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पठन सामग्री का चयन (SELECTION OF READING MATERIAL)
अध्ययन सामग्री की उपयुक्तता पर अधिकांशतः पुस्तकालय का महत्त्व निर्भर है। इसका चयन करते समय विद्यालय को आवश्यकताओं को ध्यान में रखना चाहिए। एक उत्तम पुस्तकालय विद्यालय के प्रत्येक विभाग, विषय, क्रिया एवं बालक की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
पुस्तकालय के महत्त्व को उच्च बनाने तथा इन सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए पुस्तकालय में उपयुक्त अध्ययन सामग्री का होना आवश्यक है। प्रश्न उठता है कि किस अध्ययन सामग्री को उपयुक्त कहा जा सकता है ? वस्तुतः इस सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम नहीं है जिसके अनुसार उसे चुन लिया जाये, परन्तु निम्नलिखित कुछ सामान्य सिद्धान्त हैं, जिनको ध्यान में रखकर उपयुक्त अध्ययन सामग्री का चयन किया जा सकता है-
(1) अध्ययन सामग्री का चयन करते समय बालकों की रुचियों एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इस तथ्य को ध्यान में रखकर पुस्तकालय के लिए विषयों से सम्बन्धित पुस्तकें, सन्दर्भ पुस्तकें, कहानी-संग्रह, विभिन्न कुशलताओं से सम्बन्धित विश्व साहित्य को सर्वोत्तम पुस्तकें, बालकों में निरीक्षणात्मक आदतों, मानवीय गुण, नागरिक एवं सामाजिक आदर्श, आदि विकसित करने वाली पुस्तकें चयन की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त अध्ययन सामग्री के चयन में बालकों की आयु का भी ध्यान रखा जाये अर्थात् उन पुस्तकों का भी चयन किया जाये जो विभिन्न आयु के बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। विकास के प्रत्येक स्तर पर बालक की कुछ अपनी विशेषताएँ होती हैं। उन विशेषताओं को ध्यान में रखकर अध्ययन सामग्री का चयन किया जाये।
(2) अध्ययन सामग्री के चयन में शिक्षकों की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाये। अतः उनके दृष्टिकोण के अनुसार भी पुस्तकों का चयन करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उनके विषयों की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाये।
(3) पुस्तकालयाध्यक्ष तथा विद्यालय अधिकारियों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि पुस्तकालय प्रयोग करने के लिए है, न कि प्रदर्शन के लिए। अतः उन्हें पुस्तकों की संख्या पर बल न देकर उनके गुणों पर बल देना चाहिए क्योंकि एक उत्तम पुस्तक हजारों निकम्मी पुस्तकों की अपेक्षा कहीं अधिक उपयोगी होती है।
(4) पुस्तकों का चयन करते समय निम्न बातों पर भी ध्यान देना परमावश्यक है-
(i) पुस्तकों का बाह्य स्वरूप।
(ii) जिल्द इस सम्बन्ध में जिल्द की सुदृढ़ता पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
(iii) कागज की किस्म।
(iv) छपाई की स्पष्टता इस सम्बन्ध में बालकों की आयु को ध्यान में रखा जाये। छोटे बालकों के लिए मीटे छापे की तथा युवकों के लिए उससे कुछ कम मोटे छापे की पुस्तकें चयन की जानी चाहिए।
(v) भाषा, शैली, विषय-प्रतिपादन एवं उसकी निष्पक्षता, आदि।
(vi) पुस्तकों के लेखकों तथा उनका अनुभव एवं प्रसिद्धि ।
(5) विद्यालय अधिकारियों के पास पुस्तकों को खरीदने के लिए छोटी-सी धनराशि होती है। अत: उन्हें इसी धनराशि से अधिक-से-अधिक उत्तम पुस्तकों को खरीदना है। इसके लिए उन्हें विभिन्न पुस्तक विक्रेताओं से मूल्य तथा कमीशन के में खरीदने से पहले सूचनाएँ प्राप्त करनी चाहिए।
पुस्तकों के चयन का कार्यभार किसी एक व्यक्ति पर नहीं होना चाहिए, वरन् उनके लिए लोकतन्त्रीय दृष्टिकोण को अपनाया जाये। पुस्तकालयाध्यक्ष को इस कार्य में सहायता देने के लिए एक पुस्तकालय – समिति का निर्माण किया जाना चाहिए, जिसमें पुस्तकालयाध्यक्ष के अतिरिक्त शिक्षकों तथा बालकों दोनों के प्रतिनिधि हों। इस समिति की सहायता से बालकों की रुचियों एवं आवश्यकताओं का पता लग सकेगा। इससे एक और लाभ यह होगा कि उपलब्ध धन सभी विषयों में उनकी आवश्यकतानुसार बँट सकेगा।
समाचार-पत्र, पत्रिकाओं, आदि का चयन– प्रत्येक पुस्तकालय में बालकों की रुचियों एवं आयु के अनुसार पत्र-पत्रिकाओं का चयन किया जाना चाहिए। इनमें से कुछ मनोरंजन प्रदान करने वाली तथा कुछ विषयों से सम्बन्धित होनी चाहिए। प्रत्येक विद्यालय में एक या अधिक समाचार पत्र अवश्य मँगवाये जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त स्थानीय समाचार पत्रों को पुस्तकालय हेतु मँगाया जाये शिक्षकों के दृष्टिकोण से विभिन्न विषयों से सम्बन्धित शिक्षण-पत्रिकाओं को भी मँगाया जाये, जिनमें नवीनतम ज्ञान और शैक्षिक सिद्धान्तों एवं शिक्षण विधियों का विवेचन किया गया हो।
पुस्तकालयाध्यक्ष के गुण एवं उसकी भूमिका (LIBRARIAN, QUALITIES AND HIS ROLE)
जिस प्रकार शिक्षक वर्ग अधिकांशत: विद्यालय की बनाता है, उसी प्रकार पुस्तकालयाध्यक्ष पुस्तकालय को बनाता है। जैसा पुस्तकालयाध्यक्ष होगा, वैसा ही पुस्तकालय होगा। यदि हमारे पास उत्तम पुस्तकों का संकलन, पुस्तकालय एवं अध्ययन-कक्ष अपनी समस्त सामग्री के साथ उपलब्ध है, परन्तु उनको कुशलतापूर्वक संचालित करने वाला पुस्तकालयाध्यक्ष नहीं है तो उपयुक्त सामग्री बहुत ही कम लाभ प्रदान करने वाली सिद्ध होगी। अतः प्रत्येक विद्यालय के लिए प्रशिक्षित एवं योग्य पुस्तकालयाध्यक्ष की आवश्यकता है। इसकी नियुक्ति पूर्ण समय के लिए की जानी चाहिए। बहुधा हमारे विद्यालयों में या तो थोड़े समय के लिए एक Part time पुस्तकालयाध्यक्ष नियुक्त करके या किसी शिक्षक के अध्यापन कार्य के लिए कुछ घण्टे कम करके पुस्तकालय का कार्य सौंप दिया जाता है, परन्तु ऐसी व्यवस्था सन्तोषजनक नहीं होती, क्योंकि इस व्यवस्था के द्वारा पुस्तकालय का सदुपयोग नहीं हो पाता है और पुस्तकालय अपने उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर पाता है। पुस्तकालय की सफलता एक कुशल सेवा पर ही निर्भर है। यह कुशल सेवा तभी प्राप्त की जा सकती है जब एक योग्य तथा प्रशिक्षित पुस्तकालयाध्यक्ष को पूर्ण समय के लिए नियुक्त किया जाये।
पुस्तकालयाध्यक्ष को वेतन, सेवा-दशाओं (Service Conditions), आदि बातों में शिक्षक के समान रखा जाना चाहिए, क्योंकि उसका कार्य उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना कि शिक्षक का उनमें शिक्षक के समान हो कुछ गुणों की अपेक्षा की जाती है। उदाहरणार्थ उत्साह, चातुर्य, समझदारी, सहृदयता, उपगम्यता या मिलनसारी (Approachability), मनःशान्ति या सन्तुलन (Poise), आदि। उसमें इन गुणों का होना इसलिए आवश्यक है क्योंकि वह एक शैक्षिक संस्था में व्यावहारिक एवं प्रशासकीय दोनों प्रकार के कार्यों को पूर्ण करता है। इसके साथ ही वह विद्यालय के प्रत्येक भाग की सेवा भी करता है तथा बालकों एवं बालिकाओं की सहायतार्थ उनको रुचि के प्रत्येक क्षेत्र पर बातचीत करता है। उसके निम्नलिखित कार्य महत्त्वपूर्ण हैं-
(1) पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं, आदि का वर्गीकरण करना तथा उनका लेखा रखना।
(2) उत्तम पुस्तकों की बालकों तथा शिक्षकों को जानकारी कराने के लिए उनका विभिन्न ढंगों से प्रसार करना।
(3) बालकों तथा शिक्षकों को पढ़ने के लिए पुस्तकें देना और उनको लेखबद्ध करना।
(4) विभिन्न स्तरों के बालकों के लिए उत्तम पुस्तकों की सूची तैयार करना तथा उनके पास तक पहुंचाना।
(5) पुस्तकालय में आई हुई नवीन पुस्तकों के मुखपृष्ठों (Title Pages) तथा विभिन्न पुस्तकों के पुनर्निरीक्षणों को सूचनापट पर लगाना।
(6) चालकों को पुस्तकों के विषय में सलाह देना। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत या सामूहिक योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता हो, उनके विषय में बालकों को बताना।
(7) पुस्तकालय में सुव्यवस्था रखना।
पुस्तकालय के अधिकाधिक उपयोग को प्रोत्साहन (ENCOURAGEMENT FOR MAXIMUM USE OF LIBRARY)
बहुधा कहा जाता है कि ‘पुस्तकालय एक विश्वविद्यालय है।” परन्तु यह कथन पूर्णतया सत्य नहीं है। इसमें केवल आंशिक सत्यता है। यदि हमारे पास सुव्यवस्थित पुस्तकालय कक्ष, मूल्यवान साज-सज्जा, उत्तम पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाएँ तथा कुशल पुस्तकालयाध्यक्ष, आदि हैं, परन्तु यदि हम उनका उपयोग न करें तो वे न्यूनतम महत्व की वस्तुएँ होंगी। बहुधा देखा जाता है कि हमारे बालकों का अधिकांश भाग पुस्तकालय का प्रयोग कभी-कभी करता है या बिल्कुल भी नहीं करता है। पुस्तकालयों की स्थापना केवल देखने के लिए नहीं की जाती है, वरन् उनका उपयोग करने के लिए की जाती है। यदि यह कहा जाये कि “प्रयोग किया जाने वाला पुस्तकालय एक विश्वविद्यालय है”, तो अधिक उत्तम होगा। पुस्तकालय के अधिकाधिक प्रयोग को प्रोत्साहन देने के लिए पुस्तकालयाध्यक्ष एवं विद्यालय अधिकारियों को निम्नलिखित साधनों को अपनाना चाहिएकी जानी चाहिए।
(1) ‘पुस्तकालय दिवस’ मनाये जायें।
(2) सूचनापट पर पुस्तकों के मुख-पत्र, पुनर्निरीक्षण, अध्ययन सामग्री की सूची एवं अन्य रोचक सामग्री प्रदर्शित की जाये।
(3) पुस्तकों की विषयानुसार नुमायश लगानी चाहिए।
(4) अल्मारियों पर उनकी विषय-सामग्री की सूची लगानी चाहिए।
(5) विभिन्न महत्त्वपूर्ण प्रकरणों पर पुस्तकों की सूची तैयार करके उनके प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाये।
(6) पुस्तकालयाध्यक्ष प्रत्येक पढ़ने वाले में व्यक्तिगत रुचि रखे। वह उनके साथ सद्व्यवहार करे तथा उनकी कठिनाइयों को जानने का प्रयत्न करे।
(7) विभिन्न पुस्तकों के विषय में संक्षेप में बताकर पुस्तकालय के अधिकाधिक प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
(8) बालकों की पुस्तकालय समिति बनाई जाये, जिसका प्रमुख कार्य- बालकों में पुस्तकालय के प्रति रुचि एवं उसके प्रयोग के लिए प्रचार करना होगा।
(9) शिक्षकों की भी एक पुस्तकालय समिति बनाई जाये जो पुस्तकालयाध्यक्ष को पुस्तकों के चयन, पुस्तकालय के प्रशासन एवं उसके अधिकाधिक प्रयोग के लिए सुझाव देने में सहायता देगी।
(10) कक्षा-पुस्तकालय स्थापित किये जायें। ये पुस्तकालय कक्षाध्यापक के अधीन रहेंगे। इनमें समस्त विषयों की बालकों के स्तर के अनुसार पुस्तकें रखी जानी चाहिए। इन पुस्तकालयों के द्वारा बालकों में पढ़ने की आदत का निर्माण किया जा सकता है। यह पुस्तकालय केन्द्रीय पुस्तकालय का अंग होगा। इसके द्वारा बालकों में पुस्तकों के उचित प्रयोग एवं उनके प्रति प्रेम रखने व स्वाध्ययन की भावना का विकास किया जा सकता है।
(11) पुस्तकालय के अधिकाधिक प्रयोग को प्रोत्साहित करने में विषय पुस्तकालय का भी बहुत महत्त्वपूर्ण हाथ है। इसके द्वारा बालकों में विशेष रुचियों का विकास किया जा सकता है तथा उनमें पढ़ने की आदत की नींव डालने में बहुत सहायता दी जा सकती है। विषय पुस्तकालय में विषय से सम्बन्धित पुस्तकें एवं पत्रिकाएँ होंगी। इनके द्वारा शिक्षक तथा बालकों के मध्य अधिकाधिक सम्पर्क स्थापित होने के अवसर प्रदान किये जाते हैं।
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