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कीटाणुओं द्वारा फैलाये जाने वाले रोग | DISEASES SPREAD BY INSECTS

कीटाणुओं द्वारा फैलाये जाने वाले रोग | DISEASES SPREAD BY INSECTS
कीटाणुओं द्वारा फैलाये जाने वाले रोग | DISEASES SPREAD BY INSECTS

कीटाणुओं द्वारा फैलाये जाने वाले रोग | DISEASES SPREAD BY INSECTS

कीटाणुओं द्वारा फैलाये जाने वाले तथा उनके काटने से उत्पन्न होने वाले रोगों का पृथक्-पृथक् विवेचन नीचे दिया जा रहा है-

मलेरिया

‘Malaria’ शब्द की उत्पत्ति दो इटालियन शब्दों ‘mal’ तथा ‘aria’ मानी जाती है। ‘mal’ शब्द का अर्थ है—’बुरा’ और ‘aria’ का अर्थ है ‘हवा’। इस प्रकार मलेरिया का अर्थ है-बुरी हवा इस नाम को बीमारी से जोड़ दिया गया था क्योंकि उनका अर्थ था कि यह बीमारी दलदली जगहों में उत्पन्न विषैले गन्ध को साँस द्वारा खींचने से होती है। सन् 1763 ई. तक यह धारणा बनी रही।

मलेरिया प्राचीन काल से प्रचलित है। 442 ई. पू. में हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) ने इसका वर्णन किया था। इस बीमारी के परिणामस्वरूप बहुत से साम्राज्यों को पतन का मुख देखना पड़ा। भारत में भी इस बीमारी से बड़ी हानि हुई। इसके फलस्वरूप लाखों व्यक्तियों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा। साथ ही इसने लोगों की कार्यक्षमता को कम कर दिया। इसके फलस्वरूप प्रजातियों का भी ह्रास हुआ। सन् 1903 को मलेरिया महामारी ने अकेले भारत में 3 लाख लोगों की जान ली। सन् 1935 में पुनः भारत में कई करोड व्यक्ति मलेरिया के शिकार हुए। सन् 1947 में 7.5 करोड़ व्यक्ति इसके शिकार बने। इसके बाद भारत के कर्णधारों ने मलेरिया को नियन्त्रित करने के लिए कदम उठाये। सन् 1953 ई. में भारत सरकार ने राष्ट्रीय मलेरिया नियन्त्रण कार्यक्रम चालू किया। इसमें उसको आशातीत सफलता मिली सफलता से प्रोत्साहित होकर सन् 1958 में इस कार्यक्रम को राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम में बदल दिया गया। यह कार्यक्रम अब भी चालू है।

भारत में मलेरिया क्षेत्र- भारत में मलेरिया क्षेत्र छोटा नागपुर, संथाल परगना, दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरनगर, नेपाल की तराई तथा बेतिया हैं। इन क्षेत्रों में मलेरिया उच्च स्तर पर फैलता है। पंजाब, मद्रास (चेन्नई), हिमाचल प्रदेश, आदि क्षेत्रों में मलेरिया का प्रकोप कम रहता है।

रोग संक्रमण- मलेरिया परजीवी (Parasite), प्रोटोजोआ (Protozoa) होता है जिसे मलेरिया का प्लाज्मोडियम (Plasmodium of Malaria) कहा जाता है। मनुष्य मलेरिया का संक्रमण मादा एनोफिलीज (Anopheles) के काटने से प्राप्त करता है। यह स्पोरों (Spores) के रूप में मलेरिया परजीवियों को मनुष्य के शरीर में पहुँचा देता है।

उद्भवन काल (Incubation Period) प्लाज्मोडियम मलेरिया में उद्भवन काल 30 दिन, प्लाज्मोडियम फाल्सीपैरम में 12 दिन, प्लाज्मोडियम वाईवेक्स में 14 दिन होता है। यह काल उस दिन प्रारम्भ होता है जब मादा एनोफिलीज मनुष्य को काटता है और तब तक रहता है जब तक लक्षण स्पष्ट नहीं हो जाते हैं।

लक्षण (Symptoms) मलेरिया में ज्वर अचानक आता है। इससे बेचैनी बहुत होती है। इस रोग की प्रमुख अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-

(अ) ठण्ड की अवस्था (Cold Stage)- इस अवस्था में रोगी कैंपकैंपी या ठण्ड का अनुभव करता है। ज्वर की तीव्रता के बावजूद रोगी के दाँत ठण्ड के कारण कटकटाने लगते हैं। इसमें रोगी के सिर या शरीर के जोड़ों में दर्द होता है। यह अवस्था 20 मिनट से 3 घण्टे तक रहती है।

(ब) ज्वर की अवस्था (Hot Stage) घण्टे या दो घण्टे के बाद रोगी गर्मी का अनुभव करने लगता है। साथ ही सिर और शरीर में दर्द की तीव्रता का अनुभव करता है। इसमें ज्वर 106° फा. तक पहुँच जाता है। यह 1 से 8 घण्टे तक रह सकता है।

(स) पसीने की अवस्था (Sweating’s Stage)—इस अवस्था में रोगी को जोरों से पसीना आता है, इससे वह आराम का अनुभव करता है। साथ ही ज्वर सामान्य स्थिति में आ जाता है।

(द) ज्वर मुक्तता (Apyrexial Period) इस अवस्था में रोगी ज्वर मुक्त हो जाता है। ज्वर मुक्ति काल मलेरिया की जाति पर निर्भर रहता है।

मलेरिया के निवारण एवं नियन्त्रण की विधियाँ (Method of Prevention and Control of Malaria)-इन विधियों को निम्नलिखित समूहों में बाँटा जा सकता है–

(A) उन परिस्थितियों को दूर करना जिनमें मच्छरों की उत्पत्ति होती है-इस सम्बन्ध में निम्नलिखित उपायों को काम में लाया जा सकता है-

(i) पानी के निष्कासन के लिए ड्रेन तंग तथा गहरे होने चाहिए। छोटे स्तर पर नगर के चारों ओर ड्रेन प्रदान किये जाने चाहिए जिससे घरों के पास गड्ढों में पानी एकत्रित न हो सके। नगर के निम्न स्तर के स्थानों तथा छोटे-छोटे तालाबों को भर देना चाहिए।

(ii) सड़कों तथा रेलवे लाइन के किनारों पर छोटे-छोटे गड्ढों को दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि इन गड्ढों में पानी रुककर मच्छर उत्पन्न कर सकता है।

(iii) सिंचाई की नालियों को रिसने से बचाया जाए। इसके लिए उनको सुरक्षा रखना परमावश्यक है।

(B) मच्छरों को लारवा (Larva) या वयस्क स्तर पर नष्ट करना- इसके लिए हम निम्नलिखित उपायों को काम में ला सकते हैं-

(i) मलेरिया तेल, मिट्टी का तेल, डीजल, आदि का छिड़काव- लारवा को नष्ट करने के लिए प्रति सप्ताह इन तेलों में से किसी का छिड़काव किया जाना चाहिए। यह छिड़काव पानी की सतह पर होना चाहिए। 30 वर्ग फीट स्थान पर छिड़काव के लिए 2 औंस मिट्टी का तेल पर्याप्त है।

(ii) डी. डी. टी. (Dichloro Dipheny Tricoloro Ethane) – यह सफेद पाउडर है। यह लावा नाशक है। वह कम मात्रा में भी प्रभावकारी रहता है। इसको 5 से 10 प्रतिशत आयली घोलों में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। यदि इसको पाउडर के रूप में ही प्रयुक्त किया जाए तो यह 10% का होना चाहिए।

(iii) गैमेक्सीन (Gammexene) तर फसलों को जैसे चावल के खेतों में उत्पन्न लारवा को नष्ट करने में गैमेक्सीन का प्रयोग लाभप्रद है। इसकी मात्रा 2 औंस प्रति गैलन जल में होती है। इस प्रकार का 15 गैलन घोल एक एकड़ भूमि के लिए पर्याप्त होता है।

वयस्क स्तर पर मच्छरों को मारने के लिए निम्नलिखित उपायों को काम में लाया जा सकता है-

(i) डी. डी. टी. (D.D.T.) यह कीटनाशी है। इसकी मात्रा 100 से 200 मिली ग्राम प्रति वर्ग फीट होती है। इसको निम्नलिखित रूपों में प्रयुक्त किया जा सकता है–

(अ) डी. डी. टी. एरोमेक्स इमलसन (D.D.T. Aromax Emulsion)- यह मिश्रण 25% D.D.T. का घोल है। इसको हल्का करने के लिए 1 : 10 के अनुपात में पानी मिलाया जाए। इस प्रकार D.D.T.. 2-5% की हो जायेगी और इस प्रतिशत की D.D.T. के घोल का स्टिर पम्प से छिड़काव करा देना चाहिए।

(ब) 5% डी. डी. टी. युक्त मिट्टी के तेल का घोल (5% D.D.T. Kerosene Oil Solution )- डी. डी. टी. तथा मिट्टी के तेल के मिश्रण से 5% डी. डी. टी. युक्त मिट्टी के तेल का घोल बन जाता है। इसके छिड़काव से वयस्क मच्छरों को नष्ट किया जा सकता है।

(C) मच्छरों को मनुष्यों को काटने से रोकना- इसके लिए निम्नलिखित उपायों को काम में लाया जा सकता है-

(i) भवन या मकान में सोने तथा रहने के कमरों के दरवाजों तथा खिड़कियों पर मच्छरों को रोकने के लिए जाली लगवा देनी चाहिए।

(ii) व्यक्ति को मच्छरदानी लगाकर सोना चाहिए।

(iii) मच्छरों के काटने से बचने के लिए उपयुक्त वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। ये वस्त्र मच्छर रोध (Mosquito-Proof) होने चाहिए।

(D) मच्छरों को भगाने वाले या निवारक (Culicifuges or Repellents) मच्छरों को भगाने के लिए विभिन्न प्रकार के तेलों, मरहम, आदि का प्रयोग किया जा सकता है। इनका प्रयोग शरीर के उन भागों पर करना चाहिए जो बिना ढँके रहें। इन तेलों की गन्ध मच्छरों को भगाने में सहायक होती है। इनमें डी. एम. पी. (Dimethylphthalate), चन्दन की लकड़ी का तेल, निम्बुको तेल (Citronella Oil), आदि निवारक प्रमुख हैं। निम्नलिखित का घोल सामान्यतः मच्छरों को भगाने में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ है-

(i) मिट्टी का तेल – 1 भाग

(ii) नारियल का तेल – 2 भाग

(iii) निम्बुकी तेल – 1 प्रतिशत

(iv) कार्बोलिक एसिड – 1 प्रतिशत

(v) पंखे (बिजली का या हाथ का पंखा) मच्छरों को भगाने के सर्वोत्तम साधन हैं।

एण्टी-पैरासाइटिक उपाय (Anti-Parasitic Measures) मलेरिया विरोधी दवाइयाँ (Drugs) दो उद्देश्यों से प्रयोग में लायी जाती हैं—(1) रोग को रोकने के उद्देश्य से, तथा (2) रोग हरने या उपचारी दृष्टिकोण से। इन दोनों उद्देश्य से दी जाने वाली दवाइयाँ तथा उनकी मात्राओं का पृथक्-पृथक् विवेचन नीचे किया जा रहा है-

(अ) रोग को रोकने की दृष्टि से (Prophylactic)— इस समय रोग-निरोध की दृष्टि से ऐसी कोई दवा नहीं है जो मलेरिया की छूत को पूर्णतः रोक सके। परन्तु रोग के लक्षणों को कुछ समय तक दबाने के लिए निम्नलिखित दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है-

कुनैन– इसको दो ढंगों से प्रयुक्त किया जा सकता है-

मात्रा – प्रयोग

10 से 15 ग्रेन – सप्ताह में लगातार दो दिन

5 से 7 ग्रेन – प्रतिदिन

इसको रात्रि के समय दिया जाना चाहिए जिससे दवा रात में खून में संचरित हो सके। रात्रि के समय मादा-एनोफिलीज अधिक सक्रिय होते हैं और स्पोरों को छोड़ते हैं। अतः रात्रि के समय कुनैन का प्रयोग लाभप्रद होता है। यदि रोगी को सोडियम बाइकार्बोनेट की एक खुराक कुनैन के प्रयोग से पूर्व दी जाए तो कुनैन अधिक प्रभावकारी सिद्ध होगी।

(ब) उपचारी दृष्टि से (Curative) रोग हरने या उपचार के उद्देश्य से निम्नलिखित दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है-

(1) कुनैन—यह बाजार में उपलब्ध सबसे उत्तम दवा है। कुनैन कई रूपों में प्राप्त है परन्तु कुनैन सल्फेट सबसे सस्ती है। कुनैन का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-

(i) मौखिक (Oral) कुनैन सल्फेट एसिड मिक्चर है और कुनैन बाइहाइड्रोक्लोर टिक्की में प्राप्त है। 600 मिलीग्राम या 10 ग्रेन कुनैन 2 या 3 बार प्रतिदिन दी जानी चाहिए। जब तापक्रम कम हो जाए तब 10 ग्रेन प्रतिदिन 7 दिन तक दी जानी चाहिए। स्वास्थ्य लाभ काल में रोगी को आयरन तथा आरसैनिक दिया जाना चाहिए।

(ii) इन्ट्रावीनस इन्जेक्शन (Intravenous Injection)-10 ग्रेन कुनैन बाइ-हाइड्रोक्लोर को 10 सी. सी. नमक के पानी में मिलाकर धीरे-धीरे रोगी के शरीर में इन्जेक्शन द्वारा पहुँचाया जाना चाहिए। इसकी 2 या 3 बार दिन में पुनरावृत्ति की जा सकती है।

(iii) इण्ट्रामसक्युलर इन्जेक्शन (Intramascular Injection)-10 ग्रेन कुनैन बाइ- हाइड्रोक्लोर को 3. सी. सी. शुद्ध नमकीन जल (Steriel Saline) में मिलाकर पुढे की माँसपेशियों में इन्जेक्शन द्वारा पहुँचाया जाए।

(2) क्लोरोक्वीन (Chloroquine)—इसको रेसोचिन (Resochine) या एरालिन (Aralen) भी कहा जाता है। इसकी 5 ग्राम की दो टिकियाँ पहले दिन और बाद में दो दिन तक एक-एक टिकिया देनी चाहिए।

(3) केमाक्वीन (Camaquine)- इसकी दो ग्राम की टिकिया प्रयोग में लायी जाती है। केमाक्वीन की खुराक 3 टिकिया या 6 ग्राम होनी चाहिए।

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Anjali Yadav

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