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अवबोध-स्तर का शिक्षण, प्रतिमान, आलोचना एंव सुझाव

अवबोध-स्तर का शिक्षण, प्रतिमान, आलोचना एंव सुझाव
अवबोध-स्तर का शिक्षण, प्रतिमान, आलोचना एंव सुझाव

अवबोध स्तर के शिक्षण का स्वरूप स्पष्ट कीजिए तथा इस स्तर के शिक्षण प्रतिमान को समझाइए। 

अवबोध-स्तर का शिक्षण (Understanding Level Teaching)

अवबोध स्तर को व्याख्यात्मक अवबोध (Explanatory understanding) का स्तर भी कहा जाता है। अवबोध का अर्थ है- अर्थ ग्रहण करना, विचार को ग्रहण करना, समझना, किसी वस्तु से पूर्ण परिचित होना, किसी वस्तु की विशेषता अथवा प्रकृति से परिचित होना, भाषा में किसी शब्द का अर्थ प्रयुक्त सन्दर्भ में समझना, किसी तथ्य को स्पष्ट रूप से जानना तथा ग्रहण करना। जब व्यक्ति किसी परिस्थिति में उपलब्ध विविध अंशों को सम्बन्धित कर उनकी व्याख्यात्मक टिप्पणी कर लेता है, तो इसे उसका अवबोध कहा जाता है। बिग्गी के अनुसार अवबोध में तथ्यों के बीच सम्बन्ध निरूपण एवं उनका रचनात्मक उपयोग दोनों ही शामिल हैं। अवबोध उत्पन्न हो जाने पर व्यक्ति एक तथ्य को दूसरे तथ्यों से जोड़ने लग जाता है और उनका प्रयोग उच्च स्तरीय विवेचन या व्याख्या के लिए करता है।

शिक्षण के अवबोध स्तर पर शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया विचार युक्त हो जाती है। अवबोध स्तर का शिक्षण छात्रों में विषयवस्तु का अवबोध या समझ विकसित करने के लिए होता है। इस प्रकार अवबोध स्तर का शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें छात्रों का सामान्यीकरण सिद्धान्तों तथा तथ्यों के सम्बन्ध में अवबोध कराया जाता है। अवबोध द्वारा अन्तर्दृष्टि उत्पन्न होती है।

अवबोध-स्तर, स्मृति-स्तर और परावर्तन-स्तर के मध्य का स्तर है। स्मृति-स्तर का शिक्षण अवबोध के विकास के लिए प्रथम चरण है। अवबोध का स्तर वह स्तर है जहाँ से विचार या सूझ की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इसमें बिना समझे हुए कोई वस्तु सिखलाई नहीं जाती। अध्यापक अपने शिक्षण को सदैव अवबोध-स्तर पर रखने का प्रयास करता है। यदि उसे शिक्षण में सफलता मिल जाती है तो छात्र में नियमों को पहचानने, समझने तथा प्रयोग करने की क्षमता का विकास होता है जिससे शिक्षण अर्थपूर्ण (Thoughtful) हो जाता है।

अवबोध-स्तर का शिक्षण छात्रों को बौद्धिक व्यवहारों के विकास के अधिक अवसर प्रदान करता है। यह छात्रों में सामान्यीकरण, सूझ तथा समस्याओं के समाधान के लिए क्षमताओं का विकास करता है। शिक्षा के इस स्तर पर शिक्षक और छात्र क्रियाशील रहते हैं। यह शिक्षण उद्देश्य केन्द्रित तथा अन्तर्दृष्टि से युक्त होता है। मूल्यांकन के लिए निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ दोनों प्रकार की प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है। ये तथ्यात्मक तथा विवरणात्मक दोनों प्रकार की हो सकती हैं। वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में प्रत्यास्मरण, अभिज्ञान तथा लघु उत्तरीय विधियों का प्रयोग किया जाता है।

अवबोध स्तर पर शिक्षण को प्रभावशाली ढंग से सम्पादित करने की दिशा में हरबर्ट (Herbert), जुड (Judd), मॉरिसन (Morrison) और ब्रूनर (Bruner) ने महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं।

अवबोध-स्तर के शिक्षण का प्रतिमान (Models of Understanding Level Teaching)

प्रतिमान पक्ष अवबोध स्तर पर शिक्षण
1. उद्देश्य (Focus) प्रत्यय का नैपुण्य या सिद्धहस्तता (Mastery of Concepts) प्राप्त करना। अवबोध स्तर की शिक्षण व्यवस्था में निम्नलिखित पाँच सोपान होते हैं-
2. संरचना (Syntax)
  1. अन्वेषण (Explorations)
  2.  प्रस्तुतीकरण (Presentation)
  3. आत्मीकरण (Assimilation )
  4. व्यवस्था ( Organisation)
  5. अभिव्यक्तिकरण ( Recitation)
3. सामाजिक प्रणाली (Social System)
  1. शिक्षक व्यवहार का नियंत्रक होता है।
  2. शिक्षक और छात्र दोनों सक्रिय रहते हैं।
  3. छात्र अपने विचार प्रदर्शित कर सकते हैं।
  4. सामाजिक व्यवस्था के प्रथम दो सोपानों में शिक्षक और अन्तिम तीन सोपानों में छात्र शिक्षक दोनों ही क्रियाशील हो जाते हैं।
4. मूल्यांकन प्रणाली (Evaluation System) इसमें आवश्यकतानुसार लिखित, मौखिक, निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं। प्रत्ययों के स्पष्टीकरण पर विशेष बल दिया जाता है।

अवबोध-स्तर के शिक्षण की आलोचना (Criticism of Understanding Level Teaching)

मॉरिसन ने अवबोध-स्तर के शिक्षण का जो प्रतिमान दिया है उसकी सीमाएँ तथा विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. इसकी प्रमुख सीमा यह है कि इसमें मानव-व्यवहार को ध्यान में नहीं रखा जाता है, केवल पाठ्यवस्तु के नैपुण्य (Mastery) पर ही विशेष बल दिया जाता है।

2. मॉरिसन ने शिक्षक की विषयवस्तु में तल्लीनता को ही विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा माना है जबकि मनोवैज्ञानिक प्रेरणा इससे कहीं अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो सकती है।

3. चूँकि शिक्षण में पाठ्यक्रम के नैपुण्य पर ही अधिक बल दिया जाता है जिसके द्वारा बालकों के ज्ञानात्मक पक्ष का ही विकास होता है जबकि भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्ष का विकास भी उतना ही महत्वूपर्ण है जितना ज्ञानात्मक पक्ष का।

4. मॉरिसन द्वारा दिया हुआ शिक्षण का यह प्रतिमान मनोवैज्ञानिक तथा व्यावहारिक दृष्टि से प्रभावात्मक प्रतिमान माना जाता है।

5. शिक्षण के इस प्रतिमान द्वारा विद्यार्थियों को पाठ्यवस्तु का गहनता के साथ बोध कराया जाता है। अतः इस प्रतिमान द्वारा शुद्ध अधिगम (True Learning) होता है।

अवबोध-स्तर के शिक्षण के लिए सुझाव

अवबोध-स्तर के शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए मॉरिसन ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं-

1. विद्यार्थियों को अवबोध-स्तर के शिक्षण में उस समय प्रवेश दिया जाय जब वे पहले स्मृति-स्तर के शिक्षण की परीक्षा में सफल हो जायें।

2. अवबोध-स्तर के प्रत्येक सोपान का अनुसरण क्रमबद्ध रूप से समुचित ढंग से किया जाना चाहिए।

3. अवबोध-स्तर के विभिन्न सोपानों की परीक्षाओं में सफल होने पर ही अगले सोपान में प्रविष्ट किया जाए। उदाहरणार्थ प्रस्तुतीकरण की परीक्षा में सफल होने पर ही आत्मीकरण कालांश (Assimilation Period) में प्रवेश की अनुमति दी जाय ।

4. शिक्षक को पाठ्यक्रम में तल्लीन होने के साथ-साथ छात्रों को मनोवैज्ञानिक ढंग से अभिप्रेरणा भी देनी चाहिए। साथ ही उसे छात्रों के आकांक्षा स्तर (Level of Aspiration) को भी उठाने का प्रयास करना चाहिए ।

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Anjali Yadav

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