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बौद्धिक विकास की अवस्थाएं (Stages of Intellectual Development)
पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के आधार पर ब्रूनर ने भी बौद्धिक विकास की अवस्थाओं का वर्णन किया है। इन्होंने बौद्धिक विकास की केवल 3 अवस्थाओं का वर्णन किया है। ये तीन अवस्थाएँ निम्न हैं-
1) सक्रिय प्रतिनिधित्व – इस अवस्था में शिशु प्रत्यक्ष अनुभव एवं कार्य स्वयं करके ही सीखता है। यह अवस्था जन्म से लेकर दो वर्ष तक चलती है। इस अवस्था के बालकों में बोध विकसित करने हेतु क्रिया को सबसे प्रमुख साधन माना गया है। अतः बालकों को विषय-वस्तु को क्रिया के माध्यम से सिखाना चाहिए।
2) स्थूल प्रतिनिधित्व – यह अवस्था तृतीय वर्ष से प्रारम्भ होती है। इस अवस्था में पहुँचकर बालको में बौद्धिक क्षमता इतनी विकसित हो जाती है कि मूर्त रूप से सोचने एवं समझने लगता है। अतः बालको में बोध को विकसित करने हेतु चित्रों, मॉडलों, चार्ट, मूर्तियों आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
3) प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व- ब्रूनर ने बौद्धिक विकास की यह सर्वोच्च अवस्था बतायी है। इस अवस्था में सात वर्ष व इसके ऊपर आयु वाले बालकों को सम्मिलित किया है। इस उम्र के बालक अपने अनुभवों को भाषा के माध्यम से व्यक्त कर सकता है। ब्रूनर का मानना है कि भाषा एवं प्रतीकों के माध्यम से अनुभवों के संसार का प्रतिनिधित्व किया जा सकता है।
ब्रूनर विकासात्मक मनोविज्ञान एवं संज्ञानात्मक अधिगम को परस्पर सम्बन्धित मानते हैं। उनके अनुसार अधिगमकर्ता एक सक्रिय एवं प्रतिक्रिया करने वाला जीवित प्राणी है वह ज्ञान का पिपासु, निर्माता एवं विचारक है। अधिगमकर्ता वह व्यक्ति है जो व्यावहारों का चयन करता है, उसे धारण करता है एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु अधिगम के रूप में रूपान्तरित करता है।
ब्रूनर के अनुसार, “अधिगम एक लक्ष्य केन्द्रित क्रिया है जो अधिगमकर्ता की जिज्ञासा को शान्त करती है।”
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