बाल मनोविज्ञान / CHILD PSYCHOLOGY

खेल क्या है ? खेल तथा कार्य में क्या अन्तर है ?

खेल क्या है ? खेल तथा कार्य में क्या अन्तर है ?
खेल क्या है ? खेल तथा कार्य में क्या अन्तर है ?

खेल क्या है ? खेल तथा कार्य में क्या अन्तर है ?

खेल क्या है ?

खेल एक सार्वभौमिक क्रिया है। जब से व्यक्ति के अस्तित्व के बारे में इतिहास गवाही देता है, तब से उसकी खेल की प्रवृत्तियों की जानकारी भी देता है। बालक युगों से खेल खेलते आ रहे हैं। सभी देश, समाज एवं जाति के बालक अपनी रुचि एवं सामर्थ्य के अनुसार खेलते हैं। खेल वस्तुतः मनुष्य को सुख प्रदान करने वाली क्रिया है जो उसके मानसिक द्वन्द को मिटाती है तथा उसके जीवन को प्रेरणा देने का कार्य करती है। खेल पूर्ण रूप से अपने लिए खेली जाने वाली क्रिया है, जिसके पीछे कोई लक्ष्य या कोई उद्देश्य निहित नहीं होता।

बालक खेल बार-बार खेलते हैं और हर बार उससे आनन्द प्राप्त करते हैं, जबकि कार्य के रूप में कोई भी क्रिया बार-बार करने पर थकान और उब बालक को त्रस्त कर देती है। एक ही क्रिया खेल और कार्य दोनों हो सकती है, यदि उसे उद्देश्य के साथ जोड़ दिया जाय। वस्तुतः खेल लक्ष्य के साथ-साथ परिणाम से भी नहीं जुड़ा होता, जो उसे क्रिया में स्वतन्त्रता प्रदान करता है।

खेल एवं कार्य में अन्तर

1. खेल एक लक्ष्यविहीन क्रिया है, जिसका निहित तत्व आनन्द प्रदान करता है, जबकि कार्य लक्ष्य की ओर प्रेरित क्रिया है।

2. खेल बालक को नयी स्फूर्ति प्रदान करते हैं, जबकि कार्य शारीरिक एवं मानसिक थकान प्रदान करते हैं।

3. खेल में समय की तथा कार्य पद्धति की परतन्त्रता नहीं होती, बालक स्वतन्त्र होता है। अपने बनाये नियम, अपनी पद्धति से क्रिया करता है, जबकि खेल के अतिरिक्त कार्य में अपने बड़ों के बनाये नियम के अतिरिक्त समय की सीमितता की बाधा होती है।

4. खेल में परिणाम गौण होता है, जबकि कार्य में परिणाम प्राथमिक होता है।

5. कार्य की सफलता-असफलता परिणाम पर निर्भर करती है, जबकि खेल की सफलता-असफलता का प्रश्न उससे मिले आनन्द से जुड़ा हुआ है।

6. कार्य अधिक बार करने से नीरसता प्रदान करते हैं, जबकि खेल बार-बार खेलने से और अधिक आनन्द देते हैं तथा सरसता प्रदान करते हैं।

बालक के विकास में खेल का बहुत अधिक महत्त्व है। खेल के द्वारा केवल शारीरिक विकास तथा वृद्धि ही प्रभावित नहीं होती है, वरन् जीवन के समस्त पहलुओं के विकास पर खेल अपना प्रभाव डालते हैं। खेल निरुद्देश्य एवं निरर्थक माने जाते हैं, परन्तु वास्तव में प्रारम्भिक जीवन में खेल को बालक के विकास की रीढ़ माना जा सकता है। केवल बालकों के लिए ही नहीं वरन हर अवस्था में खेल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

गुलिक ने कहा है, “खेल वह क्रिया है, जिसे हम अपनी इच्छानुसार स्वतन्त्रतापूर्वक करते हैं।”

बेलेन्टाइन के अनुसार, “जो क्रिया खेल के लिए की जाती है, वही खेल क्रिया कहलाती है।” खेल आनन्ददायक होता है। खेल का उद्देश्य खेल ही होता है। खेल में किसी प्रकार की बाध्यता नहीं होती है। • बालक लम्बे समय तक खेलकर शारीरिक मेहनत कर लेता है, परन्तु फिर भी उससे ऊवता नहीं है तथा थकान का अनुभव नहीं करता है, क्योंकि खेल स्वेच्छा से खेला जाता है तथा उसमें कोई बाह्य दबाव नहीं होता है।

खेल के लिए स्वतन्त्रता आवश्यक है। इस प्रकार जो भी कार्य आनन्द प्राप्त करता है, स्वतन्त्रता से किया जाता है एवं स्वेच्छा से किया जाता है, वह खेल कहलाता है।

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Anjali Yadav

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