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भारत में स्थानीय नगरीय प्रशासन का उद्भव एवं विकास | Origin and Development of Urban Local Administration in India in Hindi

भारत में स्थानीय नगरीय प्रशासन का उद्भव एवं विकास | Origin and Development of Urban Local Administration in India in Hindi
भारत में स्थानीय नगरीय प्रशासन का उद्भव एवं विकास | Origin and Development of Urban Local Administration in India in Hindi

भारत में स्थानीय नगरीय प्रशासन के उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए।

भारत में स्थानीय नगरीय प्रशासन का उद्भव एवं विकास (Origin and Development of Urban Local Administration in India)

 वर्तमान में भारत में 32 करोड़ जनसंख्या नगरों में अधिवास करती है। भारत के वर्तमान नगरीय शासन में नगर निगम (Municipal Corporation), नगरपालिकाएं (Municipality), नगर क्षेत्र समितियां (Town Area Committees), अधिसूचित क्षेत्र समितियां (Notified Area Committees), छावनी बोर्ड (Cantonment Board), आदि सम्मिलित हैं।

भारत में नगरीय केन्द्र तथा प्रशासन का उद्भव सिन्धु घाटी सम्मता से माना जाता है। बौद्ध काल में 6 नगरीय केन्द्रों तथा उनके प्रशासन का विवरण मिलता है। मौर्य कालीन यूनानी राजदूत मेगास्थनीज अपनी पुस्तक ‘इण्डिका’ में वर्णन किया है कि मौर्य ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र के लिए नगर प्रशासन की एक विस्तृत प्रणाली विकसित की। ‘आइने अकबरी’ में मुगल साम्राज्य के नगरों और कस्बों के स्थानीय प्रशासन के बारे में सुस्पष्ट ब्यौरा मिलता है। मुस्लिम काल में नगर प्रशासन ‘कोतवाल’ नामक अधिकारी द्वारा व्यवस्थित किया जाता था। वह केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता था। उसके कार्य बहुत व्यापक थे। नगर में कानून और व्यवस्था, बाजारों पर नियन्त्रण, अपराधों तथा सामाजिक बुराइयों को रोकना, वार्डो के अनुसार लोगों की पंजिका तथा गुप्तचर व्यवस्था, आदि अनेक कार्य उसके सुपुर्द थे। इस प्रकार प्राचीनकाल में नगर संस्थाएं सुनिश्चित कार्यों के साथ कार्यरत थी।

ब्रिटिश सरकार के आगमन के पश्चात् उन्होंने कई कारणों से शहरी क्षेत्रों के लिए स्थानीय स्वायत्त शासन के विषय में सोचा। ऐसा करने में उन्होंने भारत में पहले से प्रचलित देशी संस्थाओं के ढांचे को अधिक अपनाया। ब्रिटिश सरकार ने सबसे पहले 1687 में चेन्नई शहर के लिए नगर निमग स्थानीय संस्था की स्थापना की। बाद में 1793 में चार्टर एक्ट के अधीन चेन्नई, कलकत्ता तथा मुम्बई के तीनों महानगरों में नगर निगम स्थापित किये गये। बंगाल अधिनियम, 1842 के द्वारा जिला क्षेत्रों में नगर सरकारें लागू की गयी। नगर प्रशासन का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा सफाई के लक्ष्यों तक सीमित था ।

भारत में नगर प्रशासन के विकास का दूसरा चरण 1882 में लॉर्ड रिपन के प्रस्ताव सुस्पष्ट हुआ। जब लॉर्ड रिपन ने सन् 1882 में व्यापक आधार पर नगरपालिकाओं का गठन में किया तो नगरपालिका सरकार के इतिहास में एक प्रभावकारी परिवर्तन आया। स्थानीय सरकार के इतिहास में अन्य मत्वपूर्ण चरण 1909 में विकेन्द्रीकरण पर रॉयल कमीशन की रिपोर्ट से प्रारम्भ हुआ। इसने स्वायत्त प्रशासन के विकास की सिफारिश प्रशासनिक हस्तान्तरण के एक साधन के रूप में की। इसमें नगर अधिकारियों को अधिक स्वायत्त शक्तियां देने पर बल दिया। 1919 के भारत सरकार अधिनियम में एक भाग स्थानीय स्वायत्त सरकार के प्रसार से सम्बन्धित था। अनिनियम की महत्वपूर्ण रिफारिशे थीं।

(i) गैर-सरकारी अध्यक्ष के साथ निर्वाचित बहुमत, (ii) मताधिकार को बढ़ाना, (iii) कर लगाने की स्वतन्त्रता । सिफारिशों के आधार पर 1920- 30 के दौरान नगर प्रशासन निर्वाचित अध्यक्ष के अधिकार में रहा जो विचारात्मक तथा कार्यकारी दोनों कार्य करता था, परन्तु इस अवधि में नागरिक प्रशासन सामन्यतः अष्ट सिद्ध हुआ। परिणामस्वरूप 1930 के पश्चात् विभिन्न प्रदेशों में कार्यकारी कार्यों को विधयी कार्यों से अलग करने के लिए, अधिनियम पास किये गये।

स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात् नगर प्रशासन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गये। पिछले दो-तीन दशकों के दौरान नगर संस्थाओं को नया प्रोत्साहन मिला। इसमें लोकतांत्रिक संविधान और वयस्क मताधिकार के प्रावधान के ढर्रे पर अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए। सरकारी तथा मनोनीत सदस्यों की प्रथा को समाप्त करके नगर संस्थाओं को अधिक लोकतान्त्रिक बनाया गया। अतः प्रशासन शक्तियां दी गयी।

चलाने के लिए नगर प्रशासन में निर्वाचित सदस्यों को पर्याप्त भारत के 74वें संविधान संशोधन द्वारा नगर प्रशासन को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा संविधान में भाग 9 के जोड़ा गया है। जिसमें कुल 18 अनुच्छेद हैं और एक नई अनुसूची 12वीं जोड़ी गई है जिसमें उन विषयों का उल्लेख किया गया है जिन पर नगरपालिकाएं कानून बनाकर अपने नागरिकों के जीवन को सुखी बना सकती हैं।

नगरपालिकाओं का गठन – प्रत्येक राज्य में नगरों के लिए निम्नलिखित स्वतन्त्र संस्थाएं गठित की जाएंगी- (क) किसी संक्रमणकालीन क्षेत्र के लिए अर्थात् ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र में संक्रमणगत क्षेत्र के लिए एक नगर पंचायत चाहे जो नाम हो, (ख) किसी लघुत्तर क्षेत्र के लिए नगरपालिका परिषद् और (ग) किसी वृहत्तर नगरीय क्षेत्र के लिए नगर निगम ।

इस अनुच्छेद के अन्तर्गत संक्रमणशील, लघुत्तर नगरीय और बृहत्तर नगरीय क्षेत्र से अर्थ ऐसे क्षेत्र से है जिसे किसी राज्य की सरकार उस क्षेत्र की जनसंख्या की सघनता, स्थानीय प्रशासन के लिए प्राप्त राजस्व, कृषि इतर क्रियाकलापों में नियोजन की प्रतिशतता आर्थिक महत्व या ऐसी ही अन्य बातों को जिसे वह ठीक समझे ध्यान में रखते हुए लोक अधिसूचनाद्वारा भाग के प्रयोजनों के लिए विनिर्दिष्ट करें।

74वें संविधान के नगरपालिकाओं की संरचनाओं का भी विस्तृत प्रावधान किया है।

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Anjali Yadav

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