किशोरों की प्रमुख समस्याएँ का वर्णन कीजिये।
किशोरावस्था में होने वाले आश्चर्यजनक शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक एवं सामाजिक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप किशोरों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सामान्यतया किशोरावस्था की महत्वपूर्ण विशेषताएं ही उनके लिए समस्या होती हैं। इस दृष्टि से किशोरों की समस्याओं को निस्नवत् सूचीबद्ध किया जा सकता है-
1. अस्थिरता की समस्या- किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक, मानसिक एवं सांवेगिक परिवर्तनों के कारण किशोरों में अस्थिरता पायी जाती है। इससे उनमें अनिश्चय, अनिर्णय एवं अंतविरोध की भावना विकसित होने लगती है।
2. समायोजन की समस्या- इस अवस्था में किशोर के सम्मुख समायोजन की विकट समस्या होती है। वह दूसरों की इच्छाओं, सुझावों, आदेशों को मानने की अपेक्षा स्वयं अपने स्वतन्त्र विचारों एवं निर्णयों को अधिक महत्व देना चाहता है। वह अपने अनुसार जीवन मूल्यों एवं आदर्शों का निर्माण करना चाहता है। किन्तु उसके एवं परिवार के बड़े लोगों के मूल्यों एवं आदर्शों में भिन्नता होती है। इस कारण उसके सम्मुख समायोजन की समस्या उत्पन्न हो जाती है। समायोजन न हो पाने के परिणामस्वरूप किशोरों में प्रायः आक्रामक एवं अपराधी प्रवृत्ति भी विकसित हो जाती है।
3. हीन भावना की समस्या- किशोरों का बौद्धिक स्तर छोटे बालकों से ऊंचा होता है, अतः वे उनके साथ रहना पसन्द नहीं करते हैं। किशोर प्रायः वयस्कों के समान कार्य करना अथवा प्रदर्शन करना चाहते हैं। इसलिए वे वयस्कों के साथ रहना चाहते हैं। किन्तु वयस्क लोग किशोरों को भी छोटा बच्चा समझते हैं तथा उनसे उसी तरह का व्यवहार करते हैं। इससे किशोरों में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है। मानसिक हीनता से पीड़ित किशोर-किशोरियां अनेक समस्याओं से ग्रसित हो जाते हैं।
4. काम प्रवृत्ति सम्बन्धी समस्या- किशोरावस्था तक जननेन्द्रियों का पर्याप्त विकास हो चुका होता है तथा किशोर-किशोरियों में काम-शक्ति की प्रबलता होती है। इस काल में किशोर-किशोरियों में काम सम्बन्धी बातों को जानने की बहुत जिज्ञासा भी होती है किन्तु भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में काम सम्बन्धी बातों की चर्चा का केवल अवसर ही नहीं मिल पाता है, अपितु इस प्रवृत्ति का दमन भी किया जाता है। घर-परिवार में किशोरों की काम- सम्बन्धी जिज्ञासाओं का समाधान न हो पाने की स्थिति में वे अन्य साधनों से इनकी जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं जैसे-मित्रों के बीच में कामुक चर्चाएं करना, अश्लील साहित्य पढ़ना, कामुक एवं नग्न चित्रों को देखना, पशुओं की मैथुन सम्बन्धी क्रियाओं को ध्यान से देखना तथा उस पर चर्चा करना, हस्तमैथुन से आनन्दित होना आदि। इन साधनों से उन्हें काम- सम्बन्धी बातों की अधूरी एवं गलत जानकारियां भी मिलती हैं जिससे उनके सम्मुख अन्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। विषमलिंगी के साथ असमय यौन सम्पर्क में आने से अनेक वैयक्तिक एवं सामाजिक समस्याएं भी खड़ी हो जाती हैं।
5. संवेगात्मक समस्याएं- किशोरावस्था में संवेगों एवं आवेगों में बहुत अधिक परिवर्तनशीलता होती है। छोटी-छोटी बातों में किशोर-किशोरियों का अहम् टकराता है तथा उनके अन्दर तूफान उठने लगता है। इस कारण वे प्रायः विरोधी व्यवहार करने लगते हैं। शारीरिक एवं सांवेगिक परिवर्तनों से उनमें क्रोध, घृणा, चिड़चिड़ापन, उदसीनता आदि जैसे दुगुर्गों का प्रादुर्भाव हो जाता है।
6. स्वतन्त्रता आत्मसम्मान एवं आत्म प्रदर्शन की समस्या- किशोर स्वभावतः स्वतन्त्रता प्रेमी होता है जबकि परिवार के बड़े सदस्य उससे आज्ञापालन की अपेक्षा रखते हैं। इस कारण वह मानसिक द्वन्द्व एवं दुविधा की स्थिति में रहता है। स्वतन्त्रता में बाधा पड़ने से उसमें विरोधी प्रवृत्ति भी प्रबल होती हैं। वे अपनी शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों का प्रदर्शन करना चाहते हैं किन्तु घर, परिवार एवं विद्यालय में जब उन्हें उचित प्रदर्शन का अवसर नहीं मिल पाता तब वे अपनी शक्तियों का प्रदर्शन उद्दण्डता, कठोरता, पशु-पक्षियों के प्रति निष्ठुर व्यवहार, अनायास दूसरों को सताने या परेशान करने आदि रूपों में करते हैं। स्वतन्त्रता के साथ-साथ किशोरों में आत्मसम्मान की भावना भी प्रबल होती है। उनके स्वाभिमान को चोट पहुंचने पर उन्हें बहुत ठेस पहुंचती है।
7. भावी जीवन से सम्बन्धित समस्यायें- किशोरावस्था में किशोर एवं किशोरियों में भावी जीवन के प्रति अधिक चेतना आ जाती है। वे अपने भविष्य के प्रति प्रायः चिन्तित रहते हैं तथा उन्हें आगे आने वाली अनेक समस्याएं भी परेशान करने लगती हैं। किशोर के भावी जीवन से सम्बन्धित कुछ प्रमुख समस्यायें इस प्रकार की होती हैं-
जीवन के प्रति निश्चित दृष्टिकोण का विकास करना।
जीवन साथी का चुनाव।
नये साथियों से सम्बन्ध स्थापित करना।
योग्य एवं कुशल नागरिक के रूप में स्थापित होना।
अपनी रुचि के अनुरूप एवं इच्छा अनुसार कार्य करना।
स्वतन्त्र जीवन यापन की इच्छा।
भावी जीवन हेतु व्यवसाय का चयन।
उच्च शिक्षा प्राप्त करना।
अर्थोपार्जन।
8. नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक मान्यताओं की समस्या – भारतीय समाज में किशोरों से नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप कार्य एवं व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। समाज में व्यक्तियों के कार्य एवं व्यवहार के लिए कुछ निश्चित मानदण्ड होते हैं। ये मानदण्ड किशोरों के स्वतन्त्र जीवन यापन के बाधक होते हैं। ये मूल्य एवं मान्यताएं उन्हें अखरती हैं, अतः कभी-कभी वे इनके विरोधी हो जाते हैं तथा सामाजिक विद्रोह कर बैठते हैं। समाज विरोधी कार्य करने के कारण उन्हें परिवार या समाज से बहिष्कृत भी कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में वे अपराधी प्रवृत्ति के हो जाते हैं।
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