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निर्देशन के सिद्धान्त | principles of direction in Hindi

निर्देशन के सिद्धान्त | principles of direction in Hindi
निर्देशन के सिद्धान्त | principles of direction in Hindi

निर्देशन के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।

निर्देशन के लिए निम्न दो प्रमुख सिद्धान्तों का पालन किया जाना अत्यन्त आवश्यक है-

(1) उद्देश्यों की सुसंगति का सिद्धान्त (The Principles of Harmony of Objectives) – यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि व्यक्तिगत उद्देश्यों एवं संस्था के उद्देश्यों में सुसंगति होनी चाहिए। अधीनस्थों का निर्देशन और नियन्त्रण इस ढंग से किया जाना चाहिए कि व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में अधिकतम योगदान दे सके। प्रत्येक अधीनस्थ संस्था में अपनी कुछ आवश्यकताओं की संतुष्टि चाहता है, उदाहरण के लिए, हर अधीनस्थ पदोन्नति चाहता है जिससे कि उसे अधिक शक्ति, प्रतिष्ठा और धन की प्राप्ति हो सके। इसलिए पदोन्नति के लिए ऐसी शर्तें रखनी चाहिए जिससे संस्था में कार्यकुशलता और कार्यनिष्ठा बढ़े, अर्थात् पदोन्नति के चयन के लिए एक आवश्यक न्यूनतम कार्य कुशलता, कार्यनिष्ठा एवं योग्यता को निर्धारित कर दिया जाना चाहिए, जिसके पूरा किए बिना पदोन्नति नहीं की जानी चाहिए। ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत हितों की प्राप्ति के साथ संस्था का हित भी प्राप्त हो जायेगा। कर्मचारियों की अज्ञानता, महत्वाकांक्षा, स्वार्थ, और मनोविकार संस्था के हितों के हमेशा बड़े शत्रु होते हैं। अतः कुशल प्रबन्धक का यह कर्तव्य है कि वह इन प्रवृत्तियों को दृढ़ता, न्याय, आदर्श आचरण, निरन्तर निरीक्षण, मार्गदर्शन, प्रभावी प्रेरणा एवं नेतृत्व द्वारा उभरने से रोके।

इस प्रकार उद्देश्यों में सुसंगति स्थापित करने का एक उपाय व्यक्तिगत उद्देश्यों और संस्था के हितों में उचित सम्बद्धता एवं सामन्जस्य है और दूसरा उपाय है कर्मचारियों को संस्था के उद्देश्यों और नीतियों को सही रूप में समझाना। यदि दो कर्मचारी संस्था के उद्देश्यों और नीतियों का अलग- अलग अर्थ समझेंगे, तो उद्देश्यों की सुसंगति को निश्चित रूप से खतरा बना रहेगा। उच्चाधिकारियों के निर्देश अधीनस्थों तक मध्यस्थों के कई स्तरों से होकर पहुंचते हैं, और इसकी सदैव सम्भावना रहती है कि निर्देशों में अधीनस्थों तक पहुंचते-पहुंचते कुछ परिवर्तन कर दिए जाएं, भूले हों जाएं, या सुरक्षात्मक काट-छांट कर दी जाए और संदेशवाहन की एक लम्बी श्रृंखला के कारण संस्था के उद्देश्यों, नीतियों और निर्देशों के भिन्न-भिन्न अर्थ लगाएं जाएं। इसलिए प्रबन्धकों का यह कर्तव्य है कि आदेशों और निर्देशों को इस ढंग से प्रेषित किया जाये कि अधीनस्थ उनका सही अर्थ ही समझें, उनके समझने में कोई गड़बड़ी न हो, और उसी संदर्भ में समझें, जिसमें उन्हें प्रेणित किया जाता है।

(2) आदेश की एकता का सिद्धान्त (Principle of Unity of Command)- यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि एक अधीनस्थ को आदेश केवल एक ही अधिकारी द्वारा दिया जाना चाहिए। आदेश का दोहरापन बचाया जाना चाहिए। अगर एक अधीनस्थ को कई अधिकारियों से आदेश मिलते हैं, उदाहरण के लिए, यदि एक क्रय विभाग का सहायक क्रय-अधिकारी, भंडार- अधिकारी और वित्ताधिकारी से आदेश पाता है, तो कुछ भ्रान्तियां निश्चितरूप से उत्पन्न होंगी। उत्तरदायित्व का खिसकाव सम्भव होगा और दायित्व किसी के ऊपर निश्चित नहीं हो पायेगा। निर्देश केवल एक अधिकारी द्वारा ही कुशलतापूर्वक दिया जा सकता है क्योंकि वही अधिकारी अच्छी प्रकार से अधीनस्थ के स्वभाव से परिचित होता है। और वह यह जानता है कि अधीनस्थ किन अभिप्रेरणाओं से अधिक प्रभावित होता है तथा उसकी तकनीकी क्षमता का स्तर क्या हैं। परिणामस्वरूप निकटस्थ अधिकारी पर्यवेक्षण एवं मार्गदर्शन के उन तरीकों के चुनाव करने की सर्वाधिक स्थिति में होता है जिससे सर्वोत्तम परिणाम निकल सकते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसरण करने से निकटस्थ अधिकारी की प्रतिष्ठा एवं डर अधीनस्थों के मस्तिष्क में उत्पन्न होता है, और अधिकारी को भी यह शिकायत नहीं रहती कि उसके अधिकार की उपेक्षा करके उच्चाधिकारी अधीनस्थों को सीधे आदेश दे देते हैं। इससे उच्चाधिकारियों का कार्यभार भी कम होता है और अधीनस्थ उन्हें अकारण परेशान करने की स्थिति में नहीं रह जाते।

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Anjali Yadav

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