जनसंचार क्या है ? शिक्षा में जनसंचार के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
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जनसंचार (Mass Media)
आधुनिक युग में जनसंचार के माध्यमों का बहुत अधिक शैक्षिक महत्त्व है। इनके महत्त्व को सभी ने स्वीकार किया है। जनसंचार के सभी माध्यम शिक्षा के अनौपचारिक साधन के रूप में कार्य करते हैं। इनके द्वारा जनमत का निर्माण किया जाता है। दूसरे शब्दों में ‘हम यह कह सकते हैं कि जनसंचार के माध्यमों का मुख्य कार्य जनमत का निर्माण करना है। जनमत का अभिप्राय जनता के उस सामान्य मत से है जो वैयक्तिक मतभेद से ऊपर है और यह व्यक्तिगत मतभेद की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली और क्रियाशील होता है।
जनसंचार की अवधारणा- जनसंचार की अवधारणा को समझने के पूर्व हमारे लिए संचार के अर्थ को जान लेना आवश्यक है। एमरी और उसके सहयोगियों ने संचार की परिभाषा देते हुए लिखा है-“संचार सूचना, आदर्शों और अभिव्यक्तियों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने की कला है।” पॉल लीगन्स के अनुसार- “संचार वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो अथवा अधिक व्यक्ति विचारों, तथ्यों भावनाओं, प्रभावों आदि का इस प्रकार विनिमय करते हैं कि संचार प्राप्त करने वाला व्यक्ति संदेश के अर्थ, उपयोग और उद्देश्य को भलीभाँति समझ लेता है।” इस प्रकार व्यावहारिक रूप से एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचनाओं के आदान-प्रदान की कला संचार कहलाती है।
“जनसंचार” संचार की अपेक्षा अधिक व्यापक है। जब एक व्यक्ति अथवा कई व्यक्तियों द्वारा यह कार्य व्यापक रूप में होता है, अथवा दूसरे शब्दों में इनके द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान कई व्यक्तियों अथवा समूहों अथवा समाजों में एक समय में होता तो इस प्रक्रिया को “जनसंचार” की संज्ञा दी जाती है। वास्तव में जनसंचार संचार से भिन्न है। संचार और जनसंचार के अंतर को स्पष्ट करने का सबसे अच्छा उदाहरण टेलीफोन और रेडियो का है। जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से टेलीफोन पर बात करता है तो उसे चार कहते हैं, परन्तु जब वही व्यक्ति रेडियो से अपनी बात अनेक लोगों तक पहुँचाता है तो उसे जनसंचार कहा जायेगा। इस तरह संचार जहाँ व्यक्तिगत है वहीं दूसरी ओर जनसंचार की प्रकृति सामूहिक है। गिब्ज ने जनसंचार की परिभाषा देते हुए लिखा है-“जनसंचार उस अभिव्यक्ति को कहा जाता है जो सामूहिकता से प्रभावित होती है।” पील ने जनसंचार को परिभाषित करते हुए लिखा है-“जनसंचार एक इस तरह का व्यवहार है जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति अथवा संस्था अपने विचारों को साधारण जन तक पहुँचाती है।” इस प्रकार जनसंचार एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति अथवा संस्था जनमत को प्रभावित करती है।
जनसंचार का शैक्षिक महत्त्व (Educational Implication of Mass Media)
शिक्षा के अन्तर्गत जनसंचार के माध्यमों का विशेष महत्त्व है। शिक्षा में जनसंचार के महत्त्व को समझने के पूर्व हमारे लिए यह जान लेना आवश्यक है कि आधुनिक भारतीय समाज में जनसंचार के माध्यम कौन-कौन से हैं? आधुनिक युग में जनसंचार के माध्यमों में चित्र पोस्टर, लिखित साहित्य, आलेख, प्रेस एवं समाचार-पत्र, चलचित्र अथवा सिनेमा, रेडियो, दूरदर्शन (टेलीविजन), टेप रिकार्डर, ग्रामोफोन आदि उल्लेखनीय हैं। यहाँ जनसंचार के शैक्षिक महत्त्व का उल्लेख संक्षेप में किया जा रहा है –
जनसंचार एक प्रविधि है जिसके माध्यम से व्यक्तियों के विश्वास, मनोवृत्तियों एवं क्रियाओं पर प्रभाव डालकर उन्हें नियंत्रित किया जा सकता है। सामाजिक जीवन में व्यक्ति का व्यवहार अधिकतर उसकी मनोवृत्ति, विश्वास और प्रेरणा पर आधारित होते हैं। इनमें परिवर्तन होने पर व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन आता है। समाज में पारस्परिक सहयोग, सुख-शांति, ईर्ष्या-वैमनस्य, दुःख आदि का कारण समाज में व्यक्तियों के विचार, विश्वास एवं व्यवहार ही होता है। समाज यदि कुछ दलों में विभाजित हो जाये और प्रत्येक दल एक-दूसरे को शत्रु मानने लगे और नकारात्मक मनोवृत्ति रखे तो शांति एवं सुव्यवस्था स्थापित रखना अत्यन्त कठिन हो जायेगा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाज के सदस्यों में विश्वासों, मनोवृत्तियों एवं अन्यतः क्रियाओं का कितना अधिक सामाजिक महत्त्व है। जनसंचार के माध्यम से व्यक्ति के विश्वासों एवं उनकी मनोवृत्तियों पर नियंत्रण करके उसके व्यवहार को प्रभावित और परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार जनसंचार का शैक्षिक महत्त्व बहुत बढ़ जाता है।
जन-संचार, जहाँ एक ओर सामाजिक नियंत्रण की शिक्षा में सहायता प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर विभिन्न समाजों की संस्कृतियों एवं सभ्यताओं के निकट लाकर पारस्परिक सद्भावना उत्पन्न करता है। एक राष्ट्र अथवा समाज को एक-दूसरे की प्रगति से अवगत कराता है। जनसंचार की सहायता से पुराने आदर्शों एवं विश्वासों में परिवर्तन और नये विश्वासों एवं आदर्शों को स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। जनसंचार उन व्यक्तियों को प्रभावित करता है जिनकी मान्यताएँ प्रचार के निर्देशों के अनुकूल होती है। व्यक्ति अपनी मान्यताओं एवं आदर्शों तथा निश्चित मनोवृत्तियों के विपरीत होने वाले निर्देशों को कम ग्रहण कर पाता है। समाज में जनतंत्रीय ढाँचे को सुदृढ़ बनाये रखने में भी जनसंचार की महती भूमिका होती है। इन माध्यमों से शासकीय नीतियों का प्रचार जनसधारण तक होता है। जिसबर्ट का विचार है कि, “कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जिनमें कोई भी प्रचार प्रभाव नहीं डालता । जहाँ तक सामजिक परिवर्तनों का संबंध है, प्रचार एक गौण माध्यम है, मुख्य नहीं, अर्थात् केवल प्रचार मात्र के आधार पर सामाजिक परिवर्तन नहीं होता, केवल सामाजिक परिवर्तन की गति को सहायता प्रदान की जा सकती है।’
समाज के अतिरिक्त विद्यालयों में जनसंचार के माध्यमों के प्रयोग से न केवल शैक्षिक विषयों की ग्राह्यता बढ़ी है, वरन् शिक्षा में रुचि, विस्तार एवं शिक्षा के प्रसार को भी बल मिला है। समाचार पत्रों, मासिक एवं पाक्षिक पत्रिकाओं, चलचित्रों, प्रदर्शनियों, रेडियो दूरदर्शन आदि के माध्यम से बालकों को न केवल पाठ्यक्रम संबंधी ज्ञान प्राप्त होता है, बल्कि शिक्षणेत्तर ज्ञान भी प्राप्त होता है।
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