नेतृत्व से आप क्या समझते है ? इसके प्रमुख लक्षण (विशेषतायें) बताइये।
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नेतृत्व (Leadership)
नेतृत्व प्रबन्ध की आत्मा है प्रबन्ध के लिये नेतृत्व गुणों को इतना अधिक महत्व दिया गया है कि अनेक बार लोगों को यह प्रतीत होने लगता है कि प्रबन्धक एवं नेता एक समान हैं। कूण्ट्ज एवं ओ डोनेल ने प्रबन्ध में नेतृत्व की भूमिका दर्शाते हुए कहा है कि “प्रबन्धकों को नेता अवश्य होना चाहिए, चाहे नेतागण प्रबन्धक हों अथवा नहीं।” अतः कोई प्रबन्धक अपने नेतृत्व गुणों से अधीनस्थों से वांछित कार्य को पूर्ण नहीं करा लें, तब तक संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
नेतृत्व से आशय मार्गदर्शन करना, संचालन करना, निर्देशित करना तथा पहले स्वयं आगे आकर पहल करना आदि है। व्यक्तियों में बड़ी योग्यताएँ छिपी होती हैं, नेता उनको विकसित कर उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठतम उपयोग करवाने में अपने अनुयायियों की सहायता करना है। नेता एक नये वातावरण को जन्म देता है, जिसके अन्तर्गत लोग उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बैचेन हो जाते हैं।
कई विद्वानों ने नेतृत्व की परिभाषाएँ दी हैं। उनमें से अग्रलिखित प्रमुख हैं—
जॉर्ज आर० टैरी के अनुसार, “नेतृत्व ऐसे व्यक्तियों का सम्बन्ध है, जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति अथवा नेता दूसरों को सम्बन्धित कार्यों पर स्वेच्छा के साथ-साथ कार्य करने को प्रभावित करता है, ताकि नेता द्वारा इच्छित उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके।”
मूने एवं मेले के अनुसार, “प्रक्रिया में प्रवेश करते समय अधिकारी वर्ग जो स्वरूप धारण करता है, उसे नेतृत्व कहते हैं।”
नेतृत्व के लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics of Leadership)
प्रभावी नेतृत्व के प्रमुख लक्षण अग्रलिखित होते हैं-
(1) आदर्श आचरण- नेता अपने आचरण द्वारा अनुयायियों के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करता है। उनके अनुयायी यह चाहते हैं कि उनका नेता केवल नेता ही न रहकर एक आदर्श पुरुष भी हो, ताकि वे उसका अनुसरण कर सकें।
(2) परिस्थितियों का ध्यान — नेतृत्व बहुत कुछ परिस्थितियों एवं वातावरण पर निर्भर है। हो सकता है कि एक व्यक्ति कुछ परिस्थितियों में तो सफलता प्राप्त करे और अन्य में नहीं ।
(3) गतिशील प्रक्रिया— प्रत्येक संगठन में नेतृत्व की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। संस्थान की स्थापना से लेकर जब तक संस्थान विद्यमान रहता है, तब तक नेतृत्व की प्रक्रिया चलती रहती है।
(4) हितों की एकता- नेता तथा उसके अनुयायियों के हितों में एकता होती है। नेतृत्व उस समय प्रभावहीन हो जाता है, जबकि नेता तथा उसके अनुयायी पृथक-पृथक उद्देश्यों के लिए कार्य करते हैं। जॉर्ज आर टैरी के शब्दों में, “नेतृत्व परस्पारिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लोगों को स्वेच्छा से प्रयत्न करने के लिए प्रभावित करने की क्रिया है।”
(5) यथार्थवादी दृष्टिकोण – नेतृत्व के इस लक्षण के अनुसार उसका मानव आचरण के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण होना चाहिए।
(6) अनुयायियों का होना— अनुयायियों के अभाव में नेतृत्व की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। अतः नेता के साथ-साथ उसके अनुयायियों का भी होना नितान्त आवश्यक है। जितने अधिक अनुयायी होंगे, नेता का महत्व उतना ही अधिक होगा।
(7) क्रियाशील सम्बन्ध- नेता तथा उसके अनुयायियों का पारस्परिक सम्बन्ध निष्क्रिय न होकर क्रियाशील होता है। किसी कार्य का निष्पादन करने में नेता सबसे आगे खड़ा होकर अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन करता है।
(8) आत्मबोध – नेतृत्व के इस अंतिम लक्षण के अनुसार नेता को स्वयं के विषय में भ्रान्ति नहीं होनी चाहिए। उसे अपनी शक्तियों एवं दुर्बलताओं का सही-सही ज्ञान होना चाहिए।
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