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द्वि-कारक सिद्धान्त | Two-Factor Theory in Hindi

द्वि-कारक सिद्धान्त | Two-Factor Theory in Hindi
द्वि-कारक सिद्धान्त | Two-Factor Theory in Hindi

द्वि-कारक सिद्धान्त (Two-Factor Theory)

इस सिद्धान्त के समर्थक रिपेयरमैन थे। उन्होंने सन् 1904 में इस सिद्धान्त को प्रतिपादित किया था। अपने अध्ययनों के आधार पर उन्होंने सन् 1927 में बुद्धि के दो तत्वों या कारकों का उल्लेख किया था। इन तत्वों में एक को सामान्य तत्व (General factor or G-factor) तथा दूसरे को विशिष्ट तत्व (Specific factor or S-factor) की संज्ञा दी गयी। इसी के आधार पर इस सिद्धान्त का नाम द्वि-कारक (द्वि तत्व) सिद्धान्त पड़ा।

स्पियरमैन का द्वि-कारक सिद्धान्त (Spearman’s Two-Factor Theory)

इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि में दो कारक होते है-

  1. सामान्य कारक (General Factor ‘G’)
  2. विशिष्ट कारक (Specific Factor ‘S’ )

प्रत्येक प्रकार की क्रिया में एवं सामान्य तत्व ‘G’ (General Factor) होता है जो सभी क्रियाओं में विद्यमान होता है और विशिष्ट तत्व ‘S’ (Factor) जो विशेष कार्यों में सहायक होता है। उदाहरणार्थ- कोई विज्ञान में प्रवीण होता है, कोई कला नृत्य आदि में।

‘G’ कारक की विशेषताएँ (Characteristics of ‘G’ Factor)

  1. यह कारक मनुष्य में जन्मजात होता है।
  2. यह कारक सभी में सामान्य रहता है।
  3. सामान्य कारक में प्रत्येक व्यक्ति भिन्न होता है।
  4. जिन व्यक्तियों में ये कारक अधिक होता है वे दूसरों के अपेक्षा जीवन में अधिक सफल होते हैं।

‘S’ कारक की विशेषताएँ (Characteristics of ‘S’ Factor )

  1. यह कारक भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में कम या अधिक मात्रा में पाया जाता है।
  2. जिस व्यक्ति में जिस विशिष्ट कारक की अधिकता होती है वो उसमें निपुण होता जाता है।
  3. विशिष्ट कारक को सीखा जा सकता है।
  4. यह कारक व्यक्तिगत विभिन्नता भी प्रकट करता है।

इस प्रकार इन्होंने सामान्य बुद्धि (G-factor) को जन्मजात माना है और कहा है, यह सभी क्रियाओं में विद्यमान रहती है। इसके अतिरिक्त कुछ विशिष्ट योग्यताएँ होती है जिनके द्वारा मनुष्य विशिष्ट समस्याओं का सामना करता है। वे S-Factor के अन्तर्गत आती हैं। जैसे गणित में तेज होना या कला में प्रवीण होना आदि ।

A = G + S1 + S2 + S3

  • A = व्यक्ति की पूर्ण बुद्धि,
  • G = सभी क्रियाओं में विद्यमान रहने वाला तत्व,
  • S1 = एक विशिष्ट योग्यता है,
  • S2- दूसरी विशिष्ट योग्यता है.
  • S3= तीसरी विशिष्ट योग्यता है।

स्पियरमैन ने अपने इस समीकरण में यह बताया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी एक विषय में निपुण है तो उसकी सामान्य बुद्धि होती है और कुछ उस विषय सम्बन्धी विशेष योग्यता अर्थात् एक विषय में योग्यता G+S1 या द्वितीय विषय में उसकी योग्यता G+S2 । इसी प्रकार कई विशिष्ट योग्यताएं हो सकती हैं। स्पियरमैन के इस द्वि-तत्व या द्वि-कारक सिद्धान्त की आलोचना की गयी है-

स्पियरमैन के अनुसार बुद्धि को प्रकट करने के लिए दो कारक उत्तरदायी होते हैं परन्तु उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि दो नहीं अपितु कई तत्व होते है।

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Anjali Yadav

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