शिक्षाशास्त्र / Education

भारतीय शिक्षा में गोखले के योगदान | Gokhale’s contribution to Indian education in Hindi

भारतीय शिक्षा में गोखले के योगदान की व्याख्या कीजिए।

अंग्रेजी शासन में केवल 6 प्रतिशत लोग ही भारत में साक्षर थे। लोगों का कहना था कि अंग्रेजी शासन में अशिक्षा घटने के स्थान पर बढ़ गयी है अतः देशवासी सरकार से सन्तुष्ट नहीं थे। इस समय सरकार की तीव्र आलोचना के साथ-साथ कुछ रचनात्मक कार्य भी बड़ौदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ तथा गोपाल कृष्ण गोखले ने किये।

इनमें प्रमुख कार्य गोखले के द्वारा प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने का प्रयास- 1910 में गोपाल कृष्ण गोखले बड़ौदा नरेश के प्रयास से अधिक प्रभावित हुए। उनके अनुसार जब एक छोटे सा राज्य बड़ौदा सीमित साधनों के साथ अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रयोग सफलतापूर्वक कर चुका है तो ब्रिटिश सरकार अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा क्यों नहीं सम्पन्न कर सकेगी। अतः प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य तथा निःशुल्क बनाने के लिए तथा सरकार को क्रियाशील करने के लिए 19 मार्च 1910 को गोखले ने केन्द्रीय धारा सभा के सदस्य के रूप में निम्न प्रस्ताव रखा- “यह सभा सिफारिश करती है कि सम्पूर्ण देश में प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क तथा अनिवार्य बनाने का कार्य आरम्भ किया जाये और इस सम्बन्ध में निश्चित सरकारी और गैर सरकारी अधिकारियों का एक संयुक्त आयोग शीघ्र ही नियुक्त किया जाये।”

प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने सम्बन्धी सुझाव

(1) जिन क्षेत्रों में 33 प्रतिशत बालक शिक्षा प्राप्त कर रहे हों उन क्षेत्रों में 6 वर्ष से 10 वर्ष तक आयु के बालकों के लिए प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क एवं अनिवार्य बना दी जाये।

(2) यदि सरकार स्वयं अनिवार्य शिक्षा के सिद्धान्त को लागू नहीं कर सकती है तो इसका उत्तरदायित्व स्थानीय संस्थाओं के हाथों में छोड़ दिया जाये।

(3) स्थानीय संस्थाएं जल्दी में कोई गलत कदम न उठा सकें, अतः अनिवार्य शिक्षा के सिद्धान्त को लागू करने से पूर्व वे प्रान्तीय सरकार की अनुमति लें।

(4) प्रथम यह योजना बालकों पर लागू की जाये और बाद में बालिकाओं पर लागू की जाये।

(5) अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का व्यय स्थानीय संस्थाएं एवं प्रान्तीय सरकार को 1:2 के अनुपात में वहन करें।

(6) स्थानीय संस्थाओं को इसके लिए शिक्षा कर लगाने का अधिकार दिया जाये।

(7) यदि किसी विद्यार्थी के अभिभावक की मासिक आय कम हो तो उससे शुल्क न लिया जाये।

गोखले विधेयक का उद्देश्य

गोखले के प्रथम प्रस्ताव पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। भारतीय कांग्रेस ने गोखले को इस दिशा में कदम उठाने को कहा, फलस्वरूप गोखले ने सरकार की लापरवाही देखकर प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता के लिए एक दूसरा प्रस्ताव 16 मार्च 1911 को केन्द्रीय धारा सभा के सामने प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव पर प्रकाश डालते हुए गोखले ने कहा- “इस विधेयक का उद्देश्य देश की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में अनिवार्यता के सिद्धान्त को क्रमशः लागू करना है।”

गोखले के बिल का प्रभाव

 सरकार द्वारा विधेयक को अस्वीकृत करने के पश्चात् भी गोखले के प्रयास असफल नहीं हुए। इस विधेयक का जनता पर निम्न प्रभाव पड़ा।

(1) सरकार और जनता दोनों का ध्यान जनसाधारण की शिक्षा की ओर आकर्षित हुआ।

(2) जार्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में प्राथमिक शिक्षा के लिए 50 लाख रूपये की धनराशि प्रदान करने की घोषणा की थी। उन्होंने 6 जनवरी, 1912 को कलकत्ता विश्वविद्यालय में अपने भाषण में शिक्षा प्रसार की रुचि प्रकट की और कहा- “मेरी इच्छा है कि सम्पूर्ण देश में स्कूलों और कालेजों का जाल बिछ जाये, जहाँ से उद्योगों, कृषि और जीवन के समस्त व्यवसायों में कुछ करके दिखाने वाले राजभक्त, निर्भीक और उपयोगी नागरिक शिक्षा प्राप्त करके निकलें।”

(3) गोखले के विधेयक से प्रभावित होकर भारत सरकार ने प्रान्तीय सरकारों को प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान देने को कहा है। परिणामस्वरूप देश के विभिन्न प्रान्तों में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए अनिर्वाय शिक्षा अधिनियम बनाये गये और सभी प्रान्तों में प्राथमिक शिक्षा अनवार्य कर दी गयी है।

शिक्षा नीति सम्बन्धी सरकारी प्रस्ताव- 1913

प्रथमत: गोखले विधेयक सन् 1911 ने शिक्षा में नवीन क्रान्ति की भूमिका का कार्य किया जिससे कि देश में शिक्षा की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती चली गयी। दूसरे सम्राट जार्ज पंचम की इच्छा थी। इच्छा का अर्थ उनके अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए किसी आदेश से कम न था। अतः भारत सरकार ने 21 जनवरी 1913 को शिक्षा नीति सम्बन्धी सरकारी प्रस्ताव प्रकाशित करके अपनी शिक्षा नीति को स्पष्ट किया। शिक्षा के निम्न पहलुओं पर सुधार करने की सिफारिश की गयी-

  1. शिक्षा संस्थाओं की संख्या में वृद्धि करने की अपेक्षा उनके शिक्षण स्तर को ऊँचा उठाया जाना चाहिए।
  2. प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों को व्यवहारिक व जीवनोपयोगी बनाया जाये।
  3. उच्च शिक्षा और अनुसंधान की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि भारतीय छात्रों को इन कार्यों के लिए विदेश न जाना पड़े।
  4. पूर्व प्राथमिक स्कूलों का अधिकाधिक विस्तार किया जाये।
  5. राजकीय विद्यालयों की संख्याओं में वृद्धि करने की अपेक्षा उनको आदर्श विद्यालय बनाने का प्रयास किया जाये।
  6. गैर-सरकारी विद्यालयों को उदारतापूर्वक सहायता अनुदान देकर प्रोत्साहित किया जाये।
  7. विश्वविद्यालयों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए और प्रत्येक प्रान्त में कम से कम एक विश्वविद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए।
  8. स्त्री शिक्षा की उन्नति के लिए महिला अध्यापिकाओं एवं महिला निरीक्षिकाओं को पर्याप्त मात्रा में नियुक्त किया जाये।
भारतीय शिक्षा में गोखले का योगदान

1913 के “शिक्षा सम्बन्धी सरकारी प्रस्ताव” के मुख्य उद्देश्य थे- भारतीय शिक्षा के विभिन्न अंगों में सुधार करना तथा उनको समुन्नत बनाना। उसमें प्रारम्भिक, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा के लिए बहुमूल्य सुझाव थे। उसने प्राथमिक शिक्षा के विस्तार के लिए सरकार की हार्दिक इच्छा व्यक्त की तथा माध्यमिक और उच्च शिक्षा को संगठित करके, अधिक लाभप्रद बनाने का प्रयास किया।

गोखले के प्राथमिक प्रयास निःशुल्क तथा आवश्यक शिक्षा के लिए असफल नहीं थे। यद्यपि उनके विधेयक को सफलता नहीं मिली थी। उनकी प्रेरणा से जनता, , केन्द्रीय सरकार, प्रान्तीय सरकारें तथा स्थानीय संस्थाएं प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में रुचि लेने लगीं। सन् 1911-17 तक प्राथमिक शिक्षा की उन्नति हुई। 1914 के प्रथम महायुद्ध में सरकार व्यस्त हो गयी और अधिकांश सुझाव कार्यान्वित न हो सके।

“सरकारी प्रस्ताव के विषय में एक उल्लेखनीय बात यह थी कि उसने नवीन विश्वविद्यालयों शिक्षण विश्वविद्यालयों और प्रत्येक प्रान्त में कम से कम एक विश्वविद्यालय खोलने की सिफारिश की। अतः नूरुल्ला व नायक ने “प्रस्ताव’ के विषय में विचार प्रकट करते हुए लिखा है “प्रस्ताव को भारतीय विश्वविद्यालयों के इतिहास में एक मोड़ कहा जा सकता है। “

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Anjali Yadav

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