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मापन की त्रुटियाँ (Errors of Measurement)
मापन त्रुष्टि से हमारा अभिप्राय किसी व्यक्ति द्वारा परीक्षा के आधार पर प्राप्त वास्तविक अंकों (True Scores) और अनुमानित अंकों में पाए जाने वाले अन्तर से है। जैसे- एक बालक की बुद्धि लब्धि 150 है और बिने-साइमन परीक्षण प्रशासित करने पर उसकी बुद्धिलब्धि (I.Q.) 120 आती है तो कहा जाएगा कि हमारे परीक्षण में मापन त्रुटि है तथा वह कम विश्वसनीय है।
गुलिक्सन ने मापन त्रुटि को इस प्रकार से अपने शब्दों में परिभाषित किया है, “यह वास्तविक अंक और मानक अंक के बीच मतभेद (अन्तर) के वितरण का मानक विचलन है।’
According to Gulikson, “It is the standard deviation of the distribution of differences between observed scores and true scores.”
परीक्षण निर्माण करते समय यह मानकर चलना चाहिए कि-
- व्यक्ति में मापन योग्य मूल्य एवं क्षमता होती है। (Individual has measurable values or capability)
- आंकलन में त्रुटियाँ रह जाती हैं। (The assessment contains errors)
- एक मानक अंक वास्तविक एवं त्रुटिपूर्ण अंक से मिलकर बना होता है। (An observed score is made up of True Score and Error Score)
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि मापन त्रुटि तथा परीक्षण की विश्वसनीयता में विपरीत सम्बन्ध होता है अर्थात् मापन त्रुटि जितनी कम होती है परीक्षण की विश्वसनीयता उतनी ही उच्च समझी जाती है। इसी मापन त्रुटि के आधार पर परीक्षण की विश्वसनीयता का मूल्यांकन किया जाता है।
मापन त्रुटियों के प्रकार (Types of Measurement Errors)
मुख्य रूप से मापन में दो प्रकार की त्रुटियाँ पाई जाती हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-
1) आकस्मिक अथवा संयोग त्रुटि (Incidental or Accidental Error)-परीक्षा लेते समय या विद्यार्थियों के समूह को परीक्षण देते समय कभी-कभी अनायास ही कुछ ऐसी परिस्थितियाँ या बाधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं जिनसे परीक्षा परिणाम परोक्ष रूप से प्रभावित हो जाता है। इस त्रुटि का स्वरूप हमें तीन प्रकार से देखने को मिलता है-
- i) परीक्षण केन्द्रित त्रुटि,…
- ii) विद्यार्थी केन्द्रित त्रुटि एवं
- iii) फलांकन केन्द्रित त्रुटि ।
परीक्षण केन्द्रित त्रुटि के अन्तर्गत वे सब त्रुटियाँ आती हैं जो परीक्षण सम्बन्धी परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होती हैं, जैसे- परीक्षार्थियों को ठीक-ठीक निर्देश न देना, प्रकाश का अभाव सबको समान समय न मिलना आदि। दूसरे, यदि एक ही समय पर सम्पूर्ण जनसंख्या में से दो अलग-अलग न्यादर्श चुने जाए तब भी त्रुटि की सम्भावना कम रहेगी। इसी प्रकार विद्यार्थी केन्द्रित त्रुटियाँ विद्यार्थी से सम्बन्धित होगीपरीक्षार्थी से सम्बन्धित अनेक ऐसी त्रुटियाँ होती हैं जो उनके परीक्षा परिणामों को प्रभावित करती हैं। जैसे- परीक्षार्थी का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, अभिप्रेरणा, आत्मबल, कार्यशक्ति, संवेग एवं रुचि आदि।
इसी प्रकार मापन सम्बन्धी त्रुटियों से हमारा आशय विभिन्न परीक्षकों द्वारा अपनाए जाने वाले मूल्यांकन के तरीकों से है। हमारी वर्तमान परीक्षाओं का स्वरूप निबन्धात्मक है, ऐसी स्थिति में में परीक्षक को मूल्यांकन करते समय अपनी आत्मनिष्ठता एवं मनमानी करने के पर्याप्त अवसर मिल जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप परीक्षा परिणाम अधिकता से प्रभावित होता है।
2) क्रमिक त्रुटियाँ (Systematic Errors)- इसे पक्षपात त्रुटि भी कहते हैं क्योंकि इस परीक्षा के पक्षपातपूर्ण रवैये से इनका प्रभाव भी अत्यन्त हानिकारक सिद्ध होता है। इन कारणों में व्यक्तिगत द्वेष भावना, पूर्वाग्रह, पूर्व धारणाएँ, दूषित विचारधाराएँ, असत्य परीक्षण गलत सिद्धान्त आदि प्रमुख हैं। ये त्रुटियाँ आकस्मिक त्रुटियों की अपेक्षा अधिक घातक होती हैं किन्तु ये त्रुटियाँ अविरल होती हैं। उदाहरणार्थ – एक विज्ञान सम्बन्धी विद्यार्थी बॉयल के नियम में पारे की स्थिति पढ़ने में शीघ्रता के कारण गलत माप लेता है, पेण्डुलम (Pendulum) की गति निकालने सम्बन्धी प्रयोग में स्टॉप-वॉच का सही प्रयोग नहीं कर पाना, प्रथम टेस्ट में सारणी ठीक से नहीं देख पाना या किसी परीक्षण से सम्बन्धित मैनुअल को ठीक से नहीं समझ पाना आदि त्रुटियाँ अनुसंधानकर्ता से परोक्ष रूप से जुड़ी होती हैं। मानव व्यवहार अत्यन्त जटिल है तथा इसे सरलता से नहीं समझा जा सकता इसीलिए समस्त कारकों को सम्मिलित नहीं किया जा सकता है फिर भी इस त्रुटि की सम्भावना को कम करने की दृष्टि से अधिक से अधिक कारकों को नियंत्रित करना चाहिए।
मरसेल (Marsell) ने मापन त्रुटियों का दूसरा वर्गीकरण इस प्रकार से किया है- इनके अनुसार मापन त्रुटियों निम्न चार प्रकार की होती हैं-
1) विवेचनात्मक त्रुटियाँ (Interpretative Errors) – विवेचनात्मक त्रुटियाँ उपयुक्त सन्दर्भ बिन्दु न मिलने से घटित होती हैं। जब परीक्षणकर्ता अनुमान लगाकर प्राप्त अंक का विवेचन कर देता है तो इस प्रकार के मापन की त्रुटि विवेचनात्मक त्रुटि कहलाती है। प्रायः ये त्रुटियाँ परीक्षण की मानकीकरण प्रक्रिया से सम्बन्धित होती हैं। मानकीकरण प्रक्रिया में परीक्षण सम्बन्धी मानक पहले से ही तैयार होते हैं जिनके आधार पर किसी व्यक्ति के अंकों की गणना समूह के प्रदत्तों से की जा सकती है। जैसे- यदि कोई छात्र आगे चलकर भविष्य में किसी कॉलेज में प्रोफेसर बनना चाहता है तो ऐसी स्थिति में उसके एकेडमिक स्कोर्स की तुलना कॉलेज के किसी प्रोफेसर के एकेडमिक स्कोर्स (Academic Scores) से की जानी चाहिए न कि मेडिकल या इंजीनियर कॉलेज के प्रोफेसर के अंकों से। अभिप्राय यह है कि इस प्रकार की त्रुटियों को कम करने के लिए परीक्षण मानकीकरण प्रक्रिया का सहारा लेना चाहिए।
2) परिवर्त्य त्रुटियाँ (Variable Errors) – इस प्रकार की त्रुटियाँ विभिन्न कारणों से उत्पन्न अशुद्धियों के परिणामस्वरूप घटित होती हैं। ये त्रुटियाँ परिवर्त्य इसलिए कही जाती है क्योंकि इनकी मात्रा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग होती हैं। विश्वसनीयता इस त्रुटि को ज्ञात करने की कसौटी मानी गई है। विश्वसनीयता का आशय एकरूपता से है अर्थात् किसी व्यक्ति का हर परीक्षण में समान अंक प्राप्त होने से है। वस्तुतः भौतिक परिस्थितियों को समान बनाना सम्भव प्रतीत नहीं होता है। यही कारण है कि परीक्षण को दो विभिन्न परिस्थितियों में प्रशासित करने पर प्रभावित व्यक्तियों के परीक्षण अंकों में असमानता आ जाती है। यही परिवर्त्य त्रुटि कहलाती है। इस प्रकार अवसर तत्त्व के फलस्वरूप दूसरी बार की प्रतिकूल परिस्थितियाँ परीक्षण परिणामों को अवश्य ही प्रभावित करती हैं। संक्षिप्ततः इस प्रकार की त्रुटियों का स्वरूप निम्नलिखित प्रकार का हो सकता है-
i) परीक्षण केन्द्रित त्रुटियाँ (Test-Centred Errors)- परीक्षण को ठीक प्रकार से समझ न पाने पर होती है।
ii) विद्यार्थी केन्द्रित त्रुटियाँ (Student-Centred Errors) – अकस्मात् विद्यार्थी की व्यक्तिगत परेशानियों के कारण होता है, जैसे- परीक्षा के समय बीमार हो जाना आदि।
iii) प्रक्रिया केन्द्रित त्रुटियाँ (Process-Centred Errors) – एक स्वस्थ्य व्यक्ति की तुलना में एक थका हुआ व्यक्ति परीक्षण में कम अंक प्राप्त करेगा।
iv) गणना केन्द्रित त्रुटियाँ (Scoring-Centred Errors)- गणना केन्द्रित मूल्यांकन दोषपूर्ण होता है क्योंकि यह आत्मनिष्ठ तरीके से किया जाता है।
एक ही परीक्षण को दो विभिन्न अवसरों पर प्रशासित करते समय भौतिक परिस्थितियों को समान बनाए रखने का प्रयास किया जाए तो इस प्रकार की त्रुटि को कम किया जा सकता है।
3) व्यक्तिगत त्रुटियाँ (Personal Errors) – जो तत्त्व व्यक्ति को आत्मनिष्ठ रूप से प्रभावित करें उन्हें व्यक्तिगत त्रुटि कहते हैं। मानव सुलभ प्रवृत्ति है कि वह किसी वस्तु या परिस्थिति का अवलोकन अपने ही ढंग से करता है। इसी कारण से कभी-कभी दो व्यक्ति एक ही वस्तु के बारे में व्यर्थ के तर्क-वितर्क में उलझ जाते हैं तथा एक मत नहीं हो पाते। मनुष्य के मस्तिष्क पर आत्मनिष्ठा तत्त्व इतना अधिक हावी रहता है कि वह छोटी सी छोटी बातों पर भी विवेकपूर्ण सहमति नहीं दे पाता है।
परीक्षक की दृष्टि से भी यह तथ्य स्पष्ट होता है जब दो परीक्षक एक ही परीक्षार्थी को भिन्न-भिन्न अवसरों पर भिन्न-भिन्न ग्रेड व अंक प्रदान करते हैं। अंकों का यह विचलन स्पष्ट करता है कि परीक्षक में भी व्यक्तिगत त्रुटियाँ होती हैं जो उसके मनोभावों से प्रभावित रहती हैं। इससे स्पष्ट होता है कि व्यावहारिक क्षेत्र में मापन करते समय व्यक्तिगत त्रुटियों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस प्रकार की त्रुटि को वस्तुनिष्ट प्रविधियों का प्रयोग कर कम किया जा सकता है।
4) स्थिर त्रुटियाँ (Constant Errors) –अधिकांश शील गुणों का मापन प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता, इसी तथ्य पर स्थिर त्रुटियाँ आधारित होती हैं। जैसे- किसी व्यक्ति को बुद्धिमान सिद्ध करने के लिए उसकी खोपड़ी की चीर-फाड़ करना आवश्यक नहीं, न ही खोपड़ी के अन्दर झाँककर देखा जा सकता है और न ही चिमटी से बुद्धि को बाहर खींचा ही जा सकता है बल्कि उस व्यक्ति द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर हम उस व्यक्ति की बुद्धिमत्ता का आंकलन करते हैं कि वह बुद्धिमान है अथवा नहीं।
इस त्रुटि को स्थिर त्रुटि इसलिए भी कहा जाता है कि इसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए त्रुटि की मात्रा समान होती है। प्रायः इस प्रकार की त्रुटि का सम्बन्ध परीक्षण वैधता से है। अतः यह जानकर इस त्रुटि को कम किया जा सकता है कि परीक्षण तत्त्व का मापन किस सीमा तक हो रहा है, जिसके लिए उसका निर्माण किया गया है। इस त्रुटि का सामान्य अर्थ है-
“They are called constant errors because the amount of error will be the same for every person, no matter when and how many times the measurement is made.”
जिस शील गुण का मापन हम करना चाहते हैं उसके बारे में प्रत्यय बिल्कुल स्पष्ट हो। जैसे- एक अच्छा मूल्य परीक्षण उसी स्थिति में बनाया जा सकता है जब हमें मूल्य तथा दृष्टिकोण में अन्तर का ज्ञान स्पष्ट हो।
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