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शैक्षिक तकनीकी के प्रमुख स्वरूप एवं शिक्षण तकनीकी, निर्देशित तकनीकी एवं व्यावहारिक तकनीकी में अन्तर

शैक्षिक तकनीकी के प्रमुख स्वरूप एवं शिक्षण तकनीकी, निर्देशित तकनीकी एवं व्यावहारिक तकनीकी में अन्तर
शैक्षिक तकनीकी के प्रमुख स्वरूप एवं शिक्षण तकनीकी, निर्देशित तकनीकी एवं व्यावहारिक तकनीकी में अन्तर

शैक्षिक तकनीकी के प्रमुख स्वरूपों का उल्लेख कीजिए एवं शिक्षण तकनीकी, निर्देशित तकनीकी एवं व्यावहारिक तकनीकी में अन्तर स्पष्ट कीजिए। 

Contents

शैक्षिक तकनीकी के प्रमुख स्वरूप (Various Forms of Educational Technology)

शैक्षिक तकनीकी को मुख्य रूप से निम्न तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. व्यवहार तकनीकी (Behavioural Technology)
  2. अनुदेशन तकनीकी (Instructional Technology)
  3. शिक्षण तकनीकी (Teaching Technology)

इसे हम विस्तृत रूप से निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं-

1. व्यवहार तकनीकी (Behavioural Technology)

वस्तुतः शैक्षिक परिस्थितियाँ कक्षागत व्यवहार को जन्म देती हैं, इसलिए अध्यापक व विद्यार्थी के व्यवहार का अध्ययन आवश्यक हो जाता है। साथ ही वैयक्तिक विभिन्नताओं, विद्यार्थियों में निहित क्षमताओं तथा कुशलताओं को ज्ञात करने हेतु व्यवहार तकनीकी का अध्ययन आवश्यक होता है। इस प्रकार इस तकनीकी का मुख्य उद्देश्य अध्यापक और विद्यार्थी के कक्षागत व्यवहार में वांछित परिवर्तन व सुधार लाना है।

वर्तमान समय में शिक्षण बालकेन्द्रित हो गया है। इसलिए प्रत्येक शिक्षके के लिए यह आवश्यक है कि वह बालमनोविज्ञान अर्थात् विद्यार्थियों की आंयु स्तर, मानसिक क्षमता, योग्यता एवं वैयक्तिक विभिन्नताओं को स्पष्ट ज्ञान रखे, क्योंकि तभी वह शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सीखने के अनुभव (Learning Experiences) उत्पन्न करके अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन कर सकेगा। वस्तुतः व्यवहार तकनीकी अधिगम के क्षेत्र में प्रगति व विकास करना चाहती है तथा सीखने की प्रक्रिया को सुगम व प्रभावपूर्ण बनाना चाहती है।

व्यवहार तकनीकी की परिभाषाएँ (Definitions of Behavioural Technology)-

व्यवहार तकनीकी की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) “व्यवहार तकनीकी शैक्षिक तकनीकी की वह शाखा है जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक ढंग से शिक्षक के व्यवहार का निरीक्षण, विश्लेषण तथा मूल्यांकन करना है।”

(2) “व्यवहार तकनीकी का प्रमुख उद्देश्य मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का शिक्षण तथा प्रशिक्षण में प्रयोग है।”

(3) “व्यवहार तकनीकी एक वैज्ञानिक उपागम है जो शिक्षण तथा सीखने की प्रक्रिया द्वारा व्यवहार परिवर्तन के सम्बन्ध में इंगित करती है।”

व्यवहार तकनीकी को आगे बढ़ाने का श्रेय बी० एफ० स्किनर को दिया जाता है। स्किनर ने शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रयोगों द्वारा सीखने के सिद्धान्त प्रतिपादित किये। आपके अनुसार शिक्षण एक अन्तः किया है, अध्यापक व विद्यार्थी के बीच पाठ्यवस्तु का आदान-प्रदान है।

पाठ्यवस्तु (Content)- अध्यापक के कक्षागत व्यवहार में परिवर्तन की दृष्टि से व्यवहार तकनीकी की पाठ्यवस्तु के विषय में बी० एफ० स्किनर, डी० जी० रायन, फिलैण्डर आदि विद्वानों ने निम्नलिखित तत्त्वों को सम्मिलित किया है-

  1. अध्यापक व्यवहार का अर्थ तथा परिभाषा ।
  2. अध्यापक व्यवहार के सिद्धान्त।
  3. अध्यापक व्यवहार का स्वरूप तथा विश्लेषण ।
  4. अध्यापक व्यवहार की निरीक्षण विधियाँ ।
  5. अध्यापक व्यवहार के प्रतिमान ।
  6. अध्यापक व्यवहार का मूल्यांकन ।
  7. अध्यापक व्यवहार को उन्नत करने की प्रविधियाँ ।

उपर्युक्त प्रविधियों अथवा नवीन अवधारणाओं में कुछ प्रविधियाँ अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-

  1. अभिक्रमित अध्ययन (Programmed Instruction)
  2. माइको शिक्षण (Micro teaching).
  3. सीमुलेटेड प्रशिक्षण (Simulated social skill teaching)
  4. अन्तः प्रक्रिया विश्लेषण (Interaction analysis),
  5. टी समूह प्रशिक्षण (T. Group training)
व्यवहार तकनीकी की विशेषताएँ (Characteristics of Behavioural Technology)
  1. व्यवहार तकनीकी का लक्ष्य क्रियात्मक पक्ष का विकास करना होता है। इसके द्वारा शिक्षण के विशिष्ट कौशल का विकास किया जाता है।
  2. शिक्षण की निष्पत्तियों का मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ रूप से किया जा सकता है।
  3. यह शिक्षण सिद्धान्तों के विकास में सहायक है।
  4. इससे शिक्षक के कक्षा-व्यवहार के स्वरूपों का अध्ययन किया जा सकता है और व्यवहार के सुधार के लिए सुझाव भी दिये जा सकते हैं।
  5. इस तकनीकी के प्रयोग से प्रशिक्षण संस्थायें प्रभावशाली शिक्षक तैयार कर सकती है।
  6. इससे छात्राध्यापकों को शिक्षण अभ्यास काल में पुनर्बलन भी दिया जाता है।
  7. इसके द्वारा पाठ्यवस्तु तथा सम्प्रेषण दोनों शिक्षण पक्षों में सुधार एवं परिवर्तन लाया जा सकता है।
  8. छात्राध्यापकों के प्रशिक्षण के समय व्यक्तिगत क्षमताओं के अनुसार कौशल के विकास के लिए अवसर दिया जाता है।

व्यवहार तकनीकी के द्वारा शिक्षक के कक्षा व्यवहार का अध्ययन ही नहीं किया जाता अपितु शिक्षक-व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन भी लाया जा सकता है। इस तकनीकी की यह धारणा है कि शिक्षक जन्मजात नहीं होते अपितु उन्हें बनाया जा सकता है। इसलिए प्रशिक्षण संस्थाओं में इसका अधिक उपयोग होता है। व्यवहार तकनीकी द्वार शिक्षण कौशल का विकास भी किया जा सकता है।

2. अनुदेशन तकनीकी (Instructional Technology)

अनुदेशन तकनीकी को निर्देशन तकनीकी भी कहते हैं। अनुदेशन का अर्थ उन क्रियाओं से होता है जो अधिगम में सुविधायें प्रदान करती हैं। इसमें शिक्षक और छात्र के मध्य अन्तःक्रिया आवश्यक नहीं होती। साधारणतया शिक्षण और अनुदेशन में कोई अन्तर नहीं किया जाता है। अनुदेशन और शिक्षण दोनों में छात्रों को सीखने की प्रेरणा दी जाती है। अनुदेशन का अर्थ है सूचनाएँ प्रदान करना (Communication of Information) जबकि शिक्षण में शिक्षक और छात्रों के बीच अन्तःप्रक्रिया का होना अति आवश्यक है, परन्तु अनुदेशन में छात्र अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction) के द्वारा स्वयं सीख सकता है। शिक्षण में भी अनुदेशन का प्रयोग किया जाता है, इसीलिए शिक्षण को तो अनुदेशन कहा जा सकता है, किन्तु अनुदेशन को शिक्षण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अनुदेशन में शिक्षक और छात्र के बीच अन्तःप्रक्रिया का होना आवश्यक नहीं है। अनुदेशन तकनीकी मशीन तकनीकी (Hardware Approach) पर आधारित है। इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की दृश्य-श्रव्य सामग्री; जैसे रेडियो, टेलीविजन, रिकार्ड प्लेयर, प्रोजेक्टर आदि आते हैं। इनकी सहायता से विद्यार्थियों के बड़े-बड़े समूहों को कम-से-कम समय तथा कम खर्च में ज्ञान दिया जा सकता है।

अनुदेशन तकनीकी की परिभाषा (Definition of Instructional Technology)

अनुदेशन अंकनीकी की निम्न परिभाषाएँ है-

(1) ए० आर० शर्मा के शब्दों में, “अनुदेशन तकनीकी का तात्पर्य प्रविधियों अथवा विधियों के उस समूह से है जो किन्हीं सुनिश्चित अधिगम लक्ष्यों को प्राप्त करता है।”

(2) एस० एम० मैकमूरिन के अनुसार, “अनुदेशन तकनीकी शिक्षण और सीखने की समस्त प्रक्रिया को विशिष्ट उद्देश्यों के अनुसार रूपरेखा तैयार करने, चलाने तथा उसका मूल्यांकन करने की एक क्रमबद्ध रीति है। यह शोधकार्य तथा मानवीय सीखने एवं आदान-प्रदान करने पर आधारित है। इसमें शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए मानवीय तथा अमानवीय साधन प्रयुक्त किये जाते हैं।”

इस परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि अनुदेशन तकनीकी में सीखने की प्रक्रिया सम्बन्धी की रूपरेखा तैयार करने, उसको प्रेरित करने, आगे बढ़ाने एवं पाठ को प्रस्तुत करने हेतु अनेक प्रविधियाँ, विधियाँ, युक्तियों एवं दृश्य-श्रव्य सामग्री प्रयुक्त की जाती है और अन्त में उद्देश्यों की प्राप्ति का मूल्यांकन करके आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तन किया जा सकता है ताकि उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।

अनुदेशन तकनीकी की पाठ्यवस्तु (Content of Instructional Technology)

अनुदेशन तकनीकी के अन्तर्गत निम्नलिखित पाठ्यवस्तु सम्मिलित की जाती हैं-

  1. अनुदेशन तकनीकी का अर्थ, परिभाषा एवं विकास ।
  2. अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ एंव परिभाषा।
  3. शाखीय तथा रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ, स्वरूप एवं अवधारणायें।
  4. कम्प्यूटर की सहायता द्वारा अनुदेशन।
  5. व्यक्तिगत विभिन्नता के लिए समायोजन प्रविधियाँ ।
  6. नियम एवं उदाहरण प्रणाली द्वारा अनुदेशन ।
अनुदेशन तकनीकी की विशेषताएँ (Characteristics of Instructional Technology)-

अनुदेशन तकनीकी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. अनुदेशन विभिन्न प्रकार की दृश्य-श्रव्य सामग्री, विधियों, प्रविधियों द्वारा प्रदान किया जाता है।
  2. चूँकि अनुदेशन का अर्थ केवल ज्ञान व सूचनायें प्रदान करता है, अतः इस तकनीकी के द्वारा ज्ञानात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।
  3. अनुदेशन तकनीकी शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाती है।
  4. अनुदेशन तकनीकी दृश्य-श्रव्य सामग्री (Hardware Approach) पर आधारित है, इसलिए शिक्षण धीरे-धीरे यन्त्रवत् होता जाता है।
  5. इसमें निर्देशन केवल शिक्षण के स्मृति स्तर (Memory Level) पर आधारित होता है।
  6. इस तर्कनीकी के क्षेत्र में विभिन्न प्रयोगों एवं शोध कार्यों की सहायता से महत्त्वपूर्ण अनुदेशात्मक सिद्धान्तों का विकास किया जा सकता है, जिससे अनुदेशन को प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है।
  7. इसमें छात्रों को उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार सीखने का अवसर प्रदान किया जाता है।
  8. यह तकनीकी मनोविज्ञान तथा अधिगम के सिद्धान्तों पर आधारित है।
  9. इसमें छात्रों को सही अनुक्रिया (Correct response) दिया जाता है।
  10. इस तकनीकी में शिक्षक छात्र सम्बन्धों का अभाव रहता है। अतः शिक्षक का स्थान एक सहायक के रूप में होता है।

3. शिक्षण तकनीकी ( Teaching Technology )

शिक्षण विकास की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है जो शिक्षक छात्र की अन्तः प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होती है। वस्तुतः शिक्षण एक सोद्देश्य प्रक्रिया है जिसका अन्तिम लक्ष्य बालक का पूर्ण विकास करना है।

शिक्षण के दो प्रमुख तत्त्व माने गये है-

(1) पाठ्यवस्तु (Content), तथा (2) कक्षागत व्यवहार अथवा सम्प्रेषण (Communication)। शिक्षण तकनीकी में ये दोनों ही तत्त्व सम्मिलित किये जाते हैं। स्पष्ट है कि शिक्षण तकनीकी में अनुदेशन तकनीकी तथा व्यवहार तकनीकी दोनों ही आती हैं।

वैसे शिक्षण एक कला है किन्तु आजकल इसे विज्ञान भी मानने लगे हैं क्योंकि शिक्षण तकनीकी इस कला को वैज्ञानिक विषयों के सिद्धान्तों के प्रयोग द्वारा अधिक सरल, स्पष्ट, व्यावहारिक एवं वस्तुनिष्ठ बनाती है। इस प्रकार सीखने का स्वरूप वैज्ञानिक तथा मनोवैज्ञानिक हो गया हैं अब छात्र द्वारा सीखने पर अधिक बल दिया जाता है। अब शिक्षण की तुलना एक उद्योग से की जाती है जिसमें शिक्षक एक व्यवस्थापक अथवा मैनेजर होता है जो छात्रों के सीखने की व्यवस्था करता है।

शिक्षण तकनीकी की परिभाषाएँ (Definitions of Teaching Technology)

शिक्षण तकनीकी की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

(1) आई० के० डेवीज के शब्दों में, “शिक्षण तकनीकी में समस्त पाठ्यवस्तु को क्रमशः चार सोपानों- नियोजन, व्यवस्था, अग्रसरण तथा नियन्त्रण में विभाजित कर अध्ययन किया जाता है।”

(2) बी० एफ० स्किनर के अनुसार, “शिक्षण तकनीकी शिक्षक की उपलब्धि में वृद्धि करती है। वास्तव में समस्त शिक्षण प्रक्रिया को इससे लाभ होता है। हम शिक्षा को केवल इसके प्रति सहमति रखकर नीति परिवर्तन करके तथा इसके प्रशासनिक ढाँचे को सुव्यवस्थित करके उसमें सुधार नहीं कर सकते। हमें स्वयं शिक्षण में सुधार करना होगा और इसके लिए केवल एक प्रभावोत्पादक शिक्षण तकनीकी ही समस्या का समाधान कर सकती है।”

शिक्षण तकनीकी की पाठ्यवस्तु (Content of Teaching Technology)

शिक्षण तकनीकी में पाठ्यवस्तु को निम्न चार सोपानों में विभाजित करके अध्ययन किया जाता है-

(1) शिक्षण का नियोजन (Planning of Teaching)- इसके अन्तर्गत शिक्षक द्वारा सीखने के उद्देश्यों को निर्धारित एवं परिभाषित करना तथा इन उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने की क्रियाएँ आती हैं।

(2) शिक्षण की व्यवस्था (Organisation of Teaching)- इसके अन्तर्गत शिक्षक सीखने के अनुभव प्रदान करने की दृष्टि से उपयुक्त शिक्षण विधियों, प्रविधियों, युक्तियों एवं सहायक सामग्री का चयन करता है।

(3) शिक्षण का अग्रसरण (Leading of Teaching)- इसके अन्तर्गत शिक्षण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए अभिप्रेरणा की विभिन्न प्रविधियों का चयन किया जाता है।

(4) शिक्षण का नियन्त्रण (Controlling of Teaching)- इसमें शिक्षण का मूल्यांकन केया जाता है।

शिक्षण तकनीकी की विशेषताएँ (Characteristics of Teaching Technology)
  1. शिक्षण तकनीकी आदा (Input), प्रदा (Output) तथा प्रक्रिया (Process) तीनों पक्षों से सम्बन्धित होती है।
  2. यह तकनीकी सीखने के स्वरूप को वैज्ञानिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक मानती है।
  3. इस तकनीकी के द्वारा पाठ्यवस्तु तथा सम्प्रेषण दोनों में समन्वय स्थापित होता है।
  4. इस तकनीकी में ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक तीनों उद्देश्य प्राप्त किये जाते हैं।
  5. शिक्षण तकनीकी में विभिन्न शिक्षण सिद्धान्तों के प्रतिपादन पर जोर दिया जाता है।
  6. इसमें स्मृति, बोध तथा चिन्तन स्तर तक के शिक्षण की व्यवस्था होती है।
  7. शिक्षण तकनीकी के ज्ञान से छात्राध्यापक (Pupil-teacher) तथा सेवारत अध्यापक (Inservice-Teacher) अपने शिक्षण में विकास तथा सुधार कर सकता है।

शिक्षण तकनीकी, अनुदेशन तकनीकी एवं व्यवहार तकनीकी में अन्तर (Difference between Teaching Technology, Instructional Technology and Behavioural Technology)

शिक्षण तकनीकी, अनुदेशन तकनीकी एवं व्यवहार तकनीकी में निम्नलिखित अन्तर हैं-

शिक्षण तकनीकी (Teaching Technology) अनुदेशन तकनीकी (Instructional Technology) व्यवहार तकनीकी (Behavioural Technology)

1. प्रवर्त्तक- आई० के० डेवीज, हरबार्ट, मौरीसन, हण्ट, ग्लेसर, बूनर आदि।

आसुवेल, ग्लेसर, लुम्सडेन, बी0 एफ0 स्किनर आदि। बी० एफ0 स्किनर, फिलैण्डर ऐमीडोन आदि।
2. अर्थ- मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, वैज्ञानिक आदि सिद्धान्तों तथा अधिनियमों की शिक्षण प्रक्रिया में किन्हीं विशिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रयोग को ही शिक्षण तकनीकी कहा जाता है। अनुदेशन तकनीकी शिक्षण और सीखने की समस्त प्रक्रिया की विशिष्ट उद्देश्यों के अनुसार रूपरेखा तैयार करने, चलाने तथा मूल्यांकन करने की एक क्रमबद्ध रीति है। व्यवहार तकनीकी का उद्देश्य वैज्ञानिक ढंग से शिक्षक के व्यवहार का निरीक्षण, विश्लेषण तथा मूल्यांकन करना है।
3. पक्ष- ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्षों का विकास। मात्रा ज्ञानात्मक पक्ष का विकास। ज्ञानात्मक तथा भावात्मक पक्षों के साथ क्रियात्मक पक्ष के विकास पर विशेष बल।
4.उद्देश्य- शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाना। सूचना देना, अनुदेशन की रूपरेखा तैयार करना । शिक्षक के व्यवहार में सुधार, छात्रों के व्यवहार परिवर्तन पर बल, सीखने की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना।
5. व्यवस्था- शिक्षक व छात्र दोनों के सहयोग से। दृश्य-श्रव्य सामग्री तथा अन्य युक्तियों द्वारा। शिक्षक द्वारा।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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