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बाल्यावस्था में सामाजिक विकास | Social Development during Childhood in Hindi

बाल्यावस्था में सामाजिक विकास | Social Development during Childhood in Hindi
बाल्यावस्था में सामाजिक विकास | Social Development during Childhood in Hindi

बाल्यावस्था में सामाजिक विकास (Social Development during Childhood)

बालक में वास्तविक रूप से सामाजिक विकास की शुरूआत बाल्यावस्था से मानी जाती है। क्रो एवं क्रो के अनुसार, “इस अवस्था में बालक अपनी रुचि का व्यवहार प्रदर्शित करने लगता है।” 6 वर्ष की आयु के बाद बालक घर से बाहर निकलता है और बाहरी वातावरण से अनुकूलन स्थापित करने का प्रयास करता है। स्कूल और खेल के मैदान में उसमें सहयोग, स्वतंत्रता, सेवा, उत्तरदायित्व, सहानुभूति और सद्भाव जैसे सामाजिक गुणों का विकास होता है। उम्र के इस पड़ाव में बालक समाजोपयोगी कार्य करने के लिए किसी गुट अथवा टोली का सदस्य बन जाते हैं। हरलॉक के अनुसार, “ऐसे दल बालक में न्याय, साहस, आत्म-नियंत्रण, सहनशीलता के गुणों का विकास करते हैं।” परिवार, स्कूल तथा मित्र-मंडली सामाजीकरण की प्राथमिक संस्थाएँ हैं। बाल्यावस्था के अंतिम चरणों में बालक अच्छे-बुरे की पहचान कर समाज के स्थापित मूल्यों के अनुसार व्यवहार करने लगता है।

प्रारम्भिक बाल्यावस्था में सामाजिक विकास (2 वर्ष से 6 वर्ष)

इस अवस्था में बालक घर से बाहर के लोगों के साथ सम्पर्क करना सीखते हैं। विभिन्न खेलों एवं क्रियाकलापों के माध्यम से समायोजन करना सीखते हैं।

सामाजिक सम्पर्क से उत्पन्न अनुभूतियों के आधार पर दो प्रकार के व्यवहार उत्पन्न होते हैं-

  1. सामाजिक व्यवहार (Social Behaviour)
  2. असामाजिक व्यवहार (Unsocial Behaviour)

बाल्यावस्था में निम्नलिखित व्यवहार उत्पन्न होते हैं-

1) अनुकरण (Imitation)- बालक बड़ों के द्वारा किए गए उन व्यवहारों एवं कार्यों का अनुकरण करते हैं जिन्हें सामाजिक रूप से मान्यता प्राप्त होती है अर्थात् सामाजिक मानदण्डों के अनुसार जो व्यवहार अधिक मान्यता प्राप्त होते हैं उन्हें करना सीखता है।

2) सामाजिक अनुमोदन (Social Approval) – सामाजिक रूप से स्वीकृत पाने की इच्छा से वह ऐसे कार्यों को करता है जो समाज में उसकी छवि को अच्छा बनाते हैं। सामाजिक अनुमोदन इच्छा बालकों में सामाजीकरण को प्रभावित करती है। जिन बालकों की यह इच्छा अधिक होती है उनका सामाजीकरण तेज गति से होता है।

3) सहयोग (Cooperation) – बाल्यावस्था में बच्चे खेलने में अपने साथियों को सहयोग देना शुरू करते हैं, उनकी यही प्रवृत्ति बड़े होने पर उनमें सहयोग की भावना का विकास करती हैं। ऐसे बालकों में नेतृत्व के गुण का तेज गति से विकास होता है।

4) मित्रता (Friendship) – जब बालक घर से बाहर निकलने लगता है अर्थात् 2 वर्ष का हो जाने के पश्चात् वह खेलने, घूमने के लिए घर से बाहर निकलता है। उसमें दूसरों के साथ मिलकर काम करने का गुण विकसित होता हैं और जिसके साथ वो खेलते हैं उनसे मित्रता हो जाती है। मित्रता का यही गुण जीवन में उन्हें सामाजिक समायोजन क्षमता का विकास करता है।

5) आसक्ति (Addiction) – किसी के प्रति विशेष लगाव बचपन में बालक का अपनी माँ के प्रति हार्दिक लगाव होता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है और घर से बाहर निकलने लगता है अन्य लोगों से भी हार्दिक सम्बन्ध स्थापित करता है। इस प्रकार उसका सामाजिक दायरा बढ़ता है और वह समाज में अच्छी तरह से समायोजन करने में समर्थ हो पाता है।

2-6 वर्ष की उम्र में अर्थात् प्रारम्भिक बाल्यावस्था में कुछ असामाजिक गुण भी विकसित होते हैं जो समाज में बालक को असमायोजित या कुसमायोजित करते हैं। बच्चों द्वारा इस अवस्था में किए जाने वाले असामाजिक व्यवहार निम्नलिखित हैं-

1) अहं भाव (Egocentric Behaviour) – बालकों में अहं भाव अधिक होता है। यह मेरा खिलौना, यह मेरा कपड़ा आदि परन्तु बड़े होने के साथ यह कम होने लगता है। कम न होने की स्थिति में असमायोजित व्यवहार करने लगता है।

2) आक्रामकता (Aggression) – यह व्यवहार बालक को लड़ाई-झगड़ा, मार-पीट तथा दूसरों को हानि पहुँचाने के लिए होता है। जिन बालकों में यह व्यवहार उम्र बढ़ने के साथ-साथ कम नहीं होता वे समाज में अलोकप्रिय हो जाते हैं।

3) पूर्वाग्रह (Prejudice) – 2 – 6 वर्ष की उम्र के बालकों में यह भावना होती है कि कुछ लोग उनसे भिन्न व्यवहार करते हैं जिन बच्चों के अन्दर यह भावना होती है वे हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं।

4) लिंग-विरोध (Sex Analogisms) – 4 वर्ष की उम्र तक बालक-बालिकाएँ एक साथ मिलकर खेलते हैं। किसी प्रकार का विरोध नहीं करते। जब समाज द्वारा बड़े होने पर लड़के-लड़कियों के खेलों में भिन्नता की जाती है तो लिंग-विरोध की भावना विकसित होती है ।

उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास

6 से 12 या 13 वर्ष की उम्र में बालक-बालिकाएँ विद्यालय जाने लगते हैं। विद्यालय जाने पर वे शिक्षकों एवं मित्रों से अधिक प्रभावित होते हैं। इस प्रकार बाहर मिलने-जुलने से सामाजिक विकास होता है।

  • प्रतिस्पर्धा (Competition) अधिक सम्मान पाने की इच्छा से उत्कृष्ठ प्रदर्शन करना
  • सामाजिक अनुमोदन (Social Approval) लोकप्रियता प्राप्त करने हेतु सामाजिक रूप से मानक व्यवहार करने का प्रयत्न
  • उत्तरदायित्व (Responsibility) अपने दायित्वों को अच्छी तरह से पूरा करने की भावना
  • अति संवेदनशीलता (Over Sensitivity) अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए अति संवेदनशीलता दिखाना
  • क्रीड़ा कौशल (Sport Skills) खेल-कूद में रुचि लेना और आनंद उठाना
  • सामाजिक सूझ (Social Insight) सामाजिक अभियोजन की क्षमता जिससे समाज से अनुकूलन कर सके
  • संसूच्यता एवं प्रतिसूच्यता (Suggestibility and Counter Suggestibility) स्वयं सुझाव ग्रहण करने तथा दूसरों को सुझाव देने की क्षमता

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Anjali Yadav

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