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नेतृत्व की शैली से आप क्या समझते हैं ?
नेतृत्व शैली दो शब्दों का संयुक्तीकरण है नेतृत्व + शैली; नेतृत्व से आशय किसी व्यक्ति विशेष के उस गुण से है जिसके माध्यम से वह अपने अनुयायियों का पथ प्रदर्शन करता है और नेता के रूप में उनकी क्रियाओं का संचालन करता है जबकि शैली किसी भी कार्य को सम्पादित करने की विधि या तरीका है। इस प्रकार नेतृत्व शैली से आशय नेता द्वारा अपनाया गया वह तरीका है, जिससे उसके अनुयायी वांछित कार्य स्वेच्छापूर्वक बिना किसी दबाव के करने के लिये उत्साहित रहते हैं।
नेतृत्व की शैलियाँ या विधियाँ (Styles of Leadership)
किसी व्यावसायिक उपक्रम की सफलता या असफलता मूलतः उसके नेतृत्व के प्रकार पर निर्भर करती है, इसलिये प्रत्येक संगठन के प्रबन्धक को अपनी परिस्थितियों के अनुरूप, सफलता प्राप्ति हेतु, नेतृत्व की उपयुक्त शैली, स्वरूप या विधि को अपनाना होता है। वर्तमान व्यावहारिक जगत पर दृष्टिपात करने से यह ज्ञात होता है कि नेतृत्व की अनेक शैलियाँ या विधियाँ प्रचलित हैं। व्यावसायिक क्रियाओं के मार्गदर्शन के लिये किस स्वरूप को अपनाया जाए, यह संगठन के प्रबन्धक की इच्छा एवं उपलब्ध परिस्थितियों पर निर्भर करता है। व्यावसायिक जगत में प्रचलित नेतृत्व की विविध शैलियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) अभिप्रेरण नेतृत्व — नेता द्वारा अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन करने तथा उन्हें करने के लिये प्रेरित करने के लिये जिन विधियों को अपनाया जाता है, उनमें अभिप्रेरणात्मक विधियाँ प्रमुख हैं, जो दो प्रकार की होती हैं-
(i) सकारात्मक अभिप्रेरण- जब नेता अपने अनुयायियों को मौद्रिक या वित्तीय और अमौद्रिक या अवित्तीय प्रेरणाओं के माध्यम से कार्य करने के लिये प्रेरित करता है तो इसे सकारात्मक अभिप्रेरणा कहा जाता है। इससे औद्योगिक शान्ति होती है।
(ii) निषेधात्मक अभिप्रेरण— जब नेता द्वारा अपने अनुयायियों को डरा-धमकाकर, दण्ड का भय दिखाकर, कार्य करने के लिये प्रेरित करता है तो इसे निषेधात्मक अभिप्रेरण कहते हैं। इसमें कर्मचारी सन्तुष्टि एवं औद्योगिक शान्ति के वातावरण का निर्माण स्थायी रूप से नहीं हो पाता।
(2) शक्ति प्रधान नेतृत्व — इसमें नेता शक्ति के आधार पर नेतृत्व प्रदान करता है। शक्ति के आधार पर नेतृत्व के निम्न तीन स्वरूप प्रचलित हैं-
(i) नेता केन्द्रित या निरंकुश नेतृत्व- नेतृत्व की इस शैली के अन्तर्गत नेता सभी अधिकार अपने पास केन्द्रित रखता है। वह सब बातों का निर्णय भी स्वयं ही लेता है। अधीनस्थों का कार्य तो केवल इतना है कि वे अपने नेता का पूर्णतः अनुकरण करे और उसी के अनुसार कार्य करें। अधीनस्थों को अपने सुझाव देने का भी अधिकार नहीं होता। इस प्रकार के नेतृत्व की सबसे प्रमुख विशेषता यह होती है कि वह असफलताओं के लिए तो अपने अधीनस्थों को दोषी ठहराता है किन्तु सफलता के लिए सारा श्रेय स्वयं लेता है। इस प्रकार के नेतृत्व के अन्तर्गत अनुयायी पूर्णतया अपने नेता पर ही निर्भर होते हैं तथा लक्ष्यों और अन्तिम लक्ष्यों से अनभिज्ञ रहते हैं।
(ii) समूह केन्द्रित या प्रजातन्त्रीय नेतृत्व- वर्तमान नेतृत्व की इस शैली का अधिक प्रचलन है। इसके अन्तर्गत नीतियों आदि का निर्धारण स्वयं नेता अकेला न करके अनुयायियों के विचार-विमर्श से करता है। ऐसे विचारों का नेता अपने अधिकारों के विकेन्द्रीयकरण के सिद्धान्त में विश्वास रखता है और जब तक ऐसे नेता को अपने अनुयायियों का समर्थन मिलता रहता है तब तक उसका नेतृत्व कायम रहता है। इससे अधीनस्थों में सहकारिता की भावना का विकास होता है तथा स्वस्थ मानवीय सम्बन्धों की स्थापना में सहयोग मिलता है।
(iii) व्यक्तिकेन्द्रित या निर्बाध नेतृत्व — इस विचारधारा के अनुसार प्रबन्ध सम्बन्धी सभी कार्य अनुयायियों पर छोड़ देता है वह स्वयं ही अपने लक्ष्यों का निर्धारण करते हैं। नेता का कार्य तो केवल सम्पर्क कड़ी का रहता है। वह उन्हें कार्य के लिये केवल आवश्यक सूचना और प्रसाधन प्रदान करता है।
(3) पर्यवेक्षणीय नेतृत्व — नेतृत्व की यह शैली निम्न दो विचारधाराओं से प्रभावित होती है-
(i) कर्मचारी प्रधान पर्यवेक्षणीय नेतृत्व- इस शैली में नेता द्वारा अपने अनुयायियों को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है। उनकी रूचियों, अभिवृत्तियों, आवश्यकताओं, सुविधाओं आदि को ध्यान में रखते हुए और कार्य करने की दशाओं तथा वातावरण में सुधार करते हुए कार्य करने हेतु अभिप्रेरित किया जाता है। ऐसा नेता अपने अनुयायियों या कर्मचारियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाकर उत्पादन बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं।
(ii) उत्पादन प्रधान पर्यवेक्षणीय नेतृत्व- इस प्रकार के नेतृत्व में अनुयायियों या कर्मचारियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण नहीं अपनाया जाता बल्कि उत्पादन वृद्धि पर ही ध्यान दिया जाता है। इसके अन्तर्गत नेता इस धारणा पर विश्वास करके चलता है कि उत्पादन की नवीन तकनीकों को अपनाने, कर्मचारियों को सदैव कार्यरत रखते तथा उन्हें कार्य करने हेतु निरन्तर प्रेरित करने मात्र से ही निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हो सकती है। और कर्मचारियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
उपरोक्त विभिन्न शैलियों में से किस शैली का नेता द्वारा चुनाव किया जाये, यह कार्य की प्रकृति तथा परिस्थितियों पर निर्भर करता है। वर्तमान में ऐसी शैली अधिक सफल है जिसमें नेता अपने अनुयायियों से परामर्श तथा विचार-विमर्श कर निर्णय लेता है।
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