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पाठ्यचर्या संगठन की सीमाएँ (Limitations of Curriculum Organisation)
पाठ्यचर्या के संगठन का जो स्वरूप प्रस्तुत किया गया है, उसमें कुछ दोष है तथा कुछ गुण भी हैं। जैसे- क्रिया आधारित संगठन अनुशासित ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ सिद्ध हो सकता है। जिससे सर्वोन्मुखी शिक्षा हेतु अवसर प्राप्त करना कठिन कार्य होगा इसमें ज्ञान को ज्ञानान्शों में विभाजित कर दिया जाता है। फिर भी ज्ञान अन्त में जाकर एक स्थान पर संगठित ही होता है। इसमें सामाजिक क्रियाएँ, शिक्षण विधियाँ, प्रक्रियाएँ, समस्याएँ तथा आवश्यकताओं को खण्डों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है किन्तु ऐसे में ज्ञान सर्वोपरि नहीं होता है एवं संगठन के इस स्वरूप की आलोचना की जाती है।
अनुभवों का उपयोग लक्ष्य प्राप्ति हेतु किया जाता है किन्तु यह भी सत्य है कि विभिन्न लक्ष्यों हेतु, विभिन्न संगठनों का निर्माण करना होगा। भिन्न-भिन्न संगठनों के निर्माण में कुछ दोषों का आगमन भी होगा क्योंकि यह सर्वथा दोषरहित नहीं हो सकता है किन्तु फिर भी प्रयास यही रहता है कि व्यावहारिकता एवं आवश्यकताओं को दृष्टिगत किया जाए तथा सैद्धान्तिक पक्षों पर भी बल दिया जाए। पाठ्यचर्या के संगठन का कई शिक्षाशास्त्री विरोध करते हैं तो कई समर्थन भी करते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार छोटे बालकों की शिक्षा का प्रारम्भ से अन्त तक संगठन उपयुक्त होता है। अतः यह भी कहा जा सकता है कि पाठ्यचर्या के भिन्न-भिन्न व्यापक क्षेत्रों तथा विषयों हेतु पाठ्यचर्या संगठन अति उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं तथा एक व्यावहारिक उपयोगितावादी पाठ्यचर्या का स्वरूप सामने होगा जिससे छात्रों को अमूल्य सहयोग प्राप्त होगा। शिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति सरलता से होगी। अतः इस प्रकार पाठ्यचर्या संगठन की कुछ सामान्य समीक्षा प्रस्तुत की गई है।
पाठ्यचर्या के संगठन सम्बन्धी सुझाव (Suggestions for Organisation of Curriculum)
पाठ्यचर्या के संगठन सम्बन्धी सुझाव निम्नलिखित हैं-
- प्राथमिक स्तर पर पाठ्यचर्या संगठन किया जाना चाहिए।
- माध्यमिक स्तर पर पाठ्यचर्या संगठन किया जाना चाहिए।
- उच्च स्तर पर पाठ्यचर्या संगठन किया जाना चाहिए।
- पाठ्यचर्या संगठन में समय-समय पर आवश्यक परिवर्तन किया जाना चाहिए।
- पाठ्यचर्या में पठन-पाठन, लेखन आदि कौशलों को विशेष स्थान प्रदान किया जाना चाहिए।
- पाठ्यचर्या संगठन में पाठ्यचर्या के विषयों से अधिक उन विषयों हेतु शिक्षण विधियों पर विचार किया जाए एवं महत्त्व प्रदान किया जाए।
- पाठ्यचर्या संगठन का स्वरूप अनुशासित, क्रमबद्ध एवं आवश्यकता पर आधारित होना चाहिए।
- पाठ्यचर्या संगठन में शिक्षा के व्यवहारिक पक्ष को विशिष्ट स्थान मिलना चाहिए।
- पाठ्यचर्या संगठन में व्यवसायिक कुशलता के साथ-साथ भाषायी कुशलता पर भी विचार किया जाना चाहिए।
- अभिक्रियात्मक कौशलों का विकास करना चाहिए।
- पाठ्यचर्या संगठन की समीक्षा की जानी चाहिए।
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