित कार्य हो सकते हैं—
1. विद्यालय के शिक्षा सम्बन्धी उद्देश्य तथा उनको प्राप्त करने के कार्यक्रमों के बारे में अपने सुझाव देना।
2. ऐसे बालकों की आर्थिक सहायता करना जो निर्धनता के कारण अध्ययन करने में असमर्थ हैं।
3. विद्यालय में स्थानाभाव तथा भौतिक साधनों की कमी को दूर करने के लिए समुदाय से धन संग्रह करना।
4. समस्यात्मक बालकों को सुधारने के लिए शिक्षक एवं अभिभावकों को मिलकर उपायों पर विचार करना।
5. अध्यापकों को समाज में उत्सव पर सम्मानित करना। ऐसा करने से छात्रों में अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान पैदा होगा।
6. समय-समय पर मोहल्ले में संघ की बैठक बुलाना तथा समुदाय की समस्याएँ अध्यापकों के समक्ष रखना।
वास्तव में शिक्षक अभिभावक संघ तभी ठीक प्रकार सफल हो सकता है जब कि दोनों अपने कर्तव्यों को निभाते हुए पारस्परिक प्रेम को बढ़ाने का भी प्रयत्न करते रहें। एक की उदासीनता दोनों के सम्पर्क में कड़वाहट उत्पन्न कर सकती है तथा संघ अपने उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर सकेगा।
अभिभावक-शिक्षक संघ की सफलता के लिए प्रधानाचार्य का विशेष उत्तरदायित्व (ROLE OF THE HEADMASTER IN THE SUCCESSFUL FUNCTIONING OF PARENT-TEACHER ASSOCIATION)
प्रधानाचार्य ही प्राय: अभिभावक शिक्षक संघ के प्रधान होते हैं। प्रधानाचार्य को बहुत ही धीरज से काम लेना चाहिए। यदि अभिभावक विद्यालय के किसी कार्य की आलोचना भी करते हैं तो इस आलोचना के समाधान के लिए उनका सहयोग लिया जाए। उन्हें विद्यालय तथा अध्यापकों की सीमाओं से परिचित कराया जाए। इसी प्रकार अध्यापकों से समय-समय पर स्टाफ मीटिंग में अभिभावकों के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित करने पर बल दिया जाए।
यदि विद्यालय के सम्बन्ध में कोई आलोचना होती है तो इस पर धैर्य से विचार करना चाहिए और यदि कोई विशेष कठिनाई सामने न आये तो इस प्रकार की समस्याओं को अभिभावकों और अध्यापकों की एक समिति को सौंपा जा सकता है। प्रधानाचार्य तथा विद्यालय के अध्यापकगण कभी-कभी समाज के उत्सवों में भाग लें और अपने प्रभाव द्वारा उनके सहयोग के लिए उपयुक्त वातावरण बनायें। प्रधानाचार्य का कर्तव्य है कि अभिभावक दिवस को मनाते समय इसकी प्रत्येक कार्यविधि पर उचित ध्यान दे। प्रधानाचार्य को चाहिए कि अभिभावक शिक्षक संघ की बैठकों में विद्यालय द्वारा की गयी उन्नति, नई योजनाओं तथा अन्य परिस्थितियों पर प्रकाश डाले। अभिभावकों द्वारा दिये गये सुझावों पर पूरा-पूरा ध्यान दिया जाए।
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