बुनियादी शिक्षा के उद्देश्य
बुनियादी शिक्षा का उद्देश्य बालकों को गतिशील बनाना है ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें और साथ ही साथ अपना सर्वांगीण विकास कर सके। बुनियादी शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) नागरिकता के विकास का उद्देश्य- जनतन्त्रीय शासन प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति शासन के प्रति उत्तरदायी होता है और राज्य के प्रति उसके कर्त्तव्यों में वृद्धि हो जाती है किन्तु इसके साथ-साथ उसे अनेक अधिकार भी प्राप्त हो जाते हैं। वह इन कर्त्तव्यों का पालन और अधिकारों का उपयोग तभी कर सकता है जब वह उनके प्रति सजग हो इसके लिए ऐसी शिक्षा आवश्यक है, जो उसमें नागरिकता के सब गुणों का विकास करे। बुनियादी शिक्षा इन गुणों के विकास में योग देती है।
(2) संस्कृति के विकास का उद्देश्य हमारी शिक्षा प्रणाली का एक प्रत्यक्ष दोष यह है कि उसमें भारतीय संस्कृति का ज्ञान न कराया जाकर, बालकों को पाश्चात्य आदर्शों और विचारों का भक्त बनाया जाता है। फलस्वरूप, वे अपनी परम्परागत संस्कृति से पूर्णतया अनभिज्ञ रहते हैं। इसके दूषित परिणाम को बताते हुए गाँधीजी ने लिखा है, “यदि किसी स्थिति में पहुँच कर एक पीढ़ी अपने पूर्वजों के प्रयासों से पूर्णतया अनभिज्ञ हो जाती है या उसे अपनी संस्कृति पर लज्जा आने लगती है तो वह नष्ट हो जाती है। “
अपने इस विचार में दृढ़ विश्वास रखने के कारण गाँधीजी ने शिक्षा की अपेक्षा शिक्षा के सांस्कृतिक पक्ष को अधिक महत्व दिया है। इसी उद्देश्य से बुनियादी शिक्षा में भारतीय उद्योग या शिल्पों को आधारभूत स्थान दिया गया है और शिक्षा को भारतीय संस्कृति के अनुरूप बनाया गया है।
(3) चारित्रिक विकास का उद्देश्य आधुनिक भारतीय समाज का अविराम गति से नैतिक पतन हो रहा है। अतः बुनियादी शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य है- बालक का नैतिक विकास करना। नैतिक शिक्षा में अपना विश्वास प्रकट करते हुए गाँधीजी ने लिखा है- “मैंने हृदय की संस्कृति या चारित्रिक निर्माण को सर्वोच्च स्थान दिया है। मुझे विश्वास है कि नैतिक प्रशिक्षण सबको समान रूप से दिया जा सकता है। इस बात से कोई प्रयोजन नहीं है कि उनकी आयु और पालन-पोषण में कितना अन्तर है।”
(4) त्रिविध विकास का उद्देश्य भारत की वर्तमान शिक्षा पद्धति में केवल बालक के मानसकि विकास पर बल दिया जाता है। उसमें बालक के शारीरिक और आध्यात्मिक विकास के प्रति रंचमात्र भी ध्यान नहीं दिया जाता है। इस प्रकार, बालक का केवल एकांगी विकास होता है। इसके विपरीत बुनियादी शिक्षा में बालक के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के प्रति पूर्ण ध्यान दिया जाता है। पाठ्यक्रम में इस प्रकार के विषयों का समावेश किया गया है, जिनसे बालक का तीनों प्रकार का अर्थात् त्रिविधि विकास होना निश्चित हो जाता है। इस विकास पर बल देते हुए गाँधीजी ने कहा है- “शिक्षा से मेरा अभिप्राय है- बालक और मनुष्य की सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का सर्वतोन्मुखी विकास।”
(5) आर्थिक विकास का उद्देश्य इस उद्देश्य के दो अभिप्राय है- बालकों द्वारा बनायो जाने वाली वस्तुओं को बेचकर विद्यालय के व्यय की आंशिक पूर्ति करना, और बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् बालकों का किसी उद्योग के द्वारा धन का अर्जन करना। इस सम्बन्ध में स्वयं गाँधी जी ने लिखा है- “प्रत्येक बालक और बालिका को विद्यालय छोड़ने के पश्चात् किसी व्यवसाय में लगाकर स्वावलम्बी बनाना चाहिए।”
(6) सर्वोदय समाज की स्थापना का उद्देश्य- आज का सम्पूर्ण समाज-स्वार्थ सिद्धि को नीति का अनुशरण कर रहा है। यह समाज स्पष्ट रूप से दो वर्गों में विभक्त है- धनवान और धनहीन। ये दोनों वर्ग विकृत है- पहला, धन की प्रचुरता के कारण और दूसरा, धन के अभाव के कारण बुनियादी शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य है- इस “विकृत समाज’ के स्थान पर “सर्वोदय समाज की स्थापना करने की चेष्टा की जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर डॉ. एम. एस. पटेल ने लिखा है- “बुनियादी शिक्षा के उद्देश्य में से एक उद्देश्य यह है- गाँधीजी की सर्वोदय समाज की धारणा के अनुसार भारतीय समाज का पुन: संगठन करना।
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