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उच्चतर शैक्षिक अनुसन्धान संस्थाएँ | INSTITUTIONS OF HIGHER EDUCATION RESEARCH
निम्नलिखित संस्थाएँ उच्चतर शैक्षिक अनुसन्धान के क्षेत्र में कार्यरत हैं-
(अ) भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला [INDIAN INSTITUTE OF ADVANCED STUDY-(IIAS) SHIMLA)
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला को स्थापना अक्टूबर 1965 में एक स्वायत्त संस्था के रूप में की गई थी। इसका उद्देश्य मानविकी, सामाजिक विज्ञान तथा सम्बन्धित क्षेत्रों में उच्च अनुसन्धान को बढ़ावा देने के लिए वरिष्ठ विद्वानों की सहायता करना है। संस्थान का मुख्य उद्देश्य नये-नये क्षेत्रों में अनुसन्धान करना, नये-नये महत्त्वपूर्ण विचारों का सृजन तथा महत्त्वपूर्ण संकल्पनात्मक विकास के लिए प्रयास करना तथा सामयिक विषयों के प्रश्न पर अन्तर विषयों को सापेक्ष महत्त्व प्रदान करना है। संस्थान के शैक्षिक कार्यकलापों की प्रमुख विशेषता साप्ताहिक सेमिनारों का आयोजन करना है। संस्थान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का मानविकी तथा सामाजिक विज्ञान के लिए एक अन्तर विश्वविद्यालय केन्द्र (Inter University Centre for Humanities and Social Sciences) के रूप में कार्य करता है।
(ब) भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् (INDIAN COUNCIL OF PHILOSOPHICAL RESEARCH-ICPR)
भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् की निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए स्थापना की गई है-
1. दर्शनशास्त्र में शिक्षण तथा अनुसन्धान को प्रोन्नत करना,
2. समय-समय पर दर्शनशास्त्र में अनुसन्धान की प्रगति की समीक्षा करना और दर्शनशास्त्र में अनुसन्धान कार्यों को समन्वित करना, तथा
3. अनुसन्धान दर्शनशास्त्र (Research Philosophy) तथा सम्बद्ध विषयों में संलग्न संस्थाओं/संगठनों और व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए परिषद् शिक्षावृत्तियाँ प्रदान करती है। सेमीनार सम्मेलन, कार्यशालाएँ तथा पुनश्चर्या पाठ्यक्रम आयोजित करती है। सेमीनार/कार्यशालाएँ आयोजित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। अध्येताओं (Scholars) को विदेशों में आयोजित सम्मेलनों/सेमीनारों में अपने अनुसन्धान प्रपत्रों को प्रस्तुत करने के लिए यात्रा अनुदान प्रदान करती है, छोटी-बड़ी परियोजनाओं को प्रायोजित करती है और उनके प्रतिवेदनों को प्रकाशित करती है। परिषद् की एक त्रिवार्षिक पत्रिका (भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् पत्रिका) निकलती है। यह पत्रिका विविध दार्शनिक परम्पराओं भारतीय तथा पश्चिमी- दोनों के बीच बातचीत के लिए एक मंच उपलब्ध कराती है और विश्व में कहीं के भी युवा दार्शनिकों में उभरते दार्शनिक चिन्तन की नवीन शैलियों के लिए स्थान उपलब्ध कराती है।
(स) भारतीय ऐतिहासिक अनुसन्धान परिषद् (INDIAN COUNCIL OF HISTORICAL RESEARCH-ICHR)
भारतीय ऐतिहासिक अनुसन्धान परिषद् की स्थापना सन् 1972 में एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई। थी। इसका उद्देश्य इतिहास के तथ्य परक अनुसन्धान तथा लेखन के क्षेत्र में बढ़ावा देना, अनुसन्धान परियोजनाओं को प्रायोजित करना तथा देश की राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक विरासत को आत्मसात् करने की भावना को जगाना है। परिषद् कला, साहित्य, मुद्राशास्त्र, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, पुरालेखशास्त्र और विज्ञान, दर्शनशास्त्र, सामाजिक आर्थिक संरचनाओं सहित इतिहास के विभिन्न पहलुओं को शामिल करके पुरातत्व अनुसन्धान प्रस्तावों के वित्तपोषण के माध्यम से अपने लक्ष्यों को पूरा कर रही है।
(द) भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसन्धान परिषद् (INDIAN COUNCIL OF SOCIAL SCIENCE RESEARCH-ICSSR)
भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसन्धान परिषद् की स्थापना सन् 1969 में एक स्वायत्त संगठन के रूप में देश में सामाजिक विज्ञान शोध को प्रोन्नत व समन्वित करने के लिए की गई थी। परिषद् अन्तर विषयक परिप्रेक्ष्य को प्रोन्नत करके और अनुसन्धान की कोटि में सुधार द्वारा सामाजिक विज्ञान के ज्ञान को बढ़ाने के लिए अनुसन्धान संस्थाओं को अनुरक्षण एवं विकास अनुदान प्रदान करती है। परिषद् के इस समय छ: क्षेत्रीय केन्द्र हैं।
राष्ट्रीय मूल्यांकन संगठन (NATIONAL EVALUATION ORGANIZATION NEO)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986, 1992 की संशोधित कार्ययोजना में यह परिकल्पना की गई कि चुने हुए क्षेत्रों में विशेषकर ऐसी सेवाओं में जिनमें विश्वविद्यालय की डिग्री की आवश्यक योग्यता के रूप में आवश्यकता नहीं है, डिग्रियों को रोजगार से अलग करने की शुरूआत की जायेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के इस प्रावधान के अनुसरण में राष्ट्रीय मूल्यांकन संगठन को एक स्वायत्त पंजीकृत सोसायटी के रूप में स्थापित किया गया। इसके निम्नलिखित कार्य हैं-
1. उम्मीदवारों की औपचारिक योग्यताओं का ध्यान किये बिना विनिर्दिष्ट नौकरियों के लिए उनकी योग्यता को प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिक तथा तर्कसंगत ढंग से तैयार किये गये परीक्षणों का आयोजन करना।
2. विनिर्दिष्ट कार्यों के निष्पादन के लिए आवश्यक ज्ञान, दक्षता, योग्यता, कुशलता, सक्षमता तथा अभिरुचि के परीक्षण के लिए पद्धति तथा तकनीकियों का विकास करना।
3. उच्च अध्ययन के पाठ्यक्रमों में दाखिले, प्राध्यापक वर्ग की भर्ती, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों की भर्ती, आदि के प्रयोजनार्थ जो मौजूदा संस्थाएँ और एजेन्सियाँ स्वयं प्रारम्भिक छँटनी या इसी प्रकार के अन्य परीक्षण के माध्यम से विभिन्न प्रकार की परीक्षाएँ आयोजित करती हैं, यदि उनके द्वारा इस कार्य में सहायता माँगी जाये तो राष्ट्रीय मूल्यांकन संगठन स्वयं द्वारा निर्णीत शर्तों पर उनकी सहायता कर सकता है।
4. परीक्षण विकास, परीक्षण प्रशासन, परीक्षण में अंक गणना तथा निर्वाचन, कम्प्यूटर प्रणाली तथा प्रकाशीय चिह्न पाठक (Optical mark readers) के अनुप्रयोग में राष्ट्रीय स्तर पर सुसज्जित संसाधन केन्द्र के रूप में कार्य करना।
विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के प्रशासकों के लिए प्रशिक्षण सुविधाओं की योजना (SCHEME OF TRAINING FACILITIES FOR UNIVERSITIES AND COLLEGES ADMINISTRATORS)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति सम्बन्धी कार्य योजना, 1992 में उच्च शिक्षा संस्थाओं की आन्तरिक दक्षता में सुधार लाने का प्रावधान है। अतः विश्वविद्यालय तथा कॉलेजों के प्रशासकों को अपनी व्यावसायिक दक्षता के विकास के लिए अवसर प्रदान करना आवश्यक है।
शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों के प्रशासकों के लिए मौजूदा प्रशिक्षण सुविधाओं के स्तर की समीक्षा करने तथा प्रशिक्षण की जरूरतों का पता लगाने और विश्वविद्यालय/कॉलेज प्रशासकों के व्यावसायिक विकास की सुविधाओं को बढ़ाने के लिए उपाय सुझाने हेतु प्रो. अमरीक सिंह की अध्यक्षता में एक नौ सदस्यीय समिति का गठन किया गया। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है।
समिति की मुख्य सिफारिश यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर ‘राष्ट्रीय उच्च शिक्षा प्रशिक्षण और अनुसन्धान संस्थान’ (National Institute for Training and Research in Higher Education NITRHE) नामक एक नाभि (Nodal) प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किया जाये। यह विश्वविद्यालयों में सामान्य प्रशिक्षण की सुविधाएँ बढ़ाने के लिए अन्तर विश्वविद्यालय केन्द्र (Inter University Centre) के रूप में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अन्तर्गत एक पंजीकृत सोसायटी होगा। इसके प्रमुख लक्ष्य तथा कार्य इस प्रकार होंगे-
1. उच्च शिक्षा सम्बन्धी प्रशिक्षण नीति तैयार करना,
2. सुविधाएँ प्रदान करना,
3. अनुसन्धान और प्रबन्धन को बढ़ावा देना,
4. शैक्षिक अनुसन्धान के क्षेत्र में प्रशिक्षण सम्बन्धी आवश्यकताओं का पता लगाना,
5. कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करना, तथा
6. सूचना तथा विशेषज्ञता (Expertise) के आदान-प्रदान के लिए एक मंच (Forum) प्रदान करना। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एक उप-समिति का गठन किया है जो इस रिपोर्ट की जाँच कर रही।
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