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मध्यकाल की मुस्लिम शिक्षा पद्धति के गुण और दोष की व्याख्या कीजिए।
मध्यकालीन शिक्षा के गुण या विशेषताएँ
मुस्लिम शिक्षा प्रणाली की कुछ विशेषताएँ भी थीं जिसके कारण लोग इसकी ओर आकृष्ट हुए-
(1) धर्म की प्रधानता- भारत में प्राचीन काल से ही शिक्षा में भी धर्म की प्रधानता थी जिसमें सादा जीवन, नैतिकता तथा सदाचार को महत्व दिया जाता था।
(2) आदर्श गुरु शिष्य सम्बन्ध- मध्यकालीन भारत में प्राचीन काल की ही भाँति गुरु तथा शिष्यों में आदर्श सम्बन्ध थे। शिष्य गुरु की आज्ञा का पालन करता था तथा आदर की दृष्टि से देखता था। गुरु शिष्यों के प्रति पुत्रवत् भाव रखता था। डॉ. एफ. ई० कैई के शब्दों में शिक्षक और छात्र का सम्बन्ध वैसा ही था जैसा कि ब्राह्मणीय शिक्षा में था।” परन्तु फिर भी सम्बन्ध उतना आदर्श नहीं रहा। था जितना कि प्राचीन काल में था।
(3) निःशुल्क शिक्षा- मुस्लिम काल में शिक्षा का सम्पूर्ण व्यय भार शासक तथा उच्च वर्ग के व्यक्ति ही वहन करते थे अतः मदरसों में निःशुल्क शिक्षा के अतिरिक्त छात्रों को निःशुल्क भोजन तथा वस्त्र भी दिया जाता था।
(4) सांसारिक सुख की प्राप्ति- इस्लामी शिक्षा में लौकिक सुख प्राप्त करना भी एक लक्ष्य था। कुछ विचारक इसको इस्लामी शिक्षा की दुर्बलता मानते हैं क्योंकि इस्लामी शिक्षा को प्रोत्साहन और जागीर प्रदान कर दी जाती थी।
(5) उर्दू भाषा को प्रोत्साहन- मुस्लिम शिक्षा केन्द्रों में शिक्षा का माध्यम अरबी एवं फारसी था जिसके कारण प्रान्तीय भाषाओं की प्रगति रुक गयी अतः उर्दू भाषा इस समय उन्नति पर रही।
(6) नायकीय पद्धति- मुस्लिम शिक्षा संस्थाओं में नायकीय विधि प्रचलित थी। इस विधि में कुछ योग्य विद्यार्थी छोटी कक्षाओं को पढ़ाते थे जिससे शिक्षक को अध्ययन कार्य में सहायता मिलती थी।
(7) साहित्य एवं इतिहास का विकास- इस युग में शिक्षा में साहित्य एवं इतिहास का ही विकास हुआ। मुस्लिम शासक विद्वानों को अपने संरक्षण में रखते थे। संरक्षण प्राप्त विद्वानों ने नीति, दर्शन, आदि को लेखनीबद्ध किया तथा रामायण, महाभारत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद किया।
(8) शिक्षा की अनिवार्यता- इस्लाम धर्म के अनुसार यह कहा गया है कि- “जो मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है वह धार्मिक कार्य करता है, जो ज्ञान की बात करता है वह ईश्वर की प्रशंसा करता है, जो ज्ञान की खोज करता है वह ईश्वर की उपासना करता है।”
(9) व्यावसायिक शिक्षा को प्रोत्साहन- मुस्लिम काल में व्यावसायिक शिक्षा को प्रोत्साहन मिला। रेशम तथा जरी का काम युद्ध सामग्री का निर्माण, आभूषणों का निर्माण, हाथी दांत का काम आदि के सिखाने की व्यवस्थित व्यवस्था थी। यह शिक्षा कला तथा जीविका दोनों के लिए दी जाती थी।
मुस्लिम कालीन शिक्षा के दोष
जहाँ मुस्लिम शिक्षा में अनेक विशेषताएँ थीं वहीं उसमें दोषों की कमी भी नहीं थी। टी० एन० सिक्वेरा के शब्दों में भारत पर मुसलमानों की विजय इस्लामी शिक्षा के उस अन्धकारपूर्ण युग की समकालीन थी जबकि विद्यालयों ने अपने व्यापक सांस्कृतिक आदर्शों को खो दिया था।”
(1) स्त्री शिक्षा की उपेक्षा- मुस्लिम काल में पर्दा प्रथा की प्रमुखता होने के कारण स्त्रियों की शिक्षा की उपेक्षा हुई। केवल छोटी उम्र में ही कुछ परिवारों की लड़कियाँ मकतबों में शिक्षा ग्रहण करती थीं और कुछ बड़ी हो जाने पर उन्हें मकतब छोड़ना पड़ता था।
(2) अनुशासन की कठोरता- मुस्लिम शिक्षा का एक प्रमुख दोष शिक्षा में कठोर दण्ड का समावेश था। छात्रों द्वारा कोई अपराध किये जाने पर उन्हें घूसों तथा बेतों द्वारा शारीरिक दण्ड दिया जाता था। कठोर शारीरिक दण्ड की व्यवस्था अमनोवैज्ञानिक है इससे छात्रों की पढ़ाई तथा विद्यालय के प्रति अरुचि हो जाती है।
(3) शिक्षा में आध्यात्मिकता का अभाव- यद्यपि मध्य कालीन शिक्षा धार्मिक थी तथापि उसमें आध्यात्मिकता का अभाव था। चूंकि इस्लाम धर्म पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता है अतः पारलौकिक सुख की कल्पना उनके धार्मिक विश्वास के परे हैं। आध्यात्मिकता के अभाव के कारण उच्च स्तर की नैतिकता तथा सदाचरण का अभाव स्वाभाविक रूप में पाया जाता था।
(4) शिक्षा में व्यापकता का अभाव- मुस्लिम कालीन शिक्षा का विधान मात्र मुसलमानों के विचार से किया गया था अतः उसमें व्यापकता का अभाव था। जनसाधारण की रुचि शिक्षा के प्रति नहीं थी। मुसलमानों में भी केवल धनी और राज परिवार के व्यक्तियों को शिक्षा की सुविधा प्राप्त थी। शिक्षा संस्थाओं की संख्या भी इस काल में कम थी जिससे शिक्षा का व्यापक प्रसार न हो सका।
(5) शिक्षा में स्थिरता का अभाव- मुस्लिम शासक स्वेच्छाचारी थे। उनमें से कुछ की शिक्षा के प्रति रुचि थी और कुछ ने शिक्षा की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया। अतः जिन शासकों ने शिक्षा के विकास में रुचि ली उस काल में शिक्षा का प्रचार तथा प्रसार बढ़ा परन्तु उसके शासन की समाप्ति के बाद यदि उदासीन भाव का शासक गद्दी पर बैठा तो शिक्षा की अवनति होने लगी। इस प्रकार शिक्षा में स्थिरता नहीं रह सकी।
(6) जन भाषा की उपेक्षा- मुस्लिम शिक्षा का सबसे बड़ा दोष जन भाषा की उपेक्षा थी। भारत में भारतीय भाषाओं का प्रचार था परन्तु विदेश से आने वाले मुसलमानों ने अपनी भाषा फारसी तथा अरबी को माध्यम के रूप में अपनाया तथा भारतीय भाषाओं की उपेक्षा की।
(7) विलास प्रियता को बढ़ावा- मुस्लिम काल के पूर्व तक शिक्षा काल में कठोर जीवन का अभ्यास कराया जाता था। छात्रों को विलासिता के जीवन से दूर रहने की शिक्षा दी जाती थी परन्तु मध्य काल में मदरसों में जीवन भोग विलासयुक्त हो गया था। उन्हें मदरसों में आराम की सारी वस्तुएँ उपलब्ध रहती थीं। सुल्तानों तथा नवाबों के बच्चों के लिए तो हर प्रकार की सुविधा सामग्री उपस्थित रहती थी।
इस प्रकार मुस्लिम काल की शिक्षा के गुण तथा दोषों का अध्ययन करने के बाद यह कहा जा सकता है कि इस काल के दोषों ने शिक्षा के गुणों को प्रभावहीन बना दिया था। इस काल की शिक्षा में कट्टरता, पूर्वाग्रह तथा पक्षपात दिखायी देता है। इस काल में पढ़ने पर जोर दिया गया परन्तु मनन व चिन्तन की उपेक्षा की गयी। इसमें नवीनता, रचनात्मकता तथा लचीलेपन का अभाव था। इन्हीं सब कारणों से इस शिक्षा का भारतवासियों पर अधिक प्रभाव नहीं हुआ और शिक्षा समाज में अधिक लोकप्रिय नहीं हो सकी।
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