प्रबन्ध में मानव सम्बन्ध सिद्धान्त एल्टन मायो के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
एफ. डब्ल्यू. टेलर के द्वारा प्रबन्ध के वैज्ञानिक सिद्धान्त का विकास, जहाँ प्रबन्ध के A-INOU परम्परागत सिद्धान्त के प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ, वहीं जार्ज एल्टन मायो के मानव सम्बन्ध सिद्धान्त का विकास प्रबन्ध के वैज्ञानिक सिद्धान्त के सुधार स्वरूप हुआ। टेलर ने अपने वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त में वैज्ञानिक मान्यताओं पर अत्यधिक बल दिया, उन्होंने अपने प्रबन्ध सिद्धान्त में मानव को एक आर्थिक मानव माना तथा प्रबन्ध में मानवीय तत्त्वों की भूमिका को अनदेखा किया, जिससे ‘प्रबन्ध में अनुपस्थितिवाद की समस्या’ उत्पन्न हुई और संगठन की उत्पादकता सीमित हो गई। एल्टन मायो ने इस समस्या के समाधान हेतु अपने प्रबन्ध सिद्धान्त में मानवीय तत्त्वों की भूमिका पर विशेष बल दिया, जिससे प्रबन्धन में अनुपस्थितिवाद की समस्या का समाधान हुआ और संगठन के उत्पादन में वृद्धि आई। एल्टन मायो के प्रबन्ध सिद्धान्त को मानव सम्बन्ध कहा जाता है, क्योंकि इसमें मानवीय मूल्यों की प्रधानता है।
एल्टन मायो ने प्रबन्ध व्यवस्था के अन्तर्गत समस्याओं के समाधान हेतु प्रथम प्रयोग किया तथा आगे चलकर उनके द्वारा ‘हार्थोन अध्ययन’ (Hawthorne Studies) भी किया गया। एल्टन मायो का मानव सम्बन्ध उनके द्वारा किए गए हाथन अध्ययन के परिणामों पर ही आधारित
एल्टन मायो ने 1923 ई. में फिलाडेल्फिया के एक कपड़ा कारखाने में पहला प्रयोग न किया, जिसका नामकरण उन्होंने ‘The First Inquiry’ किया। अपने इस अध्ययन के दौरान उन्होंने बुनाई प्रभाग की समस्याओं का हर ढंग और हर दृष्टिकोण से अध्ययन किया। अपने गहन अध्ययन और प्रयोग के आधार पर एल्टन मायो ने इस निष्कर्ष को पाया कि बुनाई प्रभाग में काम करने वाले मजदूर समस्या से पीड़ित है, जिसका उन्हें कोई समाधान उपलब्ध नहीं हो पा रहा था। अध्ययनोपरांत एल्टन मायो ने कारखाना प्रबन्ध से अनुमति प्राप्त करके विश्राम काल का प्रयोग शुरू किया, जिसका वस्त्र कारखाने पर अत्यन्त सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
एल्टन मायो द्वारा किया गया एक अति महत्वपूर्ण अध्ययन ‘हार्थोन अध्ययन’ है, जो वेस्टर्न इलेक्ट्रिक कम्पनी के शिकागो स्थिति हार्थोन इकाई में किया गया। यह अध्ययन अग्रलिखित चार चरणों में किया गया- सर्वप्रथम- ‘प्रकाश प्रयोग’ किया गया, जिसके अन्तर्गत प्रकाश के विभिन्न स्तरों का मजदूरों की उत्पादकता पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह जानने का प्रयास किया गया। द्वितीय- ‘रिले असेम्बली टेस्ट रूम प्रयोग’ किया गया, जिसके अन्तर्गत कार्य की स्थितियों में विभिन्न परिवर्तनों का मजदूरों की उत्पादकता तथा उत्साह पर प्रभाव का देखा गया। तृतीय- ‘व्यापक साक्षात्कार कार्यक्रम’ चलाया गया, जिसका उद्देश्य कर्मचारियों से बात करके उनकी भावनाओं को जानना था। चतुर्थ- ‘बैंक वायरिंग प्रयोग’ किया गया, जिसके द्वारा यह जानने का प्रयास किया गया कि प्रत्येक मजदूरों की उत्पादकता पर क्या प्रभाव पड़ता है। अपने अध्ययन के उपरान्त एल्टन मायो ने निष्कर्ष के रूप में पाया कि संगठन एक सामाजिक व्यवस्था होता है, जिसमें सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारक कार्मचारियों की उत्पादकता तथा उत्साह को निर्धारित करते हैं, उन्होंने पाया कि मजदूरों में छोटे सामाजिक समूह यानी अनौपचारिक संगठन बनाने की प्रवृत्ति होती है तथा संगठन की उत्पादकता में नेतृत्व, पर्यवेक्षण की शैली, संचार और मजदूरों की भागीदारी एक केन्द्रीय भूमिका को निभाते हैं।
एल्टन मायो द्वारा किया गया हार्थोन अध्ययन उनके मानव सम्बन्ध सिद्धान्त के उदय का आधार बना। मानव सम्बन्ध सिद्धान्त के निम्नलिखित तत्व या विशेषताएँ हैं-
1. व्यक्ति- मानव सम्बन्ध सिद्धान्त में व्यक्तियों की भावनाओं तथा अनुभूतियों को महत्वपूर्ण माना जाता है। संगठन में प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय होता है, जो अपने साथ कुछ दृष्टिकोण, विश्वास, जीवन शैली तो लाता ही है तथा साथ ही कुछ तकनीकी और तार्किक कुशलताएँ भी संगठन में लाता है।
2. अनौपचारिक संगठन- मानव सम्बन्ध सिद्धान्त का दूसरा तत्त्व अनौपचारिक संगठन है। औपचारिक संगठन के अन्तर्गत अनौपचारिक संगठन मौजूद होता है, जो मनुष्य के सामाजिक पहलुओं पर ध्यान बहुत दिनों तक सहयोगात्मक व संगठनात्मक सम्बन्ध के अनुसार कार्यों को निष्पादित करता है तो उसमें एक प्रकार का भावनात्मक सम्बन्ध विकसित हो जाता है। जिसे अनौपचारिक सम्बन्ध कहा जाता है। एल्टन मायो ने कहा है कि संगठन का औपचारिक रूप ही उसकी वास्तविक प्रकृति की जानकारी उसके अनौपचारिक स्वरूप पर भी आधारित होता है। संगठन के अन्तर्गत अनौपचारिक रूप से जो व्यवहार किये जाते हैं या जिन सम्बन्धों की स्थापना होती है, उसका संगठन में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, जो गम्भीर, स्थायी और बहुत हद तक वास्तविक होता है।
3. भागीदारीपूर्ण प्रबन्ध – मानव सम्बन्ध सिद्धान्त संगठन के निर्णय-निर्माण में मजदूरों की भागीदारों का समर्थन करती है। भागीदारीपूर्ण प्रबन्ध, संगठन में मजदूरों में एक भागीदारी का अहसास पैदा करती है, जिससे संगठन की उत्पादकता बढ़ती है तथा साथ-ही-साथ यह कार्य- परिवेश को सुखद बना देता है। भागीदारी व्यवस्था संगठन से मजदूरों के अलगाव को रोकता है, जिससे संगठन के लक्ष्यों को पाना आसान हो जाता है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक चिन्तकों में एल्टन मायो एक ऐसे चिन्तक हैं, जिन्होंने उद्योगों के अन्तर्गत मानववादी दृष्टिकोण को स्थापित किया है, हालांकि इनकी आलोचना की गई है। इनके आलोचकों का सर्वप्रथम- यह कहना कि एल्टन मायो के नेतृत्व में अध्ययन करने वाले दल ने मानव सम्बन्ध दृष्टिकोण के प्रभाव में औद्योगिक समस्याओं का एकपक्षीय अध्ययन किया है, परन्तु वे भूल गये हैं कि कार्य निष्पादन में वैज्ञानिक तकनीक व आर्थिक तकनीक का कितना प्रभावकारी प्रयोग एवं महत्व होता है। द्वितीय- पीटर एफ. ड्रकर ने आलोचना करते हुए कहा है कि मायो के दृष्टिकोण में आर्थिक चेतना के आयामों का अभाव है तथा कार्य – प्रकृति की जगह अन्तः वैयक्तिक सम्बन्धों पर अधिक जोर दिया गया है। तृतीय- एलेक्स कैरी ने मायो के हार्थोन प्रयोग की आलोचना करते हुए कहा है कि इसमें वैज्ञानिक मान्यताओं का अभाव है तथा पाँच-छह महिलाओं के दृष्टिकोण व कार्य पद्धतियों का व्यापक क्षेत्र में सामान्यीकृत का प्रयास है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। चतुर्थ- आलोचकों का कहना है कि मायो ने संगठन के सदस्यों पर अधिक जोर दिया है तथा काम और प्रयोजन की उपेक्षा किया है। पंचम- मार्क्सवादियों का कहना है कि यह सिद्धान्त मजदूरों के शोषण की एक नई तकनीक है, क्योंकि इसमें आर्थिक कारकों की उपेक्षा की गई है। अन्त में- डेनियल सेल का कहना है कि मायो का प्रयोग अपर्याप्त व अनुपयुक्त है, क्योंकि इनके सिद्धान्त में तनाव का अभाव है।
निष्कर्षतः एल्टन मायो द्वारा अपने प्रबन्ध सिद्धान्त में मानव सम्बन्धों पर अत्यधिक जोर दिया गया है तथा मानव के आर्थिक पक्षों की भूमिका को अनदेखा किया है, जो उचित नहीं है। इन आलोचनाओं के बाद भी उनके योगदान को औद्योगिक क्षेत्र के साथ-साथ राज्य के प्रशासनिक क्षेत्र और विशेषतः नौकरशाही के क्षेत्र में भी स्वीकार किया जाता है। संगठन के अन्तर्गत कामगारों की भागीदारी की बात कहकर मायो ने एक महत्वपूर्ण प्रजातांत्रिक व आधुनिक कदम उठाया है।
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