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मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factor)
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारकों में मनोवैज्ञानिक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन कारकों में मुख्य मनोवैज्ञानिक कारक है- रुचियाँ, अभिवृत्तियाँ, अभिप्रेरणा, बौद्धिक क्षमताएं, आदि। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य मनोवैज्ञानिक कारक भी हैं जैसे आत्मानुभूति, आत्मस्वीकृति, आत्मबोध, आदि। वातावरण में समायोजन के लिए आत्मस्वीकृति का मिलना अत्यंत आवश्यक होता है क्योंकि आत्मस्वीकृति मिलने पर ही बालक में अर्न्तर्दृष्टि का विकास हो पाता है तथा वह अपनी योग्यताओं व क्षमताओं को ठीक से समझने लगता है। समायोजन की दृष्टि से व्यक्ति आश्वस्त होना चाहता है कि उसके माता-पिता, सगे सम्बन्धी, पास-पड़ोस व मित्रगण आदि उसके बारे में कैसी राय रखते हैं।
इस प्रकार का प्रत्यक्षीकरण दूसरों की पसंद, स्वीकृति, प्रंशसा, अपनापन आदि से जुड़ा होता है। यह सब उसकी आत्मसंतुष्टि की भावना के लिए पर्याप्त होता है तथा उसे आत्मानुभूति का बोध होता है। इस तरह वह अपने जीवन को सार्थक समझता है।
कुछ उल्लेखनीय मनोवैज्ञानिक कारकों का वर्णन किया जा रहा है-
1) बुद्धि और मानसिक विकास (Intelligence and Mental Development) – बालक की बुद्धि और मानसिक विकास का उसके व्यक्तित्व के निर्धारण में महत्वपूर्ण हाथ रहता है। वह कैसा व्यवहार करता है, यह उसकी बुद्धि और मानसिक क्षमताओं पर बहुत अधिक निर्भर करता है। सीखने की प्रक्रिया और उनमें सफलता, ज्ञान अर्जन, निर्णय लेने की क्षमता, समस्याओं को सुलझाना, विषम परिस्थितियों में तालमेल बैठाना उसके बौद्धिक विकास पर निर्भर करता है। एक तरह से व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यवहार उसकी बुद्धि पर ही आधारित होता है।
2) रुचियाँ और दृष्टिकोण (Interests and Viewpoint)- व्यक्ति कैसी रुचि रखता है और उसका कैसा दृष्टिकोण है, इसका प्रभाव उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है। हम जिन वस्तुओं और कार्यों में रुचि रखते हैं वहीं कार्य करना चाहते हैं और वही बातें सुनना चाहते हैं जिनमें हमें रुचि होती है। सकारात्मक दृष्टिकोण वाले व्यक्तियों को पसंद किया जाता है। जिनका दृष्टिकोण नकारात्मक होता है उनसे हम दूरी बना लेते हैं। इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि रुचियाँ और दृष्टिकोण मनोवैज्ञानिक निर्धारको के रूप में सशक्त भूमिका निभाने की पूरी क्षमता रखता है।
3) उपलब्धि अभिप्रेरणा एवं महत्वकांक्षा का स्तर (Achievement Motivation and Level of Aspiration)- जिस व्यक्ति की कोई महत्वाकांक्षा नहीं होती वों कुछ पाने का प्रयत्न नहीं करता है, ऐसा व्यक्ति भाग्य के भरोसे रहता है और कर्म पर विश्वास नहीं करता है। उसी तरह जो अधिक महत्वाकांक्षा रखते हैं वे संघर्षशील होते हैं तथा कर्म पर भरोसा करते हैं। वे अधिक सक्रिय होते हैं और आत्मविश्वास से पूर्ण व्यक्तित्व के होते हैं। इस तरह जिस प्रकार की उपलब्धि, अभिप्रेरणा और महत्वाकांक्षा का स्तर व्यक्ति का होगा उसी रूप में उसका व्यवहार और व्यक्तित्व भी ढल जाएगा।
4) संवेगात्मक एवं स्वभावगत विशेषताएँ (Emotional and Temperamental Characteristics) – व्यक्ति में संवेगात्मक विशेषताएँ उसके व्यवहार एवं व्यक्तित्व को रूप देती हैं। व्यक्ति में जिस प्रकार की सकारात्मक एवं नकारात्मक संवेगों की अधिकता होती है व्यक्ति विचारों और वस्तुओं के प्रति वैसा ही दृष्टिकोण बनाएगा। शांत प्रकृति वाला व्यक्ति सबके हित में सोचेगा वहीं नकारात्मक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति में हमेशा असंतोष ही दिखाई पड़ेगा।
आत्मबोध के अन्तर्गत वे सभी बातें आ जाती हैं जो व्यक्ति अपने बारे में रखता है, जैसे उसकी स्वयं के बारे में राय, प्रत्यक्षीकरण, दृष्टिकोण आदि। इसका तात्पर्य यह है कि व्यक्ति अपने शरीर के बारे में कैसा प्रत्यक्षीकरण करता है, जैसे, उसका रंगरूप कैसा है, उसमें क्या योग्यताएं एवं क्षमताएं हैं, समाज में उसकी क्या स्थिति है, उसका दूसरों से मेलजोल कैसा है तथा वह स्वयं कैसा लगता है, आदि।
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