ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है? What is an operating system?
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ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System)
ऑपरेटिंग सिस्टम कुछ छोटे-छोटे प्रोग्राम का एक समूह है, जो कि कम्प्यूटर हार्डवेयर तथा कम्प्यूटर प्रयोक्ता के मध्य एक पुल (Bridge) का कार्य करता है। इसे सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software), कंट्रोल सिस्टम (Control System) भी कहा जाता है। यह उन प्रोग्रामों का समूह है जो यूजर और कम्प्यूटर हार्डवेयर के बीच कार्य करते हैं। इनकी सहायता से एप्लीकेशन प्रोग्राम (Application Program) अर्थात् यूजर प्रोग्राम को सुविधाजनक रूप से तथा पूर्ण क्षमता के साथ चलाया जा सकता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा प्रोग्राम है जो एप्लीकेशन प्रोग्राम के कार्यान्वयन को नियंत्रित करता है। यह कम्प्यूटर और यूजर के बीच एक मध्यस्थता का कार्य करता है। एक कम्प्यूटर सिस्टम को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा जा सकता है: (a) हार्डवेयर, (b) ऑपरेटिंग सिस्टम, (c) एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर, (d) यूजर ।
इन सभी को चित्र द्वारा दर्शाया गया है। अतः चित्र में स्पष्ट है कि ऑपरेटिंग सिस्टम एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के बीच कार्य करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम के उदाहरण DOS, WINDOW, VISTA, LINUX इत्यादि हैं।
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार (Types of Operating System)
कम्प्यूटर प्रणाली के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित किये जाते हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं:
(1) सिंगल यूजर सिस्टम:
(2) मल्टीप्रोग्रामिंग:
(3) मल्टीप्रोसेसिंग;
(4) बैच प्रोसेसिंग;
(5) टाइम शेयरिंग या मल्टीटॉस्किगः
(6) रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम:
(7) डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम;
(8) नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम।
(1) सिंगल यूजर सिस्टम (Single User System)- एक सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम वह होता है जिसमें केवल एक प्रोग्राम एक बार में क्रियान्वित होता है। पहले समय के अधिकांश ऑपरेटिंग सिस्टम सिंगल यूजर होते थे। इस ऑपरेटिंग सिस्टम में एक समस्या यह है कि इसमें एक प्रोग्राम में अधिक प्रोग्राम एक बार में क्रियान्वित नहीं किये जा सकते हैं। इसलिए इस सिस्टम में प्रोग्राम एक लाइन में व्यवस्थित रहते हैं। एक कम्प्यूटर सिस्टम एक प्रोग्राम को तुरंत मान्यता नहीं देता जब तक कि उसके साथ कोई पहचान न हो। इसके लिए सूचनाओं का साथ होना बहुत जरूरी है जिसमें कि उस प्रोग्राम को पहचाना जा सके। अन्य पेरीफेरल डिवाइस भी प्रोग्राम क्रियान्वित करने के लिए इन सूचनाओं की मांग करते हैं। यह सारे निर्देश एक स्पेशल भाषा में लिखे जाते हैं जिसे ऑपरेटिंग सिस्टम समझता है।
(2) मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multiprogramming Operating System)-ऑपरेटिंग सिस्टम विभिन्न प्रोग्राम्स का एक समूह है जो कम्प्यूटर की क्रियाओं का संचालन करता है और कम्प्यूटर की क्रियाओं को एक प्रोग्राम से दूसरे प्रोग्राम में स्थानान्तरित करके गति देता है। इसमें एक ही कम्प्यूटर द्वारा दो या अधिक अलग और स्वतंत्र प्रोग्रामों को एक के बाद एक प्रोग्राम को चलाने की प्रक्रिया को मल्टीप्रोग्रामिंग (Multiprogramming) कहा जाता है। Multiprogramming में दो या अधिक प्रोग्राम को मुख्य मेमोरी में स्थापित कर उन्हें एक साथ चलाने की धारणा का उपयोग किया गया है। Multiprogramming से सी.पी. यू. की उपयोगिता इतनी बढ़ जाती है कि उसके पास रन करने के लिए हमेशा एक Job होता है। ऑपरेटिंग सिस्टम कई Job को Memory (मेमोरी) में रखता है। यह मेमोरी से एक जॉब लेता है। जॉब (Job) को रन (Execute) करता है यदि जॉब किसी कार्य के लिये इंतजार (Wait) करता है तो C.P.U के द्वारा दूसरी जॉब को रन करना शुरू कर दिया जाता है।
इस सिस्टम में एक साथ कई जॉब रन हो सकते हैं तथा सी.पी. यू के समय का सुदपयोग होता है।
(3) मल्टी प्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multiprocessing Operating System) – इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में कई प्रोसेस होते हैं। मल्टी प्रोसेसिंग शब्द का प्रयोग एक प्रोसेसिंग (Processing) दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिए किया जाता है। जहाँ पर दो तथा दो से अधिक प्रोसेसर (Processor) एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। इस प्रकार के सिस्टम में भिन्न तथा स्वतंत्र प्रोग्रामों के निर्देश एक ही समय में एक से अधिक प्रोसेसरों द्वारा क्रियान्वित किये जाते हैं या प्रोसेसरों द्वारा विभिन्न निर्देशों का क्रियान्वयन एक के बाद एक किया जाता है जो कि एक ही प्रोग्राम से प्राप्त हुए हों।
इस सिस्टम में एक से अधिक सी.पी. यू. होते हैं, अतः यह अधिक से अधिक कार्य को कम समय में करते हैं।
यह अधिक विश्वसनीय होते हैं, क्योंकि इसमें कार्य को कई सी. पी. यू. के मध्य बाँट दिया जाता है अतः ऐसी परिस्थिति में यदि एक सी. पी. यू. कार्य करना बंद कर दे तो उसका कार्य व अन्य सी. पी. यू. में बाँट दिया जाता है।
(4) बैच प्रोसेसिंग (Batch Processing)- प्रारम्भ में पंचकाई के प्रयोग से वैद्य प्रोसेसिंग द्वारा कार्य सम्पन्न होते थे। बैच प्रोसेसिंग में प्रोग्राम्स को एक बैच बनाकर क्रियान्वित किया जाता है। ऑपरेटिंग सिस्टम की यह तकनीक ऑटोमैटिक जॉब परिवर्तन के सिद्धान्त पर निर्भर है। यह सिद्धान्त अधिकांश ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा प्रदान किया जाता है। इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में प्रत्येक यूजर अपने प्रोग्राम्स को ऑफ लाइन तैयार करता है तथा कार्य पूरा हो जाने पर उसे डाटा प्रोसेसिंग सेन्टर पर जमा कर देता है। एक कम्प्यूटर ऑपरेटर उन सारे प्रोग्राम्स को एकत्र करता है जो कि एक कार्ड पर पंच रहते हैं। जब ऑपरेटर प्रोग्राम्स के बैच को एकत्रित कर लेता है तब वह उस बैच को कम्प्यूटर में लोड कर देता है तथा फिर उन प्रोग्राम्स को एक-एक करके क्रियान्वित किया जाता है। अतः वह आउटपुट को प्राप्त करता है। इसमें बहुत से अलग-अलग कार्य एक ही समय में एक-एक करके क्रियान्वित किये जाते हैं। जनगणना जैसे कार्यों में बैच प्रोसेसिंग का सिद्धान्त प्रयुक्त किया जाता है।
(5) टाईम शेयरिंग या मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग (Time Sharing Or Multitasking Operating System) – इस सिस्टम में कम्प्यूटर के रिसोर्स को विभिन्न प्रोग्राम्स को time के आधार पर बाँट दिया जाता है।
इसमें सी. पी. यू के द्वारा कई Job Execute किए जा सकते यू हैं। टाईम शेयरिंग में सी.पी.यू का समय सभी प्रोग्राम के बैच टाइम को बाँट दिया जाता है। ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा प्रत्येक यूजर को दिया जाने वाला समय slice कहलाता है। Time Slice 10 से 20 milisecond तक होता है। जैसे ही टाईम स्लाईस की अवधि समाप्त होती है। ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा सी.पी. यू अगले यूजर को दे दिया जाता है। यदि प्रोसेस दिए गए समय से अधिक समय लेती है तो उस प्रोसेस को बीच में रोककर प्रतीक्षा में रख दिया जाता है और उसे Secondary Memory में डाल दिया जाता है तथा पुनः जरूरत पर सी.पी.यू में ले लिया जाता है। यह प्रक्रिया Swaping (स्थानान्तरण) कहलाती है। सी.पी. यू. की पूरी कार्य क्षमता का उपयोग किया जाता है तथा कई यूजर को एक साथ कम्प्यूटिंग की सुविधा देता है।
(6) रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम (Real Time Operating System) – रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम में निर्धारित समय-सीमा का बहुत अधिक महत्व होता है तथा जॉब की प्रोसेसिंग इस निर्धारित समय सीमा में पूर्ण होनी चाहिए। ऐसा नहीं होने पर पूरा सिस्टम असफल होने की संभावना होती है। रियल टाइम सिस्टम का उपयोग ऐसी एप्लीकेशन में किया जाता है जहाँ डाटा इनपुट करने के साथ-साथ उस पर तुरन्त या निश्चित समय-सीमा के अन्दर परिणाम देने की आवश्यकता होती है। इस प्राप्त परिणाम के आधार पर ही सिस्टम अगला निर्णय लेता है जो सिस्टम द्वारा की जाने वाली अगली क्रिया के लिए इनपुट का कार्य करता है। समय सीमा के उपरान्त दिए गए निर्देश का इसमें कोई महत्व नहीं होता है। अतः रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम ऐसे स्थान पर उपयोग होता है, जहाँ कम्प्यूटर को डाटा इनपुट लेने के साथ ही निर्धारित समय सीमा के अन्दर प्रोसेसिंग करनी पड़ती है।
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम का मुख्य उद्देश्य उचित रिस्पॉन्स टाइम प्रदान करना होता है। इसमें प्रत्येक प्रोसेस को उसकी प्राथमिकता के आधार पर क्रियान्वित किया जाता है।
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम दो प्रकार के होते हैं:
- (i) हार्ड रियल टाइम सिस्टम:
- (ii) सॉफ्ट रियल टाइम सिस्टम।
(I) हार्ड रियल टाईम सिस्टम- हाई रियल टाईम सिस्टम ऐसा सिस्टम होता है जो इस बात की • गारंटी देता है कि जटिल कार्य अपने निर्धारित समय पर पूरे किये जाएंगे।
(ii) सॉफ्ट रियल टाईम सिस्टम – सॉफ्ट रियल टाईम सिस्टम ऐसा सिस्टम होता है। जिसमें रियल टाईम सिस्टम की बाधाएँ कम होती हैं। इसमें जटिल रियल टाईम टास्क को अन्य टास्क पर प्राथमिकता दी जाती है। इसकी उपयोगिता हार्ड रियल टाईम सिस्टम की तुलना में कम होती है।
(7) डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम (Distributed Operating System) – डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम होता है जिसमें कई सारे स्वतंत्र सी. पी. यू होते हैं। इसका उपयोग एक ही समय पर कई सी. पी. यू. पर प्रोग्राम रन करने के लिए किया जाता है। यूजर को प्रतीत होता है कि वह सिस्टम यूनी प्रोसेसर है, परन्तु कई प्रोसेसर (सी.पी.यू.) समान्तर रूप से प्रक्रिया करते हैं। इसमें सी.पी.यू. की उपयोगिता को बढ़ाने के लिए प्रोसेस की शेड्यूलिंग श्रेष्ठ होनी चाहिए। अतः अधिक जटिल शेड्यूलिंग एल्गोरिथ्म की आवश्यकता होती है। डिस्ट्रीब्यूटेड सिस्टम, यूनीप्रोसेसर सिस्टम की तुलना में अधिक विश्वसनीय होते है क्योंकि इसमें मल्टीपल प्रोसेसर होते हैं अतः यदि एक सी.पी.यू. कार्य करना बन्द कर दे तो उसका कार्य अन्य सी.पी. यू. सम्पन्न कर सकते हैं। यह उस स्थिति में भी अधिक कुशलता से कार्य करता है।
यह माइक्रोप्रोसेसर, मेनफ्रेम की तुलना में सस्ता और अधिक शक्तिशाली होता है। यह उचित विश्वसनीयता प्रदान करते हैं।
(8) नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम (Network Operating System) – नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम एक संगठित प्रोटोकॉल एवं सॉफ्टवेयर के स्टोरेज के लिए प्रयोग किया जाता है। एक नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम में भी मल्टीपल कम्प्यूटर्स व प्रोसेसर होते हैं। लेकिन यूजर मल्टीपल कम्प्यूटर्स के अस्तित्व के बारे में सजग रहते हैं और एक मशीन से दूसरी मशीन में फाईल की नकल करते हैं। यह डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम से भिन्न होता है। इसमें प्रत्येक कम्प्यूटर के स्वचालित भाग में पृथक् ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। प्रत्येक यूजर अपने सिस्टम पर कार्य करता है।
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