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भवन-योजनाएँ (BUILDING PLANS)
जब यह निर्णय ले लिया जाय कि विद्यालय भवन का निर्माण करना है, तब स्थापत्य कलाकार की नियुक्ति की जाय। उसी के कार्य पर अन्य लोगों की अपेक्षा भवन की उपयुक्तता का अधिक भार रहता है। यह उसी का कार्य है कि वह एक ओर तो इंजीनियरों की माँगों और दूसरी ओर विद्यालय प्रबन्धकों की योजना में समन्वय स्थापित करे। भवन की सुन्दरता एवं उपयुक्तता उसी के नियोजित नक्शे पर निर्धारित है।
विद्यालय भवन का नियोजन करते समय स्थापत्य कलाकार तथा विद्यालय प्रबन्धकों को शैक्षिक आवश्यकताओं की अनुकूलता के साथ-साथ सुरक्षा की व्यवस्था का भी ध्यान रखना चाहिए। विद्यालय भवन में ऐसी व्यवस्था की जाय कि यदि कोई संकट आये तो उसको कुछ ही मिनटों में खाली किया जा सके। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से प्रत्येक कक्षा में प्रकाश एवं वायु-प्रसरण के लिए उपयुक्त व्यवस्था का भी बहुत महत्त्व है। वातावरण स्वच्छ, सुन्दर एवं स्वास्थ्यप्रद इस सिद्धान्त को कभी नहीं भूलना चाहिए। एक कमरे से दूसरे कमरे में आने-जाने की सुविधा के अतिरिक्त विद्यालय भवन के निर्माण में मितव्ययिता का ध्यान भी अवश्य रखना चाहिए।
सामान्यतः विद्यालय भवनों के लिए दो प्रकार-खुली हुई तथा बन्द-योजनाओं या बाह्य रूपरेखाओं का प्रयोग किया जाता है। खुली हुई योजनाओं में E, H. I, T, U, Y तथा L शक्ल की इमारतों का अधिक उपयोग किया जाता है। बन्द योजनाओं में तीन प्रकार की ठोस आयत (Solid Rectangle), शून्य आयत (Hollow Rectangle) अर्थात् जिसमें भवन के बीच में खाली स्थान रहता है और उसके चारों ओर इमारत होती है तथा आयत जिसके बीचोंबीच हॉल तथा अन्य आवश्यक कक्षों का निर्माण किया जाता है, की इमारतों का प्रचलन है। आधुनिक युग में अधिकांशतः खुली योजना का ही किसी-न-किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।
भवन की योजना के निर्धारण के पश्चात् जब उसका प्लान बन जाय, तब विद्यालय प्रबन्धक तथा विशेषज्ञों से उसको अनुमोदन करवाया जाय। यदि वे कुछ महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक परिवर्तन करना चाहें तो उनके सुझावों के अनुसार यथाविधि परिवर्तन कर लिया जाय।
भवन निर्माण के कार्य का ठेका देना (CONTRACT FOR BUILDING CONSTRUCTION)
जब विद्यालय भवन का प्लान एवं डिजाइन बन जाये तब उसके निर्माण कार्य का ठेका अनुभवी ठेकेदार को देना चाहिए। ठेका लेने वाले व्यक्ति के साथ एक लिखित अनुबन्ध (Written Contract) भी किया जाय।
चौखट, दरवाजे, खिड़कियाँ, रोशनदान, आदि के बनाने के लिए अलग-अलग ठेके दिये जायें या कारीगरों से अपना सामान देकर बनवाये जायें। सामान खरीदने से पूर्व विभिन्न दुकानदारों से मूल्यों की सूची प्राप्त कर ली जाय और सामान को देखकर ही खरीदा जाना चाहिए। विशेषज्ञों की सलाह से इन वस्तुओं की माप का निर्धारण करना चाहिए।
मेज, कुर्सी, डेस्क, लकड़ी के श्यामपट, अल्मारियों, आदि के निर्माण कार्य का भी ठेका पृथक् रूप से दिया जाय या तैयार माल खरीदा जाय। क्रय करने से पूर्व विभिन्न स्थानों से इन वस्तुओं के मूल्यों की सूची प्राप्त कर ली जाय और उनका अध्ययन करने के पश्चात् ऑर्डर दिया जाय। लकड़ी की किस्म, उसकी पॉलिश, आदि के विषय में सब बातें पहले निश्चित करने से दुकानदार धोखा नहीं दे सकेंगे।
विद्यालय भवन में बिजली की फिटिंग का ठेका भी बिजली के ठेकेदारों को दिया जाना चाहिए। उसको पहले ही बता दिया जाय कि कक्षों में बिजली की फिटिंग छत के निकट की जाय जिससे दीवारों को चार्ट, मानचित्र, समय-रेखाचित्र, समय-ग्राफ, आदि को टाँगने के लिए उपयुक्त ढंग से प्रयोग में लाया जा सके। फिटिंग के विषय में पूर्ण विचार-विमर्श के पश्चात् ही निर्णय लिया जाय, क्योंकि गलत फिटिंग को सुधारने में बहुत कठिनाई तथा व्यय होता है। यह ठेका, लाइसेन्स प्राप्त व्यक्ति को ही दिया जाना चाहिए। बिजली की फिटिंग का प्लान पहले बनवाकर भली प्रकार से देख लिया जाय कि प्रकाश एवं पंखे, आदि की व्यवस्था ठीक है।
विद्यालय भवन में पानी की उचित व्यवस्था का ठेका भी ठेकेदार को पृथक् रूप से दिया जाना चाहिए। पाइपों को भूमि में दबाने की अपेक्षा भूमि के ऊपर रखा जाय तो यह लाभ होगा कि यदि पाइप लाइन में कहीं खराबी आ जाय तो उसको सरलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है। परन्तु इस प्रकार की व्यवस्था में इस बात का ध्यान रखा जाय कि पाइप लाइन चलते-फिरते समय पैरों में बाधा नहीं पहुँचाए। यदि इनको दीवारों के किनारे रखा जाय तो उपयुक्त होगा। इसके अतिरिक्त ठेकेदार को यह भी समझा दिया जाय कि अमुक कक्षों में सिंकों की व्यवस्था की जायेगी। पानी को बाहर निकालने के लिए उपयुक्त व्यवस्था की जाय। इसका पहले से प्लान बनाकर विशेषज्ञों द्वारा अनुमोदन कराना परमावश्यक है।
निर्माण कार्य का पर्यवेक्षण (SUPERVISION OF CONSTRUCTION WORK)
निर्माण कार्य का क्रमिक परिनिरीक्षण (Supervision) इसलिए आवश्यक है कि ठेकेदार विद्यालय भवन में उपयुक्त प्रकार की सामग्री का प्रयोग कर रहा है या नहीं। इन समस्त बातों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए निरीक्षण परमावश्यक है। समय-समय पर निर्माण कार्य में जो विघ्न आते हैं, उनके निवारण के लिए भी यह कार्य स्थापत्य कलाकार तथा प्रबन्धक नहीं कर सकते। उनके द्वारा नियुक्त निरीक्षक द्वारा ही कार्य हो सकता है, परन्तु कलाकार तथा प्रबन्धकों का समय-समय पर निरीक्षण भी आवश्यक है।
अन्त में, शिक्षा आयोग के भवन निर्माण सम्बन्धी उपयोगी सुझावों का उल्लेख करना अनुपयुक्त न होगा। शिक्षा आयोग का विचार है कि “हमारी अनेक शिक्षा संस्थाओं के भवनों की स्थिति असन्तोषजनक है। साथ ही उनमें से बहुत-सी संस्थाओं के भवन बहुत छोटे हैं। यह वांछनीय है कि शिक्षा संस्थाओं के आयोजन से सम्बन्धित राज्य शिक्षा विभाग प्रत्येक श्रेणी की शिक्षा-संस्था की स्थिति एवं आकार तय करने के लिए कुछ मार्गदर्शक सिद्धान्तों को विकसित कर लें।” शिक्षा आयोग ने विद्यालय भवनों के सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. केन्द्र तथा राज्यों के बजटों में विद्यालयों की इमारतों के निर्माण के लिए नियत की जाने वाली धनराशि में वृद्धि को जाय, साथ ही समुदाय के साधनों को बराबरी के आधार पर प्राप्त किया जाय।
2. ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालय भवन के निर्माण के लिए स्थानीय पहल एवं योगदान को प्रोत्साहित करना चाहिए।
3. विद्यालय भवनों के शीघ्र निर्माण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में निर्माण कार्य स्थानीय समुदाय या ग्राम पंचायतों को तथा शहरी क्षेत्रों में नगरपालिकाओं तथा नगर निगमों को सौंप देना चाहिए।
4. विद्यालय भवनों के निर्माण कार्य की देखभाल एवं मार्ग-प्रदर्शन के लिए प्रत्येक राज्य में सार्वजनिक निर्माण विभाग के अन्तर्गत एक शैक्षिक भवन विकास वर्ग की स्थापना की जाय।
5. सरकारी विद्यालय भवनों के निर्माण में विलम्ब से बचने के लिए शैक्षिक भवन कार्यक्रम को लागू करने के लिए लोक निर्माण विभाग में एक पृथक् इकाई (Unit) की स्थापना की जाय जो इस कार्य को पूरा करे।
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