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बूनर के शिक्षण सिद्धान्त की विशेषताएँ | ब्रूनर के सिद्धान्त के लाभ | ब्रूनर के सिद्धान्त के दोष

बूनर के शिक्षण सिद्धान्त की विशेषताएँ | ब्रूनर के सिद्धान्त के लाभ | ब्रूनर के सिद्धान्त के दोष
बूनर के शिक्षण सिद्धान्त की विशेषताएँ | ब्रूनर के सिद्धान्त के लाभ | ब्रूनर के सिद्धान्त के दोष

बूनर के शिक्षण सिद्धान्त की विशेषताएँ (Characteristics of Bruner’s Teaching Theory)

ब्रूनर ने शिक्षण सिद्धान्त की चार विशेषताएँ बताई हैं जो निम्नलिखित हैं-

1) अधिगम की पूर्वानुकूलता (Predisposition of Learning) – अधिगम की पूर्वानुकूलता से अभिप्राय बालक के अन्दर निहित अनुभवों एवं संज्ञानवादी संरचनाओं के आधार पर अधिगम की प्रवृत्ति इस प्रकार शिक्षण बालकों के अनुभवों तथा रुचि के अनुकूल होनी चाहिए। बालक पूर्ववर्ती अनुभवों से अधिगम की क्रिया को आधार प्रदान करता है।

2) ज्ञान की संरचना (Structure of Knowledge) – इसमें इस बात पर बल दिया गया कि शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में विषयवस्तु को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाए कि बालक को अधिगम में सरलता हो ।

3) अनुक्रम (Sequence) – छात्र के समक्ष सभी विषय-वस्तु को एक क्रम के अनुसार प्रस्तुत करते हुए अधिगम कराया जाए। इससे उसे अधिगम में सरलता के साथ-साथ तर्क तथा चिन्तन करने में सफलता प्राप्त होगी।

4) पुनर्बलन (Reinforcement) – शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में पुनर्बलन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बालक को प्रेरित करने हेतु पुरस्कार एवं दण्ड जैसे प्रेरक की सहायता ली जाए जिससे बालक अभिप्रेरित होकर अधिगम कर सके।

ब्रूनर के सिद्धान्त के लाभ (Advantages of Bruner’s Theory)

1) इस सिद्धांत के समर्थकों का मानना है कि डिस्कवरी लर्निंग में कई लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं-

2) सक्रिय सहभागिता को प्रोत्साहित करता है।

3) प्रेरणा को बढ़ावा देता है।

4) स्वायत्तता, जिम्मेदारी और स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है।

5) रचनात्मकता और समस्या को सुलझाने के कौशल के विकास को उत्तेजित करता है।

6) एक उपयुक्त सीखने का अनुभव प्रदान करता है।

ब्रूनर के सिद्धान्त के दोष (Disadvantages of Bruner’s Theory)

ब्रूनर के सिद्धान्त में गुणों के साथ-साथ कुछ दोष भी हैं।

1) पहला तो यह कि उन्होंने अन्वेषण को सीखने की सर्वोत्तम विधि माना है जो उचित नहीं है क्योंकि अन्वेषण द्वारा अधिगम में समय बहुत नष्ट होता है और बालक ज्यादा कुछ सीख भी नहीं पाता है। इस विधि द्वारा अध्यापक भी विषय के प्रत्येक प्रकरण को नहीं समझा सकता है।

2) इस सिद्धान्त का दूसरा दोष उनके द्वारा बतायी गई पाठ संरचना है। उन्होंने जो पाठ संरचना बतायी है उसका सम्प्रत्यय अपने आप में अस्पष्ट है और इसके माध्यम से वे बालक ही सीख सकते हैं जिनमें अभिप्रेरणा की मात्रा अधिक हो। इन दोषों के बावजूद ब्रूनर का यह सिद्धान्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि यह विद्यालयी बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है।

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Anjali Yadav

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