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किशोरावस्था किसे कहते हैं?
किशोरावस्था – बाल जीवन की यह अन्तिम अवस्था कही जा सकती है। यह अवस्था 14 वर्ष से प्रारम्भ होकर लगभग 21 वर्ष तक चलती है। इस अवस्था की प्रमुख दो विशेषताएं कामुकता और सामाजिकता है। इस अवस्था में बालक इन दोनों ही विशेषताओं की ओर आकर्षित होता है। कुछ विद्वानों ने इसे मानव जीवन की स्वर्णावस्था की संज्ञा दी है।
किशोरावस्था में बालक का शारीरिक विकास
1. वजन- इस अवस्था के दौरान बच्चे के विकास की गति पुनः तीव्र हो जाती है। इस अवस्था में बालकों के वजन में अभूतपूर्व वृद्धि होती है। लेकिन बालिकाओं का भार बालकों के भार से 25 पौण्ड कम ही रहता है। किशोरावस्था प्रारम्भ होने के समय बच्चों का वजन सामान्यतः 70 से 90 पौण्ड के बीच होता है।
2. लम्बाई- 12 वर्ष की आयु में सामान्यतः बच्चों की लम्बाई 55 इंच होती है। किशोरावस्था में बच्चों की लम्बाई की गति पुनः तीव्र हो जाती है और 18 से 20 वर्ष के बीच बच्चों की लम्बाई में पुनः कोई परिवर्तन नहीं आता क्योंकि इस समय वह अपनी पूर्ण लम्बाई को प्राप्त कर लेते हैं। यह भी देखा गया है कि 12 वर्ष में लड़कियों की लम्बाई लड़कों से अधिक होती है और 15 व 16 वर्ष की उम्र में दोनों की लम्बाई बराबर हो जाती है। 16 से 20-21 वर्ष की उम्र के बीच लड़कों की लम्बाई पुनः बढ़ती है और उनकी लम्बाई लड़कियों की तुलना में अधिक हो जाती है।
3. मस्तिष्क- किशोरावस्था में बालकों के सिर और मस्तिष्क का विकास जारी रहता है। 16 वर्ष की उम्र में बच्चों के सिर एवं मस्तिष्क 98 प्रतिशत वयस्कों के समान ही हो जाता है। मस्तिष्क का भार 1200 और 1400 ग्राम के बीच होता है। 22 वर्ष की उम्र तक बच्चों का मस्तिष्क पूर्णतः परिपक्व हो जाता है और उनका मस्तिष्क उनके शरीर की लम्बाई के दसवें भाग के बराबर हो जाता है।
4. दांत- किशोरावस्था में बालक-बालिकाओं के दांतों की संख्या 32 होती है और यह दांत पूर्णतः स्थायी हो जाते हैं। यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि लड़कियों के दांत लड़कों से पहले स्थायी होते हैं।
5 हड्डियां- शैशवावस्था की भांति बाल्यावस्था में भी बच्चों की अस्थियां कोमल ही रहती है। लेकिन किशोरावस्था में यह हड्डियां पूर्णतः सुदृढ़ हो जाती हैं। किशोरावस्था के अन्त तक हड्डियों की सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि लड़कियों की हड्डियां लड़कों से 2 वर्ष पहले ही सुदृढ़ हो जाती हैं।
6. अन्य तत्व- किशोरावस्था में मांसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता है।
16 वर्ष की आयु में मांसपेशियों का भार मानव शरीर के कुल भार का 44 प्रतिशत होता है। किशोरावस्था प्रारम्भ होते ही लड़के लड़कियों की जननेन्द्रियां परिपक्व तथा क्रियाशील होने लगती हैं। इस अवस्था में बालक-बालिकाओं के रंग रूप में भी परिवर्तन आने प्रारम्भ हो जाते हैं। इस उम्र में बच्चों की त्वचा पहले की अपेक्षा अधिक चिकनी एवं कोमल हो जाती हैं। लड़कों के कन्धे पर्याप्त चौड़े हो जाते हैं और लड़कियों के कूल्हे के पास की हड्डियों में चर्बी एकत्र होनी शुरू हो जाती है। मुंह पर मुहांसे निकलने प्रारम्भ हो जाते हैं, उनके बाल अधिक काले व घने हो जाते हैं यह सब लक्षण प्रौढ़ता की ओर बढ़ने की ओर संकेत करते हैं। इस प्रकार किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं का पूर्ण शारीरिक विकास हो जाता है और उनके सभी अंगों में परिपक्वता आ जाती है। प्रायः लड़कियों में यह परिपक्वता 14 वर्ष की आयु में लड़कों में 16 वर्ष की आयु में आती है।
किशोरावस्था में मानसिक विकास
वुडवर्थ का मानना है कि 15 से 20 वर्ष की आयु में बच्चे का मानसिक विकास अपनी उच्चतम सीमा तक पहुंच जाता है। संक्षेप में किशोरावस्था में बालक की जिन प्रमुख मानसिक शक्तियों का विकास होता है उनके विवरण हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. स्मृति- किसी भी व्यक्ति की स्मृति की क्षमता को उत्तेजना की तीव्रता, स्पष्टता एवं समय अथवा इससे सम्बन्धित भाव सुनिश्चित करते हैं। स्मृति को मानस का एक विशेष मानसिक गुण माना गया है। स्मृति भी दो प्रकार की होती है-प्रथम याद करने की शक्ति और दूसरी तार्किक स्मृति। पहली स्मृति से तात्पर्य किसी बात को ज्यों का त्यों दोहराना है जबकि तार्किक स्मृति से अभिप्राय विचारों को अर्थपूर्ण ढंग से अपने शब्दों में व्यक्त करना है। इन दोनों ही प्रकार की स्मृतियों का किशोरावस्था में विकास होता है।
2. कल्पना- किशोरावस्था में वह कल्पना एवं वास्तविकता दोनों के ही अन्तर को भली प्रकार समझ लेता है। किशोरावस्था में बालक की कल्पना शक्ति का बहुत विकास होता है और वे स्वतन्त्र कल्पनायें करने लगते हैं। ऐसा देखा गया है कि किशोरों की कल्पना शक्ति पर वातावरण तथा वंशानुक्रमण का प्रभाव पड़ता है। शिक्षक किशोरों के व्यवहार को नियन्त्रित करते हुए उनकी कल्पना शक्ति को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
3. एकाग्रता- इस अवस्था में बालक की एकाग्रता की शक्ति का विकास होता है। आम तौर से देखा गया है कि बाल्यावस्था की तुलना में किशोरावस्था में बालक की एकाग्रता की शक्ति बहुत अधिक विकसित हो जाती है। किशोरावस्था में बालक विभिन्न परिस्थितियों में अपने ध्यान को एक लक्ष्य पर केन्द्रित कर पाने में सक्षम हो जाते हैं।
4. तर्क-शक्ति- इस उम्र में बच्चों में जिज्ञासा तथा समस्याओं के समाधान के लिए बहुत उत्सुकता रहती है और यह उनकी तर्क शक्ति ही है जो इन समस्याओं के समाधान को सम्भव बना सकती है। इस उम्र में देखा गया है कि बालक की तर्क शक्ति का पूर्ण विकास हो जाता है और वह प्रत्येक विषय पर तर्क करता है। बिना तर्क के वह अपने माता-पिता एवं शिक्षकों के विचारों से सहमत होने को तैयार नहीं होता।
5. समस्या समाधान- किशोरावस्था में बालकों की तर्क एवं व्यवहारिकता के आधार पर समस्याओं का समाधान करने की क्षमता पूर्ण रूप से विकसित हो जाती है। वह सभी परिस्थितियों में वस्तुनिष्ठ ढंग से सोचने और व्यवहार करने के योग्य हो जाता है और इन्हीं के आधार पर विभिन्न समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास करता है।
किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास
किशोरावस्था में बालक के संवेगात्मक विकास को निस्न शीर्षकों में दर्शाया जा सकता है-
1. अस्थिरता- संवेगात्मक अस्थिरता किशोरावस्था की प्रमुख विशेषता है। किशोरावस्था में बालक की संवेगात्मक अस्थिरता का प्रमुख कारण उनका भावनाप्रधान होना है। इस अवस्था में बालकों के व्यवहार की भावनाएं बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। किशोरों में यह देखा गया है कि वह अचानक ही खुशी महसूस करते हैं और थोड़ी देर बाद ही वे अपने को उदासीन पाते हैं। इसका कारण यह है कि इस अवस्था में बालकों के शरीर में तीव्र शक्ति का संचार होता है और वह प्रत्येक कार्य को तुरन्त ही पूरा कर लेना चाहते हैं। किशोर आमतौर से विचार और निश्चय के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते।
2. संवेगों की तीव्रता – किशोरावस्था में बालकों के संवेगों की गति भी बहुत तीव्र होती है। क्रोध की स्थिति में वह अपने संवेगों को बहुत तीव्रता से प्रकट करते हैं और इसी प्रकार हर्ष की स्थिति में अपने संवेगों का प्रकाशन वे बहुत तीव्र गति से करते हैं।
3. संवेगों की विशिष्ट अभिव्यक्ति- किशोरावस्था में बालक-बालिकाएं अपने प्रत्येक संवेग की अभिव्यक्ति एक विशिष्ट प्रकार से करते हैं। इस अवस्था तक बालकों के कुछ संवेग जैसे-प्रेम, दया, क्रोध व सहानुभूति स्थायी रूप धारण कर लेते हैं और वह इन पर नियन्त्रण नहीं रख पाते। इसी कारण उनमें दुखी व्यक्ति के प्रति सहानुभूति तथा बुरे व्यक्ति के प्रति क्रोध के संवेग अति विशिष्टता के साथ प्रकट होते हैं।
4. आत्म सम्मान- इस उम्र में बालकों में आत्मसम्मान की भावना बहुत तीव्र होती है। वह यह नहीं चाहते कि अभी भी उनसे बड़े लोग उन्हें बच्चा ही समझ कर व्यवहार करें। इस उम्र में उनमें आत्म सम्मान की भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है और जो लोग उनके प्रति सम्मान का प्रदर्शन नहीं करते, उनके प्रति घृणा एवं द्वेष की भावना उनमें जन्म लेती है।
5. आदर्शवादी दृष्टिकोण इस अवस्था में बालक- बालिकाओं के विचार बहुत आदर्शवादी होते हैं और वे बड़े-बड़े राजनेताओं, धर्मगुरुओं, समाज-सेवकों आदि से प्रेरणा लेते हैं और उसी के अनुरूप कार्य करने का प्रयास करते हैं। कभी-कभी यह भी देखा गया है कि यदि किशोरों को अपने इन आदर्शों को पाने में सफलता नहीं मिलती तो वे पलायनवादी हो जाते हैं। उनमें घोर निराशा का जन्म होता है।
6. काम प्रवृत्ति- किशोरावस्था में काम प्रवृत्ति अपनी चरम सीमा तक पहुंच जाती है और बालक-बालिकाओं के व्यवहार पर इसका प्रभाव पड़ता है। रॉस का मानना है कि इस अवस्था में किशोरों में काम भावना का विकास तीन रूपों में होता है। (1) स्व प्रेम, (2) समान लिंगी प्रेम, (3) विषम लिंगी प्रेम। स्व-प्रेम के अन्तर्गत वह अपने शरीर को सुन्दर एवं आकर्षक बनाने का प्रयास करता है और हमेशा इसके प्रति सतर्क एवं सजग रहता है। समान लिंगी प्रेम के अन्तर्गत वे अपने साथियों के बीच आकर्षक दिखने का प्रयास करता है और अपने ही यौन के साथियों के साथ मित्रता करता है। विषम लिंगी प्रेम के अन्तर्गत लड़के लड़कियों के प्रति और लड़कियां लड़कों के प्रति स्वाभाविक रूप से आकर्षित होते हैं।
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