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ग्रास रूट/हिल्दा टाबा मॉडल (Grassroot/Hilda Taba’s Model)
ग्रास रूट प्रतिमान के अन्तर्गत पाठ्यचर्या का विकास ऊपरी स्तर से न प्रारम्भ करके निचले स्तर से प्रारम्भ करने का प्रयास करना चाहिए। इससे अभिप्राय पाठ्यचर्या का विकास शिक्षक एवं छात्र से प्रारम्भ करने से है। पाठ्यचर्या विकास का सर्वप्रथम प्रयास प्रबन्धन प्रणाली में शिक्षा के केन्द्रीकरण करने में प्रयोग किया गया। ग्रास रूट प्रतिमान शिक्षा प्रणाली को विकेन्द्रीकरण करने के लिए विकसित किया गया। विकास अथवा सुधार से तात्पर्य पाठ्यचर्या के सभी घटको, अध्ययन के सम्पूर्ण क्षेत्र आदि को सम्मिलित करने से सम्बन्धित है।
ग्रास रूट प्रतिमान शिक्षकों की क्षमता, सुविधाओं में वृद्धि के साथ-साथ अध्ययन वस्तुओं, साहित्य आदि की लागत को कम करता है। यह प्रतिमान शिक्षक के विचारों पर आधारित हैं। इसके अनुसार शिक्षक कक्षा में नियोजनकर्ता, निष्पादनकर्ता तथा क्रियान्वयनकर्ता के रूप में होता हैं। वह अपनी कक्षा एवं उसके छात्रों की आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से समझ सकता है तथा उनके अनुसार बेहतर छात्र केन्द्रित पाठ्यचर्या का निर्माण कर सकता है। हिल्दा टाबा को इसका प्रणेता माना जाता है।
हिल्दा टाबा (7 दिसम्बर 1902, जुलाई 1967) जॉन टाइलर की सहकर्मी थी। वे भी छात्रों के लिए एक सन्तुलित एवं उपयोगी पाठ्यचर्या के निर्माण के लिए प्रयासरत थी। पाठ्यचर्या निर्माण को लेकर टाबा का दृष्टिकोण व्यावहारिक उपागम (दृष्टिकोण) पर आधारित था। यह चरणबद्ध रूप से योजनागत, विशिष्ट लक्ष्यों एवं उद्देश्यों, गतिविधियों को सम्मिलित करते हुए निर्मित किया गया है। टाबा ने छात्रों को क्या सिखाया जाए? तथा उनकी आवश्यकता क्या है? के मध्य सामंजस्य स्थापित करते हुए एक प्रक्रिया विकसित की। टाबा का विश्वास था कि छात्रों को जो अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराई जाती है उसका एक मानक होना चाहिए तथा उसे निर्धारित मानक के अनुसार प्रयोग करना चाहिए। उसके पश्चात् ही छात्रों के अधिगम का परीक्षण भी निर्धारित मानक पर करना चाहिए। पाठ्यचर्या के विकास के लिए इस दृष्टिकोण से शिक्षकों को अवश्य सम्मिलित किया जाना चाहिए। उनका मानना था कि पाठ्यचर्या के संगठन में साधारण उद्देश्यों को सम्मिलित करते हुए विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त किया जाए।
टाबा ने अपने प्रगतिशील शैक्षिक विचारों को तारतू विश्वविद्यालय (Tartu University) में प्रस्तुत किया था। वह जॉन ड्यूवी की शिष्या (छात्रा) थी। उन्होंने 1962 में करीकुलम डेवलपमेंट थ्योरी एण्ड प्रेक्टिस (Curriculum Development: Theory and Practice) नामक पुस्तक लिखी थी।
टाबा का मॉडल आगमन विधि (उपागम) (Inductive Approach) पर आधारित है। इनके इस उपागम की मुख्य विशेषता जमीनी स्तर पर (Gross Root Approach) छात्रों की आवश्यकताओं को पाठ्यचर्या में शामिल करना और उसे सामने लाना। टाबा ने पाठ्यचर्या के विकास के लिए सात चरण बताए हैं जो निम्नलिखित हैं-
1) छात्रों की आवश्यकताओं को पहचानना ।
2) शिक्षक द्वारा उद्देश्यों को परिभाषित करना।
3) अध्ययन सामग्री छात्रों की रुचि के अनुसार एवं एक क्रमबद्ध रूप में होनी चाहिए।
4) छात्रों को समय-समय पर आवश्यक निर्देश देना।
5) अध्ययन सामग्री एवं उद्देश्यों में समानता होनी चाहिए।
6) छात्रों के अधिगम के लिए विभिन्न शिक्षण गतिविधियों को अपनाया जाना।
7) छात्रों और शिक्षकों को मूल्यांकन प्रक्रिया में सम्मिलित करना।
वर्तमान समय में अधिकांश विद्यालयों में टाबा के बताए गए आदर्शों पर पाठ्यचर्या का निर्माण कर प्रयोग किया जा रहा है। आज विद्यालयों में तीन उद्देश्य समूह पाए जाते हैं-
- ज्ञान-छात्रों को क्या समझने की जरूरत है?
- योग्यता (कौशल)-छात्रों को कैसे सिखाया जाए?
- अवधारणा-छात्रों की जरूरत क्या है?
वह छात्रों को समस्या समाधान एवं जाँच-खोज तकनीक के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने की बात कहती थी। इस दृष्टिकोण का मुख्य ध्येय छात्रों की आवश्यकताओं को पाठ्यचर्या में प्रमुख स्थान देना।
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