B.Ed Notes

कोहलर के सूझ एवं अन्तर्दृष्टि के सिद्धान्त in hindi

कोहलर के सूझ एवं अन्तर्दृष्टि के सिद्धान्त in hindi
कोहलर के सूझ एवं अन्तर्दृष्टि के सिद्धान्त in hindi

कोहलर के सूझ एवं अन्तर्दृष्टि के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। 

सूझ का सिद्धान्त- सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त गेस्टाल्ट के सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जर्मनी के गेस्टाल्टवादियों ने किया। गेस्टाल्टवादी एक मनोवैज्ञानिक विचारधारा से जुड़े हुए मनोवैज्ञानिक थे। इन मनोवैज्ञानिकों के प्रमुख नाम थे- मैक्स, वर्देमियर, कुटकोफका, वोल्फगैंग कोहलर। इन मनोवैज्ञानिकों ने भूल और प्रयास तथा अनुबन्धित अनुक्रिया सिद्धान्त की आलोचना करते हुए अन्तर्दृष्टि के द्वारा सीखने के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया। सूझ द्वारा सीखने का यह सिद्धान्त एक मनोवैज्ञानिक धारणा है। इस सिद्धान्त को समझने से पूर्व सूझ या अन्तर्दृष्टि को समझना आवश्यक होगा। एन्डरसन के अनुसार, “अन्तर्दृष्टि का अर्थ समाधान को एकाएक पकड़ लेना है।” गुड महोदय ने सूझ को परिभाषित करते हुए कहा कि “सूझ वास्तविक स्थिति का आकस्मिक, निश्चित और तत्कालिक ज्ञान है।” अन्तर्दृष्टि को समझने के लिए शब्द को समझना आवश्यक है। शब्द जर्मन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ किसी वस्तु या अनुभव में निहित समग्रता से है। सीखने के इस सिद्धान्त का
सार यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने सीखने की प्रक्रिया को उत्तम स्वरूप प्रदान करने के लिए अपने प्रयत्नों को संगठित करने की दिशा में क्रियाशील रहता है।

इस नियम के अनुसार मानव पहले परिस्थितियों का पूर्ण अवलोकन करता है, उसके बारे में सोचता है और फिर क्रियाओं के माध्यम से उसे सीखने का प्रयास करता है। कोई भी प्राणी जब किसी नवीन वातावरण में आता है तो उसका सम्बन्ध विभिन्न तत्त्वों के साथ स्थापित होता है। वह वातावरण को भली-भांति समझता है और फिर उसी के अनुरूप प्रतिक्रिया करता है। वातावरण को समझना उसकी सूझ-बूझ पर निर्भर करता है। सूझ-बूझ का यह सिद्धान्त पशुओं की तुलना में मानवों पर अधिक लागू होता है। इस सिद्धान्त को सिद्ध करने के लिए कोहलर महोदय ने चिम्पांज़ियों पर परीक्षण किया। उसने एक चिम्पांजी को पिंजड़े में बन्द कर दिया और कुछ दूरी पर पिंजड़े से बाहर केले टांग दिये। पिंजड़े में दो बांस भी डाल दिये गये। केले पिंजड़े से इतनी दूरी पर थे कि चिम्पांजी के हाथ वहाँ तक नहीं पहुँच पा रहे थे। चिम्पांजी ने जब देखा कि उसके हाथ केलों तक नहीं पहुँच पा रहे हैं तो उसने एक डंडे के सहारे केलों तक पहुँचने का प्रयास किया। लेकिन चिम्पांज़ी को जब उसमें सफलता नहीं मिली तो वह कुछ सोचता रहा कुछ देर बाद उसने दोनों डंडों को आपस में जोड़ा और उनकी सहायता से उसने केलों को पिंजड़े में खींच कर खा लिया। सूझ-बूझ के सिद्धान्त में बुद्धि का होना आवश्यक है। यह परीक्षण चिम्पांज़ी पर इसीलिए किया गया क्योंकि चिम्पांजी में थोड़ी बहुत बुद्धि होती है। उसने अपनी सूझ-बूझ का इस्तेमाल कर केलों को खाने में सफलता प्राप्त की।

इस प्रयोग से कोहलर ने निष्कर्ष निकाला कि सीखने के लिए यह आवश्यक है कि कार्य क्षेत्र का संगठन किया जाये तथा क्षेत्रीय वस्तुओं के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट किया जाये। इस प्रयोग से कोहलर ने यह भी सिद्ध करने का प्रयास किया कि चिम्पांजी द्वारा सीखने की इस प्रक्रिया में न तो भूल और प्रयास के सिद्धान्त और न ही अभ्यास के सिद्धान्त के अनुसार- व्यवहार में किसी प्रकार का अनुबन्धन ही था। कोहलर ने भूल और प्रयास के सिद्धान्त तथा सम्बन्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त की आलोचना की। उसने अपने प्रयोगों के आधार पर सिद्ध किया कि चिम्पांजी ने अन्तर्दृष्टि के द्वारा सीखा।

कोहलर ने अपनी बात को पुष्ट करने के लिए एक प्रयोग और किया। इस प्रयोग में उसने छः चिम्पांज़ियों को एक कमरे में बन्द कर दिया और कमरे की छत से एक केला लटका दिया। केला इतनी ऊंचाई पर लटकाया गया कि चिम्पांज़ियों का हाथ केले तक न पहुँच सके। कमरे में एक बक्सा भी रखा हुआ था। चिम्पांज़ियों ने उछल कर केला खाने का प्रयास किया, लेकिन सफल न हो सके। इनमें से एक चिम्पांज़ी जिसका नाम सुल्तान था ने इधर-उधर देखा और फिर बक्से को खिसका कर वह उस पर खड़ा हो गया और केला तोड़ कर खा गया। कोहलर ने अपने इस प्रयोग में सिद्ध किया कि यह सुल्तान चिम्पांजी की सूझ-बूझ ही थी जिसके कारण उसने केला खाने में सफलता पायी। स्पष्ट है पशु या मानव अपनी मानसिक सूझ-बूझ का इस्तेमाल कर सीखने की प्रक्रिया को पूर्ण करता है, ऐसी स्थिति में सूझ का सीखने का सिद्धान्त लागू हो जाता है।

विशेषताएँ – कोहलर ने सूझ शब्द का प्रयोग सीखने वाले के द्वारा सम्पूर्ण परिस्थिति के प्रत्यक्षीकरण तथा उचित सम्बन्धों के प्रति अनुक्रिया करने में बुद्धि का उपयोग करने के लिए किया था। गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिकों के अनुसार सीखने की प्रक्रिया तथा सूझ की मुख्य विशेषताएँ निम्नवत् ढंग से सूचीबद्ध की जा सकती है-

  1. सीखने की प्रकृति संज्ञानात्मक होती है।
  2. सीखना धीरे-धीरे न होकर अचानक होता है।
  3. सीखने की प्रकृत्ति लगभग स्थायी होती है।
  4. सीखने की प्रक्रिया यन्त्रवत् नहीं होती है।
  5. सीखने में संज्ञानात्मक स्तर पर संरचनाएं बनने की प्रक्रिया होती रहती है।
  6. सीखने की प्रक्रिया में प्राप्त सूझ अचानक व स्वफूर्त होती है।
  7. सूझ द्वारा किये अधिगम में प्राणी का प्रारम्भिक व्यवहार अन्वेषणात्मक प्रकृति का होता है।
  8. सूझ के लिए समस्यात्मक परिस्थिति का होना आवश्यक है।
  9. सूझ वस्तुतः प्राणी के लक्ष्य तथा समाधान के बीच एक स्पष्ट सम्बन्ध की सूचक होती है।

यद्यपि कोहलर ने सूझ द्वारा हुए अधिगम को अचानक प्राप्त “आह अनुभव” अथवा “प्रकाश की किरण” के रूप में समझने का प्रयास किया, फिर भी प्रयोगों ने सिद्ध कर दिया कि सूझ अनेक कारकों जैसे बुद्धि, अनुभव, परिस्थिति, प्रारम्भिक प्रयास तथा पुनरावृत्ति व सामान्यीकरण आदि पर निर्भर करती है। समस्याओं का समाधान सूझपूर्ण ढंग से करने में प्राणी की बुद्धि का सकारात्मक योगदान होता है।

गुण- इस सिद्धान्त के कुछ प्रमुख गुण हैं-

  1. यह सिद्धान्त व्यवहारिक समस्याओं के हल में बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।
  2. केवल जानवर ही नहीं बल्कि मानव भी इस सिद्धान्त के अनुसार बहुत कुछ सीखता है।
  3. रचनात्मक कार्यों को सीखने में यह सिद्धान्त बहुत उपयोगी है।
  4. इस सिद्धान्त से बालकों का मानसिक विकास तथा तर्क एवं कल्पनाशक्ति में वृद्धि होती है।
  5. यह सिद्धान्त यह भी प्रतिपादित करता है कि बिना सूझ-बूझ के किसी भी समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता।
  6. यह सिद्धान्त गणित एवं साहित्य की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
  7. इस सिद्धान्त द्वारा सीखने से बालक स्वयं की खोज की ओर अग्रसर होता है।
  8. बालक की मानसिक शक्तियों का विकास इस सिद्धान्त द्वारा सीखने से होता है।

शिक्षा के क्षेत्र में सूझ के सिद्धान्त का विशेष महत्व है। । इस सिद्धान्त का विशेष महत्व बुद्धिमान पशुओं और मनुष्यों के सीखने की प्रक्रिया में दिखायी देता है। जब तक सम्पूर्ण परिस्थति के बारे में सूझ-बूझ नहीं होगी तब तक सीखना सम्भव नहीं हो पायेगा। अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखने के लिए बौद्धिक योग्यता का होना आवश्यक है। ऐसा देखा गया है कि मन्द बुद्धि बालक भूल और प्रयास, पुनर्बलन के सिद्धान्तों द्वारा सीखते हैं जबकि योग्य विद्यार्थी सूझ के सिद्धान्त का सहारा अधिक लेते हैं। शिक्षक के लिए सीखने का यह सिद्धान्त विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। गणित एवं विज्ञान जैसे कठिन विषयों के लिए सीखने का यह सिद्धान्त बहुत महत्वपूर्ण है। अतः अध्यापक का यह प्रयास होना चाहिए कि वह छात्रों की अविकसित सूझ-बूझ को विकसित करने का प्रयास करे ताकि वह विज्ञान और गणित जैसे कठिन किन्तु उपयोगी विषयों में भी सफलता प्राप्त कर सके। इस सिद्धान्त में पूर्व अनुभवों का विशेष महत्व होता है और समस्याओं का हल करते समय पूर्व के अनुभव बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। शिक्षक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों को पूर्व अनुभवों को सुसंगठित करने में सहायता प्रदान करें ताकि वे सीखने के सूझ के सिद्धान्त का यथासम्भव लाभ उठा सकें।

Important Link…

Disclaimer:  Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide Notes already available on the Book and internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment