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मापन के आवश्यक तत्त्व | Essential Elements of Measurement in Hindi

मापन के आवश्यक तत्त्व | Essential Elements of Measurement in Hindi
मापन के आवश्यक तत्त्व | Essential Elements of Measurement in Hindi

मापन के आवश्यक तत्त्व (Essential Elements of Measurement)

मापन के अन्तर्गत व्यक्तियों या वस्तुओं के किसी गुण या विशेषता आदि का वर्णन किया जाता है। किसी गुण का वर्णन करने से पूर्व कुछ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बातों पर विचार करना आवश्यक होता है। मापे जा रहे गुण की स्पष्ट रूप से व्याख्या करना, उस गुण की कार्यकारी परिभाषा तैयार करना तथा गुण को इकाइयों के रूप में व्यक्त करने की प्रविधि का निर्धारण करना ही वास्तव में मापन प्रक्रिया के तीन आवश्यक तत्त्व हैं। इन तीनों तत्त्वों का वर्णन निम्नवत् है-

1) गुण की व्याख्या (Interpretation of Attribute) – व्यक्तियों या वस्तुओं के किस गुण का मापन करना है। इसके निर्धारण के उपरान्त गुण को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करना आवश्यक है। इससे मापन कार्य सरल, सुगम तथा स्पष्ट हो जाता है। प्रायः भौतिक गुणों, जैसे- लम्बाई, भार आदि की व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि सभी व्यक्तियों के लिए इनका अभिप्राय एक ही होता है परन्तु शैक्षिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक गुणों के लिए यह उचित नहीं है। भिन्न-भिन्न व्यक्ति इन गुणों के भिन्न-भिन्न अर्थ लगा सकते हैं। उदाहरण के लिए- बुद्धि शब्द का अर्थ भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिकों के लिए भिन्न-भिन्न हो सकता है। कुछ विद्वान बुद्धि को समायोजन की योग्यता मानते हैं जबकि कुछ विद्वान सीखने की योग्यता मानते हैं तथा कुछ अन्य विद्वान इसे चिन्तन की योग्यता मानते हैं। अतः मापन करने से पूर्व मापनकर्ता के समक्ष यह पूर्णरूपेण स्पष्ट होना चाहिए कि जिस गुण का मापन उसे करना है उस गुण का अभिप्राय क्या है। स्पष्टतः प्रथम चरण में मापन का कार्य मापन किए जाने वाले गुणों की स्पष्ट व्याख्या करना है।

2) गुण की कार्यकारी परिभाषा (Working Definition of Attribute)- मापन किए जाने वाले गुण की व्याख्या करने के उपरान्त मापन कार्य का दूसरा सोपान गुण की कार्यकारी परिभाषा तैयार करने का कार्य आरम्भ होता है। इसके लिए उन संक्रियाओं को निश्चित करना होता है जिससे मापनकर्ता वांछित गुण की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति को पहचान सके । यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि गुण की व्याख्या तथा उसकी कार्यकारी परिभाषा में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। वास्तव में कार्यकारी परिभाषा में प्रयुक्त संक्रियाएँ ही गुण की व्याख्या को प्रत्यक्ष व स्थूल रूप से अभिव्यक्त करती हैं। जैसे- कक्षा एक के विद्यार्थियों की हिन्दी भाषा की सम्प्राप्ति के लिए शब्दों को पहचानने, लिखने तथा एक या दो शब्दों को जोड़ने की योग्यता के द्वारा कार्यकारी रूप से परिभाषित किया जा सकता है। स्पष्ट है कि इसमें मापनकर्ता के लिए वे संक्रियाएँ बताई गई हैं जिनके द्वारा वह कक्षा एक के विद्यार्थियों में हिन्दी भाषा की मात्रा को व्यावहारिक रूप से ज्ञात कर सकता है।

3) गुण को इकाइयों के रूप में व्यक्त करना (Interpret Attribute in the Form of Units)- मापन के इस अन्तिम सोपान में संक्रियाओं के आधार पर गुण को इकाइयों के द्वारा व्यक्त किया जाता है। स्पष्ट है कि यह मापन का वास्तविक सोपान है जबकि पूर्ववर्ती दोनों सोपान इस सोपान की पूर्व तैयारी होते हैं। इस सोपान में व्यक्तियों या वस्तुओं में अन्तर्निहित गुणों के वास्तविक रूप का वर्णन किया जाता है तथा प्राप्त परिणामों को इकाइयों के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।

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Anjali Yadav

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