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बच्चों के सीखने में शिक्षक की क्या भूमिका होनी चाहिए? in Hindi

बच्चों के सीखने में शिक्षक की क्या भूमिका होनी चाहिए? in Hindi
बच्चों के सीखने में शिक्षक की क्या भूमिका होनी चाहिए? in Hindi

बच्चों के सीखने में शिक्षक की क्या भूमिका होनी चाहिए?

सीखना ज्ञान के निर्माण की एक प्रक्रिया है। छात्र सक्रिय रूप से अपने क्रियाकलापों/प्रदान की गई सामग्री के आधार पर नये विचारों को वर्तमान विचारों से जोड़कर अपने ज्ञान की रचना करते हैं। उदाहरण के लिए, किसी घटना अथवा वस्तु के लिए पाठ, चित्र अथवा दृश्य सामग्री का उपयोग करने के साथ सामूहिक चर्चा अथवा अन्तः क्रिया करना। उपयुक्त गतिविधियाँ छात्रों में विचारों की रचना एवं पुर्नचना में मदद करती हैं। सहयोगी अधिगम अर्थ सम्बन्धी विभिन्न विचारों के आदान-प्रदान व बातचीत के अवसर प्रदान करता है, जैसे-जैसे छात्र सीखता है वह व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से किसी वस्तु अथवा किसी घटना से सम्बन्धित अर्थ का निर्माण करता है। अर्थ निर्माण ही सीखना है। शिक्षकों को बच्चों को ऐसे प्रश्न पूछने की अनुमति देनी चाहिए जिनसे वे स्कूल में सिखाई जाने वाली चीजों का सम्बन्ध बाहरी दुनिया से “जोड़ सकें, बच्चों को अपने शब्दों में जवाब देने और अपने अनुभव के आधार पर उत्तर देने को प्रोत्साहित करना चाहिए। ‘चतुर अनुमान’ को एक कारगर शिक्षाशास्त्रीय साधन के रूप में प्रोत्साहित किये जाने की जरूरत है। शिक्षक द्वारा ऐसे अवसर प्रदान किये जाने चाहिए ताकि बच्चे प्रश्न पूछकर पर्यवेक्षण करके, वाद-विवाद, खोज एवं चिन्तन कर अवधारणाओं को आत्मसात् करें या नये विचारों का सृजन करें।

बच्चे विभिन्न प्रक्रियाओं के द्वारा सीखते हैं। ये निम्न प्रकार हैं-

बच्चे विभिन्न तरीकों से सीखते हैं- अनुभव के माध्यम से, चीजे स्वयं करने व स्वयं बनाने से, प्रयोग करने से, पढ़ने, विमर्श करने, पूछने, सुनने, सोचने व मनन करने से तथा भाषण गतिविधि या लेखन के माध्यम से एवं स्वयं को अभिव्यक्त करने से। बच्चों को विकास के मार्ग में इन सभी तरह के अवसर मिलने चाहिए।

सभी बच्चे स्वभाव से ही सीखने के लिए प्रेरित रहते हैं और उनमें सीखने की क्षमता होती है। स्कूल के भीतर व बाहर, दोनों जगहों पर सीखने की प्रक्रिया चलती है। इन दोन जगहों में यदि सम्बन्ध रहे तो सीखने की प्रक्रिया मजबूत होती है। अर्थ निकालना, अमूर्त सोच की क्षमता विकसित करना, विवेचना व कार्य, अधिगम की प्रक्रिया के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू हैं।

बच्चे मानसिक रूप से तैयार हों, उससे पहले ही उन्हें पढ़ा देना सीखने को कमजोर करना है। बच्चे बहुत से तथ्य याद तो रख सकते हैं, लेकिन सम्भव है कि वे न तो उन्हें समझ पायें, न ही उन्हें अपने आस-पास की दुनिया से जोड़ पाये।

सीखने की एक उचित गति होनी चाहिए ताकि विद्यार्थी अवधारणाओं को रटकर और परीक्षा के बाद सीखे हुए को भूलन जायें बल्कि उसे समझ सकें और आत्मसात् कर सकें। साथ ही सीखने की विविधता व चुनौतियाँ होनी चाहिए ताकि वह बच्चों को रोचक लगे और उन्हें व्यस्त रख सके। केवल दोहराव से ऊब पैदा होती है।

सीखने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है आस पास का वातावरण, प्रकृति, चीजों व लोगों से कार्य व भाषा दोनों के माध्यम से अन्तः क्रिया करना।

सीखने के लिए सीखना, जो सीखा है उसे छोड़ने की व दुबारा सीखने की तत्परता नई स्थितियों का सामना करने के लिए महत्वपूर्ण है। शिक्षा तथा प्रशिक्षण में यह आवश्यक है कि ज्ञान सृजन की प्रक्रिया पर जोर दिया जाये।

‘स्कूलों में शिक्षण अधिगम सुन्दर, सुखद वातावरण में होना चाहिए। यदि बच्चे ऐसे वातावरण के निर्माण में सक्रिय भाग लें तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।

अधिगम उस सामाजिक वातावरण / सन्दर्भ से बेहद प्रभावित होता है जहाँ से शिक्षक तथा छात्र आते हैं। स्कूल तथा कक्षा का सामाजिक परिवेश सीखने की प्रक्रिया, यहाँ तक कि पूरी शिक्षा प्रक्रिया पर असर डालता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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