B.Ed Notes

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन का अर्थ, प्रविधि/प्रणाली, शिक्षक की भूमिका, मूल मान्यताएँ, प्रकार, उपयोग, एंव सीमायें

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन का अर्थ, प्रविधि/प्रणाली, शिक्षक की भूमिका, मूल मान्यताएँ, प्रकार, उपयोग, एंव सीमायें
कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन का अर्थ, प्रविधि/प्रणाली, शिक्षक की भूमिका, मूल मान्यताएँ, प्रकार, उपयोग, एंव सीमायें

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन से आप क्या समझते हैं ? इसे परिभाषित कीजिए तथा इसकी मूल मान्यताओं का वर्णन कीजिए। 

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन का अर्थ ( Meaning of Computer Assisted Instruction)

तकनीकी यन्त्रों में शिक्षाशास्त्रियों द्वारा प्रयोग करने की स्वाभाविक इच्छा तथा अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धान्तों एवं विधियों को अधिक प्रभावशाली बनाने की कल्पना के फलस्वरूप कम्प्यूटर सहयुक्त अनुदेशन का उद्भव तथा विकास हुआ। प्रारम्भिक अवस्था में सरल अभिक्रमों की मशीनों की सहायता से जांच की जाती है। सर्वप्रथम, सन् 1961 में इलिनायस विश्वविद्यालय में कम्प्यूटर सहयुक्त अनुदेशन का प्रयास किया गया। दूसरा प्रयास 1966 में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के पैट्रिक सुपेस (Patric Suppes) ने प्राथमिक स्कूल के बच्चों के लिए गणित तथा वाचन पर कम्प्यूटर अभिक्रमित निर्मित किया। उसके पश्चात् दिन-प्रतिदिन कम्प्यूटर सहयुक्त अनुदेशन शैली का विकास होता गया।

कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन (CAI) की प्रविधि/प्रणाली (Functioning of Computer Assisted Instruction)

शैक्षिक तकनीकी के कठोर उपागमों में कम्प्यूटर का प्रमुख स्थान है, किन्तु कोमल तकनीकी के प्रयोग के बिना कम्प्यूटर सहायित अध्ययन सम्भव नहीं है। कोमल और कठोर तकनीकी के माध्यम से कम्प्यूटर सह अनुदेशन के कार्य को सफलतापूर्वक अनुदित करता है। CAI निम्न प्रकार से कार्य करता है-

(1) अभिक्रमों एवं सूचनाओं को अपने कार्डों एवं चुम्बकीय टेप पर संग्रह करना ।

(2) विविध एकत्रित सूचनाओं के भण्डार में से छात्रों के लिए उपयुक्त सामग्री का चुनाव करना ।

(3) टेलीटाइपराइटर की मदद से सूचनाओं का आदान-प्रदान इस प्रकार कम्प्यूटर द्वारा सम्पूर्ण अधिगम प्रणाली का निर्देशन व नियन्त्रण किया जाता है। कम्प्यूटर द्वारा न केवल अधिगम सामग्री को प्रस्तुत करने वरन् सम्पूर्ण अधिगम प्रक्रिया के प्रत्येक चरण पर किया जाता है।

इसे इस प्रकार देखा जा सकता है-

(1) विद्यार्थियों के प्रविष्टि व्यवहार का पता लगाना (Diagnosis of entry behaviour of students)- किसी विषय क्षेत्र में छात्रों का पूर्व ज्ञान क्या है ? सर्वप्रथम इसका पता लगाने के लिए भी कम्प्यूटर प्रोग्राम बनाए गये हैं। इससे अधिगम के उद्देश्यों के निर्धारण में सहायता प्राप्त होती है।

(2) अनुदेशानात्मक सामग्री को विभिन्न इकाइयों में प्रस्तुत करना (Presenting Instuct Matinal in Various Units)- (कम्प्यूटर द्वारा ही छात्रों के समक्ष सम्पूर्ण पाठ्यवस्तु को विभिन्न इकाइयों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। प्रत्येक इकाई के बाद परीक्षण की व्यवस्था की जाती है।

मूल्यांकन एवं प्रतिपुष्टि प्रदान करना (Assessment and Giving Feedback) प्रत्येक इकाई समझने के पश्चात् उसी पर आधारित परीक्षण की व्यवस्था होती है। छात्रों को उनकी प्रगति का पता स्वयं लगता रहता है। परीक्षण में सफल होने पर ही दूसरी इकाई पर भेजा जाता है। छात्र अपनी प्रगति के सम्बन्ध में शिक्षक से विचार-विमर्श भी कर सकता है।

छात्रों की प्रगति का ब्यौरा रखना (Keeping the record of students progress) कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन प्रणाली का यह महत्त्वपूर्ण कार्य है कि इसमें प्रत्येक छात्र की प्रगति का विवरण स्वतः ही रिकार्ड हो जाता है जिसका प्रयोग अन्तः छात्रों की प्रगति का विश्लेषण करने में किया जा सकता है। इससे शिक्षकों को इकाई के पुर्नगठित करने में भी सहायता मिलती है।

कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन में शिक्षक की भूमिका

शिक्षक की भूमिका के बिना कम्प्यूटर सहायित सम्भव नहीं है। शिक्षक ही अधिगम सामग्री का चुनाव कर इकाइयों का निर्माण करता है।

शिक्षक छात्रों को अधिगम में आने वाली बाधाओं को विचार-विमर्श द्वारा दूर करता है। कम्प्यूटर द्वारा तैयार प्रगति लेख का आंकलन शिक्षक द्वारा किया जाता है।

प्रतिपुष्टि के द्वारा अध्यापक छात्रों को उनकी प्रगति के बारे में समझाता है।

छात्रों से प्रतिपुष्टि प्राप्त कर इकाइयों में संशोधन की व्यवस्था भी शिक्षक द्वारा की जाती है।

कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन की मूल मान्यताएँ (Basic Assumptions of Computer Assisted Instruction)

कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन (CAI) निम्न मान्यताओं पर आधारित है-

(1) छात्रों का स्वगति से अधिगम (Self-paces learning)- इस प्रकार के अनुदेशन में छात्रों को अपनी योग्यतानुसार अपनी गति से सीखने का अवसर प्राप्त होता है क्योंकि प्रत्येक छात्र अपनी गति से सीखता है तथा किसी अन्य छात्र से तुलना नहीं की जाती है।

(2) अधिगम में निपुणता (Mastery in Learning)- सामान्य कक्षा-कक्ष में सभी छात्रों पर व्यक्तिगत ध्यान दे पाने के कारण सभी छात्रों को अधिगम में निपुण बनाना सम्भव नहीं है, किन्तु कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन में प्रत्येक छात्र जब तक एक इकाई में निपुणता मिलती जाती है।

(3) एक समय में अनेक छात्रों को व्यक्तिगत अनुदेशन प्रदान करना (Giving Personal Instruction to Many Students at a Time)- कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन में जितने चाहें छात्र एक साथ व्यक्तिगत अनुदेशन प्राप्त कर सकते हैं।

Bhatt and Sharma के अनुसार, “कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन को छात्र, कम्प्यूटर नियन्त्रित प्रस्तुतिकरण तथा छात्र अनुकिया उपकरण के मध्य चलने वाली पारस्परिक क्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसका प्रयोग शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में किया जाता हैं।”

कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन के प्रकार अथवा अवस्थाएँ (Types or Modes of Computer Assisted Instruction)

कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन (CAI) के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं-

(1) सूचनात्मक कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन (Informational Computer Assisted Instruction)- CAI का यह रूप विद्यार्थी को वांछित सूचनाएँ प्रदान करता है । इस सम्बन्ध में कम्प्यूटर एक अधिकारी की तरह पूछ-ताछ करके पूछे गए प्रश्नों का उत्तर अपनी संग्रहित सूचना सामग्री की सहायता से क्षणभर में प्रदान कर देता है। इससे छात्रों को आवश्यक सूचनाएँ व नवीन मार्ग खोजने में सहायता मिलती है

(2) ड्रिल तथा अभ्यास कार्यक्रमों से सम्बन्धित अनुदेशन (Instruction Concerning Drill and Practice Programme)- इस प्रकार के अनुदेशन कार्यक्रमों में विद्यार्थी के पूर्व अर्जित अधिगम अनुभवों को स्थायी एवं व्यवहार में लाने योग्य बनाने के उद्देश्य से आवश्यक ड्रिल तथा अभ्यास करने से सम्बन्धित अवसर दिए जाते हैं।

जैसे- यदि छात्रों को गुणा देने सम्बन्धी गणितीय कौशल का अभ्यास कराना हो तो स्क्रीन पर उस छात्र को निम्न प्रकार की समस्या दिखाई देगी।

छात्र की-बोर्ड की कीज (Keys) को दबाकर इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करेगा। यदि उसका उत्तर गलत है तो कम्प्यूटर स्क्रीन पर तुरन्त ही गलत (Wrong) दिखाई देगा। पर उत्तर सही होने पर उसे एक अन्य समस्या अभ्यास हेतु मिल जाएगी। इससे विद्यार्थी को तत्काल प्रतिपुष्टि मिलती रहती है।

(3) अनुरूपित प्रकार का अनुदेशन (Simulation Type Instruction)- इसमें उचित रूप से तैयार सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों की सहायता से विद्यार्थियों को समस्या का सामना करने हेतु वास्तविक और चुनौती पूर्ण परिस्थितियाँ प्रदान की जाती हैं।

जैसे- रणक्षेत्र में स्वयं के हाथ में राइफल लिए हुए दुश्मनों से घिरा पाना या गोताखोर के रूप में समुद्री दुनियाँ की सैर करना। इस प्रकार अनुरूपित प्रकार का अनुदेशन विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण अनुभव प्रदान करता है।

(4) ट्यूटोरियल कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन (Tutorial Computer Assisted Instruction)– इस वर्ग में आने वाले कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में कम्प्यूटर ट्यूटरों के अनुरूप वास्तविक शिक्षण कार्य करते हैं। वर्तमान में विभिन्न विषयों से सम्बन्धित इकाइयों तथा प्रकरणों पर ट्यूटोरियल प्रणाली पर आधारित अनेक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम पाए जाते हैं। जिसमें पाठ्य-विषयों पर विषय-वस्तु, सम्वाद प्रणाली तथा अन्य तकनीकी की सहायता से प्रस्तुत की जाती है व इन पाठों की उचित पुनरावृत्ति तथा अभ्यास कार्य कराया जाता है व उसका मूल्यांकन किया जाता है, व असफल विद्यार्थी को उपचारात्मक अनुदेशन प्रदान किया जाता है।

(5) समस्या समाधान प्रकार का अनुदेशन (Problem Solving Type Instruction)- इस प्रकार के कम्प्यूटर स्वयं किसी समस्या का समाधान न करके विद्यार्थी से ही प्रस्तुत समस्याओं का समाधान की अपेक्षा करते हैं। वे सॉफ्टवेयर प्रोग्राम विद्यार्थियों के समक्ष इस प्रकार की स्थिति प्रस्तुत करते हैं कि वे आवश्यक सोपानों का व्यवस्थित रूप से अनुसरण करते हुए समस्याओं से निपटने के लिए आगे बढ़ें।

(6) अधिगम सम्बन्धी मामलों का प्रबन्ध सम्बन्धी अनुदेशन (Learning Affairs Managing Type Instruction)- ये सॉफ्टवेयर प्रोग्राम विद्यार्थियों के द्वारा की जाने वाली अनेक प्रकार की अधिगम क्रियाओं का उपयुक्त प्रबन्धन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(7) क्रियात्मक कार्य उन्मुखी अनुदेशन (Practical Work Oriented Instruction)- इसमें छात्रों को विभिन्न प्रकार की प्रयोगशाला एवं कार्यशाला सम्बन्धी परीक्षणों को करने या देखने की सुविधा होती है। इसी प्रकार के प्रयोगों तथा क्रियात्मक कार्यों के सम्पादन सम्बन्धी जीवन्त अनुभव देखने या करने की सुविधा भी होती है।

(8) शैक्षिक क्रीड़ा के प्रकार का अनुदेशन (Educational Games Type Instruction)- इसमें विद्यार्थियों को अनेक प्रकार के सुनियोजित कम्प्यूटर क्रीड़ा में सहभागिता का अवसर दिया जाता है। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान कुछ अतिरिक्त अभिप्रेरणा प्रोत्साहन तथा पुनर्बलन प्रदान करना भी होता है व पढ़े पाठों की समीक्षा, पुनः अवलोकन तथा मूल्यांकन आदि करना भी होता है।

कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन के उपयोग (Uses of Computer Assisted Instruction – CAI)

शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर निम्नलिखित रूप से सहायता तथा लाभ की प्राप्ति कराता है-

  1. छात्रों को उनकी योग्यतानुसार विभिन्न वर्गों में बांटना, समय सारणी बनाना आदि कार्यों को कम्प्यूटर द्वारा सम्पन्न कराया जा सकता है।
  2. कम्प्यूटर के माध्यम से अनुदेशन की व्यवस्था की जा सकती है।
  3. छात्रों के प्रगति-पत्रों की व्यवस्था गोपनीय ढंग से कम्प्यूटर के माध्यम से की जा सकती है तथा छात्रों का मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ रूप से किया जा सकता है।
  4. छात्रों के मार्गदर्शन के लिए उपयुक्त सूचनाओं को शिक्षकों तथा परामर्शदाताओं को दे सकता है।
  5. छात्र तथा विषयवस्तु के मध्य सीखने सम्बन्धी तथ्यों की परस्पर क्रियाओं का सुअवसर प्रदान कर सकता है।
  6. छात्रों के मध्य परस्पर क्रियाओं तथा ट्यूटोरियल वार्तालापों को सम्बद्ध कर सकता है।

संक्षेप में, कम्प्यूटर का प्रयोग निम्नलिखित चार शैक्षिक क्षेत्रों में अधिकाधिक रूप से किया जाता है-

1. शिक्षण तथा अनुदेशन के लिए एक कम्प्यूटर पर एक समय में विभिन्न छात्र एक पाठ्यवस्तु के कई अनुदेशनों का अध्ययन करते हैं। शिक्षण के उद्देश्यों, छात्रों के पूर्वज्ञान तथा प्रस्तुतीकरण के सम्बन्ध में कम्प्यूटर सरलता से निर्णय ले लेता है। अनुदेशन के लिए उपयुक्त प्रारूप का चयन कम्प्यूटर की सहायता से सरलतापूर्वक किया जा सकता है। स्पष्ट है कि कम्प्यूटर द्वारा अनुदेशन की व्यवस्था सम्पन्न की जाती है।

2. शोधकार्य हेतु- यद्यपि भारत में कम्प्यूटर का प्रयोग अनुदेशन के लिए प्रायः नहीं किया जा रहा है, लेकिन शोधकार्य के अन्तर्गत प्रदत्तों के संकलन, विश्लेषण तथा व्याख्या में इसका प्रयोग तीव्र गति से किया जा रहा है। कम्प्यूटर द्वारा प्राप्त बड़े प्रदत्तों का विश्लेषण बहुत कम समय में शुद्धता के साथ सम्पन्न किया जा सकता है।

3. शैक्षिक निर्देशन तथा परामर्श हेतु- शैक्षिक निर्देशन के अन्तर्गत कम्प्यूटर द्वारा छात्रों की कमजोरियों का पता लगाकर तदनुसार उपचार के लिए अनुदेशन की व्यवस्था की जाती है। इसके अतिरिक्त छात्रों की भिन्नताओं को कार्ड पर अंकित करके कम्प्यूटर को देने पर वह उनकी क्षमताओं के आधार पर निर्देशन तथा परामर्श विद्युत टंकण मशीन द्वारा सम्प्रेषित कर देता है।

4. परीक्षा प्रणाली के क्रियान्वयन हेतु- शिक्षा की प्रमुख दो क्रियाओं-शिक्षण तथा परीक्षण के लिए कम्प्यूटर का उपयोग बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। भारतीय विद्यालयों की परीक्षा परिषदों तथा विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रणाली को कम्प्यूटर द्वारा अधिक विश्वसनीय, वैध तथा यथार्थ बना दिया गया है। परीक्षाफल के अंकों तथा शोध से सम्बन्धित आंकड़ों का विश्लेषण कम्प्यूटर द्वारा यथाशीघ्र परिशुद्धता के साथ कर दिया जाता है। कम्प्यूटर का प्रयोग शिक्षण तथा निर्देशन में पश्चिमी देशों द्वारा बहुतायत से किया जा रहा है।

कम्प्यूटर सहयुक्त अनुदेशन की सीमायें (Limitations of Computer Assisted Instruction-CAI)

कम्प्यूटर सहायित अनुदेशन की सीमाएँ निम्नवत् हैं-

1. समस्त क्रियाकलाप विद्युत द्वारा ही सम्पादित होने के फलस्वरूप छात्रों की वाणी, भाषा तथा लेखन का विश्लेषण नहीं किया जा सकता है। कुलहैवी तथा उनके सहयोगियों ने इस प्रकार के अनुदेशन को अधिक खर्चीला तथा पन्ना उलटने वाली शैली के रूप में सम्बोधित किया है।

2. इस प्रकार के अनुदेशन के अन्तर्गत शिक्षकों तथा छात्रों के मध्य पारस्परिक प्रेम-व्यवहार का अभाव रहता है, क्योंकि कम्प्यूटर छात्रों को कोडिंग कार्ड तथा शिक्षक को लौह मशीन के रूप में परिवर्तित कर देता है।

3. भाषा में दक्षता प्राप्त करने के लिए सार्थक वाक्यों का निर्माण करना आवश्यक होता है। इस प्रकार की योग्यता का विकास कम्प्यूटर के माध्यम से सम्पादित नहीं हो पाता है, क्योंकि कम्प्यूटर के अन्तर्गत क्रमबद्ध उद्दीपनों तथा अनुक्रियाओं की पूर्व-नियोजित शृंखलायें सूक्ष्म रूप में निहित होती हैं, जो छात्रों की अनुक्रियाओं को प्रकट करती हैं।

4. प्रायः कम्प्यूटर सहयुक्त अनुदेशन शैली द्वारा अध्ययन करते समय छात्रों में ऊब पैदा हो जाती है तथा वे थक जाते हैं।

5. छात्रों के अन्तर्गत पारस्परिक सहयोग, मैत्री भावना तथा परस्पर मेलजोल आदि इस अनुदेशन द्वारा नहीं हो पाता है। क्योंकि छात्र कम्प्यूटर के सामने निर्देशन प्राप्त करने के लिए यन्त्रवत् बैठे रहते हैं तथा अपने आस-पास के मित्रों तथा सहपाठियों के प्रति उदासीन रहते हैं। फलस्वरूप, कम्प्यूटर के माध्यम से अनुदेशन करने में छात्रों में सामाजिकता की भावना का विकास नहीं हो पाता है।

6. छात्रों में स्वतन्त्र चिन्तन तथा सृजनात्मक क्रियाओं का विकास कम्प्यूटर शैली के माध्यम से नहीं हो पाता है, क्योंकि कम्प्यूटर अपने अन्दर सचित पाठ को छात्रों के सामने प्रस्तुत करता है, जो पहले से निर्मित हुए रहते हैं।

7. इस प्रकार के अधिगम में छात्रों की स्वतन्त्रता बाधित हो जाती है, जिसका दुष्प्रभाव छात्रों के विकास पर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत पड़ता है।

इन सीमाओं के रहते हुए भी शिक्षा जगत में गुणात्मक तथा परिमाणात्मक समस्याओं का समाधान कम्प्यूटर सहयुक्त प्रणाली के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है। यही कारण है कि पश्चिमी देशों में इसका प्रयोग दिन-प्रतिदिन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। भारतवर्ष में यद्यपि इस शैली का विकास प्रारम्भिक अवस्था में है, तथापि इसके विकास पर भारत सरकार का शिक्षा मन्त्रालय विशेष रुचि ले रहा है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment