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थार्नडाइक सीखने के सिद्धान्त
साधारण जीवन में भी हमें कुछ नियमों का पालन करते हुए अपना जीवन यापन करना होता है। परिवार व समाज में भी हम कुछ नियमों से बंधे रहते हैं। यदि हम किसी संस्था, समिति या क्लब के सदस्य हैं तो भी हमें इनके नियमों का पालन करना होता है। सीखना तो एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के लिए भी कुछ नियमों का पालन किया जाना बहुत आवश्यक है। बालक जो कुछ भी सीखता है उसके लिए उसे कुछ नियमों के पालन की आवश्यकता पड़ती है। या उन नियमों से उसे सहायता लेनी होती है। सीखना कोई सरल कार्य नहीं है। यह एक जटिल प्रक्रिया है। थार्नडाइक ने इस जटिल प्रक्रिया के लिए अपने अध्ययनों के आधार पर कुछ नियमों – का प्रतिपादन किया और शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में सभी विद्वानों द्वारा थॉर्नडाइक के इन सीखने के नियमों को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। अतः सीखने के इन नियमों को थॉर्नडाइक के नियमों के नाम से भी जाना जाता है। सीखने के इन नियमों का शिक्षा मनोविज्ञान में विशेष महत्व है। डगलस और हॉलैंड ने तो यहाँ तक कहा कि “सीखना निश्चित नियमों के साथ चलता है।”
थार्नडाइक सीखने के नियम
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के नियमों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
- सीखने के प्राथमिक नियम और
- सीखने के द्वैतियक या गौण नियम।
1. सीखने के प्राथमिक नियम
सीखने के प्राथमिक नियमों के अन्तर्गत थॉर्नडाइक ने चार प्रमुख नियमों का उल्लेख किया है। वे हैं-
1. अभ्यास का नियम- थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित अभ्यास के इस नियम को उपयोगिता और अनुपयोगिता का नियम भी कहा जाता है। इस नियम को एक मुहावरे में व्यक्त किया जा सकता है “करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान” अर्थात् अभ्यास करते-करते किसी भी कार्य को सम्पन्न किया जा सकता है। सीखने के इस नियम में एक काम को बार-बार करने का ही उपदेश दिया गया है। इस नियम के अनुसार किसी भी कार्य को बार-बार दोहराने से सीखने की शक्ति प्रबल होती है और यदि हम किसी कार्य को करते-करते बीच में ही छोड़ देते हैं तो सीखने की शक्ति कमज़ोर पड़ती है। बार-बार अभ्यास कर सीखी गयी क्रियाएँ स्थायी हो जाती हैं और फिर वह उसे कभी नहीं भूलता। उदाहरण के लिए बच्चा जब चलना सीखता है तो वह बार-बार खड़ा होता है, गिरता है, फिर खड़ा होता है, फिर गिरता है और इसी प्रकार अभ्यास करते-करते जब वह खड़ा होना सीख जाता है तो उसकी सीखने की यह प्रक्रिया पूर्ण तथा स्थायी हो जाती है। थॉर्नडाइक का मानना था कि दोहराना तथा बार-बार दोहराना सीखने की प्रक्रिया में सहायक होते हैं। जैसा कि हमने ऊपर कहा कि अभ्यास के इस नियम को उपयोग और अनुपयोग का नियम भी कहा गया है, उपयोग के नियम से तात्पर्य यह है कि जब हम किसी क्रिया को बार-बार दोहराते हैं और अन्ततः उसे सीख लेते हैं तो वह क्रिया उपयोगी हो जाती है। इसके विपरीत यदि किसी कार्य को हम बार-बार ना करते हुए, बीच में ही छोड़ देते हैं तो वह कार्य अनुपयोगी हो जाता है। अभ्यास के द्वारा सीखने की शक्ति बढ़ती है और अभ्यास छोड़ देने से शक्ति क्षीण हो जाती है। इस नियम का सार यही है कि जब हम किसी बात को बार-बार दोहराते हैं तो वह स्थायी हो जाती है और यदि उसे हम बीच में ही छोड़ देते हैं तो वह भूल जाती है।
2. तत्परता का नियम – सीखने के इस दूसरे नियम के अनुसार जब हम सीखने के लिए तत्पर होते हैं तब हम अच्छी तरह से सीख पाते हैं। बालकों को उन्हीं कार्यों को करने में सन्तोष व आनन्द मिलता है जिन कार्यों को सीखने या करने के लिए वे शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार होते हैं। इसके विपरीत यदि बालक में सीखने की इच्छा नहीं है और उस पर जबरदस्ती सीखने की प्रक्रिया को लादा जाता है तो वह सीख नहीं पाता। उदाहरण के लिए यदि बालक खेलने जाने के लिए तैयार है और हम उसे पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करें या विवश करें तो पहले तो वह राज़ी ही नहीं होगा और यदि वह राज़ी हो भी गया तो वह उस समय कुछ सीख नहीं पायेगा। अतः सीखने की तत्परता या इच्छा सीखने की प्रक्रिया में बहुत महत्वपूर्ण है।
3. प्रभाव का नियम – इस नियम के अनुसार सीखने की प्रक्रिया में जिस कार्य में अधिक सन्तोष मिलता है उस कार्य को बालक बार-बार करना चाहते हैं और इसके विपरीत जिस कार्य में सन्तोष नहीं मिलता और कष्ट मिलता है उसे वह करने में हिचकिचाते हैं। यही थॉर्नडाइक का प्रभाव का नियम है। असन्तोष या कष्ट प्राप्त होने से उत्तेजना और प्रतिक्रिया का सम्बन्ध शिथिल पड़ जाता है, जबकि सन्तोष या सुख मिलने से प्रतिक्रिया और उत्तेजना का सम्बन्ध दृढ़ हो जाता है। थॉर्नडाइक का मानना है कि प्रभाव का नियम सीखने और शिक्षण की प्रक्रिया में एक आधारभूत नियम है। मेक्डूगल ने प्रभाव के इस नियम पर कई प्रयोग चूहों पर किये और इस नियम की सत्यता को सिद्ध किया। 1922 में थॉर्नडाइक ने प्रभाव के अपने नियम में कुछ संशोधन किया और उसने बताया कि प्रभाव के नियम में नवीनता और बार-बार दोहराने का विशेष महत्व है। थॉर्नडाइक के इस नियम को सुख और दुःख के नियम के नाम से भी जाना जाता है।
2. सीखने के गौण नियम
1. अभिवृत्ति का नियम- व्यक्ति की अभिवृत्ति उसे सीखने के लिए प्रेरित करती है। किसी भी कार्य के प्रति व्यक्ति की अभिवृत्ति उसके सीखने की प्रक्रिया को निर्धारित एवं संचालित करती है। जिस अनुपात में उसकी अभिवृत्ति किसी कार्य को सीखने में होगी उसी अनुपात में उसके सीखने की गति निर्धारित होगी। यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से किसी कार्य को करने के लिए तैयार नहीं है तो वह उस कार्य को नहीं सीख पायेगा। किसी भी क्रिया को सीखने के लिए बालक का मानसिक रूप से तैयार होना अति आवश्यक है और अभिरुचि उसे मानसिक रूप से तैयार करने में सहायता करती है।
2. बहुक्रिया का सिद्धान्त- बहु प्रतिक्रिया से तात्पर्य यह है कि जब कोई बालक किसी कार्य को सीखना प्रारम्भ करता है तो वह उस कार्य से सम्बन्धित बहुत सी प्रतिक्रियाएँ करता है। दूसरे शब्दों में बालक उसे सीखने के लिए बहुत से प्रयास करता है और निरन्तर प्रयास करने से वह उस कार्य को करने में सफल हो जाता है। अर्थात् वह सीख जाता है।
3. आंशिक क्रिया का नियम- आंशिक क्रिया का यह सिद्धान्त किसी कार्य को कई भागों में विभक्त कर, करने की ओर संकेत करता है। जब हम किसी कठिन कार्य को कई भागों में विभक्त कर उसे पूर्ण करने का प्रयास करते हैं तो सीखने का आंशिक क्रिया का सिद्धान्त लागू होता है। कार्य का विभाजन सीखने की क्रिया को सरल बना देता है।
4. आत्मिकरण का नियम – सीखने का यह नियम अपने नये ज्ञान के साथ पूर्व ज्ञान को मिला लेने की ओर संकेत करता है। बालक जो भी नया ज्ञान प्राप्त करते हैं उसे अपने पूर्व ज्ञान से जोड़ते हुए उसे आत्मसात करने का प्रयास करते हैं। पूर्व ज्ञान से नये ज्ञान को जोड़ देने से नया ज्ञान बालक के मस्तिष्क में स्थायी हो जाता है। प्रायः देखा गया है कि जब नवीन ज्ञान के लिए पूर्व ज्ञान की पृष्ठभूमि नहीं होती तो बालक के लिए इस नवीन ज्ञान को आत्मसात करना कठिन हो जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में यह नियम विशेष महत्व रखता है।
5. सहचर्य परिवर्तन का नियम- थॉर्नडाइक के अनुसार सीखने का एक नियम यह भी है कि व्यक्ति अपने सीखे हुए ज्ञान को किसी दूसरी परिस्थिति में भी उसी के आधार पर करने का प्रयास करता है। इस सिद्धान्त में ज्ञान तो व्यक्ति के पास पहले से ही होता है केवल परिस्थितियां बदल जाती हैं। इन बदली हुई परिस्थितियों में अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर क्रिया एवं प्रतिक्रिया करना इस नियम का सार है। थॉर्नडाइक ने यह भी कहा कि परिस्थिति बदलने पर व्यक्ति उसी प्रकार की क्रियाएँ करता है जिस प्रकार की क्रियाओं के माध्यम से उसने इस ज्ञान को अर्जित किया था। उदाहरण के लिए भोजन को देखकर कुत्ते के मुंह से लार टपकने लगती है। यदि किसी अन्य परिस्थिति में कुत्ते को किसी अन्य बर्तन में भोजन दिया जाये तो भी उसके मुंह से लार टपकनी प्रारम्भ हो जायेगी
व्यवहारवादियों व अव्ययीवादियों द्वारा थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के नियम की आलोचना की गयी। उन्होंने थॉर्नडाइक के उन नियमों को मानने से इनकार किया। लेकिन अधिकतर विद्वान थॉर्नडाइक के नियमों से पूर्णतः सहमत हैं और उनका मानना है कि थॉर्नडाइक ने सीखने के नियमों का प्रतिपादन कर सीखने की धारणा एवं प्रक्रिया को समझाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है।
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