क्रियात्मक कार्यक्रम 1992 (Programme of Action POA 1992) का वर्णन कीजिए।
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क्रियात्मक कार्यक्रम 1992 (Programme of Action, 1992)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के पुनरीक्षण के बाद जनार्दन रेड्डी समिति प्रतिवेदन (1992) के आधार पर मई 1992 में नीति पर क्रियात्मक कार्यक्रम को प्रस्तुत किया। 1986 के एक वर्ष पश्चात एक केन्द्र साहित्य अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम स्थापित किया गया और 1986-89 में 17.62 लाख अध्यापक प्रशिक्षित किये गये। इनमें से सत्तर प्रतिशत प्राथमिक और शेष उच्च प्राथमिक और माध्यमिक अध्यापक थे। दस दिवसीय कैम्प के माध्यम से यह दिशा-निर्देशन कार्यक्रम संचालित किया गया। 1989 में एक विशिष्ट प्रशिक्षण पैकेज को स्वीकार किया गया ताकि ऑपरेशन ब्लैकबोड की समग्रियों के उपयोग करते हुए बालकेन्द्रित शिक्षा में प्रशिक्षण दिया जा सके। मार्च 1992 में 306 डी०आई०टी० की स्थापना हेतु संस्तुति की गयी। 31 अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय और 12 शिक्षा में विकसित अध्ययन केन्द्र भी स्वीकृत किये गये। प्रत्येक एस०सी०ई०आर०टी० को एककालीन 15 लाख की अनुदान राशि दी गई।
अध्यापक शिक्षा के एक्शन प्लान में केन्द्रीय साहय्यित योजना में आठवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत 250 अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय/विकसित शिक्षा अध्ययन संस्थान स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया। स्वायत्तशासी व्यवस्था को भी मान्यता दी गई। केन्द्रीय सहायता के लिए मानक बनाये गये। अध्यापक शिक्षक हेतु नवीन योजना निर्माण पर बल दिया गया, विद्यालयीय शिक्षकों के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देशन कार्यक्रम की संस्तुति की गई ताकि प्रतिवर्ष 4-50 से 5 लाख अध्यापक प्रतिवर्ष प्रशिक्षित हो सकें, एस०सी०ई०आर०टी० के दृढ़ीकरण (स्वायत्तताधारित और दीर्घकालीन अनावर्ती मानक निर्भर सहायता केन्द्रित) योजना संस्तुत की गई और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद को वैधानिक प्रस्थिति प्रदान करने पर बल दिया गया।
राष्ट्रीय परामर्शदात्री समिति – भारविहीन अधिगम 1992 – पूर्व अध्यक्ष यू०जी० सी० प्रो०यशपाल की अध्यक्षता में 1 मार्च, 1992 में गठित इस समिति ने विद्यालयी छात्रों के भारत को कम करने की दिशा में कार्य किया। समिति ने अध्यापक शिक्षा के अपर्याप्त कार्यक्रम को विद्यालयीय शिक्षा के अधिगम गुणवत्ता स्तर न्यूनता के लिए जिम्मेदार मानते हुए कहा कि बी०एड० को स्नातक पश्चात एक तथा उच्च माध्यमिक पश्चात काल में तीन-चार वर्ष का होना जरूरी है और विषय व्यावहारिक हो यह ध्यान देना होगा ताकि आत्म-अध्ययन और स्वतन्त्र चिन्तन को बल मिल सके। पत्राचार बी०एड की मान्यता समाप्त होनी चाहिए क्योंकि यह कार्यक्रम सघन हो, यह अत्यावश्यक है। निरन्तर शिक्षा के संस्थानीकरण को भी जरूरी माना गया।
1993 में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद एक्ट को पारित किया गया जिसके अनुसार परिषद को अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में नियन्त्रण निर्धारक और नियोजक की भूमिका दी गई। सम्बन्धित अध्याय में इसके सन्दर्भ में हम विस्तारपूर्वक चर्चा करने के लिए प्रयास करेंगे। राष्ट्रीय परामर्शदात्री समिति, 1993 की सिफारिशों की प्रयोग-सम्भावना को जाँचने के लिए 25 अगस्त, 1993 में श्री वाई०एन० चतुर्वेदी अतिरिक्त सचिव शिक्षा विभाग मानव संसाधन विकास मन्त्रालय की अध्यक्षता में एक समूह गठित हुआ और यशपाल समिति की संस्तुतियों के सन्दर्भ में इस समूह ने कहा कि पाठ्य-पुस्तक लेखन का कार्य या तो विद्यालयीय अध्यापकों को प्रदान किया जाय या उन्हें इस दिशा में उद्यमगत कुशलता प्राप्त हों। विषय के विशेषज्ञ, परामर्शदाता बने। बी०एड० में या तो माध्यमिक स्तरीय या प्रारम्भिक या विद्यालय पूर्व शिक्षा में विशेषीकरण को समाहित किया जाय। बी०एड० (पत्राचार) को बन्द न कर इस पर यू०जी०सी० और एन०सी०टी० ई० के द्वारा सकारात्मक निर्णय लिये जायें। सेवाकालीन प्रशिक्षण अपरिहार्य हो।
प्रो० रामलाल पारिख की अध्यक्षता में 1993 में बनी बी०एड० पत्राचार समिति ने भी कहा कि विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष 250 से अधिक विद्यार्थियों को प्रवेश न दें, पाँच वर्ष शिक्षण अनुभव को महत्व दिया जाय, स्नातक प्रवेश योग्यता 60 प्रतिशत अंक (परास्नातक हेतु भी समकक्ष अंक हो) सहित हो जिसमें आरक्षित श्रेणियों के लिए 5 प्रतिशत शिथिलता बरती जाय। स्टाफ में सामान्य कोर्स के समान ही योग्यताएँ हों और संख्या में दस नियमित या अवकाश प्राप्त प्रमुख या कोर स्टाफ हो। उच्च स्तरीय आत्म-अनुदेशनात्मक अधिगम पैकेज, तकनीकी सहायता सहित उपलब्ध ही दो 30 दिवसीय सम्पर्क कार्यक्रम आयोजित हों (दस दिन के प्रायोगिक कार्य सहित) और अनिवार्य 60 दिवसीय इण्टरर्नशिप की व्यवस्था हो।
1994 में यू०जी०सी० समिति (अध्यक्ष प्रो खेरमा लिंगडोह) ने पत्राचार बी०एड० की अवधि 14 महीने की निर्दिष्ट की। प्रवेश योग्यता मेरिट निर्भर स्नातक दो साल शैक्षिक अनुभव ग्रामीण क्षेत्र वरीयता 20 प्रतिशत प्रतिभावान नव-स्नातक हेतु आरक्षण सहित कई संस्तुतियाँ की गयीं। डॉ० आर० सी० दास की अध्यक्षता में गठिन एन०सी०टी० ई० समिति 1995 (गठन 21 दिसम्बर, 1994) ने पुनः प्रथम अध्यापक शिक्षा डिग्री/डिप्लोमा को प्रत्यक्ष माध्यम से ही अनिवार्य करार दिया जिसकी अवधि कम से कम एकवर्षीय हो।
अतः 1995-96 सत्र से अन्य विधाओं के बी०एड० पाठ्यक्रमों में प्रवेश को बन्द करने की भी संस्तुति कर दी गई। अंशकालीन संस्थागत प्रत्यक्ष कार्यक्रमों के लिए मान्यता हेतु पुनरीक्षण करने के लिए एन०सी०टी० ई० को संस्तुत किया गया ताकि गुणवत्ता स्तर नियमित कोर्स के समकक्ष रहे। पत्राचार माध्यम को सेवारत शिक्षकों के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष में एक बार के लिए संस्तुत किया गया। विभिन्न कोर्स के लिए क्रेडिट बिन्दु की भी संस्तुति की गई। परिषद को अध्यापक शिक्षा में व्यावसायीकरण प्रवृत्ति को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा गया। कैपिटेशन शुल्क की समाप्ति हेतु बल दिया गया प्रवेश मैरिट पर करने तथा सत्रारम्भ के एक महीने के अन्दर प्रवेश कार्य को अध्यापक शिक्षा संस्थानों में समाप्त करने के लिए निर्देश प्रदान किया गया।
प्रो० आर० टकवाले कुलपति इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की अध्यक्षता में 1995 में गठित की गई समिति की पहली मार्च तथा 16 मार्च को हुई सभा में यह संस्तुत किया गया कि सेवारत अध्यापकों के लिए पत्राचार बी०एड० की व्यवस्था हो। प्रत्येक विश्वविद्यालय अपने क्षेत्र के कार्यरत अध्यापक को ही प्रवेश दें, प्रवेश योग्यता सामान्य बी०एड० जैसी हो एवं लिखित प्रवेश परीक्षा ली जाय। माध्यमिक स्तर के लिए बी०एड० कोर्स की व्यवस्था हो। एक सत्र में कोई भी विश्वविद्यालय 500 से अधिक को प्रवेश न दे, अवधि 24 महीने की हो, फीस वगैरह भी सामान्य के समान (डाक व्यय अतिरिक्त ही हो तीन साल अनुभव वाले अध्यापक को ही प्रवेश दिया जाय तथा 500 छात्रों पपर 10 नियमित और 10 अंशकालीन संकायी की व्यवस्था ऐसे पत्राचार विभाग में अवश्य हो।
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